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वक्त बेवक्त

वो वक्त बेवक्त सताते है
कभी दिल में आते है
कभी दिमाग में आते है
कभी आंखो से टप टप बह जाते है
तो कभी धड़कनों धड़क जाते है
कभी आवाज को नरम
तो कभी भारी कर जाते है
कभी नींद तोड़ देते है
तो कभी सोने ही नहीं देते है
कभी इस दिल का डर
तो कभी मन की वेदना को बढ़ाते है
अब थोड़ा
मुश्किल है , नामुमकिन है
क्युकी
वो अब खुश है
लेकिन हम नाखुश
क्युकी वो हर ख्याल में
अब भी हमको सताते है
मेरे ख्यालों की खुशी छीन जाते है
वो वक़्त , बेवक्त हमें सताते है।

वक्त बेवक्त
वक्त बेवक्त

विषय हो वस्तु हो

हर विषय हो वस्तु हो , हो वो प्राणी चल रहे सब नियम अनुसार ….
बस समझना हे किसका कैसा हे आधार उसे कर सके स्वीकार ।

जीवन का रहस्य है यही, नियमों की अनुसार चलना,
हर कार्य में तालिका बनाकर, ज्ञान की धारा बहाना।

प्रकृति के नियमों का पालन, है जीवन का मूल सिद्धांत,
जिसका भीषण तालाबंध होगा, वह खोखला होगा बंधन।

सूरज करता है प्रकाशित, चांदनी देती है चमक,
जल बनाता है ताजगी, पेड़ों में भरता है जीवन की लम्बी रात।

जीवन के हर पहलू में, नियमों की ओर देखना है,
और समझना है, कैसे उनका उपयोग, सबके लिए करना है।

कर्मों की एक संगीता है, नियमों की सुरीली ध्वनि,
उन्हें समझने के बाद ही, जीवन मिलेगा तरंगों की ज्वालामुखी।

इसलिए समझिए संसार को, नियमों से जुड़ा हर विषय,
हर प्राणी का नियम अनुसार, बस यही है जीवन का आधार विषय।

हर विषय हो वस्तु हो , हो वो प्राणी चल रहे सब नियम अनुसार ….
बस समझना हे किसका कैसा हे आधार उसे कर सके स्वीकार ।

चेहरे पे मुस्कान

चेहरे पे मुस्कान …..
नहीं हो दिखावट ।
रात्रि की अच्छी निद्रा….
स्वास्थ्य की वो मुद्रा ।

अच्छे से अच्छा विचार अधूरा….
बड़ी सोच से करे उसे पूरा ।
चेहरे पे सदा मुस्कुराहट….
सोच में न हो रुकावट ।

रात्रि की अच्छी निद्रा….
रोगों का रोग अनिद्रा ।

चेहरे पे मुस्कान हो, नहीं हो दिखावट,
खुशियों की छाप हो, न सिर्फ आभावट।
असली खुशी छुपी है अंदर की गहराइयों में,
जो नहीं आती बाहर, वही है सच्ची खुशाइयों में।

रात्रि की अच्छी निद्रा, स्वास्थ्य की वो मुद्रा,
जगाती है नई ऊर्जा, देती है शक्ति की धारा।
जब मन और शरीर विश्राम पाते हैं,
तभी संतुलित होती है जीवन की दौड़-भागी।

नशा नहीं हो रोगों का, तंगी नहीं हो जीवन की,
जब स्वास्थ्य बना रहे, खुद को मानव की पहचान की।
व्यायाम, आहार और नियमित जीवन संगत,
ये हैं वो तत्व, जो रखते हैं हमें स्वस्थ और समृद्ध।

चेहरे पे खिल उठे मुस्कान का पुट,
रात्रि की निद्रा हो सदा निरंतर, अपूर्णता का जट।
स्वास्थ्य ही धन है, ये सच जान लें हम,
खुश और सक्रिय जीवन का रहें अद्यात्मी ध्यान हम।

सफर रोज मेट्रो का

सफर रोज मेट्रो का कुछ इस तरह से चल रहा है, जैसे जिंदगी का कुछ हिस्सा एक दूसरे हिस्से को मिल रहा है।

यात्रा रोज़ की, मेट्रो की रेलों में,
जीवन का टुकड़ा चल रहा है अधिकारों में।
यात्रा का हर स्थान, हर स्टेशन नया,
कुछ दूसरे हिस्से को सलाम कर जाता है।

जैसे सफर चलता है, जीवन भी चलता है,
हर किसी को अपना रास्ता ढूंढ़ना है।
मिलते हैं रास्ते, ना जाने कहाँ कहाँ,
दूसरे हिस्से को पाने का सब्र करता है।

धूप-छाँव, गाड़ी में आवाज़ों की बौछार,
जीवन की कठिनाइयों का कर रहा सामना यहां।
एक दूसरे को संभालते, संगठित ढंग से,
जिंदगी भी सीख रही है सहनशीलता यहां।

मेट्रो की रेलें, जीवन का प्रतीक हैं,
जोड़ती हैं अलग-अलग लोगों की भीड़ को।
प्यार और सदभावना से भरी यात्रा है यह,
जहां दूसरे हिस्से को जीने का मौका मिलता है।

सफर रोज मेट्रो का, एक बदलाव है,
जिंदगी का आदान-प्रदान यहां दिखाई देता है।
एक दूसरे से जुड़े रहने की शिक्षा देता,
ओर जीवन को सही दिशा में ले जाता है।

चलती रहे मेट्रो की यात्रा, बढ़ती रहे रेलें,
जीने का संघर्ष रहे सबके पास अवसर।
जब सफर के अंत में हम एक दूसरे को मिलें,
जिंदगी का सफर एक संगठित हिस्सा बन जाए संगीत।

साधना

साधना किसे कहते है ? पत्थर पर यदि बहुत पानी एकदम से डाल दिया जाए तो पत्थर केवल भीगेगा।

फिर पानी बह जाएगा और पत्थर सूख जाएगा।

किन्तु वह पानी यदि बूंद-बूंद पत्थर पर एक ही जगह पर गिरता रहेगा, तो पत्थर में छेद होगा और कुछ दिनों बाद पत्थर टूट भी जाएगा।

इसी प्रकार निश्चित स्थान पर नाम स्मरण की साधना की जाएगी तो उसका परिणाम अधिक होता है ।
चक्की में दो पाटे होते हैं।

उनमें यदि एक स्थिर रहकर, दूसरा घूमता रहे तोअनाज पिस जाता है और आटा बाहर आ जाता है।

यदि दोनों पाटे एक साथ घूमते रहेंगे तो अनाज नहीं पिसेगा और परिश्रम व्यर्थ होगा।

इसी प्रकार मनुष्य में भी दो पाटे हैं –

एक मन और दूसरा शरीर।

उसमें मन स्थिर पाटा है और शरीर घूमने वाला पाटा है।

अपने मन को भगवान के प्रति स्थिर किया जाए और शरीर से गृहस्थी के कार्य किए जाएं।

परालब्ध रूपी खूँटा शरीर रूपी पाटे में बैठकर उसे घूमाता है और घूमाता रहेगा,

लेकिन मन रूपी पाटे को सिर्फ भगवान के प्रति स्थिर रखना है।

देह को तो परालब्ध पर छोड़ दिया जाए औरमन को नाम-सुमिरन में विलीन कर दिया जाए –

यही नाम साधना है।

साधना किसे कहते हैं, जाने ऐसा कोई नहीं,
वह अनुभव की गहराइयों में छिपी रही रहस्यमयी हैं।
यह एक अभ्यास है, यह एक अवस्था है,
जिसका साधक निरंतर खोजता है सत्य की दिशा हैं।

जैसे पत्थर में पानी का बहाव नहीं था,
वैसे ही इंसान में अनन्त शक्ति रहती है।
साधना से मनुष्य उठता है अपार,
उसका चेतना का आभास होता हैं विचार।

साधना का मार्ग हैं अतीत की खोज,
वहां छिपी गहराइयों में छिपी हैं ज्ञान की बूँद।
ध्यान, तप, प्राणायाम और जप,
ये साधना के अंग हैं, जिनसे मिलती हैं प्रकाश की आप।

प्रेम की उन्मुखी धारा साधक को ले जाती हैं,
आत्मा के अंतर्गत वह अद्वैत अनुभव करती हैं।
वहाँ नहीं रहता द्वंद्व का भ्रम,
बस एकता, प्रेम और शांति की होती हैं धाम।

साधना न केवल शरीर की,
बल्कि मन, बुद्धि और आत्मा की स्वास्थ्य हैं।
यह एक प्रक्रिया हैं, यह एक संगठन हैं,
जो अंतर्मन को देती हैं दिव्यता की ज्ञान हैं।

पत्थर पर पानी एकदम से डाल दिया जाए,
तो पत्थर भीगेगा, इसमें कोई संशय नहीं।
लेकिन साधना से मनुष्य की अनतिम भावना,
पूर्णता की ओर बढ़ेगी, यही हैं निश्चय की राह।

अच्छा कार्य करते रहे

शक्कर अंधेरे में खाये या उजाले में मुँह को करेगी मीठा…..
अच्छा कार्य करते रहे कोई देखे या न देखे
बाक़ी सब झूठा ।

कई बार दूर से सामने नहीं दिखता रास्ता…..
सड़क बता रही हे कारण लेकिन दृष्टिकोण होता सस्ता ।
दृष्टिकोण में सुधार करे , करे उसमे विकास ….
तभी बड़ी बड़ी सूचनाएँ समझ पायेंगे करेंगे जब निरंतर प्रयास।

शक्कर अंधेरे में खाये या उजाले में मुँह को करेगी मीठा,
अच्छा कार्य करते रहे कोई देखे या न देखे।

मधुरता उजागर करेगी सदा,
जीवन को रंगीन करके ही छोड़ा।

क्या है जगत की धूप और छाँव,
जो करता है न्याय, सत्य का पालन।

हर कार्य जचाएगा जब भी,
सच्चाई की रोशनी में जब भी।

कितने भी झूठ बस वही रहेगा,
जो सत्य की परिभाषा बनेगा।

जगत के रंग में न रंगे दिल,
अच्छाई की राह पर चले दिल।

कविता यह गीत है सत्य का,
जो आपको कहती है सच्चाई का।

शक्कर अंधेरे में खाये या उजाले में मुँह को करेगी मीठा,
जीवन को सार्थक बनाएगी यह लीला।

थामिए अच्छे से

थामिए अच्छे से हाथों को , शिकायतों का छोड़िए दामन …
सम्भालिए किसी के जीवन को, जगाने के लिए हे तो सही “अपनापन “।
सम्भालने के लिए दे प्रोत्साहन, न कि करे उसकी आलोचना….
जीवन की सीख जीवन को खुल के हे बाँटना ही उसकी अर्चना ॥

अपने कार्य में ध्यान देकर लाए दक्षता ओर कुशलता ….
जीवन होगा सुगंधित खुशहाल , हिलोरे मारेगी अपार सफलता ।
स्वभाव दक्षता , कुशलता संग सरलता का घालमेल…
जीवन को जीये ऐसे ये नहीं प्रतियोगता बस एक खेल ॥

थामिए अच्छे से हाथों को, शिकायतों का छोड़िए दामन…
सम्भालिए किसी के जीवन को, जगाने के लिए हे तो सही “अपनापन”।

सम्भालने के लिए दे प्रोत्साहन, न कि करे उसकी आलोचना…
जीवन की बाधाओं से न डरें, अपनी राह खुद चुनें बिना रुके।

अच्छाई की किरणें फैलाएं, दूसरों को आशा की सुगंध दें,
प्रेम और समझदारी से बांधें, जीवन के रंगों को झलकाएं।

दूसरों की गलतियों पर मत व्याकुल हों,
सहानुभूति और समबन्ध को ऊंचा रखें निकृष्टता से।
सबको सम्मान और प्यार दें, खुशहाली की राह पर सदा चलें।

अपनापन का एहसास जगाएं, हर दिन दूसरों को ख़ुश बनाएं,
आपसी मिलन से जीवन को सजाएं, आदर और स्नेह से गहराएं।

जीवन की राहों में बनाएं सदैव नयी पहचान,
खुशियों की बौछार में बढ़ाएं प्रेम की अमृत बारिश।
अपनापन के रंगों में रंग जाएं, आपसी में जुड़ जाएं,
यही है वो सच्चा संबंध, जो देता है जीवन को आनंद अधिक।

कुछ यादे है

हाँ, कुछ यादे है जिन यादों के सहारे मैं बैठा हूँ, इन यादों को

हाँ, कुछ यादे है जिनके संग मैं बैठा हूँ,
इन यादों को मैं अपनी कविता में ढालता हूँ।

यादें वो हैं, जो बीते लम्हों को जीवंत करती हैं,
वो पल जब सपने सच होने की घोषणा करती हैं।

वो पहली मुस्कान, वो प्यार की झलक,
जब मन था मस्ती और दिल भरा उमंग से।
वो दोस्ती की मिठास, वो खुशियों का संगम,
जिन्हें याद करके हर दिन हो जाता है रंग।

यादें वो हैं, जो हृदय को छू जाती हैं,
वो गम को दूर भगाती हैं और खुशी बढ़ाती हैं।

वो रंगीन चिड़िया की उड़ान, वो बारिश की बूंद,
जो भर देती हैं जीवन को हर तरफ मस्ती से।
वो माँ के प्यार की गोद, वो पिता की मुस्कान,
जिन्हें याद करके आता है शांति का अनुभव।

यादें वो हैं, जो जीवन को महकाती हैं,
वो खोये हुए सपनों को फिर से जगाती हैं।

वो सूरज की किरण, वो चाँद की चमक,
जो दिल में उम्मीद की आग जगाती हैं।
वो गीतों की धुन, वो किताबों की कहानी,
जिन्हें याद करके जीवन बन जाता है मधुर।

हाँ, कुछ यादे है जिनके सहारे मैं बैठा हूँ,
इन यादों को मैं अपनी कविता में ढालता हूँ।

व्यवहार कैसा हो

व्यवहार कैसा हो ? यह बात मैं भूल जाता हूँ, मेरे जीवन का नियम सही हो सभी बराबर है, सबको आदर ओर सम्मान की दृष्टि से ही देखू

भूल जाता हूँ मैं कि दूसरे के
साथ वही व्यवहार जो चाहते
स्वयं के साथ ….
यही नियम सही जीवन का
सब बराबर हे यही
सच्चा परमार्थ ।

कुछ ज़्यादा पाने के
लोभ रोग के रहते
लगी बीमारियाँ..
सम्यक् दृष्टि
के निरंतर प्रयोग
से दूर होंगी दुशवारियाँ ॥

व्यवहार कैसा हो ? भूलता हूँ मैं कभी-कभी,
दूसरे के साथ वही व्यवहार,
जो चाहता स्वयं के साथ।

सोचता हूँ अक्सर,
मेरे बारे में ही हो सब,
सबका वही नियम, सबका वही लब।

पर क्या सच है यही,
जीवन का सही नियम?
क्या सबके साथी हैं,
हमारे भावों के नियम?

जब तक न पहचानें,
दूसरों के मन की बातें,
हम रहेंगे अनजान,
और भूलेंगे अपने अपने प्राण।

व्यवहार में एकता,
सच्चे मित्रता का आदान,
यही है सच्ची जीवन की,
सबके बीच सम्बन्ध की पहचान।

तो जगाएं एकता की आग,
प्यार से बांधें धरती को राख,
दूसरे के साथ जीना सीखें,
स्वयं को खोजें, नया व्यवहार जीने।

सबके बीच सम्प्रेम का निवास,
यही है सच्ची खुशियों की उपास,
भूल जाएं अपने अहंकार को,
और जीने लगें सबके साथ नये अंदाज़ में।