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अपने जीवन के लेखक

हम सभी हाथ की लकीरों को देखते है वो अक्सर बदलती है जब हम मेहनत करते है, अपने भविष्य का निर्माण करते है , अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करते है, अपने जीवन को बफलने के लिए संभव कार्य करते है हमे अपने जीवन को एक नई दिशा , नई गति देने के लिए अपना जीवन को लिखना होगा जो हम चाहते है वही हम बन जाते है , इसी पर आज का शब्द है “अपने जीवन के लेखक” अपने जीवन के लेखक बने ……
अच्छे से स्वयं के मस्तिष्क पड़े ।
जितना जितना स्वयं को समझेंगे….
दूसरी से कम से कम हम उलझेंग़े ।

भीतर की बांते सतह पर आए…..
भीतर बनी गाँठे वो पिघल जाए ।
फिर ज़रूर बढ़ेगा समझ का दायरा….
मिलेगा अच्छी बांते लोगों का सहारा ॥

समय के अनुसार

समय के अनुसार इस शरीर को मृत्यु आती है कोई भी साधन इस मृत्यु को रोक नहीं पाता है, सब कुछ यही रह जाता है, कौन था राजा कौन रंक ये कौन जाने मृत्यु तो बस अपने रास्ते आती है, इस शरीर को मृत्यु ले जाती है
प्रकृति यह नियम अपनाती।
ये सब प्रकृति का केमिकल
लोचा….
शरीर सब तत्वों में मिल जाता जो नही था सोचा ॥

समय के अनुसार मृत्यु नही लगनी चाहिए वो बुरी……
इसमें एक ख़ुशी समय अनुसार चली जीवन की धुरी ॥

मृत्यु सच्चाई नही वो बुरी वो कड़वा सत्य लेकिन सत्य नही वो बुरी ॥

समय अनुसार प्रकृति अपना चक्र पूरा करती हे यह प्रकृति का चक्रव्यूह हे उसमें वो मतभेद नही करती राजा हो रंक हो अमीर हो गरीब हो ताकतवर हो कमजोर हो सब के साथ समान व्यवहार इसकी पहचान ।
प्रणाम प्रकृति को उसके सत्य को उसकी कार्यशेली को नमन वंदन बस सत्य कि माँ प्रकृति इस सत्य के दर्शन भीतर से हो पाए उसमें सहायक बनना आपका अति आभार ।

तुम हो समुद्र

तुम हो समुद्र तुम्हारा दुख तेज धूप तुम्हारी सहन शक्ति के आगे नतमस्तक हम , तुम्हारा बल अद्भुत तुम्हारी गाथा तुम हो अनेकों विचारों एक दाता तुम हो समुद्र दुःख तेज धूप…
धूप विकट समुद्र विराट स्वरूप ।
तेज से तेज धूप समुद्र का बाल भी
बाँका नही कर सकती …..
समुद्र चुप शांत कभी क्रुद्ध धूप की
तो एक नियत शक्ति ।

तुम हो समुद्र तुम्हारे दुःख तेज धूप….
धूप शक्ति नही बदल सकती समुद्र रूप
कोई कुछ बोले करे मनन रहे सदा शांत….
इस बात में हित लाभ मन भी होगा प्रशांत ॥

सच्चा मित्र

एक अस्त्र ही बहुत है वह अस्त्र आपका मित्र है , जिस मित्र के सदा विजय नहीं चाहिए सहस्त्र मित्र बस एक ही हो वो सच्चा मित्र मित्र आपका अस्त्र…
एक ही बहुत
नही चाहिए वो सहस्त्र ।
मित्र सच्चा सहयोगी….
सुगंध उसकी सर्वत्र उपयोगी ।

मित्रता की सदा विजय हो ,
मित्रता ही नारा ।

एक अस्त्र ही बहुत है, वह अस्त्र मेरा मित्र है,
जो सदा विजय नहीं चाहता, सहस्त्र मित्र बस एक ही है।

वो सच्चा मित्र, जो मेरे साथ सदैव खड़ा है,
जब भी जरूरत पड़ी मेरी, मेरे पास हमेशा आया।

उसकी आँखों में छिपी है विश्वास की ज्वाला,
वो मेरी हर बात को समझता, मेरे दुखों को महसूस करता।

जब समय था मुझे पीछे खींचते अंधकार के घेरे,
वह मेरे साथ चला, मेरे साथ हैरानी और डरे।

जब भी जीवन की लहरें मेरे सामने उठाएं,
वो सहारा बनकर मेरे पास खड़ा रहे आए।

उसने मुझे शक्ति दी, सामर्थ्य की प्रेरणा दी,
जिससे जीता मैं हर युद्ध, हर मुश्किल से लड़ा हूँ।

उसका आभास हर सांस में है, हर धड़कन में बसा,
वो सच्चा मित्र, जो मेरे जीवन का अद्वितीय रंग बना।

जब भी मैं उदासी से भरा, अशांति से घिरा हूँ,
वो मेरे पास आकर मुझे हंसाता, खुशियों से भर देता है।

सदा मेरे पक्ष में स्थिर रहकर, मेरे साथ चलने वाला,
हर संकट और समस्या से मुझे बचाने वाला।

वो जिसका नाम प्यार से जुड़ा है,
जो सदैव मेरे जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान धरा है।

इस अस्त्र की शक्ति सदैव मेरी आस्था बनी रहे,
सहस्त्र मित्र, तू मेरा सच्चा मित्र है और रहेगा सदैव ही।

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लोग बदल जाते है

लोग बदल जाते हैं, अपनी ही बातों पर,
वो लोग तिक नहीं पाते हैं, खो जाते हैं अपार।

हो सकता है कोई उनकी मजबूरी हो,
जो बदल जाते हैं, उनकी आँखों में नूरी हो।

ज़िन्दगी की लड़ाई में, कई बार होती हैं ज़बानें जुबानी,
मजबूरी बदल देती हैं, रखती हैं लोगों की जुबानी।

कभी कभी दिल के धड़कनों की गहराई,
कुछ बातें समझाती हैं, बदल जाती हैं शक्ल और रंगों की सख़ाई।

मजबूरी एक ऐसी चिंता की बात होती है,
जो बदल देती हैं इंसान की ज़िन्दगी की रात होती है।

कभी कभी बदल जाते हैं इंसान के रूप,
जैसे वायु में बदलते हैं बादल, सिर्फ़ मौसम के सूखे बारिश के सूप।

मजबूरी जीवन का एक हिस्सा है,
पर इसे बहाना न बनाएं, राह बदलें, नया दरिया तराशें, नया अस्तित्व बनाएं।

क्या मजबूरी एक बहाना है या हकीकत,
इस पर चिंतन करें, ज़रा सोचें, विचार करें, और खुद को पता करें।

ज़िन्दगी द्वारा सबका चयन होता है,
बदलना ज़रूरी होता है, आपाधापी में भी आपने को छोड़ना होता है।

लोग बदल जाते हैं, अपनी ही बातों पर,
पर खुद को न खोएं, अपनी अद्वितीयता को बरकरार रखें इस बात पर।

लोग बदल जाते है अपनी ही बातों पर वो लोग तिक नहीं पाते है, हो सकता है कोई उनकी मजबूरी हो लेकिन क्या मजबूरी इतनी बड़ी जो अपनी ही बातों पर अडिग नहीं रह पाते वो , मजबूरी नहीं सामने खड़ी हो पाएगी, जब तुम करके रखो सारी तैयारी लोग बदल जाते है…..
सही बात पे नही अमल कर पाते ।
उनकी भी होगी कोई मजबूरी….
व्यक्ति को मजबूरी से ऊपर उठना ज़रूरी ।

मजबूरी तुम पे न हो भारी…..
जब कि होगी सही से तेयारी ।
नही लग जाएगी मजबूरी की बीमारी….
ओर तुम पे लगाम डाल के करेगी सवारी ॥

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असंभव को संभव

असंभव को संभव करना ही बहुत अच्छा लगता है ओर यह बात बिल्कुल खरी है की जब प्रयत्न किया जाए तो हर असंभव चीज संभव परिणामों से के साथ या जाती है इसलिए लगातार प्रयतन करना चाहिए ,

जिंदगी इसी को कहते है हमेशा लगता हे असम्भव,
जब तक कार्य हो नही जाता सम्पन्न ….
असम्भव बदल जाता हो जाता सम्भव,
जब कार्य को लेते जेसे बीता बचपन ॥

क़ार्य को माने बच्चा ,
ओर उसके साथ खेले ।
खेल खेल में कार्य को
सही दिशा में धकेले ॥

हम जब तक किसी भी कार्य की शुरुआत नहीं करते हमे उसके बारे में पता ही नहीं लगता, और वो कार्य कठिन भी बहुत है लगता है, इसलिए किसी भी को कठिन ना समझे बस शुरुआत करके के देखे जब तक शुरुआत नहीं होगी कोई परिणाम नहीं निकलेगा ओर वह कार्य भी असम्भव ही लगेगा , यदि कार्य को करने से पहले ही हार मान लोगे, तो सफलता कैसे मिलेगी इसलिए कोई भी कार्य असम्भव नहीं है बस उसकी शुरुआत जरूरी है। तभी असंभव को संभव किया जा सकता है।

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करीब

तुम इतने करीब ना आओ के हम तुम्हे छोड़ ना पाए बस थोड़ी दूरी बनाओ ताकि जन्मों तक साथ निभा हम पाए

इतना करीब होना कुछ खतरा लगता है, एक डर जो भीतर घर कर जाता है , कुछ एहसास ओर कुछ बात याद दिलाता है ये दिल मेरा कुछ कुछ घबराता है।

तुम्हारे दूर होने का भी एहसास भी दिलाता है, यह मन बहुत घबराता जब तुमको करीब नहीं पाता है