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विकल्पों का पतन

यहाँ एक चलन …..
हुआ विकल्पों का पतन ।

प्लास्टिक और रणनीति…..
दोनों की ज़रूरत वाली स्थिति ।

प्लास्टिक करता दूषित वातावरण…
प्लास्टिक का क्यों नहीं नया संस्करण ?

राजनीति भी बहुत मैली और दूषित….
मनो में भर दिया टनो ज़हर अघोषित ।

बोल रहे नहीं है दोनों का विकल्प ….
विचारहीन समाज अच्छाई हुई अल्प ।

ये विचार विकार बात यह ग़लत….
एक सौ चालीस करोड़ हुए बेइज्जत ।

सब एक दूसरे को दिखा रहे उँगली….
बस चल रहा है आके मिल उस गली ।

वैज्ञानिक खोजो को दे इस दिशा में बढ़ावा ….
विश्व से प्लास्टिक मिटे स्वस्थ सब , न करे छलावा।

यहां एक चलन है रुख़सार,
हुआ विकल्पों का पतन अनुभव।
परिवर्तित हुए दृष्टि के आयाम,
खो गई स्वतंत्रता की राह अविरल।

नगरी ने जीने की बंधन में डाला,
चुनौतियों से बनी अब वह भटकती है।
आदर्शों की गोद में लिपटी रही वह,
अब हर तरफ़ है प्रताड़ित और दबी हुई।

जब जगह नहीं रही सपनों की,
तब कैसे उड़े आवाज़ आज़ादी की।
हर तरफ़ दिखें बंधनों की खड़ी,
मन में जलती रहे आग स्वतंत्रता की।

फिर आया है वक़्त जागरूक होने का,
इस चलन को तोड़ देने का।
खुद को मुक्त कर, निकल पड़ो आगे,
अपनी अलख़ जगाओ और चमकाओ राहें।

चलो अब छोड़ो विकल्पों की मृत्यु,
जीवित हो जाओ स्वतंत्रता की प्रेरणा।
करो प्रगति को आगे बढ़ाना,
यही है जीने की सच्ची पहचाना।

आओ मिलकर नयी दिशा में चलें,
करें स्वतंत्रता की शोरगुल मचाएं।
जागो, उठो और बदलो समाज को,
यही है सच्ची आज़ादी की आज़ादी।

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