बेइंतहा मोहब्बत ,गिला-शिकवा ,
दर्द ए सितम,
ना मरहम कोई उन्होंने लगाया
बस
वक़्त बेवक्त
जख्म को नासूर बनाया
क्या क्या ना उन्होंने – क्या क्या ना उन्होंने
मुझ पर आजमाया
देखो तो सही अरे देखो तो सही
कमाल उनका था ये
उन्होंने हथियार भी ना उठाया
ओर
खून खंजर बिन मेरा कर दिया
और अब उन पर
इस जुल्म इल्जाम भी नहीं आया।
Posts in zindagi
थोड़ी बेखबरी थी
मेरी जिंदगी में
बस थोड़ी बेखबरी थी
कुछ सहमी
कुछ अकड़ी थी
एक आहट थी
दबे पाँव की सरसराहट थी
तभी मेरी एक बाह ने
दूसरी बाह पकड़ी थी जो
इस कदर जकड़ी थी मानो
लिपटी आग से एक लकड़ी थी
जिसमे मेरी जिंदगी अटकी थी
कोई एक राह सी भटकी थी
जीवन एक अवसर है
जीवन को अवसर का मोहताज ना रहने दो, जीवन तो स्वत एक अवसर है, इसे एक अवसर , मौके के रूप में तुम लो , जीवन एक सुनहरा अवसर दे रहा है तुम्हें यू ना इसे तुम जाने दो
जीवन एक अवसर है इसको अवसर की तरह देखो जन्म ओर मृत्यु के बीच में हमे बहुत सारी जो जीवन यापन कर रहे है वह एक सुनहरा अवसर है इस जीवन को यू ही व्यर्थ न करे, इसे अवसर के रूप में ले ओर इस जीवन लक्ष्य को पहचाने, और लक्षे की और आगे बढ़े तथा जाने की आप यहाँ क्यों आए है? क्या कारण, उद्देश्य है इस जीवन का? इस बात को खोजने में अपना जीवन लगाए।
नींद को तोड़ो
जागरूक होना और जागरूकता क्या है ?
नींद ओर आलस को छोड़ना है , किसी भी कार्य के लिए तथा हमें अपने जीवन के लिए हमेसा तत्पर होना चाहिए साथ ही सीखने और जानने की इच्छा रखना हर उस किर्या प्रतिकिर्या तो देखना जो हमारे जीवन के साथ घटित हो रही है जिन सभी कारणों से हमारा जीवन बदल रहा है
बिल्कुल सजग अवस्था में उसे देखना , महसूस, करना ही जीवन को ऊर्जा देता है तथा स्वयम के प्रति जागरूक करता है।
अपने अंदर जागरूकता को पैदा करो अर्थात नींद को तोड़ो विचारो को भली भांति देखना शुरू कर करो हमारा शरीर तो आलस्य से भरा हुआ है
यह तो सोना ही चाहता है परंतु बुद्धि किर्याशील है जब हम सोते है तब भी बुद्धि कार्यरत है और अपना कार्य करती है रहती है परन्तु शरीर अचेत है वह आलस्य , प्रमाद चाहता है
कभी कुछ कार्य करना ही नहीं चाहता
हम रोज 8 घंटे की नींद ले रहे है और कुछ लोग ज्यादा तथा कम , हम सभी को रोज जीने के लिए 86400 सेकंड मिलते है हम उन्हें बिना सोचे समझे खर्च कर देते है लेकिन 86400 का हिसाब नही लगाते की हमने उन सेकण्ड्स का खर्च कहाँ और कैसे किया ?
जो लोग उन पलो का हिसाब रखते है वो बहुत आगे निकल जाते है अपने जीवन को एक उद्देश्य के साथ जीते है और उनका समय उनके जीवन को एक उच्च स्तर देता है जिन लोगो ने समय की कीमत को पहचान लिया है वह लोग बहुत ऊंचाई को छू जाते है और जो समय की बरबादी करते है वह नीचे ही धंस जाते है
इसलिए अपने भीतर जागरूकता पैदा करना जागरूक होना है, अतिआवश्यक है विचारो के आने पर जाने को देखना ही जागरूक होना है
“नींद को तोड़ो”
जागरूकता कब और कैसे आएगी ?
जब आप अपने मस्तिष्क के विचारों को देखोगे ओर अपने शरीर के प्रति संवेदनशील बनोगे जागरूक होकर देखोगे स्वयम को अपने शरीर के दवारा किया जाने वाला कार्य को ध्यानपूर्वक देखो अपने सभी विचारो के प्रति सचेत रहें सोच के लिए, अपने कार्य के लिए, वातावरण के लिए, अपनी स्तिथि और परिस्तिथि के लिए, भावनाओ के लिए स्वयम के शरीर की संवेदनशीलताओं के प्रति जागरूक हो विचारके लिए, सकारात्मक ऊर्जा के लिए आप क्या कर रहे?
क्या करना चाहते हो?
इसके प्रति जागृत हो सचेत हो, सचेत अवस्था में रहो देखो इस जीवन को और देखो जीवन के साथ होने वाली घटनाओ को वो सभी घटनाये हमारे साथ हो रही है हम कर रहे है या नही फिर भी वो घटनाये हो रही है क्योंकि हमारा जीवन विकसित होना चाहता है और हम सभी एक विकासशील प्रकिर्या का हिस्सा है जिसमे हम सभी को विकसित होने है।
प्यारी छत
प्यारी छत ,मामा जी की वो प्यारी छत के वो दृश्य, मनमोहक वो किस्से
कुछ पुरानी यादे और कुछ पुरानी बाते
जो बिना मोबाइल, ओर कैमरे के अब भी कैद है
हमारी आंखों में हम संजोए वो दिन
आजकल तो बच्चे कैद कर लेते है
हर उस बात को अपने मोबाइल में
लेकिन हम कुछ भी कैद नही कर पाए
उस कैमरे में
क्योंकि
वो कैमरे वाला टाइम नही था
मोबाइल नही थे बस जो कैद हुआ
वो सब हमारी आंखों में चित्रित है
हमारी यादों में अब भी सजे हुए है
वैसे के वैसे ही अब तक रखे हुए है
वो सारे चित्र
एक एक पल अब भी हमारे जहन मैं उसी तरह से है
जैसे हमने उस पल को जीया बेहद हो ओर फिर याद करके एक बार ओर जी रहे है
आज वो यादे है छत की
हमारे प्यारे मामा जी की छत
जिस पर हम घंटो खेला कूदा करते थे
लड़ते झगड़ते ( लड़ते झगड़ते तो शायद कभी थे नही हम , बस खूब मस्ती हम किया करते थे )
और भी बहुत कुछ बचपन में
मामा जी की वो प्यारी छत
जिसको भूल मैं अब तक भी ना पाया
आज 6 साल बाद छत आकर याद ताज़ा कर लाया
वो छत जिस पर गए हुए लगभग 6 साल बीत गए है
मामा जी की वो प्यारी छत ही है जिस पर हम कल फिर से गए
जिस छत पर हम पूरा दिन बिता दिया करते थे।
छत पर जाते ही मेरे दिमाग में
छपे हुए चित्र फिर से ताज़ा हो गए
आसपास के सारे मकान आज और बड़े गए
जो खाली थे घर , वो घर भी आज भर गए थे
वो आसपास के बच्चे भी अब और बड़े हो गए थे
बात मानो कल ही की हो जब हम घंटो छत पर खेला करते थे। थक हार कर कुछ देर हम सोया करते थे भरी दोपहरी में भी बस हम छत पर ही होया हम करते थे।
वो बारिश के दिन अब भी याद है बारिश में हम नहा लिया करते थे बारिश से चौक गिला ना हो जाए वो जाल पर मोमजामा बिछाकर इटो से ढक दिया करते थे
( और जब बारिश के दिन हुआ करते थे तब जाली पर
मोमजामा ढक उस पर ईंट हम रखा करते थे)
वो छत बड़ी प्यारी है उस छत से जुड़ी है
हम सबकी यादे बहुत सारी है।
रात को घर की लाइट जाने पर छत पर ही हम सो जाया करते थे
ओर सुबह सूरज में चढ़ती धूप जब तक तेज़ ना हो जाए तब तक उठ कर हम नीचे नही आया करते थे।
जब छत पर हम सोते थे हमे सोने के लिए खाट मिला करती थी अब तो वो छत के साथ साथ खाट भी कही खो गयी है
रात को जब छत पर जाते थे सोने तब लेट कर हम बस तारे गिना करते थे जितने बाल उतने तारे इस बात बोलकर बात पूरी कर दिया करते थे
हम तारे गिनते तो कभी सप्तऋषि , तो कभी कुछ और हम बस ढूंढ करते थे पूरी रात तारो में बीत जाए ऐसी कोशिश हम किया करता थे कभी कभी तो ध्रुव तारा देखने की कोशिश में पूरी रात जगा करते थे।
सुबह से लेकर शाम तक छत पर ही दिन बीत जाता था,
ना हम नीचे आते थे ओर ना ही कही घूमने हम जाते थे
लेकिन तुम्हे उस बात से क्या ?
हाँ टूट तो मैं फिर से गया हूं
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
हा रोता हूं फिर से कोने में बैठकर
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
आंखों से अश्क़ बहते गए और दर्द बढ़ता गया तेरा इंतज़ार मैं करता गया जिंदगी को अपनी
साँसे बस तेरे नाम मैं करता गया
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
घबरा जाता हूं , सहम चुप फिर से बैठ मैं जाता हूं
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
भीतर बहुत तकलीफ हो रही है , दुबारा दूरियों के एहसास होने पर
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
मैं भीतर से खाली खाली लग रहा हूं
तेरे जाने से मेरे दिल का कमरा खाली हो गया है
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
टूटा हुआ था मैं पहले से अब चकनाचूर भी हो गया हूं
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
( तेरी याद में तिल तिल मर रहा हूं
अपनी बची हुई साँसे गिन रहा हूं )
एक बार मर चुका था मैं
उसमे बची थी जो कुछ सांसे अब मैं उनका भी दम तोड़ रहा हूं ( साथ छोड़ रहा हूं मैं )
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
मैं मरकर जिउ या जीकर मरु फिर से
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
हाँ जिंदा हूं अब तक जिंदा लाश की तरह
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
गुजरते दिन और राते बीत रही है तेरे ख्यालो में
लेकिन
तुम्हे इस बात से क्या ?
मेरी नींद तेरी यादों में उड़ चुकी है मैं सो नही पाता हूं
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
मुझे तेरी याद आ रही है और मैं अब तुमसे बात करना भी चाहता हूं किंतु कर नही पा रहा हूं
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
बहुत मन कर रहा है दिल आज फिर रो रहा है
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
हा तेरी यादो से बाहर निकलने के लिए मयखाने में बैठ दो जाम भी पी रहा हूं
लेकिन तुन्हें उस बात से क्या ?
है, चूर हूं नशे में उस सिगरेट के धुंए में जिसमे तेरा चेहरा भी धुन्दला जो जाए, ओर तेरी याद ना आये
लेकिन उस बात से तुम्हे क्या?
डूब गया हूं तेरी याद में और मेरी आंखों से अश्क़ रुकते नही
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
तू मेरे खयालो से जाती नजी और मैं तेरे खयालो में आता नही
लेकिन तुम्हे उस बात से क्या ?
जो एक बार
बड़ी मुश्किल से भरोशा जताया था तुझ पर
लेकिन
तुझे उस बात से क्या ?
मैं बेइंतहा प्यार करने लगा था तुझे
लेकिन
तुझे उस बात से क्या ?
मैं पहली मोहब्बत में नीलाम होकर आया था
लेकिन
तुझे उस बात से क्या ?
मेरी पहली मोह्हबत का ज़ख्म भरा भी ना था
तूने उसको कुरेद नासूर कर दिया
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
ब्रह्मांड का जुड़ा होना
ब्रह्मांड का जुड़ा होना
ब्रह्मांड का एक दूसरे के साथ जुड़े होना हम सभी साथ है कोई भी अलग नही है ना ही कोई आगे है ना पीछे है बस सब साथ साथ है सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक छोर से दूसरे तक बंधा हुआ है, एक हल्का स छेद भी नहीं है जो इस ब्रह्मांड से छूटा हुआ हो , एक एक कण भी ब्रह्मांड से जुड़ा हुआ है, हम यदि कहे की आकाश रिक्त है तो यह बात बिल्कुल विपरीत होगी क्युकी पूरा आकाश भी जुड़ा हुआ है इन ध्वनियों से
Ek dusre ke saath
“Interconnected universe” ( ब्रह्मांड का जुड़ा होना एक छोर से दूसरे छोर तक )
हम सभी किसी ना किसी रूप में एक दूसरे के साथ जुड़े हुए है किस तरह से ये हमे जानना होगा, हमारा विचारो के साथ हमारे शब्दो के साथ हमारे कार्यो के साथ अब उस जुड़े होने से हम कैसे और बेहतर हो बड़े कैसे हो ?
कैसे हम एक बड़ा विचार बना सकते है जिसमे सभी का सहयोग हो हैम सभी जुड़े हुए है अपने विचारो के कारण अपनी इच्छाओ के कारण हमारी आवश्कताओं के कारण हमारी जरूरते एक दूसरे के साथ पूर्णतया जुड़ी है, जैसे ब्रह्मांड का जुड़ा होना है।
हमारा जीवन भी विचारो सोच शब्द एहसास के साथ जुड़े हुए है हमारी घटनाएं भी एक साथ जुड़ी हुई है हर एक घटना एक दूसरे से जुड़ी हुई है हिमारी घटना का आसपास होना किसी न किसी रूप में हमे भी प्रभावित करती है
किसी व्यक्ति के द्वारा उच्चारित शब्दों का हमारे ऊपर भी प्रभाव पड़ता है:
हम सभी एक दूसरे के शब्दो से भी प्रभावित होते है उसी प्रकार हमारा जीवन एक दूसरे के जीवन में होने वाली घटनाओ से प्रभावित होता है क्योंकि हमारा संबंध किसी न किसी प्रकार से जुड़ा हुआ है।
हमारी सोच विचार एहसास भावनाएं आपस में जुड़ी हुई है, जिस प्रकार एक व्यक्ति सिर्फ अपने आप से नही उसकी पहचान बहुत सारी बातो के साथ होती व्यक्ति और व्यक्ति का नाम परिवार , गली मोहल्ला , शहर, देश , आदि से उस व्यक्ति की पहचान होती है
प्रभाव स्वयं का
प्रभाव स्वयं का होना चाहिए , हमारा स्वयम का कोई अस्तित्व है या नही?
क्यों हम दुसरो की विचारधारा में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है? क्यों हम किसी दूसरे से इतनी जल्दी प्रभावित हो जाते है ? दुसरो के विचारो से , शब्दो से, कार्यो से हमारा जीवन प्रभावित हो रहा है लेकिन क्यों? हमारे खुद के विचार महत्व नहीं रखते क्या?
यदि कोई हमारे सामने व्यक्ति सो रहा होता है तो हम प्रभावित हो जाते है हमे भी नींद आने लग जाती है हमारे अंदर भी आलस पैदा होने लग जाता है।
इसका कारण क्या है ?
क्या हम कमजोर है ?
क्या हमारे अंदर आत्मबल की कमी है अर्थात स्वयं का बल नहीं है ?
क्या हमारा खुद पर कोई नियंत्रण नहीं है ?
क्या हमारे अंदर स्वयम का कोई प्रभाव नही है?
दुसरो की विचारधारा हमे अपने साथ बहाकर लिए जा रही है दुसरो के शब्द , भावनाए और एहसास हमे अपने साथ बहाकर ले जाते है, हम दुसरो के शब्दों से एकदम प्रभावित हो जाते है क्यों ? क्या आपने यह जानने की कोशिश की है?
हमारे विचार आपस मेल करते है तो हम उसको सहमति दे देते है अथवा नहीं और यदि किसी के विचार ज्यादा प्रभावशाली होते है ती भी हम समर्पण भाव दे देते है, किसी ने कुछ कह दिया और प्रभावित हो गए स्वयम का कोई प्रभाव ही नही क्या ??
हमारे अंदर हमारा बहाव दुसरो के कारण हो रहा है दुसरो के विचारो और शब्दों के कारण हमारे जीवन का निर्माण हो रहा है, परिस्तिथियां निर्मित हो रही है।
यह विचार आ रहे है और जा रहे है इसी प्रकार से हमारा जीवन भी चले जा रहे है यदि हमने इन विचारो पर जोर ना दिया , ठीक ढंग से सोच नही और यदि हमने कोई विचार नही किया तो दुसरो की और और समय की विचारधारा हमे भी अपने साथ बहाकर ले जाएगी , हमे सोचना और विचारना होगा तथा उन सभी बातो को सही ढंग से समझना होगा
यदि हम अपने विचारो को अपने जीवन के बहाव को सही ढंग से सही रूप में सही दिशा में नही लेकर जाएंगे तो हमे भी उसी विचारधारा में बहना पड़ेगा और फिर हमारा जीवन हमारा न होगा वो जीवन किसी और के विचारो और शब्दो के कारण निर्मित होगा
क्या आपका जीवन आपके द्वारा नियंत्रित है या किसी और के द्वारा? प्रभाव स्वयं का होना बहुत आवश्यक है, नहीं तो मंजिल काही से काही ओर ही चली जाती है, दूसरों की विचारधारा में बहकर हम खुद से नियंत्रण खो बैठते है, इसलिए हमे स्वयं की बातों को अधिक महटव देना चाहिए।
यह भी पढे: दृढ़ निश्चय, वो नहीं है बराबर, शब्दो का प्रभाव, उत्साह से भरपूर जीवन,
इच्छा कैसे पूरी हो
इंसान का शरीर उम्र के साथ कमजोर पढ़ने लगता है ,परंतु इंसान की इच्छा कमजोर नही होती उसे ओर जीने की आकांशा, काम करने की इच्छा हमेसा लगी रहती है शरीर वो सारी किर्या , सारे कार्य नही कर पाता जो मन करना चाहता है, क्योंकि हमारी इच्छाएं कभी भी समाप्त नही हो रही बस शरीर उन कार्यो को कर नही पाता
इसलिए हम खुद को एक संतोष वाली स्थिति में रखना चाहते है, परंतु जैसे ही हमे नया शरीर मिलता है हम उतनी तेज़ी के साथ वही कार्य दुबारा करना फिर से शुरू कर देते है , क्योंकि जो हमारी इच्छाएं शेष रह गयी हम उनको फिर दुबारा पूरे उत्साह से करने लग जाते है, ऐसा बिल्कुल नही है की उम्र के साथ हमारा कार्य करने का मन कम हो रहा है।
परंतु अब शरीर जवाब दे चुका है बस एक यह कारण है, क्युकी भरपूर जीने की इच्छा इस शरीर को अब भी है, इस शरीर को अब भी नई दुकान , मकान , और नई नई चीज़े देखनी घूमना फिरना , खाना पीना आज भी अच्छा लग रहा है, बस शरीर थोड़ा कमजोर पड़ गया है, परंतु इच्छाएं भरपूर है मन की जो कभी खत्म नही हो रही है जब हम नया जीवन लेकर फिर इस धरती पर आएंगे तो हमारी पुरानी स्मृत्या सब खत्म हो चुकी होगी और फिर हम यही सब दुबारा करना शुरू कर देते है।
ऐसा लोग अनुभव से बताते से है की उन्हें नींद तो आती है परंतु उनके सपनो में सिर्फ कुछ चल रहा होता है, वो अब भी अपनी दुकान पर काम कर रहे होते है उनकी उम्र चाहे 80 साल को हो गयी हो परंतु उनका दिमाग अब भी उन्ही कार्यो में लगा होता है, जो वो करते हुए है मन तो काम करना चाहता है परंतु शरीर नही कर पाता।
इच्छाएं ना कमजोर हो रही है, ना कम हो रही है और ना ही ये खत्म होने में आती है बस बढ़ती ही जा रही है, जितना कम करो उतनी ही तेज़ी से ये दुबारा पैदा हो जाती है, और उछाल मारती है चाहे जीवन नीरस हो जाए लेकिन फिर दुबारा जीवन एक नई तरंग उमंग के साथ अपने जीवन को शुरू करने की इच्छा प्रकट करता है, ( बस जीवन के साथ नीरसता आ रही है ) परंतु फिर भी लोग यह जानने की कोशिश नही करते की हम क्यों इस जीवन के साथ इतना मोह बांधे हुए है बस यह जन्म खत्म हो फिर दुबारा नई जिंदगी शुरू करे फिर से शुरुआत करे लेकिन जहाँ है वही से नही वो नई शुरुआत करना चाहते।
और जीना चाहते है बहुत कुछ करना, देखना चाहते है हर और भागना दौड़ना और दिमाग को दौड़ाना चाहते है रुकना हर्ज नही चाहते मैं ये नही कह रहा की यह सब बेकार है लेकिन कभी ये सब जानने की इच्छा जाहिर की है की ये क्यों हो रहा है ? क्या कारण है इन सब बातो के होने का ?
दुख क्या है ?
दुख क्या है ? दुख क्यों पैदा होता है ? दुख के पैदा होने का कारण क्या है?
जीवन में जब हम विषम परिस्थिति देखते है तब हम चिंता यानी दुःख को आमंत्रण देने लग जाते है, जिसकी वजह से हमारे मन और मस्तिष्क में नकरात्मक विचारो का संग्रह होना शुरू हो जाता है,
वैसे तो दुख जैसा कुछ भी नही है, बस एक विचार है जिसको हमने बहुत बड़ा बनने का मौका दिया है, इस दुख शब्द को हमने थोड़े भाव क्या दे दिए ,ये दुख तो हमारे सिर पर ही चढ़ने लग गया है।
और हमारे सिर पर ही मंडरा रहा है तथा इस दुख शब्द ने हमारे मस्तिष्क को जकड़ कर रखा हुआ है जिसके कारण हम शुभ विचारों का चिंतन नहीं कर पाते , यदि हम हम अच्छे विचारों का लगातार चिंतन करे ओर नकारात्मक विचारों का चिंतन लगातार करते रहे तो दुख हमारे जीवन में कभी आए ही नहीं।
ताकि हम इससे छूट ही ना सके दुख मात्र एक शब्द है एक विचार है एक ऐसी नकरात्मक सोच है जो हमारे मस्तिष्क पर लगातार हावी हो रही है जिसकी वजह से हमारे भीतर डर भी बढ़ता है
अपने जीवन पर हावी होने मौका दिया है और यह बस बढ़ता ही जाता है और सुख का आनंद क्षणभंगुर होता जाता है।
अब सुख का जो समय है वो छोटा हो गया क्योंकि हमने दुख को अधिक महत्व दे दिया है दुख को हम पाल पोष रहे है लेकिन सुख को बस एक पल का समझ कर जिये जा रहे है सोचते है यही कुछ पल है जी लो सुख के लेकिन यह कुछ पल हमने ही सीमित किये है इनको हमने ही सिकोड़ कर रख दिया है दुख अपना विस्तार कर रहा है और सुख सिकुड़ता ही जा रहा है।
दुख एक विचार है और यह विचारो का एक समूह बना लेता है इस मस्तिष्क में जिसके कारण दुख बढ़ता जाता है जो बार बार अलग तरीको से हमारे मन के द्वारा बुद्धि को बार बार नकारात्मक बिचारो की और बल दिलवाता है जिसके कारण है हम सिर्फ अपने भीतर उन विचारो का समावेश कर लेते है जिनसे हम अपना मानसिक संतुलन खो देते है।
जब दुख को आमंत्रण दिया है तो इस दुख को भी हँसना सिखाओ उसके साथ भी खेलो दुख ही एक ऐसा रिश्तेदार है जिसकी खातिरदारी करने पर वो भाग जाता है यदि इन दुखो को देखकर ओर दुखी होने लग जाओगे, तो फिर यह दुख भी ओर समय तक रुक जाता है और चिंताएं बढ़ाता है, तथा आप जितना दुख का चिंतन करते है यह उतना ही और बढ़ता जाता है,
इसलिए दुख का चिंतन नहीं करे इसे स्वीकार ले और यह दुख स्वत ही दूर हो जाएगा , दुख आपके पास कभी भी रुकने , ठहरने के लिए नहीं आता यह दुख सिर्फ आपको यह बताने आता है की अब तुम्हारा वक्त बदलने वाला है।
इसलिए दुख जैसा रिश्तेदार कहा मिलेगा? जिसकी खातिरदारी करने से वो जल्दी चला जाए ऐसे रिश्तेदारों को तो गले से लगाना चाहिए।
दुख को अपनेे जीवन से कैसे निकाले?
दुख मात्र एक विचार है जिसको आप बढ़ावा दे रहे है मात्र कुछ भी नहीं है, अनेकानेक सम्भवनाओ के साथ जो वास्तव में कुछ भी ना थी।
दुख और सुख समानांतर ही बात है, लेकिन हम दुख का चिंतन ज्यादा लंबे समय तक करते है इसलिए दुख हमारे साथ चिपक जाता है और सुख बहुत कम समय के लिए हमारे साथ रह पाता है क्युकी सुख का जो चिंतन है उसे हम बहुत जल्दी हटा देते है हमारे मन में डर रहता है यही कारण है हमारा जीवन ज्यादातर दुख से घिरा रहता है, और सुख से अछूता होता जा रहा है।