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सोच को बदलो

“सोच को बदलो जिंदगी जीने का नजरिया बदल जाए”
क्या सोच है आपकी और वो सोच किस प्रकार से बढ़ती ही जा रही है क्या उस सोच को बदलने की आवश्यकता है ?

एक बात तो यह भी है की खुद को बदलना जरूरी है ? नही बदलते जी हम तो ऐसे ही रहेंगे करलो जी जो करना है हो जाने दो जो होना हमे कोई फर्क नही पड़ता किसी भी बात से जो हो रहा है होने , छोड़ो इन बातो मत सुनाओ ये बदलने वगैरह की बाते हमे नही पसंद है यह सब
हमारे जीवन में बहुत ही पुरानी पुरानी सोच दबी हुई है।

जिन्हें हमे रूढ़िवादी विचार भी कह सकते है जिन्हें बाहर कर खत्म कर देना चाहिए क्योंकि पुराणों विचारों को छोड़कर आगे बढ़ना ही जीवन है नए नए विचारों को अपने जीवन में स्थान देना
अब यहाँ एक प्रश्न बनता की है की अगर आपकी सोच दबी है तो क्या फर्क पड़ता  है दबी रहने दो उनसे हमे क्या करना ?

जिसके कारण हमारा जीवन अस्त व्यस्त सा हो रहा है  और हम उस सोच को अब तक पकड़े हुए है और छोड़ ही नही पा रहे है क्या ये सोच आसानी से छूट सकती है या ये सोच ही हमारी आदत बन चुकी है पुराने विचारो को छोड़ दो इन पुरानी रूढ़ीवादी सोच को छोड़ दो।

पुरानी सोच से पीछे हट जाओ , दुसरो के विचारो में अपना जीवन व्यर्थ ना करे किसी के द्वारा गए तर्कों के ऊपर ही अपना जीवन स्थापित ना करो नए विचारो को स्थान दो जन्म दो और उन्हें ही जीवन के लिए आगे बढ़ाओ उपयोग में लाओ।

आपकी सोच आपके विचार भिन्न है अपने जीवन को खुद ही समझो जानो , खोजो, अपने अनुभव में लाओ दूसरे के अनुभव आपकी यात्रा में सहायक हो सकते है परंतु अंतिम छोर नही अपने शब्दो का अर्थ एहसास तो आप स्वयम ही पाओगे और जान जाओगे किसी और का एहसास आपका एहसास कैसे हो सकता है ??

आपको आपके अनुभव में लाना होगा हम बहुत जल्दी भावुक हो जाते है , क्रोधित हो जाते है
शब्दो को जोड़ना-तोड़ना मरोड़ना और उनको समझना होगा उन शब्दों को हमे जानना होगा हमारे शब्द का क्या अर्थ है?  इस जीवन का अर्थ हमे यदि जानना है तो पहले स्वयम को जानना होगा , और स्वयम को जानने का मतलब हम सभी मानवीय किर्यायों को जानना चाह रहे है क्योंकि मैं “मैं” नही हूं मुझमे मैं का अर्थ जो सबसे है सिर्फ मैं से नही हम किसी ना किसी रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए है हमारे शब्द हमारी सोच , विचार हमारे एहसास हमारी भावनाएं एक दूसरे से किसी ना किसी प्रकार से जुड़ी हुई है इसलिए स्वयम को मैं नही मानो “हम समझो” पूरी पृकृति की रचना संरचना पालन,पोषण, अंत सभी चीज़े एक साथ एक दूसरे से जुड़ी हुई है।

विचार क्या है?

आइए जानते है विचारों के बारे में :-विचार कहाँ से आते है? क्यों आते है? इन विचारो के आने का कारण क्या है ? क्या है विचार?
विचारो के पैदा होने का रहस्य क्या है? 
हमारे मस्तिस्क के अंदर विचारो की उत्पत्ति हो रही है हमारे आसपास के वातावरण से हमारी शारीरिक क्रिर्याओं के कारण, जो हम पहले कार्य कर चुके है। उन् सभी के कारण हमारे मन, मस्तिष्क में प्रतिक्षण विचार पैदा हो रहे है। जिनके कारण हमारी सोच पर प्रभाव पड़ता है।

छोटे ओर बड़े विचार
विचार कहने में और देखने में बहुत छोटा सा है यह आता भी बहुत छोटे छोटे कार्यो से है जैसे हमने आंखो के द्वारा  किसी को देखा और पल भर में ही विचार आ गया, सिर्फ एक ही विचार नहीं आता वह विचार अपनेसाथ असंख्य और विचारो को साथ लाता है।

महिन विचार जो एक दम से आपके मस्तिष्क में नहीं आता वो पहले आपकी नाभि में उत्पन्न होता है उसके उपरांत वो पूरे शरीर में कम्पन करता है इस क्रिया के पूरे होने पर ही वो मस्तिष्क तक पहुंचता है तथा वह सूक्ष्म विचार अब आपके मस्तिष्क में अटके या आप उसे सुदृढ कर वाणी के द्वारा बाहर निकाले यह आप पर निर्भर करता है। यह पूरा क्रम है आपके द्वारा उच्चारित शब्दो का
परंतु हमारा मस्तिस्क इस पर विचार, विमर्श करने लग जाता है।
हम विचारो को कैसे देख और समझ सकते है?

विचारों को देखा नहीं जा सकता
हम विचारो को आँखों के द्वारा नहीं देख सकते परंतु हमे यह समझ में आते है। इन विचारो को हम visualise करते है अपनी imagination से, मस्तिस्क में छोटे से छोटा विचार भी बहुत प्रभावशाली होता है। यह एक विचार नहीं है बल्कि बहुत सारे विचार है जो लगातार कार्यरत है यह विचार एक के साथ मिलकर नए नए विचारों को जन्म दे रहे है जिन्हे हमें वृतिया कहते है
जिसके कारण ही हमारे जीवन की असंख्य घटनाओ का निर्माण हो रहा है और हम एक नई स्तिथि ओर परिस्थिति को जन्म दे रहे है।

विचार एक घटना है
इन सभी घटनाओ को हम कैसे देख सकते है? कैसे ये सभी घटनाये घट रही है?
इन घटनाओ के पीछे कौनसा विचार किर्याशील था या है ? हम सभी ये सोचते है की मेने तो किसी के साथ कोई बुरा नहीं किया परंतु मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? क्यों मेरे साथ ऐसी घटनाये घट रही है जिसको मेने कभी सोचा भी नहीं था या मेने ऐसा कब किया था ?
ये क्यों हो गया ?

हमे उन घटनाओ का समबन्ध पता भी नहीं होता की क्यों और क्या कारण है?
इन होने वाली घटनाओं का फेर भी वे घटनाये हमारे जीवन में हमारे साथ होती है
आप खाना खाते है, आप खेलते है
आप पुरे दिन में बहुत सारी घटनाओ के साथ जुड़े होते हो जैसे घर,दुकान पूजा कार्य , आना- जाना आदि कार्यो से पूरा दिन व्यस्त रखते है, जिस कारण  से असंख्य विचार तथा कार्य हमारे साथ जुड़ जाते है और हमे पता भी नहीं चलता यह सारे कार्य और विचार हमारे लिए एक घटना स्तिथि ओर परिस्थिति का निर्माण कर रहे है।

परंतु वह भी एक घटना का निर्माण कर रही है कुछ विचार हमारे आस पास के वातावरण के जो आपके जीवन की घटनाओ से जुड़ जाते है।

जरा देखिये, समझिये यह विचार कैसे अनेको घटनाओ का निर्माण कर रही है। जिनको हमे समझना में असमर्थ है असहाय हो जाते है, अपने जीवन के प्रति क्योंकि हमे समझ ही नहीं आता है क्यों ये घटनाये हो रही है क्या कारण है इन घटनाओ का इस कारण कई लोग कहते है, आप निमित है, इन सभी घटनाओ के होने मात्र में जिसे होना था जो होनी है सिर्फ आपको जो कार्य दिया है। उसको आपको भोगना है, आप भोगने के लिए हो आपके हाथ में कुछ नहीं आप कुछ नहीं करते हो सबकुछ पहले से तय हो चूका है, मान लेते है।

हमे यह भी मालुम है कि जिस प्रकार की घटनाये हमारे जीवन में घट रही है वो हमारे द्वारा ही निर्धारित है। जो कुछ घट रहा है वो पहले से ही तय है और जो आगे होने वाला है वो भी हम तय कर चुके है लेकिन क्या ??

हम यही सोच कर बैठ जाये कि हम कुछ भी नहीं कर सकते तो हम अपने विचारो को नीचे की श्रेणी में ले जायेंगे, अर्थात अधोगति में और हमारे विचार तथा उसी प्रकार के कार्य होंगे हमे अपने विचारों को बेहतर ओर अच्छा बनाना है उन पर ध्यान देना है।

यदि हम ऐसा कर रहे है तो हमे अपने विचारो तथा अपने कार्यो को धयांपूर्वक देखना और समझना चाहिए यह किस दिशा में है तथा क्या आदेश और निर्देश की स्तिथि है तभी हम इन विचारो को  एक नयी दिशा दे सकते है।

जिससे हमारा जितना भी भविष्य हमारे पिछले विचारो तथा कार्यो से तय हुआ है उन्हें हम पार कर जाये उसके बाद निर्माण तो हमे करना है न या फेर हम ऐसा ही जीवन बिताना चाहते है। कैसे हम बीता रहे है।हमे अपने विचारो को उच्च बनाना है।

यह हम समझते है कि किस प्रकार हम अपने जीवन निर्माण में सहायक तत्व है। ऐसा हम कोशिश करते है। क्यों और किस प्रकार से यह घटना पैदा हो गयी है। जिसे हम उसी क्षण समझ जाये और उस घटना को होने से वही रोक सकते है तथापि होने ही न दे उस घटना को आगे बढ़ने दे
बहुत सारे उदहारण के साथ हम इन विचारो का विशलेषण करते है,  आप किसी कार्य को करते है,

तो उसमे कितने ही विचार आपकी सहायता करते है और उन विचारो का प्रभाव तथा वो विचार हमारे जीवन को किस प्रकार गति प्रदान कर रहे है, जिनके कारण घटनाओ का समावेश बनता ही जा रहा है, आपने देखा होगा की आप किसी जगह से गुजर रहे है,  उस जगह बाजार है अलग-अलग सामान, साज-सज्जा, कपडे, खाने-पीने,सुन्दर-सुन्दर लोग, अतिमनभावुक दृश्य है तो क्या होगा उससे ? क्या आप उस जगह तथा उन लोगों से प्रभावित होंगे या अप्रभावित ही निकल जायेंगे?
कोई विचार आएगा या नहीं ? आपके शरीर की हाव भाव की स्तिथी में परिवर्तन होगा या नहीं ?
आपके मन मस्तिस्क में कोई इच्छा जागृत होगी या नहीं? आप उस जगह के बारे में कुछ सोचेगे या नहीं?

यह कुछ और प्रश्न उत्पन्न हुए इस जगह यही विचार है यह सूक्ष्म ओर बड़ा विचार बनता है।

तो लगातार जुड़े रहे मेरे साथ मैं विचार क्या है ओर इन विचारों के क्या कार्य है, ओर यह विचार किस प्रकार से कार्य करते है। नीचे मैं कुछ लिंक ओर दे रहा है जिसमे आप विचार व शब्दों के बारे में और जानकारी प्राप्त कर सकते है।

यह भी पढे: स्वयं को जानेंगे, शब्द क्या है, जीवन विचार, विचारों का पिटारा,

कौन हूँ मैं?

“निकला हूँ उस ठिकाने को ढूंढने जिसका पता भी ना मालुम मुझे”
मैं निकल चला हूँ उस राह पर जिसके बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता, ना उस मंजिल की खबर है न रास्ते  का पता बस निकल चला हूँ मैं, कौन हूँ मैं? प्रश्न यही मेरे मन मस्तिष्क में घूम रहा है,
अब लौटना संभव नहीं है और अब मै वापस लौटना भी नहीं चाहता क्युकी मै स्वयं को जानना चाहता हूं कौन हूं मैं ? यह प्रश्न मेरे मन को कचोट डालता है,

तलाश पूरी मेरी होगी
या अधूरी रह जायेगी?
ये भी नहीं पता मुझे
लेकिन
मैं निकल पड़ा हूँ,

अब लौट कर वापस नहीं आना है
मुझे बस मंजिल को पाकर ही रहना है
सफ़र में आयेे कितनी भी रुकावट
मैं रुकुंगा नहीं, थकूँगा नहीं
बस चलते ही रहना है मुझे
अपनी मंजिल को हासिल ही करना है मुझे

सवाल है कुछ इस तरह
जिनके जवाब मै खोज रहा हूं
ना जाने किस किस तरह

कौन हूँ मैं ?
किसलिए मैं आया हूँ यहाँ?
यहां मेरे आने का क्या कारण है ?
 

कौनसा ऐसा कार्य है जिसको पूर्ण करना है ?
यह मुझे न खबर ना ही पता है मुझे बस मंजिल की तलाश है, मैं भटक रहा हूँ इधर उधर अपनी मंजिल मैं 

मैं खोजता रहा बस अपनी मंजिल और अपना सफ़र मैं
ना मुझे नाम पता है,
ना निशान पता है
कौनसी छाप छोड़ी  थी,
ना ही मुझे उसका निशान पता है,
बस ढूंढ रहा हूँ अपने आपको
ढूंढता हूं मैं अपने आपको
ढूंढता हूँ हर जगह हल पल,
मैं भटकता फिर रहा हूं ना जाने

कभी मैं  सवयम को किसी वस्तु मे ढूंढता हुूं
तो कभी किसी वस्तु से अलग होकर मै देखता हूं
मुझे नहीं पता
की मैं अपने आपको कहा ढूंढ पाउँगा या फिर मै स्वयं को ढूंढ पाऊंगा भी या नहीं लेकिन चलना खोजना मेरा  काम है यही मेरा नियत कर्म है जिसे मुझे पूरा करना है।
मुझे ना रास्ता पता है
ना किसी दिशा का ज्ञान है
बस एक कोशिश है, अपने आपको जानने की मैं निकल चला हूँ उस रास्ते पर जहा मैं अपने आपको जान सकु ये मेरे पहला पड़ाव है जिंदगी में अपने आपको खोजने के लिए मैं आतुर हूँ मुझे कुछ पाना नहीं है बस जानना है, स्वयं को स्वयं की अनुभूति होती है कैसे ? बस यही समझ जाना है मुझे
नहीं पता क्यों ?  मुझे मेरे अंदर हजारो लाखो विचार उमड़ रहे है ? जो सिर्फ सवाल है जिनके जवाब नहीं है मेरे पास………..

वो क्यों इतने सारे विचार एकत्रित हो रहे है इनका जवाब कहां खोज पाऊंगा मै ?
कहां मिलेंगे मुझे उन सवालों के जवाब ?

मेरे मैं और मस्तिस्क में जिनके बारे में मैं भी नहीं जानता मैं क्यों इतने विचारो से मैं भरा जा रहा हूँ,कहा से आ रहे है? क्या कारण है इन्ह विचारो के आने का? क्यों मुझे ये विचार कही ले जाना चाहते है ?मैं जाना तो कही और चाहता हूँ ये विचार मुझे कही और खीच रहे है जैसे मैं विवश हूँ इन्ह विचारो के साथ लेकिन मुझे अपनी मंजिल हासिल करनी है मैं निकल हूँ सिर्फ अपनी मंजिल को हासिल करने के लिए तलाश भी उसी की बस कुछ और नहीं चाहिए मुझे चाहे मेरे विचार मुझे कितना ही भटक रहे हो कितना भी डरा रहे हो कभी भी ले जाने की कोशिश करे लेकिन मैं वापस ना जाऊंगा मैं अपनी मंजिल को पाकर ही रहूँगा ये मेरा विशवास स्वयं में जिसे मैं पूरा करके ही रहूँगा

कौन हूँ मैं?
कौन हूँ मैं?


कौन हूँ मैं?
किसमे हूँ मैं?
मेरे यहां होने का कारण क्या है ?
क्यों मेरा जन्म हुआ है?
ऐसा कोनसा कार्य है जिसे मैं करने यहाँ आया हूँ ?
कभी लगता है की मुर्गे की बांग में हूँ
तो कभी सूरज की रोशनी में हूँ
मैं हूँ कहाँ ? कौन हूँ मैं?
यह एक प्रश्न जो मेरे मस्तिस्क को झुझला देता है,
की क्यों नहीं जान पा रहा हूँ अपने आपको, मैं तो एक शरीर हूँ या मन , लेकिन फिर वो भी नहीं हूँ,
तब कौन, कौन हूँ मैं ? आवाज़, सुर, ध्वनि किसमे हूँ में ?
कौन हूँ मैं?

किर्या में हूँ
या
कार्य में हूँ ?
विचार,
सोच,
हाव-भाव,
शब्द,
किर्या,
प्रतिकिर्या बस सवाल यही की कौन हूँ मैं?

मैं मुर्गे की कुकड़ू कु में हूँ, या
चिड़िया की ची ची में हूं मै,
सूरज की रोशनी में मैं हूँ ?
मैं प्रकाश हूँ या अँधेरा हूँ मैं?
कौनसी दिशा में हूँ या दिशाहीन भटकाव हूँ मैं
क्या दसो दिशाओ में मैं हूँ?
समय की तरह बीतता हुआ हूँ मैं
या समय हूँ मैं ?
बचपन,जवानी या बुढ़ापा हूँ मैं?
या इनके पड़ाव में हूँ मैं ?
टूटता हुआ हूँ मैं ?
या जुड़ा हुआ हूँ मैं ?
लड़खड़ाता हुआ हूँ मैं या
संभालता हुआ इंसान हूँ ?
पूर्ण हु मैं या
अपूर्ण हु मैं ?
शांति हूँ मैं या
शोर हूँ मैं ?
खेलता हुआ बचपन हूँ या
शांति का अनुभव हूँ मैं ?
खेलता हुआ बच्चा हूं मैं या
रोता हुआ ?
राह पर चलता हुआ इंसान हूं या
भटक गया हूं राह से कही ? 
खेलता हुआ बच्चा हूं मैं या
रोता हुआ इंसान हूं ?

प्रश्नों की झड़ी लगी हुई है मेरे मन मस्तिष्क में लेकिन जवाब कुछ नहीं आ रहा है, बस चल रहा हूँ मैं उस रहा पर जिसके लिए मैं निकला था।

मैं किस तरह से कर रहा हूं?
खुद की तलाश ये भी नही पता मुझको 

लेकिन तलाश कर रहा हूं
वो कौनसा रास्ता है?
जिससे मैं अपने आपको जान सकता हूं ? 
मैं अपने विचारों को देख रहा हूं , समझ रहा हूं जानने की कोशिश कर रहा हूं ,
किस ओर से ये विचार मेरे मन मस्तिष्क में आ रहे है इनका उद्गम स्थान कौनसा है और क्यों इतने विचार मेरे मस्तिष्क में आ रहे है ?

इन विचारो के कारण और परिणाम क्या है ?
शायद यह विचार ही है जो मुझे मेरी मंजिल तक मुझे पहुंचा सकते है
मुझे यही जानना है इन्हीं विचारों पर मुझे बल देना है,
इन्ही विचारो को सही ढंग से समझना है क्योंकि इन्ही विचारो के कारण मेरा जीवन कदम कदम पर बदल रहा है इसलिए मुझे इन्ह विचारो को ध्यांपूर्वक देखना है  ये विचार कैसे बहुत सारे विचारो में बदल जाते है और विचारो इकठ्ठा कर लेते है मुझे ये जानना है इसी किर्या को देखना है जाने अनजाने में उन्में मिल जाता हूं क्यों मिल जाता हूं ये भी मुझे समझना है।ये विचार कैसे बहुत सारे विचारो मैं बदल जाते है और विचारों का समूह रूप बना लेते है मुझे यह जानना है इसी किर्या को देखना है जाने अनजाने में मै उस किर्या मैं मिल जाता हूं लेकिन क्यों मिल जाता हूं यह भी मुझे समझना है।

हमको कुछ खबर नही इसका ना पता मालुम मुझे ना ही मंजिल की खबर फिर भी मैं चलता ही जा रहा हूं किश और मैं निकल चला ?किश सफर किस मंजिल की तलाश में मैं भटक इधर उधर हूं रहा बस अब मुझे बढ़ना है और आगे लेकिन कैसे मेरे ही विचार मुझे दबा रहे मेरे ही विचार मेरे रास्ते की रुकावट है मेरे विचार आगे नहीं बढ़ने देते है और रोक लेते है बार बार सारे विचार मेरे एक विचार को दबा रहे मुझमे डर पैदा पैदा कर रहे है उस डर से आगे निकलू कैसे बस वही सोचता हूं रुकावट से भर जाता जाता ह् मंजिल की औए आगे बढ़ नहीं पाता बार बार फिर वापस पीछे आ जाता हूं.

मुझे खुद की तलाश है में बेखबर हूं अपने ही लिए ना मुझे पता अपने ही होने का ना ही रकस्त कुछ मिल रहा बस युही में चलता जा रहा हूं जिसका न होश है मुझे ना खबर है रहो की भी बड़ी अजीब सी मिल रही है रहे भी मुझे लोग मिल रहे है करवा यू बढ़ रहा सफर में क्या होना था और हो क्या रहा है इसका भी होश नही है मुझको बस में आगे बढ़ युही चल रहा हूं मंजिल मील या ना मिले लेकिन मैं आगे बढ़ रहा हूं।

इसमे बताया जा रहा है हम अपनी मंजिल को भूलकर अलग अलग राहो पर निकल पड़ते है जिसका कोई मेल नही है मिलान नही है हमारी मंजिल जिसका दूर दूर तक कोई नाता नही है बस चलते रहते है हैम ओर फेर भटकाव जिंदगी का पेड़ होता ही जाता है पता भी होता है कुछ फिर भी कुछ न कुछ भूल कर ही देते है हम मनीला को पाने के लिए जैसे मम्मी मार्किट सामान लेने के लिए भेजती है तो हम किसी से बात करते हुए रुक जाते है और भूल जाते है कि किस लिए आया या फिर कौनसा समान लेने के लिए आया था।

लोग अब मिलते जा रहे है मुझे मेरी इन्ह राहो मैं मुझे कारवा भी यू जुड़ता ही जा रहा रहा है बस में सफर के साथ चलता ही जा रहा हूं मंजिल की तलाश में , मैं ना जाने कहा कहा मैं भटकता जा रहा हूं बार बार मेरे मन में आ रहा यही सवाल की कौन हूँ, मैं किधर जा रहा हूँ, स्वयं की तलाश में बस मैं चला जा रहा हूँ।

क्या शब्दों का संचार हूं मैं या आसमान से विस्तार हूं मैं क्रोध हूं मैं या प्रेम हूं मैं 
क्यों विचार टूटे टूटे से लगते है क्या, उसमे हूं मैं क्या इंसान ना समझ है , या आज का इंसान सब कुछ समझता है हम सभी बुद्धिमान समझते है।


कौन है इंसान?  लक्ष्य क्या है ?
फिर ना जाने क्यों चल रहा है ये इंसान 
क्या इस इंसान को पता है वो क्या चाहता है ?


टूटता हूं मैं या जुड़ता हुआ मैं , समय के साथ साथ बैतब हूआ बिता हूं पल में या समय के आने बाप काल या पल में हूं मैं ? लेकिन कौन हूं मैं परिस्तिथयो से भाग रहा इंसान हूं मैं या जूझ रहा परिष्तिथियो में ठहरा हुआ रुक हुआ देखता हुआ एहसास  हूं मैं या कल या देखती हुई आंख महसूस कर रहा है शरीर हूं मैं या मूर्च्छा में पड़ा हूआ शरीर 

बहता हुआ प्रेम हूं मैं या
इंसान का क्रोध ?
विपरित दिशा में मुड रहा इंसान हूं मैं
या ब्रह्मांड का विस्तार हूं मैं ? 
अनुकूल परिस्तिथयो में बह रहा इंसान हूं विप्रिप जाने की कोसिह हूं मैं ? 
लड़ता हुआ इंसान हूं मै या चुप रहता हूं मै?
हर पल हर समय में बढ़ाने वाली परिस्थितियों
से भरा हुआ इंसान हूं मैं ?
उधेड़ बुन में जा रहा इंसान हूं मैं
या सुलझाने की कोशिश हूं मैं ?

उधेड़ बन में जा रहा इंसान हूं मैं ?
या
सुलझाने की कोशिश हूं मैं ?
घबराहट हूं मैं या साहस हूं मैं ?
हाथी की गर्जना हूं ? हिम्मत हूं मैं ? 

इंसान की पूर्णता हूं मैं या
उसकी अपूर्णता हूं मैं ?

रिक्त स्थान हूं या
भर हुआ आसमान ?
सवाल हूं मैं या जवाब हूं मैं
समस्या हूं या समाधान  हूं मैं ?
जानने की इच्छा या
पहचानने की समझ हूं मैं ?
चलता हुआ मुसाफिर हूं मै? या
रुका हुआ इंसान हूं मै?
परिसिथतियों के साथ बह रहा हु मै
परिष्तिथियो से लड़ता हुआ इंसान ? 

खुशी हूं मैं या दुख हूं मैं ?
अंधेरा हूं मैं या प्रकाश हूं?
हर जगह ढूंढ रहा इंसान हूं मैं
कौन सा उद्गम स्थान हूं मैं ?

इस स्तिथि में हु मैं ?
कोनसी सी परिस्तिथत में हूं
चांद की शीतलता हूं या
सूरज की ज्वलनशीलता हु मैं ? 

बिंदु सा आकर हूं मैं या
ब्रह्मांड जैसा निराकार हूं ? 
शब्द सा मीठा हूं या
नीम से कड़वा हूं मैं

कौन हूं मैं ? 

इस जगह खड़ा इंसान हु मैं ?
हर वक़्त , हर पल घटना में मैं
अपने आपको खोजता इंसान हु मैं ?
चट्टान की तरह कठोर हूं मै ? या
माँ की तरह नरम हु मैं
ये मुझे ना पता चल पा रहा है
कि कौन हूं मैं?
हर पल हर जगह खोजता चल रहा मैं
इस सवाल  का जवाब नही मिल रहा है
हर एक वस्तु हर एक घटना में होने की कोशिश है
और
हर घटना को जानने और समझने की
कोशिश में लगा हुआ मैं

किस ओर निकल चला किस मंजिल को पाने को हूं मै ?
निकल चला बस गतिमान हु मैं
अब रुकना मेरा काम नहीं
मुझे मिले मेरी पहचान वहीं है सही
कही ढूंढता स्वयम को चला
पूछता अपने आपको रहा
बतादो मुझे कौन हूं मैं
जानते है लोग मुझे मेरे नाम से
मेरे काम से लेकिन मेरा अस्तित्व है क्या ?
इस वजह मै यहां वहां बस भटकता ही रहा
ना मंजिल न सफर का मुझे पता चला
बस रहा ढूंढ मै स्वयम को हर पल रहा
कौन हूं मैं?
ये प्रश्न मेरे मन में बार बार उठ रहा 
“निकला हूँ उस ठिकाने को ढूंढने जिसका पता भी ना मालुम मुझे”
मैं निकल चला हूँ उस राह पर जिसके बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता, ना उस मंजिल की खबर है न रास्ते  का पता बस निकल चला हूँ मैं
अब लौटना संभव नहीं है और अब मै वापस लौटना भी नहीं चाहता क्युकी मै स्वयं को जानना चाहता हूं कौन हूं में ? यह प्रश्न मेरे मन को कचोट डालता है
तलाश पूरी मेरी होगी
या
अधूरी रह जायेगी?
ये भी नहीं पता मुझे
लेकिन
मैं निकल पड़ा हूँ
अब लौट कर वापस नहीं आना है
मुझे बस मंजिल को पाकर ही रहना है
सफ़र में आयेे कितनी भी रुकावट
मैं रुकुंगा नहीं, थकूँगा नहीं
बस चलते ही रहना है मुझे
अपनी मंजिल को हासिल ही करना है मुझे
सवाल है कुछ इस तरह
जिनके जवाब मै खोज रहा हूं
ना जाने किस किस तरह
कौन हूँ मैं ?
किसलिए मैं आया हूँ यहाँ?
यहां मेरे आने का क्या कारण है ? कौनसा ऐसा कार्य है जिसको पूर्ण करना है ?
यह मुझे न खबर ना ही पता है मुझे बस मंजिल की तलाश है, मैं भटक रहा हूँ इधर उधर अपनी मंजिल मैं 

मैं खोजता रहा बस अपनी मंजिल और अपना सफ़र मैं
ना मुझे नाम पता है,
ना निशान पता है
कौनसी छाप छोड़ी  थी
ना ही मुझे उसका निशान पता है
बस ढूंढ रहा हूँ अपने आपको
ढूंढता हूं मैं अपने आपको
ढूंढता हूँ हर जगह हल पल,
मैं भटकता फिर रहा हूं ना जाने

कभी मैं  सवयम को किसी वस्तु मे ढूंढता हुूं
तो कभी किसी वस्तु से अलग होकर मै देखता हूं
मुझे नहीं पता
की मैं अपने आपको कहा ढूंढ पाउँगा या फिर मै स्वयं को ढूंढ पाऊंगा भी या नहीं लेकिन चलना खोजना मेरा  काम है यही मेरा नियत कर्म है जिसे मुझे पूरा करना है।
मुझे ना रास्ता पता है
ना किसी दिशा का ज्ञान है
बस एक कोशिश है अपने आपको जानने की मैं निकल चला हूँ उस रास्ते पर जहा मैं अपने आपको जान सकु ये मेरे पहला पड़ाव है जिंदगी में अपने आपको खोजने के लिए मैं आतुर हूँ मुझे कुछ पाना नहीं है बस जानना है, स्वयं को स्वयं की अनुभूति होती है कैसे ? बस यही समझ जाना है मुझे
नहीं पता क्यों ?  मुझे मेरे अंदर हजारो लाखो विचार उमड़ रहे है ? जो सिर्फ सवाल है जिनके जवाब नहीं है मेरे पास
वो क्यों इतने सारे विचार एकत्रित हो रहे है इनका जवाब कहां खोज पाऊंगा मै ?
कहां मिलेंगे मुझे उन सवालों के जवाब ?

मेरे मैं और मस्तिस्क में जिनके बारे में मैं भी नहीं जानता मैं क्यों इतने विचारो से मैं भरा जा रहा हूँ कहा से आ रहे है ?क्या कारण है इन्ह विचारो के आने का ? क्यों मुझे ये विचार कही ले जाना चाहते है ?मैं जाना तो कही और चाहता हूँ ये विचार मुझे कही और खीच रहे है जैसे मैं विवश हूँ इन्ह विचारो के साथ लेकिन मुझे अपनी मंजिल हासिल करनी है मैं निकल हूँ सिर्फ अपनी मंजिल को हासिल करने के लिए तलाश भी उसी की बस कुछ और नहीं चाहिए मुझे चाहे मेरे विचार मुझे कितना ही भटक रहे हो कितना भी डरा रहे हो कभी भी ले जाने की कोशिश करे लेकिन मैं वापस ना जाऊंगा मैं अपनी मंजिल को पाकर ही रहूँगा ये मेरा विशवास स्वयं में जिसे मैं पूरा करके ही रहूँगा
मैं कौन हूँ?
किसमे हूँ मैं?
मेरे यहां होने का कारण क्या है ?
क्यों मेरा जन्म हुआ है?
ऐसा कोनसा कार्य है जिसे मैं करने यहाँ आया हूँ ?
कभी लगता है की मुर्गे की बांग में हूँ
तो कभी सूरज की रोशनी में हूँ
मैं हूँ कहाँ ? कौन हूँ मैं ?
यह एक प्रश्न जो मेरे मस्तिस्क को झुझला देता है
की क्यों नहीं जान पा रहा हूँ अपने आपको 
मैं तो एक शरीर हूँ या मन
लेकिन फिर वो भी नहीं हूँ
तब कौन कौन हूँ मैं ?
आवाज़, सुर,ध्वनि
किसमे हूँ में ?
कौन हूँ मैं ?
किर्या में हूँ
या
कार्य में हूँ ?
विचार,
सोच,
हाव-भाव
शब्द,
किर्या,
प्रतिकिर्या में हूँ क्या

मैं मुर्गे की कुकड़ू कु में हूँ या
चिड़िया की ची ची में हूं मै
सूरज की रोशनी में मैं हूँ ?
मैं प्रकाश हूँ या अँधेरा हूँ मैं?
कौनसी दिशा में हूँ
या दसो दिशाओ में मैं हूँ?
समय की तरह बीतता हुआ हूँ मैं
या समय हूँ मैं ?
बचपन,जवानी या बुढ़ापा हूँ मैं?
या इनके पड़ाव में हूँ मैं ?
टूटता हुआ हूँ मैं ?
या जुड़ा हुआ हूँ मैं ?
लड़खड़ाता हुआ हूँ मैं या
संभालता हुआ इंसान हूँ ?
पूर्ण हु मैं या
अपूर्ण हु मैं ?
शांति हूँ मैं या
शोर हूँ मैं ?
खेलता हुआ बचपन हूँ या शांति का अनुभव हूँ मैं ?
खेलता हुआ बच्चा हूं मैं या
रोता हुआ ?
राह पर चलता हुआ इंसान हूं या
भटक गया हूं राह से कही ? 
खेलता हुआ बच्चा हूं मैं या
रोता हुआ इंसान हूं ?

मैं किस तरह से कर रहा हूं? खुद की तलाश ये भी नही पता मुझको 

लेकिन तलाश कर रहा हूं
वो कौनसा रास्ता है?
जिससे मैं अपने आपको जान सकता हूं ? 
मैं अपने विचारों को देख रहा हूं , समझ रहा हूं जानने की कोशिश कर रहा हूं ,
किस ओर से ये विचार मेरे मन मस्तिष्क में आ रहे है इनका उद्गम स्थान कौनसा है और क्यों इतने विचार मेरे मस्तिष्क में आ रहे है ?
इन विचारो के कारण और परिणाम क्या है ?
शायद यह विचार ही है जो मुझे मेरी मंजिल तक मुझे पहुंचा सकते है
मुझे यही जानना है इन्हीं विचारों पर मुझे बल देना है
इन्ही विचारो को सही ढंग से समझना है क्योंकि इन्ही विचारो के कारण मेरा जीवन कदम कदम पर बदल रहा है इसलिए मुझे इन्ह विचारो को ध्यांपूर्वक देखना है  ये विचार कैसे बहुत सारे विचारो में बदल जाते है और विचारो इकठ्ठा कर लेते है मुझे ये जानना है इसी किर्या को देखना है जाने अनजाने में उन्में मिल जाता हूं क्यों मिल जाता हूं ये भी मुझे समझना है।ये विचार कैसे बहुत सारे विचारो मैं बदल जाते है और विचारों का समूह रूप बना लेते है मुझे यह जानना है इसी किर्या को देखना है जाने अनजाने में मै उस किर्या मैं मिल जाता हूं लेकिन क्यों मिल जाता हूं यह भी मुझे समझना है।

हमको कुछ खबर नही इसका ना पता मालुम मुझे ना ही मंजिल की खबर फिर भी मैं चलता ही जा रहा हूं किश और मैं निकल चला ?किश सफर किस मंजिल की तलाश में मैं भटक इधर उधर हूं रहा बस अब मुझे बढ़ना है और आगे लेकिन कैसे मेरे ही विचार मुझे दबा रहे मेरे ही विचार मेरे रास्ते की रुकावट है मेरे विचार आगे नहीं बढ़ने देते है और रोक लेते है बार बार सारे विचार मेरे एक विचार को दबा रहे मुझमे डर पैदा पैदा कर रहे है उस डर से आगे निकलू कैसे बस वही सोचता हूं रुकावट से भर जाता जाता ह् मंजिल की औए आगे बढ़ नहीं पाता बार बार फिर वापस पीछे आ जाता हूं 

मुझे खुद की तलाश है में बेखबर हूं अपने ही लिए ना मुझे पता अपने ही होने का ना ही रास्ता कुछ मिल रहा बस युही में चलता जा रहा हूं जिसका न होश है मुझे ना खबर है राह भी बड़ी अजीब सी मिल रही है।
लोग मिल रहे है, करवा यू बढ़ रहा सफर में क्या होना था, और हो क्या रहा है? इसका भी होश नही है मुझको बस में आगे बढ़ युही चल रहा हूं, मंजिल मील या ना मिले लेकिन मैं आगे बढ़ रहा हूं।

इसमे बताया जा रहा है हम अपनी मंजिल को भूलकर अलग अलग राहो पर निकल पड़ते है जिसका कोई मेल नही है मिलान नही है हमारी मंजिल जिसका दूर दूर तक कोई नाता नही है बस चलते रहते है हैम ओर फेर भटकाव जिंदगी का पेड़ होता ही जाता है पता भी होता है कुछ फिर भी कुछ न कुछ भूल कर ही देते है हम मनीला को पाने के लिए जैसे मम्मी मार्किट सामान लेने के लिए भेजती है तो हम किसी से बात करते हुए रुक जाते है और भूल जाते है कि किस लिए आया या फिर कौनसा समान लेने के लिए आया था।

लोग अब मिलते जा रहे है मुझे मेरी इन्ह राहो मैं मुझे कारवां भी यू जुड़ता ही जा रहा रहा है बस में सफर के साथ चलता ही जा रहा हूं मंजिल की तलाश में, मैं ना जाने कहा-कहा मैं भटकता मैं जा रहा हूं, बार बार मेरे मन में आ रहा ये प्रश्न है।

“क्या शब्दों का संचार हूं?, मैं या आसमान से विस्तार हूं, मैं क्रोध हूं, मैं या प्रेम हूं मैं”

क्यों विचार टूटे टूटे से लगते है क्या उसमे हूं मैं क्या इंसान ना समझ है , या आज का इंसान सब कुछ समझता है हम सभी बुद्धिमान समझते है 

कौन है इंसान?  लक्ष्य क्या है ?
फिर ना जाने क्यों चल रहा है ये इंसान 
क्या इस इंसान को पता है वो क्या चाहता है ?

टूटता हूं मैं या जुड़ता हुआ मैं , समय के साथ साथ बैतब हूआ बिता हूं पल में या समय के आने बाप काल या पल में हूं मैं ? लेकिन कौन हूं मैं परिस्तिथयो से भाग रहा इंसान हूं मैं या जूझ रहा परिष्तिथियो में ठहरा हुआ रुक हुआ देखता हुआ एहसास  हूं मैं या कल या देखती हुई आंख महसूस कर रहा है शरीर हूं मैं या मूर्च्छा में पड़ा हूआ शरीर 

बहता हुआ प्रेम हूं मैं या
इंसान का क्रोध ?
विपरित दिशा में मुड रहा इंसान हूं मैं
या ब्रह्मांड का विस्तार हूं मैं ? 
अनुकूल परिस्तिथयो में बह रहा इंसान हूं विप्रिप जाने की कोसिह हूं मैं ? 
लड़ता हुआ इंसान हूं मै या चुप रहता हूं मै?
हर पल हर समय में बढ़ाने वाली परिस्थितियों
से भरा हुआ इंसान हूं मैं ?
उधेड़ बुन में जा रहा इंसान हूं मैं
या सुलझाने की कोशिश हूं मैं ?

उधेड़ बुन में जा रहा इंसान हूं मैं ?
या
सुलझाने की कोशिश हूं मैं ?
घबराहट हूं मैं या साहस हूं मैं ?
हाथी की गर्जना हूं ? हिम्मत हूं मैं ? 

इंसान की पूर्णता हूं मैं या
उसकी अपूर्णता हूं मैं ?

रिक्त स्थान हूं या
भर हुआ आसमान ?
सवाल हूं मैं या जवाब हूं मैं
समस्या हूं या समाधान  हूं मैं ?
जानने की इच्छा या
पहचानने की समझ हूं मैं ?
चलता हुआ मुसाफिर हूं मै? या
रुका हुआ इंसान हूं मै?
परिसिथतियों के साथ बह रहा हु मै
परिष्तिथियो से लड़ता हुआ इंसान ? 

खुशी हूं मैं या दुख हूं मैं ?
अंधेरा हूं मैं या प्रकाश हूं?
हर जगह ढूंढ रहा इंसान हूं मैं
कौन सा उद्गम स्थान हूं मैं ?

इस स्तिथि में हु मैं ?
कोनसी सी परिस्तिथत में हूं
चांद की शीतलता हूं या
सूरज की ज्वलनशीलता हु मैं ? 

बिंदु सा आकर हूं मैं या
ब्रह्मांड जैसा निराकार हूं ? 
शब्द सा मीठा हूं या
नीम से कड़वा हूं मैं

कौन हूं मैं ? 

इस जगह खड़ा इंसान हु मैं ?
हर वक़्त , हर पल घटना में मैं
अपने आपको खोजता इंसान हु मैं ?
चट्टान की तरह कठोर हूं मै ? या
माँ की तरह नरम हु मैं
ये मुझे ना पता चल पा रहा है
कि कौन हूं मैं?
हर पल हर जगह खोजता चल रहा मैं
इस सवाल  का जवाब नही मिल रहा है
हर एक वस्तु हर एक घटना में होने की कोशिश है
और
हर घटना को जानने और समझने की
कोशिश में लगा हुआ मैं

किस ओर निकल चला किस मंजिल को पाने को हूं मै ?
निकल चला बस गतिमान हु मैं
अब रुकना मेरा काम नहीं
मुझे मिले मेरी पहचान वहीं है सही
कही ढूंढता स्वयम को चला
पूछता अपने आपको रहा
बतादो मुझे कौन हूं मैं
जानते है लोग मुझे मेरे नाम से
मेरे काम से लेकिन मेरा अस्तित्व है क्या ?
इस वजह मै यहां वहां बस भटकता ही रहा
ना मंजिल न सफर का मुझे पता चला
बस रहा ढूंढ मै स्वयम को हर पल रहा
कौन हूं मैं?
ये प्रश्न मेरे मन में बार बार उठ रहा।

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तुम्हारी यादों का ढेर

अक्सर तुम्हारी यादों का ढेर लग जाता है
जब भी तुम्हारा एक छोटा सा ख्याल आता है।
दिन कट नही पाता रात लंबी हो जाती है
तुम्हारी यादों का सफर खत्म होता हुआ
नजर ही नही आता है

और

इस कदर मेरा हाल बुरा हो जाता
मानो हरा भरा पेड़ तेज़ आंधी में
अपनी खुशहाल जिंदगी को सलामत रखने की गुहार लगाता है

तुम्हारी यादों का ढेर
तुम्हारी यादों का ढेर

लेकिन उस पेड़ की गुहार कोई सुन नही पाता है कुछ क्षण
बाद ही हरे भरे पत्तो से भरा पेड़ सुने जंगल में तब्दील
नजर आता है वो रोता, चिल्लाता , बिलखता है
लेकिन कोई उसकी पुकार कोई नही सुनता
वो पेड़ अब हरा भरा नही सुना सुना नजर आता है।

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समय अब पूरा

समय अब पूरा होने लगा ,समय का कुछ हिस्सा बाकी था।
अब वो भी खत्म होने लगा
कुछ काम हो गया कुछ और रह गया
यहाँ होने की समय सीमा पूरी होने लगी है

कुछ और वक़्त पूरा होने को है।
कुछ देखने के लिए रुके हुए यहाँ
वक़्त और नजदीक आने लगा है

किसी का इंतज़ार है बस अब
उनके आने पर हम भी चल चलेंगे
उन्होंने कहा था, वही आकर मेरा हाथ पकड़ेंगे
और हमे अपने साथ वो ले चलेंगे

बस वही उत्सुकता बढ़ रही है
आज मुझमे भी कुछ हलचल हो रही है
खुद को रोके रोक नहीं पा रहा हूँ
बस अब इंतज़ार के पल  मैं भी बीता रहा हूँ

सब्र का बाँध टूटने लगा है
अब समय पूरा होने लगा है
कुछ हिस्सा बाकी था
अब वो भी खत्म होने लगा है।

कुमति निवार सुमति के संगी

“कुमति निवार सुमति के संगी”

जब आप एकांत , ध्यान में होते है प्रकृति की छत्र छाया में होते है तब आपके भीतर बहुत सारे अच्छे विचारो का संचालन होने लगता है और तब बुरे विचारो से मुक्त होने लगने है और आप अपनी सारी दुरबुद्धी को बाहर निकाल देते है और सुमति का आचरण करते है


ऐसा ही हर जगह देखने को मिल रहा है बेशक हम सभी कुछ घबराए हुए है लेकिन घबराहट तो उस अर्जुन को भी हुई थी अर्जुन तो क्षत्रिय था तब भी वो घबराहट से भरा हुआ था
जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को यज्ञ निहित कर्म करने को कहा था


आज हम सभी को भी प्रकृति प्रेरित कर रही है और हम भी शायद प्रेरित हो रहे है तभी हम सभी लोग सकारात्मक सोच की और बढ़ रहे है


इस मुश्किल घड़ी में , फेसबुक , वॉट्सएप, ट्विटर, आदि कहीं भी सोशल मीडिया पर इस समय कोई राजनीतिक , सामाजिक , बुरी ख़बर नहीं है ना ही कोई लड़ाई झगड़ा आदि इत्यादि है जैसा कि हम सुबह से शाम तक इतना स्क्रॉल करते है तब हमे ना जाने कितनी ही नकरात्मक खबरे पढ़ने को मिल जाती है कभी किसी को ट्रोल करते है तो कभी किसी गालियां देते है परन्तु आज हम सभी एक दूसरे सिर्फ यही कह रहे है “घर में रहिए कुछ ना करिए”


अब हमारी
सिर्फ एक यही कोशिश है Corona को हराने की जिस पर हम जीत जरूर हासिल करेंगे हमारे विचार आचरण सभी शुद्ध हो रहे है इससे तात्पर्य यह की प्रकृति अपने ऊपर से एक परत,एक आवरण हटा रही है


जो तामसिक परत है उसे हटाकर सात्विकता की और बढ़ रही है मांस खाने से लोग घबरा रहे है , जीवो के बारे में लोग सोच रहे है यही सुमति है , यही सुविचार है, कुमति से मुक्ति है , बुरे विचारों से दूर होना है और अच्छे विचारो का समावेश करना है।


प्रकृति के संदेश को कभी भी नजरअंदाज ना करे प्रकृति के साथ सदैव जुड़े रहे।

Rohitshabd

वो सहम गए

वो सहम गए , वो सहम रहे है
जो वहा रह रहे है ,
जो अब भी है वहां ,ना चैन से सो रहे
और ना चैन से जाग रहे है

वो डर गए , वो सहम गए , वो कांप गए
जिनके घर वाले मारे गए
कौन कसूरवार था ? कौन बेकसूर था ?
क्यों वो इतनी हैवानियत से मारे गए
क्युकी उस भीड़ का कोई नाम नहीं
भीड़ का कोई नाम नहीं था।

उनका कोई धर्म – मजहब नहीं
रात को पहरा अब भी घर के बाहर
लगाकर लोग बैठे है सप्ताह हो गया
दिन भर बैठ कर दिन कट रहा है,
रात की नींद दहसत में उड़ गई है

लगता है घर के बाहर आग लगा गया कोई
क्या मेरा फिर से घर जला गया कोई ?
देहसत तुमने फैला दी

मेरे दिल में नफ़रत की आग लगा दी
तुम्हे अपना भाई कैसे कहूं ?
जो तुमने इतनी हैवानियत दिखा दी
मै डरता हूं , मै डरती हूं अब तुम्हारे पास आने से
मै घबरा गया हूं , मै घबरा गई हूं
तुम्हे अपना भाई बनाने से।

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मंजिल की तलाश

ना मंजिल का पता है ना उस ठिकाने का बस चल रहा हूँ, कुछ खास नही बस हर लम्हे में इस तरह से जीने की आदत हो गयी है जैसे अब समय कही नही है। बस चलते ही जा रहे है ना कोई बंधन है ना कोई रोक टोक , ना कोई सीमा है बस निकला हूँ मंजिल की तलाश में

मंजिल की तलाश
मंजिल की तलाश

जीवन तो स्वत् चल रहा है आप चलो या फिर ना चलो यह गतिमान की अवस्था में है आप किसी दौड़ का हिस्सा नही होना चाहते फिर भी जीवन आपको बहा कर ले जा रहा है अपने साथ, क्योंकि आपका खुद पर कोई नियंत्रण नही है
समय और परिस्थितिया आपको नियंत्रित कर रही है।

यदि आप भीतर से खुद के साथ प्रवाहित है खुद के लिए तो बस फिर जीवन आपको आपके अनुसार ही आपको लेकर जाएगा फिर आप उस दौड़ में नही होंगे जिसमे पूरी दुनिया भाग रही है और सिर्फ भागना चाहती है परंतु किसी से पूछे तो कोई नही बताता क्यों भाग रहा है भाई ?

उनको “ना अपनी मंजिल का पता है ना उस ठिकाने का” की उनको जाना कहाँ है? और वे जानने की कोशिश भी नही करते की हम कहाँ जा रहे है क्यों जा रहे है ? बस समय और परिस्थितितयो के साथ बहते जाते है।

लेकिन बस वो पागलो की भागता ही रहा है, क्यों बाकी के लोग भी उसी तरह से भाग रहे है जीवन आपके अनुसार चले आप जीवन के अनुसार ना चले समय तो गतिमान है, उसे चलने दे जैसे वो चल रहा है आप अपनी चाल को नियंत्रित रखे और सजग रहे जितने सजग आप होंगे उतना ही नियंत्रित आपका जीवन भी होगा जिसकी डोर आपके हाथ में होगी।

जब आप हाइवे पर गाड़ी चला रहे होते हो तब आपको लगता है कि गाड़िया कितनी तेज़ चल रही है उसी वक़्त आपको भी लगता है की गाड़ी उतनी ही तेज़ी से चलाई जाए और आगे निकल जाए वरना कोई पीछे से टक्कर ना मार जाए और यदि आप साइड में चल रहे तो कोई आपको परेशान नही करता लेकिन एक आनन्दित सा लगता है बहुत धीमी रफ्तार लोग निकल रहे है आगे, फिर भी एक अलग मजा होता है उस एक तरफ चलाने का और लोगो को देखने का की बस लोग निकल रहे है। और हम अपनी मस्ती में बस चलते ही जा रहे है।

लोगो को निकालने दो वो उनका सफर है, आपका सफर है साइड में आराम से देखकर चलना मतलब सजग रहना जीवन के प्रति वही सम्पूर्ण आनंद है हर एक पल को आनन्दित होकर जीना यही लक्ष्य है हमारा , आन्नद सम्पूर्ण आनंद लेना जीवन को पूर्णतया से जीना।

बस जीवन एक लहर की तरह बह रहा है जिसका छोर खुद ब खुद अंत पा लेंगा , ना कुछ पाने की तम्मना है और ना ही कुछ खोने का डर बस जीवन हो चुका है एक मधुर सफर, मंजिल की तलाश पूरी होगी।

जिंदगी क्या है

जिंदगी क्या है? ये एक गहरा प्रश्न है लेकिन हम अपने जीवन पर गौर नहीं करते बस जीवन में बिना मतलब की भाग दौड़ में व्यस्त है, जिसके कारण मिलन ओर बिछड़ना बना हुआ है, एक बार तो सबको बिछड़ ही जाना है

लेकिन हम जिंदगी में जीते हुए भी बिछड़ जाते है, जो नहीं होना चाहिए हमारी खुद की गलतिया जिंदगी की तकलीफ को बढ़ा देती है इसलिए हमे अपनी जिंदगी को बहुत संभाल कर जिन चाहिए, हम सभी को मिलजुल कर रहना चाहिए।

जिंदगी को मिलकर बिताया जाए इसको बिछड़ने ना दिया जाए जब तक हम जी रहे है, हमे सब संग साथ रहना है यही जीवन है।

जीवन का जीवन से मिलन है जिंदगी और मिलकर बिछुड़ना भी है जिंदगी
जिंदगी क्या है

जिंदगी का जिंदगी से मिलना है, जिंदगी ओर मिलकर बिछड़ना भी है जिंदगी

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क्या है जिंदगी?

क्या है जिंदगी? नए मतलब सिखाने का नाम है जिंदगी , दुनिया कितनी भी मतलबी हो लेकिन यह जिंदगी हमे बहुत कुछ सिखाती है, इस दुनिया के बीच में हमे जीना आता है, और मतलबी है जीवन तो ओर भी रंगीन, हसीन बन जाती है यह दुनिया वरना शायद बेरंग हो जाती, जो इतना शोर है इस जीवन का वो शायद मतलब होने के कारण ही तो है यही मतलब न होता तो मौन कहला रही होती यह जिंदगी।

क्या है जिंदगी?
क्या है जिंदगी ?

मतलबी दुनिया के बीच अलग अलग मैने, मतलब सिखाती है यह जिंदगी

न मतलब की बात करो बस बिना मतलब के जिन सिखाती बताती भी है जिंदगी

बहुत सारे अर्थ बताती है यह जिंदगी इसलिए इस जीवन को जरा गौर से देखिए कही छूट न जाए कुछ, हर लम्हे में कुछ खास छिपा है इस जिंदगी के हर पल को इस जिंदगी का बेहतरीन बनाइये।

यह भी पढे: जिंदगी कैसी है, जिंदगी की राह, जिंदगी की राह में,