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स्वयं को जानेंगे

एक दिन आप स्वयं को जानेंगे –
“One day you will know yourself”
लेकिन कैसे ? इससे पहले तो क्या आप जानना चाहते है स्वयम को?
यह भी एक जिज्ञासा है यदि आपके भीतर स्वयं को जानने की इच्छा है तभी आप अपने गंतव्य तक पहुंच सकते है।
क्या आप जिज्ञासु है स्वयम के प्रति ? स्वयं को जानने के लिए , स्वयम को जानने की इच्छा होना ही जिज्ञासु कहाँ जाता है।

इस पुस्तक के माध्यम से आप स्वयम को पहचान सकते है बहुत सारे सवाल जो मेरे भीतर उठ रहे है क्या को आपके भीतर भी उठ रहे है ? यदि हां तो आप इस पुस्तक के माध्यम से पड़ाव दर पड़ाव अपने लक्ष्य की ओर अगर हो सकते है।
ये पुस्तक आपके और आपके जीवन का दर्पण दिखाने में सहायक होगी,
सफर है स्वयं को पहचाने का , जानने का , समझने का आप स्वयं को जानेंगे

क्या है हमारा मूल स्वरूप इस बात का पता लगाने का है?  कैसे कैसे हम सभी इस जीवन की दूरी को तय कर रहे है इस सफर को पूरा करने की क्या क्या कोशिश कर रहे है इस जीवन को हम किस प्रकार से समझ रहे है,
इस सफर को किस और ले जा रहे है ?
इस जीवन का क्या महत्व है ?
हमारे जीवन में  सभी व्यक्ति समय के अनुसार आते है और जाते है जिसका एक अपना कारण है हर एक व्यक्ति का अपना ही अलग कारण और महत्व होता है, जिसकी वजह से ये सारी घटनाएं होती है।

इस पृथ्वी पर किसी एक व्यक्ति  की महत्वकांशा कैसी है
तो किसी दूसरे व्यक्ति की कैसी सबकी अलग अलग है ओर कुछ की समान हो सकती है
सभी व्यक्ति इच्छाओ को लेकर पैदा हो रहे है और इच्छाओ की पूर्ति करने के लिए ही अपना जीवन व्यतीत करते है सभी व्यक्तियों की महत्वकांशा एक जैसी नही होती
महत्वकांशा– महत्व + आकांशा
हम अपनी इच्छाओं को जितना महत्व देते है यह उतनी ही बढ़ती जाती है

जो कभी पूरी नही होती सिर्फ वहीं इच्छाएं पूरी होती है जिनके साथ आधार मिल जाता है इसके विपरित नहीं इसलिए कुछ ना कुछ इच्छा हमारे साथ जुड़ी ही रहती है जिसका हमे पता भी नही चलता परत दर परत वो इच्छाएं हमसे जुड़ी है जो कभी ना समाप्त होती का एक फेर है हर एक असावधानी पर कुछ और घटना हमारे जीवन के साथ जुड़ जाती है जिनसे हट पाना बहुत मुश्किल सा प्रतीत होता है

हम सभी अलग अलग दिशा में कार्य करने की कोशिश करता है तथा उसी क्षेत्र में ही सफल होना चाहता है तथा इनमें कुछ बहुत सारे कार्यो को एक साथ करना चाहते है और उन सभी कार्यो में सफलता प्राप्त करना चाहते है , परंतु कुछ ही व्यक्ति उनमें से सफल हो पाते है और कुछ अपने जीवन स्तर से ऊपर भी नही उठ पाते

ऐसा क्या कारण है की वो अपने जीवन को एक उन्नत जीवन नही बना पाते ? या बनाना नही चाहते?
कौनसा है हमारे जीवन स्थान का बिंदु ? किस स्थान पर पहुचना है हमे ? कहाँ पहुचना चाहते है हम ? कैसे उस स्थान पर पहुचा जा सकता है ?
लेकिन इन प्रश्नों से पहले तो हमारे मन में शायद कितने ही प्रश्न उठते है हर व्यक्ति जानना चाहता है ऋषि मुनि कितने ही पुरुषों महापुरषो के मन में ऐसे प्रश्न आते रहते है ?
की  कौन हूँ मै ?
मैं इस पृथ्वी पर क्यों आया हूँ ?
कहाँ से आया हूं, कहाँ जाना है ?
अथवा जाउ तो कहाँ जाउ जैसा प्रश्न भी हो सकता है ? आप स्वयं को जानेंगे जब आप स्वयं से इसी तरह के प्रश्न पूछेंगे।

यदि हम नही भी जाना चाहते है तो हम अपनी मंजिल की और अग्रसर होते है। परंतु इन बातो में कुछ अंतर होता है इस जीवन से  हम क्या प्राप्त करना चाहते है ?
क्या कुछ है जो बाकी रह गया है ? जिसको हम पूरा करना चाहते है
किस और जाना चाहते है तथा क्या कारण है और क्यों ?

क्यों आवश्यक है हमे इस जीवन अर्थ को जानना यदि हम अपनी गति में नही चल रहे है तो भी चलना पड़ता ही है परंतु तब हम पृकृति के अनुसार नही चल रहे है इसका मतलब ये है की हमे एक सहयोगी तत्व बनाना है उसके अनुसार चलना है हमे अपनी खोज करनी है हमे हमारा वास्तविक स्वरूप जानना है उसका सही रूप से अवलोकन करना है की हम किस कारण से यहाँ आये है तथा हमारा वास्तिविक स्वरूप क्या है।

ये शरीर , बुद्धि और मन और मन के भीतर के विचार किस प्रकार के है
हमे इनको जानना है,
ये शरीर क्या चाहता है? इस शरीर की इच्छा और अनिच्छा क्यों और कैसे उतपन्न हो रही है?
क्या इच्छा है और ये इच्छाएं किस प्रकार से कार्य करती है?
हमारे शरीर के अंग हमारी किस प्रकार से सहायता करते है?
ये शरीर हमे किस स्तिथि की और अग्रसर कर रहा है? हमारा जीवन किस और जा रहा है ? ये सफर लंबा है इस जीवन की यात्रा हमे किस और लिए जा रही है ? हमारा अस्तित्व क्या है ? क्या है हमारा मूल स्वरूप हम सभी यह जानना चाहते है

इस जीवन की यात्रा को कैसे सुखद जीवन बना सकते है? हमने यह सफर कहाँ से शुरू किया और ये सफर हमे कहाँ ले जा रहा है, क्या इस यात्रा का कोई अंतिम चरण है या ये यात्रा इसी प्रकार से चलती जा रही है ? कहते है हमे 84 लाख योनियों से होकर गुजरना पड़ता है यह हमारी इस जीवन यात्रा का सच है लेकिन क्यों हमे इन 84 लाख योनियो से गुजरना पड़ता है क्या कारण है?
यदि हमे ना जाना हो तो?

क्या कोई जबरदस्ती है की यही सफर तय करना पड़ेगा और कोई रास्ता नही है क्या ?
जो इतनी लंबी यात्रा है, इस जीवन की असल में ये लंबी नही बल्कि छोटी है, उन सभी के लिए जिनकी इच्छओं की पूर्ति नही हो रही क्योंकि वो जीवन मरण के चक्र को छोड़ना ही नही चाहते उनकी छोटी इच्छाएं इस प्रकार से चिपकी हुई है मानो वो कभी छोड़ना ही नही चाहते है।

जानने की शुरुआत

जानने की शुरुआत कहाँ से हुई , यह सवाल जीवन में एक बार तो सबके मन में उठता ही है, की मैं कौन हूँ ? और इस जीवन का क्या अर्थ है? फिर चाहे वो इन प्रश्नों पर गौर करे या नहीं बहुत सारे सवालों की भांति इन सवालों को छोड़ देता है ओर जीवन की व्यस्तता में खुद को खो देता है।

लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ यह वो प्रश्न था जिस पर मैं अटक गया मैं इस प्रश्न से हटने को तैयार नहीं था, इस प्रश्न का जवाब नहीं मिल रहा था उससे पहले मैं आपको बताता हूँ यह प्रश्न मेरे मन में कब ओर कैसे आया? स्वयं को जानने की शुरुआत होती है।

कौन हूँ मैं यह प्रश्न कब ओर कैसे उठा मेरे मन में

मेरी उम्र 13 साल थी जब मैं कक्षा 8 के फाइनल पेपर देकर रिजल्ट का इंतजार कर रहा था, हम एक सयुक्त परिवार में रहते थे अभी सब अलग अलग रहते है जैसे जैसे परिवार बड़े होते गए जगह छोटी पड़ती गई ओर हम इधर उधर बस गए, तो उस दिन घर पर सभी लोग नहीं थे क्युकी बड़े बड़े भाई माँ वैष्णो देवी के दर्शन के लिए निकले थे शाम को उसी शाम अचानक मेरी दादी जी की तबीयत खराब हो गई ओर तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी, घर वालों को लगा की अब इनका अंतिम समय आ गया है तो अब गीता का पाठ कर लेना चाहिए ताकि अच्छे शब्द कानों में जाए।

तो मैं श्रीमद भागवत गीता अपने कमरे से ले आया ओर मैंने पढ़ना शुरू कर दिया कुछ देर पढ़ने के उपरांत ही दादी जी का देहांत हो गया।

सुबह होते ही उन्हे किरयाकर्म के लिए यमुना घाट ले जय गया जैसे जैसे यह सभी किरयाए चालू हुई मेरे मन में प्रश्न उठने शुरू हो गए की मैं भी एक दिन मरूँगा , मुझे भी इसी तरह से जाना होगा ? जब शरीर अग्नि में दाह हो रहा था तब सिर्फ वह शरीर राख का ढेर हो रहा था तभी मेरे मन से विचार उत्पन्न हुआ यह मिट्टी का शरीर एक दिन यू ही राख ढेर बन जाएगा फिर इस जीवन का क्या फायदा जब यह तन यू ही राख में मिल जाएगा। उस समय प्रश्न यह नहीं उठा की मैं कौन हूँ लेकिन वो शुरुआत हुई जब पूरा शरीर राख ही होना है तो इस शरीर का होना ही क्यू है? इसका क्या करू मैं?

मुझे घर आने के बाद बहुत अजीब से ख्याल आने लगे ओर मेरी तबीयत ठीक न थी मुझे यह सोच घबराहट होने लागि बस उलटी हो रही हो बार ऐसे जी कर रहा था तब मेरी ममी ने मुझे मामी जी के साथ उनके घर भेज दिया था की मैं 2-4 दिन वही रह आऊ बस फिर मैं 2-3 दिन वापस आया घर तब तक सब ठीक लग रहा दुबारा उस समय तो विचार शांत हुए लेकिन मेरे मन में प्रश्न उठने लगे कुछ समय बाद फिर

स्वयं को जाने

स्वयं को जाने की कौन हूँ मैं यह एक प्रश्न ही बना हुआ है, लेकिन यह प्रश्न भी तभी तक है जब तक आपके मन में इस प्रश्न का उत्तर जानने की इच्छा नहीं है, नहीं तो यह प्रश्न फिर प्रश्न नहीं रहता उत्तरों की भरमार होती आपके पास, इसलिए अपने प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आज से ही अपने भीतर की यात्रा को शुरू करे ओर जानिए की आप कौन है? आपका इस जीवन को पाने का क्या उद्देश्य है।

यदि कोई ओर व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर देगा तो उसका उत्तर शायद आपके लिए सही न हो क्युकी हम सभी की यात्रा का अर्थ अलग है।

जिन महापुरुषों ने इस प्रश्न का उत्तर जानने की इच्छा की उन्होंने जान लिया ओर जो लोग संसार के दवंध में फंसे वो फिर फंसे ही रहे इससे बाहर वो नहीं आ सके, इस प्रश्न का उत्तर हमारी दृढ़ इच्छा पर ही निर्भर करता है इसलिए दृढ़ निश्चय कर, दृढ़ संकल्प करो ओर भीतर की यात्रा शुरू करो तभी हमे सफलता मिलेगी।

स्वयं को जाने

आपके भीतर अनंत जिज्ञासा होने पर ही इस सवाल का जवाब मिल सकता है, यदि आपके मन भीतर इस प्रकार के प्रश्न उठते है तो आप स्वयं को एक जिज्ञासु के रूप में देख सकते है, परंतु इस प्रकार के प्रश्न उठे ओर आपने शांत कर दिए तो फिर आप जिज्ञासु कहाँ बस फिर तो आप किसी चीज को देखकर पढ़कर ही यह सवाल कर रहे है।

यदि आपके भीतर वास्तव में ऐसे प्रश्न उठते तो आप उन सवालों का उत्तर जानने के ईछुक हो ओर आप अपने आसपास के लोगों से , मित्रों व अन्य चीजों का सहारा लेते हो इन प्रश्नों का हल खोजने के लिए फिर आपको काही दूर नहीं जाना होता बस स्वयं में गोते लगाने होते है।

इस प्रश्न का उत्तर आपको 9 मिनट में भी मिल सकता है, ओर 9 जन्मों में भी न मिले ऐसा भी हो सकता है आप कितने जिज्ञासु है स्वयं की खोज के लिए यह इसी बात पर निर्भर करता है, फिर भी मैं आपको 4 ऐसी बाते बताता हूँ, जिसका सहारा लेकर आप स्वयं की खोज को शुरू कर सकते है।

1- ध्यान करना अत्यंत आवश्यक है।

2- अपने विचारों को देखना।

3- वर्तमान काल में ही जीवन को जीने की कोशिश करना।

4- स्वयं के साथ जिओ