सपने और सच क्या होते है सपने ? क्यों आते है हमे सपने ? क्या सच में सपने होते है ?
क्या असल जिन्दगी से कोई ताल्लुक है इन सपनो का ?
सपने या हकीकत सपने या हमारी सोच का कारण सपनो का हकीकत में साकार होना ना हो पाना हमारे असल जीवन में या जाग्रत अवस्था में इस समय में मेरा शरीर सो रहा है मैं कुछ नही कर रहा इस समय में सिर्फ अपने विचारो को देख रहा हूं जो मेरे मस्तिष्क में आ और जा रहे है लेकिन अब शरूर निस्किर्य है परंतु मस्तिष्क किर्यशील है इसलिए मन उन सभी विचारो के साथ छेड़खानी कर रहा है और और उन्हें बढ़ावा दे रहा है
और विचारो को खोता जा रहा हूं ऐसा लगता है मानो ये विचार कुछ पूरा करने की इच्छा रखते है जैसे अभी आसमान को अपने अंदर समेत लेना चाहते हो मैं भी इन विचारो की सिथति खोता जा रहा हु मैं भी इस सोच के साथ ही चल रहा हूं
मेरा शरीर जब सोता है तो शरीर को निस्किर्य अवस्था विचारो में प्रबलता लाती है।
जिसके कारण मानो मेरे छोटे छोटे विचारो को बड़े होने की आज़ादी मिल गयी हो इन्होंने जानो कितनी ही स्तिथतियो को जन्म दे दिया कितनी ही बड़ी बड़ी कल्पना है गढ़ ली यह विचार अब खुद को ही इस शरीर और मस्तिष्क की सत्ता का मालिक समझने लग जाते है
एक छोटी सी स्थिति को पता नही कितना बड़ा पहाड़ से बनाने लग गए विचार , विचार एक छोटे से पहलू को कितनी ही स्तिथतियो में अलग अलग प्रकार से लगव हो ?
यहॉ वो समय है जब मैं अपनी सोच को ही जिंदगी की हकीकत समझता हूं परंतु यह सोच भी मेरा साथ तब तक देती है जब तक मेरा शरीर सोया होता है जैसे ही मेरा शरीर उठता है ये सोच खो जाती है, और मैं वापस अपने शरीर को देखता हूं इस शारीरिक स्तिथि को देखता हूं जो सिर्फ आराम कर रहा है, और उठने वाला है हकीकत में तो जीवन असफल से लगता है हम अपने जीवन में ना जाने कितना ही कुछ करना चाहते है।
परंतु हम हर वस्तु चीज़ को नही प्राप्त कर पाते हमारे जीवन की सारी इच्छाओ को पूरा नही कर पाते हमारे जीवन की सच्चाई यह है की मानव जीवन अपने आप में असहाय से लगता है जब तक उसे अपने जीवन के सही रूप , सही दिशा सही अर्थो , सही शब्दो में ज्ञात नही होता , यह जीवन तो मानो निर्रथक से लगता है जब तक इसे सही दिशा , सही परिस्तिथि सही स्तिथि सही सोच नही मिलती क्योंकि हमारी शारीरिक क्षमता कम होती है और विचारो की शक्ति और कल्पना की कोई गणना नही है जिसके कारण हम असल जिंदगी में असहाय और कठिनाईयो से भरे भरे मालूम होते है इसी कारण हिमारी अधूरी सोच अधूरे कार्य हम सोते हुए पूरा करते है हम उन्ही बातो को अपने सपने समझ लेते है परंतु हकीकत में तो सपने होते ही नही है ये सिर्फ हमारी कल्पना मात्र होते है हमारे विचारो की कल्पनाशील बाते होती है हमारे विचारो के बादल होते है
जैसे हमारे मस्तिष्क में एक विचार आता है और मस्तिष्क की किर्या इसे बढ़ावा देती है जिसके कारण विचारो के बादल सोच में परिवर्तित होते है जिस प्रकार बादलो को आपस में टकराने से बारिश होती है और बारिश का पानी भूतल पर एकत्रित होता है उसी प्रकार हमारे विचारो के बादल भी आपस में टकराते है और सोच का रूप ले लेते है जिसके कारण हम उस सोच पर विचार करने लग जाते है।
हमारा मस्तिष्क विचारो से हर समय हर पल हर क्षण घिरा हुआ रहता है जिसके कारण हमारा मस्तिष्क आने जाने वाले विचारो पर विचार विमर्श की किर्या में हमेशा उलझा रहता है इन विचारो के दृश्य और इनकी इतनी कल्पनाएं हमारे मस्तिष्क में लगातार चलने वाली किर्याओ के एक सहायक रूप में होती है हमारे छोटे छोटे विचार एक बड़ी सोच का रूप लेते है हर एक विचार का अपना एक दृश्य होता है और दृश्य की अपनी एक कल्पना उसकी उचाई और गहराई के साथ होती है।
जो हम रात को सोते हुए देखते है है यह कोई सपने नही होते यह सिर्फ हमारे विचारो को खुली छूट होती है उस समय हम पूर्णतया सोचते ही रहते है और विचारो की मथनी करते है जिससे की वो विचार बड़े हो जाते है और उनको हम आंखे बन्द करते हुए अनुभव कर 0आते दिन के समय भी हम सोचते है परंतु एक समय में कई कार्य कर रहे होते है जिनके कारण हमे पता नही चलता है की हम क्या सोच रहे है हिमारे मस्तिष्क में लगातार विचार आते रहते है जो हमारी आंखे सुबह से शाम तक देख रही है उसकी की फ़ोटो हमारे मस्तिष्क में विचार रूप में प्रकट होती है और उसका बड़ा रूप लेकर हमे नए नए दृश्य दिखाती है जैसा आप पूरे दिन सोचते हो उसी प्रकार का रात भर आपके मस्तिष्क में घूमता ररहते है छोटे छोटे विचार मिलकर बड़े बड़े समूह बना लेते है।
आंखे दृश्य देख रही है और विचार पैदा हुए जा रहे है,महीन विचार मस्तिष्क में आते है और समूह बनाते है इन समूह के घेरे ही आपके मस्तिष्क में सोच को बड़ा करते है वह सोच आपकी शब्दो में परिवर्तित होती है जिस पर आप कार्य करते हो और लगातार करते ही रहते हो आपकी बुद्धि उन्ही दृश्यों के बारे में लगातार सोचती रहती है अलग अलग तरह से उसके हर पॉजिटिव और नेगेटिव तरीके को अपने ढंग से देखती है आपका दिमाग जैसा और जिस तरह से सोचता है रात को आप उसी तरह से सोचते है वो सभी दृश्य है जो आप रात में सोते समय देखते है इसके विप्रित कुछ भी नही है।