यह मन भी ना जाने क्या क्या करता है कभी, लिखने का मन
कुछ करने का मन
कुछ हो जाने का मन
कुछ भाग जाने का मन
कुछ दूर जाने का मन, कभी पास होने का मन
कुछ नजर चुराने ओर मिलाने का मन
यूं गम को छिपाने और गम बताने का मन
फिर उसको समझाने का मन, कुछ ना बताने का मन
मालूम नहीं क्या क्या
और किस किस
हद्द से गुजर जाने का मन
बस आज यह मन चाहता है,कुछ करने को, कुछ होने को
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यह मन अधीर
यह मन , यह मन
यह मन अधीर हुए जाए
ना समझ आए कुछ
यह मन कहना क्या चाहे
बस पहेली सी बुझाए
सवाल की झड़ी
दिमाग में लगाए
कभी घबराए
कभी साहस दिखाए
कभी चुप बैठ जाए
कभी शोर मचाए
कभी क्रोधित हो जाए
कभी शांत ही जाए
फिर सोच मन बार बार घबराए
आगे अब क्या हो ?
जो यह दिमाग भी समझ ना पाए
पुनः पुनः
बस इसी विषय में सोच कर
दिन रात बीत चली जाए
क्या करू अब मै?
यह मन
यह मन
यह मन अधीर हुआ जाए
यह मन, यह मन,
मन अधीर हुए जाए।
ना समझ आए कुछ,
जैसे धुंधली रात के अंधेरे में खो जाए।
खोये हुए ख़्वाबों के संसार में,
यह मन विचलित हो जाए।
चाहे तो खुद को ढूंढे,
पर कहीं ना पाए, अधीर हो जाए।
जब अँधेरा छाये,
और रास्ता दिखाई न दे।
कोई राह निकले दिल की,
मन खुद को तंग करे, चिढ़ाए।
पर फिर भी यह मन,
उम्मीद की किरण में जगमगाए।
चाहे हो जाए अधीर,
फिर भी खुशियों से अभिभूत हो जाए।
यह मन, यह मन,
जो अधीर हो जाए।
दूर जाए सभी चिंताएं,
और खुशियों से भर जाए।
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मन को कैसे रोके
इस मन को कैसे रोके जो मन भीतर हो रही है उछल कूद है
इस मन को कैसे रोके
इस मन के आवेश में कितने है झोंके
इस मन को कैसे रोके
यह मन यह मन
इधर उधर ले जाए
जीवन संग सतरंगी सपने सजाए
जीवन की उधेड़ बुन में लगाए
नए नए रंग जीवन संग जोड़े
इन रंगों में इंसान खुद ही गुम हो जाए
इस मन भीतर अनेक कल्पना सज रही है
जो ये मन सजाए
इस मन को कैसे कैसे
हम समझाए
नित नए कार्यों में यह मन लग जाए