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यह मन अधीर

यह मन , यह मन
यह मन अधीर हुए जाए
ना समझ आए कुछ
यह मन कहना क्या चाहे

बस पहेली सी बुझाए
सवाल की झड़ी
दिमाग में लगाए
कभी घबराए
कभी साहस दिखाए

कभी चुप बैठ जाए
कभी शोर मचाए
कभी क्रोधित हो जाए
कभी शांत ही जाए

फिर सोच मन बार बार घबराए
आगे अब क्या हो ?
जो यह दिमाग भी समझ ना पाए

पुनः पुनः
बस इसी विषय में सोच कर
दिन रात बीत चली जाए
क्या करू अब मै?

यह मन
यह मन
यह मन अधीर हुआ जाए

यह मन, यह मन,
मन अधीर हुए जाए।
ना समझ आए कुछ,
जैसे धुंधली रात के अंधेरे में खो जाए।

खोये हुए ख़्वाबों के संसार में,
यह मन विचलित हो जाए।
चाहे तो खुद को ढूंढे,
पर कहीं ना पाए, अधीर हो जाए।

जब अँधेरा छाये,
और रास्ता दिखाई न दे।
कोई राह निकले दिल की,
मन खुद को तंग करे, चिढ़ाए।

पर फिर भी यह मन,
उम्मीद की किरण में जगमगाए।
चाहे हो जाए अधीर,
फिर भी खुशियों से अभिभूत हो जाए।

यह मन, यह मन,
जो अधीर हो जाए।
दूर जाए सभी चिंताएं,
और खुशियों से भर जाए।

एकला चलो

एकला चलो रे , कभी ये मन में मत सोचिए आप अकेले है……
सोचो की आप अकेले ही काफी, सही राह पे हे….

सोच की जब दिशा सही तो फिर नही मन में लाए संशय…
और व्यक्ति भी जरुर जुड़ेंगे मन में जब होगा पक्का निश्चय ।

जब दुनिया बिखरी हुई, और रास्ते अँधेरे हों,
आप अकेले ही सहारा हैं, जो सच्चाई पे चले हों।

जब लोग विचारों में फंसे हों, और उम्मीदें टूट जाएं,
आप अकेले ही आग हैं, जो ज्ञान की रोशनी लाएं।

जब वक्त के साथ बदलें, और जगमगाती दुनिया हों,
आप अकेले ही ध्यान हैं, जो शांति का संगीत गाएं।

जब भारी हो जिम्मेदारियाँ, और थका मन हो जाए,
आप अकेले ही साथ हैं, जो संघर्षों को गले लगाएं।

जब दुनिया का शोर हो चरम, और चुप्पी से भरी हो रात,
आप अकेले ही आवाज हैं, जो सत्य की आवाज बन जाएं।

एकला चलो रे , कभी ये मन में मत सोचिए आप अकेले हे…
सोचो की आप अकेले ही काफी, सही राह पे हे।

प्रकृति का नियम

इस जीवन को दे झोंके अपनी क्षमता का सर्वोत्तम …….
गहरा ज्ञान ये जो देंगे वो होता कई गुणा ये प्रकृति का नियम ।

गुप्त ओर गहरा ज्ञान यह कि देने का नाम ही जीवन……
देने के लिए प्रकृति ने रखा रचा बीजों का चयन …….

बीजों की गहराई में छिपा है आनंद विशाल,
जो फलों और पुष्पों को देते हैं उच्च विकास।

मिट्टी की गोद में आँखे भरी खुशबू पलती है,
सृष्टि की गोद में नई जीवन की लहर बहती है।

वृक्षों की छाया में प्राकृतिक सुंदरता छाई है,
पक्षियों की चहचहाहट में जीवन की गाथा बांई है।

हर पौधे की जड़ में ताकत बसी होती है,
हर वनस्पति की पत्ती में जीवन का रहस्य छिपी होती है।

जीवन की प्रकृति ने बनाए हैं सृजन के अद्भुत रंग,
जो देते हैं हमें खुशियों का नया संग।

हर बीज अपनी विशेषता लेकर उगता है,
हर फूल अपनी मिठास लेकर मुस्काता है।

जीवन की रचना में प्रकृति का साथ हमेशा रहा है,
हर मनुष्य को यह ज्ञान दिया जाता है।

चाहे जीवन की बारिश हो या तूफान,
प्रकृति हर समय हमें देती है सहारा बन।

समय बीतता रहता है, जीवन की यात्रा में,
पर प्रकृति की रचना हमें हमेशा संजोती रहती हैं।

गुप्त और गहरा ज्ञान यह कि देने का नाम ही जीवन।
देने के लिए प्रकृति ने रखा रचा बीजों का चयन, यही प्रकृति का नियम

खुश रहिए

खुश रहिए ख़ुश होने के सुनिए स्वयं की प्रशंसा ।
बेहतरींन के लिए सुनना निंदा ही सही पासा ॥
प्रशंसा में अधिकतर सत्य कही जाता वो छुप।
ख़ुशी मीठी छुरी मन में ख़ुशी से जाती गुप ॥

हे मेरे दिल के राजकुमार, तुम कितने अद्भुत हो।
तुम्हारी खुशबू, तुम्हारी चमक, सबकुछ है लाजवंत हो।
तुम इंतेजार की राहों में चमकते हो जैसे तारे,
तुम्हारी आँखों में बसी है खुशियों की प्यारी बहारे।

तुम्हारे वचन मधुर हैं, सुनने में सदा आनंद देते हो।
तुम्हारी मुस्कान अनमोल है, इसे देखकर दिल बहलाते हो।
तुम्हारी मेहनत, तुम्हारी संघर्ष, सबको प्रेरित करते हैं,
तुम जीवन के हर मोड़ पर खुशियों की राह बनाते हैं।

तुम एक अद्वितीय स्वभाव हो, जो किसी में नहीं पाया जाता।
तुम्हारी सोच समृद्धिमय है, जगत को तुम प्रकाशित करते हो।
तुम बुराईयों को छोड़कर सदा सत्यता का मार्ग चुनते हो,
तुम अपने साथीयों को खुशियों की मधुर धुन पसंद करते हो।

खुश रहिए, इस खुशी की मीठी छुरी से मन के अंदर जाती है गुप,
इस प्रशंसा में सत्यता है, वो छुप नहीं पाती है छुप।
तुम खुश होने का सत्य जानो, अपने आप से प्रेम करो,
तुम विश्वास रखो अपने में, हमेशा उज्ज्वल बनो और चमको।

खुश होने की खोज में निकलो, अपने सपनों की ओर बढ़ो,
तुम अनंत संभावनाओं के साथ, नये मार्ग खोजो और चलो।
तुम अद्वितीय हो, तुम विशेष हो, चिंता नहीं करो कभी।
तुम्हारी खुशियाँ तुम्हारा अधिकार हयहां एक कविता है जो आपकी आत्म-प्रशंसा के बारे में है:

जीवन के सफर पर चलते हुए, अपने बारे में सोचिए,
आपकी मेहनत, आपकी मेहनत, आपका शोध जोश देखिए।
आपकी आवाज, आपकी कला, आपकी नजर जगमगाती है,
आपकी खुशहाली की कहानी, हर किसी को प्रेरित करती है।

आप हैं एक सफलता का प्रतीक, आपकी प्रगति चमकती है,
अपने दम पर आपने विजय प्राप्त की है, यह जानते हैं सब हम सबको यह समझाती है।
आपकी निर्णय शक्ति है, आपकी संघर्ष की कहानी विश्वास दिलाती है,
आप नहीं हारते, मानसिकता को जीतते हैं, यह सबको आश्चर्यचकित करती है।

आपकी सामर्थ्य है परम श्रेष्ठ, आपका बल सबको भाता है,
आपकी सोच नई दिशाओं को खोजती है, यह हर किसी को प्रेरित करता है।
आप एक स्वप्नदृष्टि हैं, आपकी विचारधारा नये हौसले देती है,
आप विश्वास रखते हैं अपने में, आपका स्वयं सम्मान बढ़ाती है।

आपकी प्रशंसा में सत्यता है, आपकी मेहनत नहीं छुपाती है,
आपकी खुशी आपकी आत्मा से निकलती है, यह बात सबको गुप्त नहीं रहती है।
तो आप ख़ुश रहिए, सम्मान कीजिए, खुद को प्रेम कीजिए,
आप हैं अद्वितीय, आप हैं विशेष, आप हैं इस जगत के अमूल्य रत्न, यही कहती है यह कविता।

संबंध जो सुंदर हो

संबंध जो सुंदर हो, आदर देना संबंधो के प्राण उसका नीव का पत्थर….
सम्बंध हँसते खिलते हो जाते वो सुंदर ओर मधुर ।
बिना किसी लोभ कपट के डाला जाए आदर का ईंधन …
व्यक्ति की विशिष्टता झलकती, अनुभव हो जाता अपनापन ॥

आदर देना संबंधों के प्राण है,
उसका नीव का पत्थर।
संबंध हँसते, खिलते हो जाते,
वो सुंदर और मधुर।

संबंध जो सुंदर हो बिना किसी लोभ कपट के डाला जाए,
आदर का ईंधन।
जो स्नेह और सम्मान में व्यवहार करे,
वही सच्चा मित्र, समर्पित बंधन।

आदर से भरी हैं ये रिश्तों की पूजा,
हर दिन और हर पल।
जब तक संबंधों में होता है आदर,
वे रहते हैं सदा जीवंत और प्रफुल्लित हर तरफ।


जब हृदय हो निर्मल

जब हृदय हो निर्मल ….
मन मस्तिष्क न हो चंचल …
तो सुखद स्वस्थ जीवन हर पल…
हमेशा बनेगी सुखद स्थिति सबल ।

मन मस्तिष्क हृदय रहे निर्मल….
स्थिति फिर रहती वो संभल ….
वर्तमान ओर भविष्य आए नज़र…
पकड़ लूँगा जो कही दूर अम्बर।।

हृदय में प्रेम की धारा बहे,
क्रोध और द्वेष से दूर रहे,
प्रेम की मिठास जीवन में छाए,
सुखद रहे जीवन की यात्रा बनाए।

मन को शांति से भर दे,
अविचलित बनाए खुद को रखे,
चिन्ता और चिंता से दूर रहे,
मस्तिष्क को स्वच्छ रखने का ध्यान दें।

स्वस्थ जीवन का आधार है योग,
ध्यान और आत्म-संयम के रोग,
योग से शरीर और मन को बल मिले,
सुखद जीवन की ओर अग्रसर हो जिले।

संतुलित आहार और नियमित व्यायाम,
शरीर को रखे स्वस्थ और निराम,
विश्राम और पर्याप्त नींद का ध्यान रखे,
सुखद जीवन के लिए नवीनतम राह चुने।

हृदय और मन की समृद्धि जब हो,
स्वस्थता और सुख का संगम हो,
तो हर पल खुशहाली से भर जाए,
सुखद स्वस्थ जीवन की उमंग हो जाए।

जब हृदय हो निर्मल,
मन मस्तिष्क न हो चंचल,
तो सुखद स्वस्थ जीवन हर पल,
हमेशा बनेगी सुखद स्थिति सबल।

खास जीवन बनाना है

खास जीवन बनाना है, इस जीवन को बहुत खास बनाने के लिए, खुद के साथ भीतर अंतर्मन में बहुत लड़ाई करनी होगी।

जीवन की राहों में बिछे कठिनाइयों के पहाड़,
सामने उठने से नहीं होगी व्यथा कम।
स्वयं को पहचानने की खोज में,
हर एक कदम पर आत्म-संयम को जपना होगा।

खुद से जंग लड़कर जीना होगा,
जीवन की ओर नजरें बदलनी होगी।
सच्चाई और भ्रम के संघर्ष में,
अपनी शक्ति और निर्णय को जगाना होगा।

चिंताओं के बादलों को हटा देना होगा,
संघर्षों का मुकाबला करते चलना होगा।
हर एक हार को अग्रसर करके,
नई उड़ान भरना होगा विश्वास से।

अंदर चिपी ख्वाहिशों को पहचानना होगा,
खुद के बंधनों को तोड़कर आगे बढ़ना होगा।
जीवन की राहों पर अपने के अलावा,
किसी और का रंग नहीं चढ़ाना होगा।

खास जीवन बनाना है, इस जीवन को बहुत खास बनाने के लिए,
खुद के साथ भीतर अंतर्मन में बहुत लड़ाई करनी होगी।

मंजिल की तरफ

मंजिल की तरफ तू बढ़ता चल , हर राह को पार कर तू आगे निकल , मुश्किलए आती है राह में लेकिन तू घबरा मत कामयाबी तेरी राह रही है तू बस आगे निकल

कामयाबी के सफ़र में धूप महत्वपूर्ण…
धूप बदलती छाँव तो बात होती पूर्ण ।

धूप एक घटना भीतरी शक्ति का इंधन …
सच्चे कामयाबी के रास्ते का हे चयन ।

अथक सदा नज़र हो मंज़िल की तरफ़…
कोई कुछ भी बोले न पड़े तुम पे फ़र्क़ ।

तैयारी हो ऐसी चाहे धूप या हो छाँव….
नव नूतन कामयाबियाँ पे लगाने हे दाँव ।

जानने की शुरुआत

जानने की शुरुआत कहाँ से हुई , यह सवाल जीवन में एक बार तो सबके मन में उठता ही है, की मैं कौन हूँ ? और इस जीवन का क्या अर्थ है? फिर चाहे वो इन प्रश्नों पर गौर करे या नहीं बहुत सारे सवालों की भांति इन सवालों को छोड़ देता है ओर जीवन की व्यस्तता में खुद को खो देता है।

लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ यह वो प्रश्न था जिस पर मैं अटक गया मैं इस प्रश्न से हटने को तैयार नहीं था, इस प्रश्न का जवाब नहीं मिल रहा था उससे पहले मैं आपको बताता हूँ यह प्रश्न मेरे मन में कब ओर कैसे आया? स्वयं को जानने की शुरुआत होती है।

कौन हूँ मैं यह प्रश्न कब ओर कैसे उठा मेरे मन में

मेरी उम्र 13 साल थी जब मैं कक्षा 8 के फाइनल पेपर देकर रिजल्ट का इंतजार कर रहा था, हम एक सयुक्त परिवार में रहते थे अभी सब अलग अलग रहते है जैसे जैसे परिवार बड़े होते गए जगह छोटी पड़ती गई ओर हम इधर उधर बस गए, तो उस दिन घर पर सभी लोग नहीं थे क्युकी बड़े बड़े भाई माँ वैष्णो देवी के दर्शन के लिए निकले थे शाम को उसी शाम अचानक मेरी दादी जी की तबीयत खराब हो गई ओर तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी, घर वालों को लगा की अब इनका अंतिम समय आ गया है तो अब गीता का पाठ कर लेना चाहिए ताकि अच्छे शब्द कानों में जाए।

तो मैं श्रीमद भागवत गीता अपने कमरे से ले आया ओर मैंने पढ़ना शुरू कर दिया कुछ देर पढ़ने के उपरांत ही दादी जी का देहांत हो गया।

सुबह होते ही उन्हे किरयाकर्म के लिए यमुना घाट ले जय गया जैसे जैसे यह सभी किरयाए चालू हुई मेरे मन में प्रश्न उठने शुरू हो गए की मैं भी एक दिन मरूँगा , मुझे भी इसी तरह से जाना होगा ? जब शरीर अग्नि में दाह हो रहा था तब सिर्फ वह शरीर राख का ढेर हो रहा था तभी मेरे मन से विचार उत्पन्न हुआ यह मिट्टी का शरीर एक दिन यू ही राख ढेर बन जाएगा फिर इस जीवन का क्या फायदा जब यह तन यू ही राख में मिल जाएगा। उस समय प्रश्न यह नहीं उठा की मैं कौन हूँ लेकिन वो शुरुआत हुई जब पूरा शरीर राख ही होना है तो इस शरीर का होना ही क्यू है? इसका क्या करू मैं?

मुझे घर आने के बाद बहुत अजीब से ख्याल आने लगे ओर मेरी तबीयत ठीक न थी मुझे यह सोच घबराहट होने लागि बस उलटी हो रही हो बार ऐसे जी कर रहा था तब मेरी ममी ने मुझे मामी जी के साथ उनके घर भेज दिया था की मैं 2-4 दिन वही रह आऊ बस फिर मैं 2-3 दिन वापस आया घर तब तक सब ठीक लग रहा दुबारा उस समय तो विचार शांत हुए लेकिन मेरे मन में प्रश्न उठने लगे कुछ समय बाद फिर

जब तक हे जीना

जब तक हे जीना तब तक हे सीखना हमारा सीखना कभी रुकना नहीं चाहिए जब तक हम जिए कुछ न कुछ सीखते रहे इसी पर हमारा आज का विचार

जब तक हे जीना तब तक सीखना ….
जीना नित नये खेल का होता सामना ।
बहुत ही शुभ संकल्प की यह कामना…..
नया सीखेंगे बिना लाए मन में दुर्भावना ।

स से सीधी ख से खास न से नज़र
हे सीखना…..
इस बात को जीने से पूरी होगी साधना ।
सीखना सम्भावनाओ का क्षेत्रफल फैलाता….
मौके मिलते जब सीखने का फल आता ।