Posts in kavitaye

सारे विचार अस्थाई

सारे विचार अस्थाई
नहीं अस्थाई मर्ज़ की दवाई ।

सब व्यक्ति व्यक्तित्व अस्थाई…
समझो इस बात की गहराई ।

सब दिखते दृश्य अस्थाई ….
इससे क्या बात समझ आई ।

सारी भावनायें अस्थाई ….
नहीं कुछ भी स्थाई ।

अपने मिले कार्य सही से करे….
हम सब स्थाई दायरे से घिरे ।

न काहु से दोस्ती न काहु से बैर…
शुक्रिया करते चलो माँगो सब की ख़ैर ।

यहाँ सब अस्थाई….
यह बात ही सच्ची इकाई ।

बहते चलो जैसे बहता पानी….
या बहो पवन की तरह यही ज़िंदगानी ।

सारे विचार अस्थाई,
नहीं अस्थाई मर्ज़ की दवाई।

जीवन के सफर में कभी आए,
खो गए फिर वो गुजरे दिन जाए।
चिंता और चिंता का बंधन है,
इसे तोड़ने की राह ढूंढ़ लो भले।

ज़िंदगी की चाल में आए हैं ये विचार,
चिंता के बादल छाए हैं ये आधार।
पर याद रखो, ये सब हैं अस्थाई,
हो सकता है आने वाले कुछ पल हंसाई।

ज़िंदगी की राहों में कभी थम जाएं,
चिंता के दामन से खुद को छुड़ाएं।
हर चिंता को दवा नहीं कहा जा सकता,
कुछ तो विचार होंगे अस्थाई ही रह सकता।

अपना ध्यान मुख्य बातों पर रखो,
हंसते रहो, मुस्कराते रहो आप।
रोग या चिंता ने नहीं जीती है ज़िंदगी,
जीने का आनंद सदैव बनाए रखो सर्वदा।

सब का शुक्रिया सब का धन्यवाद

यह भी पढे: विचार क्या है, मानसिक तनाव, मन का भटकाव, कमजोर ताकतवर,

शिक्षा देके बीता था

जो था अच्छा था….
शिक्षा देके बीता था ।

जो है वो सबसे बेहतरीन….
वर्तमान जीवित और हसीन ।

वर्तमान में डाले उत्तम बीज….
भविष्य की फसल अजीज ।

जो बीता वो पल नहीं लौटेंगे….
वर्तमान स्वस्थ तो उससे बने इतिहास में
भी खूबसूरत फूल लगेंगे ।

वर्तमान स्वस्थ तो भविष्य भी खुशहाल….
यही जादू है वर्तमान का उसका कमाल ।

समय बाहर बदलता रहता….
भीतर समय की कम रफ़्तार ये मैं कहता ।

कितनी भी की हो ग़लतियाँ….
वर्तमान में शुरूआत करे सुधार की
जगेंगे सही शक्तियाँ ।

जो था अच्छा था…
शिक्षा देके बीता था

वर्तमान के पन्नों पर
उसकी यादें बिखरी हैं।
मस्तिष्क में उसकी छाप
हमेशा बसी है जीते हुए।

वह शिक्षा का समुद्र था,
जिसमें धर्म, ज्ञान, नैतिकता
सब लहरों में बहते थे।
गुरु की ओर से वह जीवनमूल्यों का आदान था।

विद्या की आग जलाकर
उसने मन के अंधकार को हराया,
ज्ञान की बारिश से
उसने सृजन के उस पथ पर पैर रखाया।

वह शिक्षा का प्रिय याराना था,
जो अब भी दिलों में बसा हुआ है।
जीवन की हर चुनौती में
उसकी सीख हमें सम्भाला है।

जो था अच्छा था…
शिक्षा देके बीता था।
उसके बाद भी उसका परिणाम
हमारे जीवन को चमका रहा है।

यह भी पढे: शिक्षा का संस्कार, दुनिया एक किताब, जो जीवन बीत रहा,


विकल्पों का पतन

यहाँ एक चलन …..
हुआ विकल्पों का पतन ।

प्लास्टिक और रणनीति…..
दोनों की ज़रूरत वाली स्थिति ।

प्लास्टिक करता दूषित वातावरण…
प्लास्टिक का क्यों नहीं नया संस्करण ?

राजनीति भी बहुत मैली और दूषित….
मनो में भर दिया टनो ज़हर अघोषित ।

बोल रहे नहीं है दोनों का विकल्प ….
विचारहीन समाज अच्छाई हुई अल्प ।

ये विचार विकार बात यह ग़लत….
एक सौ चालीस करोड़ हुए बेइज्जत ।

सब एक दूसरे को दिखा रहे उँगली….
बस चल रहा है आके मिल उस गली ।

वैज्ञानिक खोजो को दे इस दिशा में बढ़ावा ….
विश्व से प्लास्टिक मिटे स्वस्थ सब , न करे छलावा।

यहां एक चलन है रुख़सार,
हुआ विकल्पों का पतन अनुभव।
परिवर्तित हुए दृष्टि के आयाम,
खो गई स्वतंत्रता की राह अविरल।

नगरी ने जीने की बंधन में डाला,
चुनौतियों से बनी अब वह भटकती है।
आदर्शों की गोद में लिपटी रही वह,
अब हर तरफ़ है प्रताड़ित और दबी हुई।

जब जगह नहीं रही सपनों की,
तब कैसे उड़े आवाज़ आज़ादी की।
हर तरफ़ दिखें बंधनों की खड़ी,
मन में जलती रहे आग स्वतंत्रता की।

फिर आया है वक़्त जागरूक होने का,
इस चलन को तोड़ देने का।
खुद को मुक्त कर, निकल पड़ो आगे,
अपनी अलख़ जगाओ और चमकाओ राहें।

चलो अब छोड़ो विकल्पों की मृत्यु,
जीवित हो जाओ स्वतंत्रता की प्रेरणा।
करो प्रगति को आगे बढ़ाना,
यही है जीने की सच्ची पहचाना।

आओ मिलकर नयी दिशा में चलें,
करें स्वतंत्रता की शोरगुल मचाएं।
जागो, उठो और बदलो समाज को,
यही है सच्ची आज़ादी की आज़ादी।

यह भी पढे: खुद से करे सवाल, प्रति दिन चिन्ह, अपनी मेहनत,

खुद से करे सवाल

खुद से करे सवाल जीवन जी रहे या उसे रहे हो काट ।
ग़र वर्तमान में प्रसन्न…..
यही सच्चा कमाया धन ।

फिर जीवन को नहीं रहे तुम काट…..
चाहे न या कम धन फिर भी ठाठ -भाट।

जीवन का मालिक कौन है यह सत्ता किसके है पास….
यदि जीवन की चाभी स्वयं के पास यह सुखद अहसास ।

आपकी सुखी और दुखी होने की चाभी यदि दूसरो के पास….
राक्षस और तोते की कहानी गर्दन तोते की दाबेगी इधर राक्षस की उड़ेगी सांस ।

अकारण वर्तमान में रहे ख़ुश ….
शुक्रिया करे नहीं हो कभी नाखुश ।

ख़ुशी का विकल्प सिर्फ़ और सिर्फ़
ख़ुशी ….
जिये जीवन जैसे जीवन जीता शशि ।

खुद से करे सवाल जीवन जी रहे या उसे रहे हो काट,
गर वर्तमान में प्रसन्न, यही सच्चा कमाया धन।

जीवन का मतलब क्या है, विचार करो थोड़ा,
क्या तुम बस काम करते हो, और अपनी ज़िन्दगी छोड़ा?

ख़ुद से पूछो, क्या तुम खुश हो, क्या तुम संतुष्ट हो,
क्या तुम वह सपना पाए हो, जिसे ज़िंदगी ने तुमसे छीना हो?

क्या तुम वक्त का मज़ा ले रहे हो, प्यार से अपनों के साथ,
या बस दौड़ रहे हो, धन-दौलत के पीछे भागते रहते हाथ?

जीवन एक उपहार है, इसे सवार्थी बना न पाओ,
इसका आनंद लो, अपने सपनों को पूरा करो।

धन और सम्पत्ति तो केवल मालिकी हैं यहाँ,
परम मूल्यवान है वह, जो मनुष्य को मिलता है स्वयं।

ताजगी और ख़ुशी से भरी हो ज़िंदगी की क़लाएं,
बस वही सच्चा कमाया धन, जो दिल को छू जाएं।

ज़िंदगी को अपने अरमानों से सजाओ,
सपनों को पूरा करके अपनी ख़ुशियां बढ़ाओ।

खुद से करो सवाल, जीवन को जी रहे हो या उसे रहे हो काट,
गर वर्तमान में प्रसन्न, यही सच्चा कमाया धन।

यह भी पढे: सवाल उठ रहे है, सवालों के कटघरों में, सवालों में गुम,

मेरी मुस्कुराहट

कही मेरी मुस्कुराहट तो नही खो गई, मैं दिखता हूं आजकल बहुत गंभीर सा चेहरा लिए हुए ना जाने वो मुस्कुराते हुए होठ कहां छुप गए है, जो हमेशा मुस्कुराते ही रहते थे चाहे उन होंठों के पास मुस्कुराने की वजह हो ना हो लेकिन वो बस मुस्कुराते हुए रहे आज कुछ गुम गुम से है।

मेरी मुस्कुराहट खो गई कहीं,
ये चेहरा गंभीर सा हो गया हैं।
होंठों पर खेलती थी हंसी,
अब वो खो गए, कहां छुप गए हैं?

जहां चेहरे पर मुस्कान थी लगी,
हंसती अदा थी वो लगी-शूनी,
अब देखता हूं खुद को आईने में,
कहां छुप गई वो खुशी जो भरी?

जीवन की मस्ती थी उस हंसी में,
खुशियाँ थी चिरागों की तरह जगमगाती।
आजकल कहाँ हैं वो रौशनी वाले दिन,
बीतते हैं अब ख़ामोशी से रातें।

मौसम की बदलती चाल में,
खो गई हैं प्यारी सी मुस्कान।
कहीं तलाशता हूं उसे दिल में,
पर ना जाने कहां छुप गए होंठ कहां?

ये दिन थे जब हंसते थे, गाते थे,
खुशियों की बहार थी हर दिशा में।
पर अब आँखों में हैं आँसू छलकते,
मुस्कान की कहां हैं वो मिशालें?

कहीं गुम हो गई खुशियों की छाँव,
बन गया ये चेहरा गंभीर सा अब।
लौट आओ, मेरी प्यारी मुस्कान,
चाहे वो होंठों के पास, चाहे जहां छुप गए होंठ कहां।

यह भी पढे: मुस्कुराहट छुआ छूत, मुस्कुराओ, चेहरे पे मुस्कान, मुस्कुराने का सेहत पर,

सोचो तुम कमाने की

सोचो तुम कमाने की, न सोचो तुम जमाने की,
ये जीवन एक सफर है, जीने का अद्वितीय क्षणे की।

मत अपनी जिदगी को सीमित करो, न सपनों को बांधो चार दीवारों में,
आज से पहले की सोचो, न कल की चिंता करो, खो दो आपका हर दुख और बेकार की फिक्रों में।

जीवन की लड़ाई में तुम्हें चाहिए हौसला और जज्बा,
उठो और चलो आगे, मत रुको और न झुको आगे कोई रुखा।

कमाने की सोचो, आगे बढ़ो, नए मकसद बनाओ,
चुनो अपने स्वप्नों के साथ नया रास्ता, नया निर्माण कराओ।

सूर्य की किरणों की तरह चमको, जगमगाओ चमक से सबको,
अपनी प्रतिभा को जगाओ, जगाओ दुनिया को अपनी आवाज़ से जबलो।

जमाने की सोचो, खुद को नए अवसरों से जोड़ो,
सोचो विश्वास के संग, प्रगति की धुन में संगठित होड़ो।

करो महान कार्य, जीवन को अर्पित करो,
सेवा में लग जाओ, सबको प्रेरणा और उदाहरण बनाओ।

न सोचो तुम बिना मेहनत के कुछ पाने की,
बनो खुद मेहनत का राजा, बदलो अपनी तक़दीर की कहानी।

जीवन एक अद्वितीय उपहार है, इसे खो न दो,
सोचो तुम कमाने की, न सोचो तुम जमाने की।

सोचो तुम कमाने की
न सोचो तुम जमाने की ।

जमाना देता दो चीज….
सलाह और ताना लजीज ।

जमाना नहीं देता खाना ….
कमाने में शक्ति लगाना ।

कमाने में आत्मनिर्भरता…
आत्मसम्मान का गुलदस्ता ।

कमाने वाले का सही जगह ध्यान….
कर्म ही बनते व्यक्ति की पहचान ।

जमाना सिर्फ़ देता दो चीज…
सलाह और देता ताना इतना बदतमीज़ ।

यह भी पढे: महंगाई, भलाई, संकट एक मुश्किल, समय की ये बाते, लक्ष्य की प्राप्ति होगी,

अहंकार सत्य सच नहीं

अहंकार सत्य सच नहीं स्वीकारता….
शक्ति सत्य की अहंकार उससे हारता ।

अहंकार मैं का भोजन….
मैं को स्थापित का आयोजन ।

अहंकार की अल्प आयु ….
सत्य सनातन पुरातन जैसे वायु ।

अहंकार प्रशंसा का भी भूखा….
मैं को होता विस्तारण का धोखा ।

अहंकार सत्य सच नहीं स्वीकारता,
शक्ति सत्य की अहंकार उससे हारता।

अहंकार मोह में धूल बन जाता,
माया के जाल में फंसा रह जाता।

मनुष्य की बुद्धि गढ़ी हो या कमजोर,
अहंकार उसे बांधे रखता है तोर।

गर्व में डूबा हुआ व्यक्ति बन जाता,
सत्य को नहीं पहचान पाता।

जब आहुति देता है अहंकार को व्यक्ति,
विचार और बुद्धि रह जाते हैं शून्य।

सत्य की ओर जाने का मार्ग होता है निर्माण,
अहंकार को त्यागना होता है आवश्यक अवधान।

विचारों को स्वतंत्र करो और अहंकार को छोड़ो,
सत्य की ओर बढ़ो, अपने आप को समझो।

बहुमत से नहीं चलना, अहंकार की बातों में,
अपने हृदय की सुनो, सत्य की ओर जाने का रास्ता जानो।

अहंकार को त्याग करो, सत्य को ग्रहण करो,
हम सब एक हैं, यह बात समझो।

सत्य ही हमारा आधार है, अहंकार को छोड़ो,
अपनी असली पहचान में खुद को समझो।

अहंकार प्याज़ के समान….
झूठ के छिलको से होता निर्माण ।

सत्य जैसे दूध की मलाई…
ऊपर आके तेरती सच्चाई ।

सत्य मेव जयते ….
सुख दुख में सम रहते ।

यही सच्चे जीवन का सार
सत्य सबसे बड़ा हथियार।

यह भी पढे: अहंकार का कद, अहंकार से मुक्ति, अपमान ओर अहंकार, सच्चाई का करे,

सकारात्मक प्रतीक्षा

सकारात्मक प्रतीक्षा की करते है बात, लिखने का कार्य कुछ देर रोकते है ओर चलते है उनसे करने के लिए मुलाकात, जब कोई इंतजार कराए उसमे बहुत होने को होता है, इंतजार में बहुत कुछ बाकी होता है उस इंतजार का स्वाद हर किसी से चखा नहीं जाता, कोई दुखी हो जाता है तो इंतजार कर ही खुश हो जाता है, बहुत सारे सपने इंतजार में ही बुन लेता है कुछ अधूरे रह जाते है तो कुछ पूरे हो जाते है।

सकारात्मक प्रतीक्षा की करेंगे बात….
लेखन से करने निकले उससे मुलाक़ात ।

इंतज़ार मतलब प्रतीक्षा….
कुछ अच्छा होने की आकांक्षा ।

प्रतीक्षा का आनंद….
पकने पे आती सुगंध ।

प्रतीक्षा बहुत भली…..
ज़बरदस्ती  से मुसीबतें पली  ।

ज़बरदस्ती…
बल प्रयोग बात सस्ती ।

प्रतीक्षा में आनंद….
सब्र सही समय की गंध ।

प्रतीक्षा एक आशा…
भीतर संतुलन की भाषा ।

प्रतीक्षा नहीं कामचोरी….
भीतर से पुकार ,नहीं कमजोरी ।

प्रतीक्षा बलवान…..
बने वो पहचान ।

सकारात्मक प्रतीक्षा की करेंगे बात,
लेखन से करने निकले उससे मुलाक़ात।

जीवन की उड़ान को बढ़ाते सपने,
आशा के पंखों पर पूरे करते अपने।

ख्वाबों की गुड़ियों को हम बनाते,
आगे बढ़ते रहते, ना होते थमाते।

हर दिन नए सपनों को लेकर आते,
मिटाते अंधकार, अपने आगे ज्योति प्रज्वलित करते।

निराशा की बादलों को छेड़कर,
सकारात्मकता के सूरज को उगलते।

मुश्किलों का सामना करते निडरता से,
हार न मानते, खुद को जीतते।

विचारों की उड़ान को लेते उच्चाईयों पर,
दृढ़ता के साथ आगे बढ़ते हैं हम।

हर दिन एक नयी प्रतीक्षा के साथ,
जीवन के सफर में आनंदित रहते हैं हम।

सकारात्मकता की किरणों से ज्योतित हैं हम,
उम्मीदों के प्रदीप से प्रज्वलित हैं हम।

जीवन के पथ पर चलते रहें सकारात्मकता के साथ,
आगे बढ़ते रहें, खुशियों को बांटते रहें हम।

ये सकारात्मक प्रतीक्षा का जीने का तरीका है,
खुशहाली के मार्ग पर चलने का रास्ता है।

सकारात्मक प्रतीक्षा की करेंगे बात,
आनंद और संतोष से भरी रहेगी यह रात।

यह भी पढे: इंतजार क्या है, नजर, पता नहीं मैं, मेरी खुशियों,

धैर्य व्यवहार

धैर्य व्यवहार का शुभ गहना….
समझ कर इसे धारण करना ।

योग्यता स्वस्थता का मुख्य सूत्र धेर्य…
जितना सधा धेर्य उतना ही प्रबल शौर्य ।

धेर्य का गहना निरंतरता की साधना…
समय सदुपयोग से इस को निखारना ।

धेर्य का गुण बने शिक्षा का अंग ….
व्यक्ति विकास होगा बिखरेगे रंग ।

सब का हो भला जीवन में उमंग ।
समाज परवर्तित होगा बदलेगा ढंग ।

महत्वपूर्ण बस धेर्य हो सकारात्मक…
सकारात्मकता ही मुख्य शुभ घटक।

धेर्य व्यवहार का शुभ गहना,
समझ कर इसे धारण करना।

जब जीवन की लहरें ऊँची उठाएं,
और परेशानियों की आंधियाँ छाएं।

तब धेर्य से जीने का आदेश होता है,
चंदन की तरह खुद को गंधित करना।

जब चिंताएँ मन को सताएं,
और निराशा की आंधियाँ छाएं।

तब धेर्य से जीने का आदेश होता है,
अग्नि की तरह अपनी रोशनी बढ़ाना।

जीवन के प्रत्येक पथ पर,
चुनौतियाँ बनी रहें बार-बार।

तो धेर्य तुम्हारा साथ देगा,
आगे बढ़ने की ताकत देगा।

संघर्षों के मैदान में उठते हैं तूफान,
और अस्थायी बन जाते हैं मनुष्यों के आदान-प्रदान।

तब धेर्य को निभाने का समय होता है,
जब तूफान की चपेट में हो जाना।

तो धेर्य की शक्ति तुझे आगे बढ़ाएगी,
हर लम्हे में खुद को बेहतर बनाएगी।

धैर्य व्यवहार का शुभ गहना,
समझ कर इसे धारण करना।

यह कविता राम ललवानी जी द्वारा लिखी गई है, आप उनकी अन्य और कविताए पढ़ सकते है, नीचे उनकी कुछ ओर कविताओ के लिंक दिए है। कमेन्ट कर हमारा प्रोत्साहन बढ़ाए, धन्यवाद

यह भी पढे: व्यवहार कैसा हो, सच्चा मित्र, लोग बदल जाते है, मित्र या शत्रु, शिक्षा का संस्कार,


भीतर का मन

भीतर का मन नहीं वो सोता…
हर घटना का वो साक्षी श्रोता ।

जब भीतर हर परिस्थिति स्थिति हँसता…..
वो फिर जानता है कहाँ से कहाँ निकल रहा है रास्ता ।
बाहर चेतन भीतर गहरा अनदेखा अनजाना अवचेतन ।
उसकी भाषा संवाद अलग, कोशिशों से जान पाता बाहर का ये मन ।

अवचेतन को समझने की करे प्रयास..
चेतन में होगा सुधार ,जन्मेगा हास ।

चेतन का जैसा होगा संकल्प …..
भीतर के मन वो जाता वो छप ।

सब कार्य भीतर की शक्ति से चलते….
चेतन करे सही चुनाव खुलते सही रस्ते ।

भीतर की शक्ति को प्रणाम ….
भीतर को समझे खुलेंगे नये नये आयाम ।

भीतर का खेल बाहर विस्तारित….
जड़े धरती भीतर करती सब संचालित ।

भीतर का मन नहीं वो सोता…
हर घटना का वो साक्षी श्रोता।

जो आंखों की भाषा समझता है,
दिल के राज़ जो पढ़ता है।

चिंताओं के सागर में डूबे,
जीवन के रंगों को चढ़ता है।

जब अँधेरा छाने लगे हों,
उसकी आँखों में प्रकाश बसता है।

सुनता है धड़कनों की धड़कन,
खो जाता है ध्यान उसके भीतर।

चुपचाप बैठा होता है साक्षी,
हर रहस्य का उसका अन्तर।

जानता है वो अश्वासन देना,
जब तन्हाई का होता है संघर्ष।

भावों के लहर उठाता है वो,
जीवन के संगीत का सागर।

कभी नहीं बताता वह राज,
अपनी गहराइयों का असर।

भीतर का मन नहीं वो सोता…
हर घटना का वो साक्षी श्रोता।

यह कविता राम ललवानी जी द्वारा लिखी गई है, और यदि आप इसी प्रकार की कविताए पढ़ना चाहते है, तो लगातार हमारे साथ बने रहे ओर हमारा प्रोत्साहन बढ़ाए, हमने नीचे कुछ और भी कविताओ के लिंक दिए है आप उन्हे भी पढे, और कमेन्ट कर हमे बताए की आपको हमारी कविताए कैसी लगती है।

यह भी पढे: स्वयं का अध्ययन, दृढ़ निश्चय, भीतर सच, नहीं कोई नियम रास्ता, एक उम्मीद,