Date Archives June 2023

कुछ जो ख्वाब थे

कुछ जो ख्वाब थे ,कुछ इन ख्वाबों की बाते थी ,इन ख्वाबों संग कुछ यादे भी थी ,वो यादे जो थी कुछ बेहतर होने को ,जिंदगी संग जिंदगी होने को

कुछ जो ख्वाब थे, वो आज भी ताजा हैं,
जैसे नदी के पानी में तैरते थे वो आज भी संग हैं।

छोटी-छोटी उमंगों से भरी थी वो रातें,
जब अकेले में भी लगता था कुछ साथ हैं।

वो ख्वाब बन कर उड़ जाते थे सुबह को,
जैसे हवा में ताजगी का एहसास हो।

खुली आंखों से देखा जाए तो लगता है,
वो ख्वाब ही थे जो असलीता से भी बेहतर हैं।

जो ख्वाब थे, वो आज भी ताजा हैं,
जैसे नदी के पानी में तैरते थे वो आज भी संग हैं।

हर एक ख्वाब ने दिल में उत्साह भरा था,
जैसे बनाना हो खुशियों का घेरा था।

मगर जब राह में आई तकलीफें और मुश्किलें,
तब ख्वाबों ने मदद की थी और सहारा दिया था।

जो ख्वाब थे, वो आज भी ताजा हैं,
जैसे नदी के पानी में तैरते थे वो आज भी संग हैं।

ख्वाबों से भरी हुई थी हमारी जिंदगी,
जो बनते थे हमारे सपनों की रचनाएं।

आज उन ख्वाबों को हम बहुत याद करते हैं,
जो हमको जीने की राह दिखाते थे और भरोसा दिलाते थे।

इन ख्वाबों को नहीं भूल सकते हम,
क्योंकि इन्ही ख्वाबों से हमने अपने जीवन की कहानी लिखी हैं।

जो ख्वाब थे, वो आज भी ताजा हैं,
जैसे नदी के पानी में तैरते थे वो आज भी संग हैं।

हिसाब किताब

कुछ हिसाब किताब अब भी बाकी है,
कुछ सवाल जवाब अब भी बाकी है।

ज़िन्दगी की ये लड़ाई हमेशा जारी है,
सफलता की राहों में अटके हमारे पैर।

कितने ही रास्ते हमने चुने,
कितनी बार हमने बदले मुड़ लिए।

मगर एक बार फिर से उठेंगे हम,
इन अटके पैरों को ज़मीन पे जमाएंगे हम।

हर सवाल का जवाब हमें मिलेगा,
हर मुश्किल में एक नया सीख मिलेगा।

क्या हम हार मानेंगे ज़िन्दगी से,
नहीं, हम फिर से लड़ जाएँगे ज़िन्दगी से।

कुछ हिसाब किताब अब भी बाकी है,
कुछ सवाल जवाब अब भी बाकी है।

लेकिन हम नहीं हारेंगे इस लड़ाई से,
हम जीतेंगे, और जीतेंगे हम सबको साथ लेके।

ख्यालों को अधूरा कैसे

ख्यालों को अधूरा कैसे छोड़ दु , जिन ख्यालों के सहारे जी रहा हूँ , ख्यालों को अधूरा कैसे छोड़ दु,
जो मेरे साथ चला हर वक़्त मुझसे जुड़ा हुआ है।
कैसे छोड़ दूँ उन्हें जो मेरे दिल के कोने में बसे हुए हैं,
जो मुझे हमेशा याद रखने को कहते हैं।

ख्यालों की दुनिया में मैं हर पल बसता हूँ,
तनहाई में भी वो मुझसे मुलाकात करते हैं।
उनके बिना मेरी ज़िन्दगी मायूष सी लगती है,
ख्यालों के सहारे ही तो मैं जी रहा हूँ अब तक।

लेकिन ऐसा होता है कभी-कभी,
कि ख्यालों का साथ छूट जाता है मेरे से।
कौनसा वो तार है जो टूट जाता है , उनकी यादों के साथ मैं अकेला रह जाता हूँ,
उनके बिना जीना मुश्किल स हो जाता है।

अधूरा कैसे छोड़ दूँ उन्हें जो मेरे दिल में बसे हुए हैं,
जो मुझे हमेशा याद रखने को कहते हैं।
ख्यालों को अधूरा छोड़ने के लिए मैं तैयार नहीं हूँ,
वो मुझसे जुड़े हुए हैं, मेरे साथ हमेशा रहेंगे।

ख्यालों को अधूरा छोड़ने से पहले,
मैं उन्हें पूरा कर लूँगा जी भर के।
उनसे बातें करूँगा, खुशियों के पल बिताऊंगा,
और उनसे कहूँगा कि वो मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा हैं, कहानी है, वो किस्सा है

आदिपुरुष फिल्म

समय बता रहा है की पैसा बहुत बड़ी चीज है, यदि आप देख रहे है आदिपुरुष फिल्म तो आप समझ ही जाएंगे की आपकी भावनाओ से फिल्म के निर्देशक ओर ऐक्टर को आपकी भावनाओ से कोई लेना देना नहीं है इस फिल्म में आपको भद्दी भाषा, अमर्यादित रूप, रावण एक ब्रह्माण था जिस ब्रह्माण के हाथों में गोश्त का टुकड़ा दिखाते है।

आदिपुरुष फिल्म में इस तरह से आपकी भावनाओ को आहात किया गया है की आप सोच भी नहीं सकते मनोज मुंतसिर एक टीवी इंटरव्यू में कहते है की उनकी नानी- दादी उनको इसी भाषा में कथा सुनाया करती थी यदि वो इसी भाषा में सुनाया करती थी तो वह अपने बच्चों को सुनाया करे ना इस तरह से हमारे देश में गंदगी क्यों परोस रहे है?

क्या आप आदिपुरुष फिल्म को देखकर खुश है?

मैं तो बिल्कुल भी खुश ओर सहमत नहीं हूँ आदिपुरुष फिल्म को देखकर , मैंने आदिपुरुष फिल्म पहले दिन देखी ओर यह फिल्म बर्दास्त करने की हद से बाहर थी मध्यांतर के बाद तो, लेकिन मैं रुका रहा शायद अब अच्छा कुछ दिखेगा लेकिन आदिपुरुष फिल्म अपने अंतिम चरण में आ गई थी परंतु कुछ अच्छा नहीं दिखा बस दिखा तो सिर्फ नुकसान जो राम कथा का इन लोगों ने किया।

क्या आपके पास शब्द कम पड़ गए थे? जो आपने संवाद खत्म कर दिया था, आदिपुरुष फिल्म में संवाद का कोई स्थान नहीं था, कही से कही तक कोई भी संवाद नहीं था जहां आपको कुछ सीखने को मिले उल्टा आदिपुरुष फिल्म देखने पर भद्दी हंसी आती है जिसको हम कहते है की यह क्या कह दिया है मतलब सिर्फ किरदारों का अपनाम नहीं शब्दों का भी मान नहीं रखा मनोज मुंतशीर ने।

मनोज मुंतशीर माफी मांगने को भी तैयार नहीं है उन्हे लगता है की उन्होंने कोई गलती नहीं है बस बता रहे की हम डाइअलॉग को बदल कर फिर से आपके सामने फिल्म आदिपुरुष को दुबारा पेश कर देंगे कुछ दिनों में

आदिपुरुष फिल्म के ऐक्टर प्रभास जो अभी तक फिल्म को बढ़ावा दे रहे है ओर हर रोज ट्विटर पर अपडेट कर रहे है की उनकी फिल्म हर रोज रिकार्ड ब्रेक कर रही है ओर खूब अच्छी कमाई कर रही है, वैसे यह सभी झूठे आकडे दिखा रहे है, क्युकी फिल्म एक भद्दा मजाक है इसमे कुछ अच्छा नहीं है एसा की फिल्म को देखा जाए ओर सराहा जा सके इस फिल्म में सिर्फ डाइअलॉग ही नहीं उसके अलावा भी बहुत सारी कमिया है फिल्म आदिपुरुष में जिस प्रकार से रावण एक पक्षी को मीट खिला रहा है।

इंदरजीत के पूरे बदन पर टैटू बने हुए है

हनुमान जी प्रणाम की जगह सीने पर हाथ रखते है यह लोग यह पर मिस्टर इंडिया की फिल्म के हियर कमैन्डो कर रहे थे क्या? कुछ समझ नहीं फिल्म में क्या हो रहा था।

श्री राम श्वेत वस्त्रों में दिखते है भाई हम लोग साधु है यीसु नहीं

रावण के बालों का डिजाइन

सुग्रीव ओर बाली को गोरिल्ला बना देना

माता सीता का अपहरण

कुल मिलाकर फिल्म को बढ़ावा ना दे सेंसर बोर्ड को यह फिल्म पास नहीं करनी चाहिए थी ओर अब फिल्म को बैन कर देना चाहिए दुबारा कभी इसे किसी भी टीवी चैनल व अन्य किसी माध्यम से नहीं दिखनी चाहिए।

इश्क की चर्चा

इश्क की चर्चा होती है,
हर शख्स दिल में रखता है।
प्यार की बातें करते हैं सभी,
मगर इसे समझना नहीं जानते हैं।

इश्क एक ऐसी जादुई छवि है,
जो दिल को चूमती है।
इसके आगे सब कुछ फीका पड़ जाता है,
ये महसूस करने वालों को ही पता होता है।

इश्क में जीवन की हर चीज मिलती है,
प्यार की आँधी में दिल कुछ ऐसा बेहकता है।
अपना सब कुछ खो देने का डर होता है,
पर खुशियों के साथ खुशियों को जीते हुए देखने का अनुभव कुछ और होता है।

इश्क की चर्चा जब होती है,
तो दिल में एक हलचल सी उत्पन्न होती है।
जैसे कुछ बदला है दुनिया में,
उससे ज्यादा बदलता है दिल इश्क के नजरिए से देखता हुआ।

इश्क की बात पर अब खत्म करते हैं,
ये जादुई छवि हमेशा रहेगी दिल में बसी।
जब भी इश्क की बात होगी,
दिल उठ उठकर बोलेगा, जी हाँ, इश्क है ज़िन्दगी में सबसे खुशनुमा चीज़ीं में से एक।

ढूँढता ही रहा

ढूँढता ही रहा जिंदगी को ना जाने कहाँ काहाँ

ए ख्वाब जिंदगी तू इतनी हसीन क्यों बस थोड़ी बहुत नमकीन हो ,

मेरी जिंदगी इस कद्र रह की भरपूर सुकून हो।

ढूँढता ही रहा उस ठिकाने को बस जिसकी तलाश में निकल चल था मैं
ढूँढता ही रहा

जिंदगी को समझने

बड़ी कोशिश है जिंदगी को समझने की

इस जिंदगी से कुछ रूबरू होने की

इस जिंदगी को मैं समझता लेकिन

फिर भी समझ से पार हो जाती है जिंदगी लेकिन समझ नही आती है जिंदगी कही दूर निकल जाती है फिर लौटकर भी नही आती है यह जिंदगी

इश्क भर की बाते

इश्क भर की बाते

वो चंद मुलाकाते

हर रोज पैगाम लिख भेजती थी

मुझे उनकी यादे

वो ख्वाब मंजिलों सी

वो ख्वाब मंजिलों सी दूर हो गई, यह जिंदगी अब जिंदगी सी मजबूर हो गई इस जिंदगी के ख्यालों में कही ओर जिंदगी हो गई , क्या जिंदगी है ख्वाब सी जो ये मजबूर हो गई इस जिंदगी के जख्म इतने गहरे के ये नासूर हो गई , संभालो इसे यह जिंदगी अब मरने को मजबूर हो गई.

हर रोज बेहतर होना है

हर रोज बेहतर होना है, उस बेहतर होने की तैयारी करनी है

हर रोज बेहतर होने के लिए कुछ न कुछ करना है

एक नई चीज रोज करनी है

कुछ नया सीखना है,

कुछ अलग करने की चाह इस मन में है, जो फिर से करना है

जिस चीज को आप बचपन में बड़े मन से करते है उसको फिर से करो

जो आप सीखना चाहते थे बचपन में उसे फिर से सीखो

कुछ दुबारा करो , कुछ नया करो

कुछ पहली बार करो, तो कुछ बार बार करो

रोज किताबे पढ़ो खुद को बेहतर करने के लिए

स्वयं को सुधारों आने वाले कल के लिए, अपने शब्दों को सुधारों 

हर रोज बेहतर होना है।