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मूक कार्य प्रणाली

बदहवास मूक कार्य प्रणाली
आज का विषय बहुत ही गम्भीर समाज की परिस्थिति जिसमें बुना तंत्र को आपकी सहायता के लिए रचा बुना गया हे वो ही आपका दुश्मन बन जाता हे ऐसा क्या हो गया हे जिसे पोषित किया जाता हे जो शिकारी क्यूँ बन जाता हे।

मैं आज बात कर रहा हूँ जो हमारे देशवासी जो नववर्ष 2022 के उपलक्ष्य में माता वैष्णोदेवी के दर्शन के निमित गए ओर कई परिवारों के परिजन उनकी लाश रूप में नव वर्ष में पहुँचे ।
मैं सरकारी आँकड़ो पे बात नहीं करूँगा उसने सदा विरोधाभास रहा हे वो अक्सर बहुत कम ही आंके जाते हे वो इसका प्रभाव तो हे पर इस संवाद का मेरा विषय नहीं हे ।

मेरा कहना कि क्या ये घटना पहली बार हुई हे इस घटना का दोषी कौन कौन हे जल्द से जल्द उजागर होना चाहिए ओर समय से दंडित होना चाहिए ओर भविष्य में ऐसी दुर्घटना (में इसे हत्या की संज्ञा दूँगा )न हो उसके माप दंड बनाए जाए ओर देखा जाए उनका उचित पालन हो ।

किसी ने अपने बेटे -बेटी किसी ने अपने माँ -बाप को किसी ने दादा -दादी नाना नानी ,बुआ ओर चाची ओर न जाने कितने ही रिश्तों का दुखद अंत देखा मज़े की बात हे जो शासन प्रशासन चुस्त दुरुस्त होता तो न होता ये सरासर प्रशासन की कमी हे चाहे वो shrine बोर्ड हो पुलिस प्रशासन, क्षेत्रिये प्रशासन या राज्य प्रशासन ओर शासन की क्या बिसात हे जो उसपे उँगली उठाई जा सके ।

ये सब तंत्र आपकी सुरक्षा ओर ख़ुशहाली हे लिए बुना गया हे इसमें लाखों कर्मचारी कार्यरत हे लेकिन उनकी ऊर्जा का दुरुपयोग किया जाता हे उसमें से काफ़ी हद तक अपनी नौकरी बरकरार रहे लगे रहते हे करे चाहे कुछ भी उनको देखने वाले उनसे कुछ ओर ही उम्मीद रखते हे ये सब चल रहा हे ।

क्या हम इंसान इतने बदहवास हो चुके हे हम इतना कर चुकाते हे हर वस्तु पे कर gst ओर उसके बदले हमे क्या लोटा के देता हे ये शासन ओर प्रशासन.
जब कटरा में व्यक्तियों का पास बनता हे जो यात्री गन होते हे तो वो बदहवास होकर कार्ड बना रहे थे उनको ज्ञान नहीं था कि ऊपर कितने लोग हे कितनो को हम भेज रहे हे ओर पुलिस वाले उनसे सम्पर्क नहीं कर रहे कि न भेजिए इतने व्यक्ति दुर्घटना हो सकती हे ओर इतने समझदार लोग हे प्रशासन वाले कि एक ही रास्ता आने ओर जाने का वाह क्या बात हे फिर दुर्घटना क्यूँ न हो वो तो घटित होगी ही होगी ।

न कोई आपस में समन्वय committee न ही cc tv प्रबंधन या हे तो कोई उसका उपयोग नहीं ये घोर लापरवाही हे इतने लोगों उनका क्या दोष था वो बहुत सकारात्मक सोच के साथ आए होंगे ताकि नववर्ष उनके ओर उनके परिवार के लिए शुभ हो मंगल हो।

मैं हृदय से दिवंगत देशवासियों के लिए अपनी श्रधांजलि देता हूँ ओर इसकी सही हाथों से समयबद्ध जाँच हो ओर भविष्य में ऐसी घटना न घटे उसपे ज़रूर ज़रूर उचित कार्यवाही करे हम सब इस धरती के वासी हे न करे अन्याय किसी से ख़ाली हाथ आए थे ओर ख़ाली हाथ ही जाना हे ।
संवाद

विचारों से बदले जिंदगी

विचारों से बदले जिंदगी हम सभी कुछ ना करने ओर होने के बस बहाने ढूंढ़ते है लेकिन उन बहानो से नुकसान हमारा ही होता है कुछ ना होना चल सकता लेकिन उस चीज के लिए तुमने यदि प्रयास ही नहीं किया तो यह ग़लत है यह तो भागना हो गया।

किसी भी कार्य में सफलता को पाने के लिए उसमे मेहनत ओर लगातार कार्य करना पड़ता है तभी वह कार्य परिणाम ओर सफलता का रूप लेती है।

क्या आप बहुत सारे बहानों के साथ सफल हो सकते है ?

यदि सचिन तेंदुलकर , लता मंगेश्कर आदि महान लोग बहाने बनाते तो क्या आज वो इस मुकाम को हासिल कर पाते।

Corona काल सभी के लिए आया है लेकिन क्या आप इस समय का सदुपयोग कर पा रहे है ? या फिर आप के पास बहुत सारे बहाने है कि हम क्या कर सकते है घर बैठकर

घर बैठकर भी बहुत कुछ एसा है को आप ही कर सकते है कोई ओर नहीं क्युकी जिंदगी में अच्छी आदतों का चुनाव आपको ही करना है

यही समय है जब आपको अपने लक्ष्यों का निर्धारण करना है , आइए अपने विचारों से बदले जिंदगी

1- अपने पुरानी आदतों को बदल कर नया रूप देना

2- अच्छे विचारो का संग्रह करना है

3- आपके जीवन का क्या लक्ष्य है आपको जानना है

4- आप क्या बनना चाहते है यह आपको ही सोचना है

5- पिछले बीते हुए समय में हमसे कहां गलतियां हुई है उनको समझना है।

6- अपने समय को ओर बर्बाद नहीं करना यह निश्चय करना है।

7- क्या अभी जो आप कर रहे है? वो सही है या इसमें भी कुछ बदलाव लाना है यह भी आपको ही सोचना है।

8- अगले 5-10-15-20 साल में आप अपने आपको कहा देखना चाहते है यह भी आपको ही तय करना है।

9- क्या आप अपनी विफलता को लेकर ओर भी बहाने बनाना चाहते है यह भी आपको ही तय करना है।

10- आपको क्या नया सीखना , पढ़ना , लिखना है यह भी आप ही करिए।

11- जिस कार्य में अधिक रुचि है उसको इस समय में भरपूर कर लीजिए।

मोबाइल फोन

 
मोबाइल फोन भी टेलीफोन का ही एक दूसरा रूप है। टेलीफोन का अर्थ होता है दूरभाष यंत्र और मोबाइल शब्द का अर्थ होता है चलता फिरता हुआ, तो इस प्रकार मोबाइल फोन का अर्थ हुआ चलता फिरता हुआ दूरभाष यंत्र। प्राचीन समय में हमारे ऋषि मुनि अनंत समय तक साधनाएं किया करते थे और अपने विचार सैकड़ों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति तक आदान प्रदान किया करते थे। जैसे कि आज के युग में हम टेलीपैथी के नाम से भी जानते हैं।

परंतु आज हमें इस कार्य के लिए कोई मेहनत करने की, कोई साधना करने की तथा समय व्यर्थ करने की जरूरत नहीं है। हमारे पास एक छोटा सा यंत्र जिसे हम  मोबाइल फोन कहते है वह ऐसा यंत्र है जिससे कि हम पूरे विश्व में कहीं भी किसी से भी कभी भी बात कर सकते हैं अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। और जैसा कि हमने पौराणिक कथाओं में पड़ा है कि ऋषि मुनि लोग ध्यान लगाकर दूर बैठे व्यक्ति के बारे में भी देख लिया करते थे। आज इस कार्य के लिए हमें कोई ध्यान लगाने की जरूरत नहीं है। हमारे मोबाइल फोन में ही इस तरह के कार्य आसानी से हो सकते हैं। हम लोग वीडियो कॉलिंग या छायाचित्र के द्वारा किसी भी व्यक्ति से उसे देखते हुए बात कर सकते हैं। केवल एक छोटे से मोबाइल फोन की सहायता से , बस केवल हमें आवश्यकता है तो उसमें इंटरनेट सुविधा डलवाने की

           एक लंबे समय से हमारी सभ्यता में घड़ियां बांधने का प्रचलन चल रहा था। जब भी हमें समय देखना होता था तो घड़ी की ओर इशारा जाता था घड़ी की और हमारी नजर जाती थी परंतु आज के समय में इस मोबाइल फोन ने हमसे कलाई घड़ियों का प्रचलन भी बहुत ही कम कर दिया है।आज के समय में जब भी हमें समय देखना होता है हम मोबाइल फोन की तरफ एकदम से जाते हैं। यहां तक कि आजकल तो मौसम विभाग की खबरें भी मोबाइल फोन पर देख लिया करते हैं। छोटी बड़ी घटनाओं के लिए हम लोग केलकुलेटर यूज किया करते थे परंतु इस मोबाइल फोन ने  हीं उस कैलकुलेट का भी अब काम खत्म कर दिया है।
          
हमें डायरी लिखने के लिए एक डायरी नोटपैड और कलम की आवश्यकता होती थी परंतु आज के समय में डायरी के सभी फीचर्स हमें इस मोबाइल फोन में आसानी से उपलब्ध है, हमें अपने साथ में कोई डायरी लेकर घूमने की आवश्यकता नहीं है। याद कीजिए वह पुराने दिन जब लोगों के फोन नंबर हम डायरी में लिखा करते थे और वह टेलीफोन डायरेक्टरी आया करती थी जिसमें किस शहर के सभी जरूरी फोन नंबर लिखे होते थे, परंतु आज न जाने वह डायरेक्टरी कहां खो गई है। दुनिया भर की जानकारी हम पल भर में केवल एक इंटरनेट कनेक्शन की सहायता से हमारे फोन में ही देख सकते हैं।

इसमें मनोरंजन के लिए भी बहुत कुछ है। हां आज के समय में टेलीविजन का प्रचलन भी इसने काफी कम कर दिया है। हमें जो भी देखना होता है सीधा यूट्यूब ऑन किया और देख लिया,  चाहे आप को कुछ भी सीखना हो आप इस मोबाइल फोन की सहायता से बहुत आसानी से सीख सकते हैं।
अगर आप बेहतरीन खाना खाने के शौकीन है या खाना बनाने के तो आप आसानी से खाना बनाना भी इस पर सीख सकते हैं। आज के समय में आप दुनिया में कहीं भी जाएं आपको किसी से रास्ता पूछने की आवश्यकता नहीं है इस मोबाइल फोन ने आपको एक मैप की सहायता दी है जिससे कि आप आसानी से पूरी दुनिया के रास्ते की जानकारी पल भर में प्राप्त कर सकते हैं।

छोटे बच्चे हो या बड़े सभी के लिए मनोरंजन के साधन मोबाइल फोन पर उपलब्ध है।                                            परंतु इस मोबाइल फोन में कुछ अच्छाइयां है तो कई बुराइयां भी है। हमारे समाज कि काफी चीजें आज हमें देखने को नहीं मिलती। जब मोबाइल फोन नहीं था तो सभी बच्चे एक-दूसरे के साथ मैदान में खेला करते थे हस्ट पुष्ट  भी रहते थे और उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहता था, जबकि आज के समय में सभी बच्चे सिर्फ मोबाइल फोन गेम्स में लगे रहते हैं जिससे उनकी आंखें भी कमजोर होती है और और शरीर भी कमजोर होता है। एक ही घर में रहते हुए हम एक दूसरे से बात नहीं कर पाते केवल इस मोबाइल फोन की वजह से।

इस मोबाइल फोन की वजह से हम आज इतने व्यस्त हो गए हैं कि बस पूछिए मत क्युकी इस बात आकलन करना अब बहुत मुश्किल हो चुका है।

कोई भी कभी भी आपको फोन कर देता है। चाहे सामने वाला किस भी  परिस्थिति में है इस से कोई मतलब नहीं। आप चाहे बाथरूम में हो या बेडरूम में यह कभी भी बज जाता है। कभी-कभी तो आधी रात में फोन बजता है तो इतना गुस्सा आता है कि बस क्या कहें। क्युकी दूरियां घत गई है कभी भी किसी को आपकी याद आती या कोई काम होता है तो बस बटन दबाए ओर आपसे बात करना शुरू आप व्यस्त है या नहीं इस बात का उन्हें क्या पता ??

सच्ची मित्रता इस फोन की वजह से खो गई है। वह सच्चे मित्र जो साथ रहा करते थे खेला खुदा करते थे आज न जाने कहां गुम हो गए हैं। आज इस मोबाइल फोन की सहायता से सोशल साइट्स पर हम चाहे हजारों मित्र बना ले परंतु एक सच्चा मित्र हमें देखने को नहीं मिलता है आज के समय के बच्चों में शायद इसी वजह से आज के समय के बच्चों में काफी सारी मानसिक बीमारियां भी पनप रही है। परीक्षाएं पहले भी होती थी बच्चे पहले भी पढ़ा करते थे, परंतु इस तरह के मानसिक विकार केवल आज के बच्चों में ही देखने को मिलते हैं।  

अंत में अपने शब्दों को विराम देते हुए केवल यही कहना चाहूंगा कि विज्ञान ने मनुष्य के जीवन को तो आसान किया है लेकिन कई सारी बुराइयां भी दी है।

किसी भी चीज में कुछ अच्छाइयां होती है तो कुछ बुराइयां भी होती है, यह केवल हम पर निर्भर करता है कि हम किसी भी वस्तु का या किसी भी चीज का कितने अच्छे से इस्तेमाल करना जानते हैं यह कितने अच्छे से इस्तेमाल कर रहे हैं। कोई भी वस्तु उसके लिए पात्र व्यक्ति के हाथ में ही शोभा देती है अपात्र व्यक्ति के हाथ में तो गलत ही होगा। आज के समय में हम छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल दे देते हैं जो कि मुझे लगता है ठीक नहीं है। मुझे तो अपना स्कूल खत्म होने के बाद में मोबाइल मिला था और मेरा यही कहना है कि कम से कम विद्यालय जीवन में तो बच्चों को मोबाइल से दूर रखा जाए।         

  धन्यवाद

Written by Pritam Mundotiya

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जीवन क्या है?

जीवन क्या है?
जीवन क्या है?

जीवन क्या है?          आज के समय में आधुनिक मनुष्य का जीवन केवल खाना पीना और सोना ही रह गया है।  इसके विपरित जीवन में से नैतिकता और नैतिक विचार जैसे गायब ही हो गए हैं। आज का मनुष्य ना तो साहित्य पढ़ने में इच्छुक है और ना ही सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने का इच्छुक है।

हमने जितने भी महापुरुषों की जीवनी पढ़ीं है वह सभी महापुरुष केवल अपने लिए ना जी कर समाज के लिए जिए है तथा  अपना सारा जीवन देश, समाज व मनुष्य जाति के लिए समर्पित कर दिया परंतु आज का मनुष्य ना तो स्वयं को ही ठीक से रख रहा है ना ही स्वयं के ही नैतिक मूल्यों पर खरा उतर रहा है और ना ही देश समाज वह दूसरों के लिए कुछ कर पा रहा है, या फिर करना ही नहीं चाहता वह सिर्फ अपने लिए ही जीवन जीना चाहता है जैसे स्वार्थ से भर चुका हो आज मनुष्य

   आज के समय की भाग दौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य मात्र एक इंजन से चलने वाली गाड़ी की तरह रह गया है जो कि सिर्फ खाना खाता है और बचे हुए अपशिष्ट पदार्थ को शरीर से बाहर निकाल देता है। फिर खाना खाता है और फिर
   काम से थकता है तो से जाता है । केवल यही आज के मनुष्य की दिनचर्या बन गई है ना तो आज का मनुष्य परिवार को समय दे पाता है और ना ही वह समाज प्रकृति के प्रति कुछ कर पाता है।
    हमें भी उन महापुरुषों की जीवनी अब पढ़नी चाहिए और उनसे प्रेरणा लेकर देश के लिए इस समाज के लिए हमारे पर्यावरण के लिए प्रकृति के लिए कुछ करना चाहिए अपने आप को प्रकृति के साथ चलाना चाहिए।
खाने-पीने और सोने से हटकर हमें हमारे परिवार , हमारे देश हमारे समाज में प्रकृति के प्रति भी हमारी कुछ जिम्मेदारियां हैं।

पारिवारिक जीवन:-   
हमारे जीवन में हमारे पारिवारिक जीवन का भी बहुत बड़ा रोल होता है परिवार दुनिया की सबसे छोटी परंतु महत्वपूर्ण इकाई है। मनुष्य जो कुछ भी सीखता है। सबसे पहले अपने परिवार से ही सीखता है परिवार से ही मनुष्य के अंदर उसके स्वभाव की झलक आती है।     
         
मनुष्य का स्वभाव:  
जीवन क्या है ? मनुष्य को अपने स्वभाव का निरंतर ध्यान रखना चाहिए  और बोली में मिठास रखनी चाहिए,  अहंकार से दूर रहना चाहिए  चाहे हम कितनी भी तरक्की क्यों ना कर ले परंतु हमें अपने समाज में ही बने रहना है। देश दुनिया में हम जहां भी रहते हैं जिन लोगों के बीच रहते हैं वही सब हमारा समाज होता है। अगर हमारा स्वभाव हमारे समाज के अनुकूल नहीं है तो हमें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।मनुष्य अकेला ही सब कुछ नहीं कर सकता। मनुष्य के अपने जीवन निर्वाह की आवश्यकता के लिए समाज की जरूरत होती है। क्युकी हम सभी एक दूसरे से जुड़े हुए है एक दूसरे पर निर्भर है
                        

  समाज से बढ़ती दूरियां:
आज का मनुष्य समाज से दूरियां बनाता जा रहा है और अकेले रहने के लिए मजबूर है छोटे-छोटे फ्लैट्स में अकेला रहता है,  घर परिवार से दूर बड़े शहरों में अकेला रहता है। कोई काम की तलाश में, कोई रोजगार की तलाश में तो कोई पढ़ाई के लिए।
अकेला रहने की वजह से और समाज से दूर होने की वजह से ही मनुष्य को आज के समय में न जाने कितने मानसिक तनाव और मानसिक बीमारियों ने घेर लिया है। 
      
 शारीरिक स्वास्थ्य:  
मनुष्य को कोई भी कार्य के लिए सबसे प्रथम अपने शरीर पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। हमारे शास्त्रों में भी वर्णन है “प्रथम सुख निरोगी काया”
जिस मनुष्य में शरीर स्वस्थ होता है उसी के शरीर में स्वस्थ बुद्धि का निवास होता है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हमें थोड़ा बहुत व्यायाम भी करना आवश्यक है अगर खुली हवा में सांस लेना प्राणायाम करना या कोई भी शारीरिक गतिविधियों में हमें लगे रहना चाहिए। आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हमें थोड़ा समय अपने स्वास्थ्य के लिए भी निकालना चाहिए शरीर स्वस्थ होगा तभी हम कोई भी कार्य कर पाएंगे। आज के समय में छोटी-छोटी बीमारी होने पर छोटा-छोटा मौसम बदलने पर हम बीमार पड़ जाते हैं हमारे शरीर की रोग निरोधक क्षमता भी बहुत कमजोर हो गई है जिसकी वजह से हम जल्दी जल्दी बीमार ही जाते है।   
                                      

 मानसिक स्वास्थ्य:
शरीर के साथ-साथ मनुष्य को अपने मस्तिष्क का भी ध्यान रखना चाहिए ,  मानसिक स्वास्थ्य का भी हमारे जीवन में एक बहुत बड़ा महत्व है। आज के समय में मनुष्य को बहुत सी मानसिक बीमारी और मानसिक तनाव ने घेर लिया है।  माना की साधारण मनुष्य और मानसिक बीमारी को पागलपन समझता है परंतु ऐसा नहीं है , मन , मस्तिष्क स्वस्थ तो तन भी स्वस्थ रहता है।

#Written by Pritam Mundotiya

इच्छा कैसे पूरी हो

इंसान का शरीर उम्र के साथ कमजोर पढ़ने लगता है ,परंतु इंसान की इच्छा कमजोर नही होती उसे ओर जीने की आकांशा, काम करने की इच्छा हमेसा लगी रहती है शरीर वो सारी किर्या , सारे कार्य नही कर पाता जो मन करना चाहता है, क्योंकि हमारी इच्छाएं कभी भी समाप्त नही हो रही बस शरीर उन कार्यो को कर नही पाता

इसलिए हम खुद को एक संतोष वाली स्थिति में रखना चाहते है, परंतु जैसे ही हमे नया शरीर मिलता है हम उतनी तेज़ी के साथ वही कार्य दुबारा करना फिर से शुरू कर देते है , क्योंकि जो हमारी इच्छाएं शेष रह गयी हम उनको फिर दुबारा पूरे उत्साह से करने लग जाते है, ऐसा बिल्कुल नही है की उम्र के साथ हमारा कार्य करने का मन कम हो रहा है।

परंतु अब शरीर जवाब दे चुका है बस एक यह कारण है, क्युकी भरपूर जीने की इच्छा इस शरीर को अब भी है, इस शरीर को अब भी नई दुकान , मकान , और नई नई चीज़े देखनी घूमना फिरना , खाना पीना आज भी अच्छा लग रहा है, बस शरीर थोड़ा कमजोर पड़ गया है, परंतु इच्छाएं भरपूर है मन की जो कभी खत्म नही हो रही है जब हम नया जीवन लेकर फिर इस धरती पर आएंगे तो हमारी पुरानी स्मृत्या सब खत्म हो चुकी होगी और फिर हम यही सब दुबारा करना शुरू कर देते है।

ऐसा लोग अनुभव से बताते से है की उन्हें नींद तो आती है परंतु उनके सपनो में सिर्फ कुछ चल रहा होता है, वो अब भी अपनी दुकान पर काम कर रहे होते है उनकी उम्र चाहे 80 साल को हो गयी हो परंतु उनका दिमाग अब भी उन्ही कार्यो में लगा होता है, जो वो करते हुए है मन तो काम करना चाहता है परंतु शरीर नही कर पाता।

इच्छाएं ना कमजोर हो रही है, ना कम हो रही है और ना ही ये खत्म होने में आती है बस बढ़ती ही जा रही है, जितना कम करो उतनी ही तेज़ी से ये दुबारा पैदा हो जाती है, और उछाल मारती है चाहे जीवन नीरस हो जाए लेकिन फिर दुबारा जीवन एक नई तरंग उमंग के साथ अपने जीवन को शुरू करने की इच्छा प्रकट करता है, ( बस जीवन के साथ नीरसता आ रही है ) परंतु फिर भी लोग यह जानने की कोशिश नही करते की हम क्यों इस जीवन के साथ इतना मोह बांधे हुए है बस यह जन्म खत्म हो फिर दुबारा नई जिंदगी शुरू करे फिर से शुरुआत करे लेकिन जहाँ है वही से नही वो नई शुरुआत करना चाहते।

और जीना चाहते है बहुत कुछ करना, देखना चाहते है हर और भागना दौड़ना और दिमाग को दौड़ाना चाहते है रुकना हर्ज नही चाहते मैं ये नही कह रहा की यह सब बेकार है लेकिन कभी ये सब जानने की इच्छा जाहिर की है की ये क्यों हो रहा है ? क्या कारण है इन सब बातो के होने का ?

कौन हूँ मैं?

“निकला हूँ उस ठिकाने को ढूंढने जिसका पता भी ना मालुम मुझे”
मैं निकल चला हूँ उस राह पर जिसके बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता, ना उस मंजिल की खबर है न रास्ते  का पता बस निकल चला हूँ मैं, कौन हूँ मैं? प्रश्न यही मेरे मन मस्तिष्क में घूम रहा है,
अब लौटना संभव नहीं है और अब मै वापस लौटना भी नहीं चाहता क्युकी मै स्वयं को जानना चाहता हूं कौन हूं मैं ? यह प्रश्न मेरे मन को कचोट डालता है,

तलाश पूरी मेरी होगी
या अधूरी रह जायेगी?
ये भी नहीं पता मुझे
लेकिन
मैं निकल पड़ा हूँ,

अब लौट कर वापस नहीं आना है
मुझे बस मंजिल को पाकर ही रहना है
सफ़र में आयेे कितनी भी रुकावट
मैं रुकुंगा नहीं, थकूँगा नहीं
बस चलते ही रहना है मुझे
अपनी मंजिल को हासिल ही करना है मुझे

सवाल है कुछ इस तरह
जिनके जवाब मै खोज रहा हूं
ना जाने किस किस तरह

कौन हूँ मैं ?
किसलिए मैं आया हूँ यहाँ?
यहां मेरे आने का क्या कारण है ?
 

कौनसा ऐसा कार्य है जिसको पूर्ण करना है ?
यह मुझे न खबर ना ही पता है मुझे बस मंजिल की तलाश है, मैं भटक रहा हूँ इधर उधर अपनी मंजिल मैं 

मैं खोजता रहा बस अपनी मंजिल और अपना सफ़र मैं
ना मुझे नाम पता है,
ना निशान पता है
कौनसी छाप छोड़ी  थी,
ना ही मुझे उसका निशान पता है,
बस ढूंढ रहा हूँ अपने आपको
ढूंढता हूं मैं अपने आपको
ढूंढता हूँ हर जगह हल पल,
मैं भटकता फिर रहा हूं ना जाने

कभी मैं  सवयम को किसी वस्तु मे ढूंढता हुूं
तो कभी किसी वस्तु से अलग होकर मै देखता हूं
मुझे नहीं पता
की मैं अपने आपको कहा ढूंढ पाउँगा या फिर मै स्वयं को ढूंढ पाऊंगा भी या नहीं लेकिन चलना खोजना मेरा  काम है यही मेरा नियत कर्म है जिसे मुझे पूरा करना है।
मुझे ना रास्ता पता है
ना किसी दिशा का ज्ञान है
बस एक कोशिश है, अपने आपको जानने की मैं निकल चला हूँ उस रास्ते पर जहा मैं अपने आपको जान सकु ये मेरे पहला पड़ाव है जिंदगी में अपने आपको खोजने के लिए मैं आतुर हूँ मुझे कुछ पाना नहीं है बस जानना है, स्वयं को स्वयं की अनुभूति होती है कैसे ? बस यही समझ जाना है मुझे
नहीं पता क्यों ?  मुझे मेरे अंदर हजारो लाखो विचार उमड़ रहे है ? जो सिर्फ सवाल है जिनके जवाब नहीं है मेरे पास………..

वो क्यों इतने सारे विचार एकत्रित हो रहे है इनका जवाब कहां खोज पाऊंगा मै ?
कहां मिलेंगे मुझे उन सवालों के जवाब ?

मेरे मैं और मस्तिस्क में जिनके बारे में मैं भी नहीं जानता मैं क्यों इतने विचारो से मैं भरा जा रहा हूँ,कहा से आ रहे है? क्या कारण है इन्ह विचारो के आने का? क्यों मुझे ये विचार कही ले जाना चाहते है ?मैं जाना तो कही और चाहता हूँ ये विचार मुझे कही और खीच रहे है जैसे मैं विवश हूँ इन्ह विचारो के साथ लेकिन मुझे अपनी मंजिल हासिल करनी है मैं निकल हूँ सिर्फ अपनी मंजिल को हासिल करने के लिए तलाश भी उसी की बस कुछ और नहीं चाहिए मुझे चाहे मेरे विचार मुझे कितना ही भटक रहे हो कितना भी डरा रहे हो कभी भी ले जाने की कोशिश करे लेकिन मैं वापस ना जाऊंगा मैं अपनी मंजिल को पाकर ही रहूँगा ये मेरा विशवास स्वयं में जिसे मैं पूरा करके ही रहूँगा

कौन हूँ मैं?
कौन हूँ मैं?


कौन हूँ मैं?
किसमे हूँ मैं?
मेरे यहां होने का कारण क्या है ?
क्यों मेरा जन्म हुआ है?
ऐसा कोनसा कार्य है जिसे मैं करने यहाँ आया हूँ ?
कभी लगता है की मुर्गे की बांग में हूँ
तो कभी सूरज की रोशनी में हूँ
मैं हूँ कहाँ ? कौन हूँ मैं?
यह एक प्रश्न जो मेरे मस्तिस्क को झुझला देता है,
की क्यों नहीं जान पा रहा हूँ अपने आपको, मैं तो एक शरीर हूँ या मन , लेकिन फिर वो भी नहीं हूँ,
तब कौन, कौन हूँ मैं ? आवाज़, सुर, ध्वनि किसमे हूँ में ?
कौन हूँ मैं?

किर्या में हूँ
या
कार्य में हूँ ?
विचार,
सोच,
हाव-भाव,
शब्द,
किर्या,
प्रतिकिर्या बस सवाल यही की कौन हूँ मैं?

मैं मुर्गे की कुकड़ू कु में हूँ, या
चिड़िया की ची ची में हूं मै,
सूरज की रोशनी में मैं हूँ ?
मैं प्रकाश हूँ या अँधेरा हूँ मैं?
कौनसी दिशा में हूँ या दिशाहीन भटकाव हूँ मैं
क्या दसो दिशाओ में मैं हूँ?
समय की तरह बीतता हुआ हूँ मैं
या समय हूँ मैं ?
बचपन,जवानी या बुढ़ापा हूँ मैं?
या इनके पड़ाव में हूँ मैं ?
टूटता हुआ हूँ मैं ?
या जुड़ा हुआ हूँ मैं ?
लड़खड़ाता हुआ हूँ मैं या
संभालता हुआ इंसान हूँ ?
पूर्ण हु मैं या
अपूर्ण हु मैं ?
शांति हूँ मैं या
शोर हूँ मैं ?
खेलता हुआ बचपन हूँ या
शांति का अनुभव हूँ मैं ?
खेलता हुआ बच्चा हूं मैं या
रोता हुआ ?
राह पर चलता हुआ इंसान हूं या
भटक गया हूं राह से कही ? 
खेलता हुआ बच्चा हूं मैं या
रोता हुआ इंसान हूं ?

प्रश्नों की झड़ी लगी हुई है मेरे मन मस्तिष्क में लेकिन जवाब कुछ नहीं आ रहा है, बस चल रहा हूँ मैं उस रहा पर जिसके लिए मैं निकला था।

मैं किस तरह से कर रहा हूं?
खुद की तलाश ये भी नही पता मुझको 

लेकिन तलाश कर रहा हूं
वो कौनसा रास्ता है?
जिससे मैं अपने आपको जान सकता हूं ? 
मैं अपने विचारों को देख रहा हूं , समझ रहा हूं जानने की कोशिश कर रहा हूं ,
किस ओर से ये विचार मेरे मन मस्तिष्क में आ रहे है इनका उद्गम स्थान कौनसा है और क्यों इतने विचार मेरे मस्तिष्क में आ रहे है ?

इन विचारो के कारण और परिणाम क्या है ?
शायद यह विचार ही है जो मुझे मेरी मंजिल तक मुझे पहुंचा सकते है
मुझे यही जानना है इन्हीं विचारों पर मुझे बल देना है,
इन्ही विचारो को सही ढंग से समझना है क्योंकि इन्ही विचारो के कारण मेरा जीवन कदम कदम पर बदल रहा है इसलिए मुझे इन्ह विचारो को ध्यांपूर्वक देखना है  ये विचार कैसे बहुत सारे विचारो में बदल जाते है और विचारो इकठ्ठा कर लेते है मुझे ये जानना है इसी किर्या को देखना है जाने अनजाने में उन्में मिल जाता हूं क्यों मिल जाता हूं ये भी मुझे समझना है।ये विचार कैसे बहुत सारे विचारो मैं बदल जाते है और विचारों का समूह रूप बना लेते है मुझे यह जानना है इसी किर्या को देखना है जाने अनजाने में मै उस किर्या मैं मिल जाता हूं लेकिन क्यों मिल जाता हूं यह भी मुझे समझना है।

हमको कुछ खबर नही इसका ना पता मालुम मुझे ना ही मंजिल की खबर फिर भी मैं चलता ही जा रहा हूं किश और मैं निकल चला ?किश सफर किस मंजिल की तलाश में मैं भटक इधर उधर हूं रहा बस अब मुझे बढ़ना है और आगे लेकिन कैसे मेरे ही विचार मुझे दबा रहे मेरे ही विचार मेरे रास्ते की रुकावट है मेरे विचार आगे नहीं बढ़ने देते है और रोक लेते है बार बार सारे विचार मेरे एक विचार को दबा रहे मुझमे डर पैदा पैदा कर रहे है उस डर से आगे निकलू कैसे बस वही सोचता हूं रुकावट से भर जाता जाता ह् मंजिल की औए आगे बढ़ नहीं पाता बार बार फिर वापस पीछे आ जाता हूं.

मुझे खुद की तलाश है में बेखबर हूं अपने ही लिए ना मुझे पता अपने ही होने का ना ही रकस्त कुछ मिल रहा बस युही में चलता जा रहा हूं जिसका न होश है मुझे ना खबर है रहो की भी बड़ी अजीब सी मिल रही है रहे भी मुझे लोग मिल रहे है करवा यू बढ़ रहा सफर में क्या होना था और हो क्या रहा है इसका भी होश नही है मुझको बस में आगे बढ़ युही चल रहा हूं मंजिल मील या ना मिले लेकिन मैं आगे बढ़ रहा हूं।

इसमे बताया जा रहा है हम अपनी मंजिल को भूलकर अलग अलग राहो पर निकल पड़ते है जिसका कोई मेल नही है मिलान नही है हमारी मंजिल जिसका दूर दूर तक कोई नाता नही है बस चलते रहते है हैम ओर फेर भटकाव जिंदगी का पेड़ होता ही जाता है पता भी होता है कुछ फिर भी कुछ न कुछ भूल कर ही देते है हम मनीला को पाने के लिए जैसे मम्मी मार्किट सामान लेने के लिए भेजती है तो हम किसी से बात करते हुए रुक जाते है और भूल जाते है कि किस लिए आया या फिर कौनसा समान लेने के लिए आया था।

लोग अब मिलते जा रहे है मुझे मेरी इन्ह राहो मैं मुझे कारवा भी यू जुड़ता ही जा रहा रहा है बस में सफर के साथ चलता ही जा रहा हूं मंजिल की तलाश में , मैं ना जाने कहा कहा मैं भटकता जा रहा हूं बार बार मेरे मन में आ रहा यही सवाल की कौन हूँ, मैं किधर जा रहा हूँ, स्वयं की तलाश में बस मैं चला जा रहा हूँ।

क्या शब्दों का संचार हूं मैं या आसमान से विस्तार हूं मैं क्रोध हूं मैं या प्रेम हूं मैं 
क्यों विचार टूटे टूटे से लगते है क्या, उसमे हूं मैं क्या इंसान ना समझ है , या आज का इंसान सब कुछ समझता है हम सभी बुद्धिमान समझते है।


कौन है इंसान?  लक्ष्य क्या है ?
फिर ना जाने क्यों चल रहा है ये इंसान 
क्या इस इंसान को पता है वो क्या चाहता है ?


टूटता हूं मैं या जुड़ता हुआ मैं , समय के साथ साथ बैतब हूआ बिता हूं पल में या समय के आने बाप काल या पल में हूं मैं ? लेकिन कौन हूं मैं परिस्तिथयो से भाग रहा इंसान हूं मैं या जूझ रहा परिष्तिथियो में ठहरा हुआ रुक हुआ देखता हुआ एहसास  हूं मैं या कल या देखती हुई आंख महसूस कर रहा है शरीर हूं मैं या मूर्च्छा में पड़ा हूआ शरीर 

बहता हुआ प्रेम हूं मैं या
इंसान का क्रोध ?
विपरित दिशा में मुड रहा इंसान हूं मैं
या ब्रह्मांड का विस्तार हूं मैं ? 
अनुकूल परिस्तिथयो में बह रहा इंसान हूं विप्रिप जाने की कोसिह हूं मैं ? 
लड़ता हुआ इंसान हूं मै या चुप रहता हूं मै?
हर पल हर समय में बढ़ाने वाली परिस्थितियों
से भरा हुआ इंसान हूं मैं ?
उधेड़ बुन में जा रहा इंसान हूं मैं
या सुलझाने की कोशिश हूं मैं ?

उधेड़ बन में जा रहा इंसान हूं मैं ?
या
सुलझाने की कोशिश हूं मैं ?
घबराहट हूं मैं या साहस हूं मैं ?
हाथी की गर्जना हूं ? हिम्मत हूं मैं ? 

इंसान की पूर्णता हूं मैं या
उसकी अपूर्णता हूं मैं ?

रिक्त स्थान हूं या
भर हुआ आसमान ?
सवाल हूं मैं या जवाब हूं मैं
समस्या हूं या समाधान  हूं मैं ?
जानने की इच्छा या
पहचानने की समझ हूं मैं ?
चलता हुआ मुसाफिर हूं मै? या
रुका हुआ इंसान हूं मै?
परिसिथतियों के साथ बह रहा हु मै
परिष्तिथियो से लड़ता हुआ इंसान ? 

खुशी हूं मैं या दुख हूं मैं ?
अंधेरा हूं मैं या प्रकाश हूं?
हर जगह ढूंढ रहा इंसान हूं मैं
कौन सा उद्गम स्थान हूं मैं ?

इस स्तिथि में हु मैं ?
कोनसी सी परिस्तिथत में हूं
चांद की शीतलता हूं या
सूरज की ज्वलनशीलता हु मैं ? 

बिंदु सा आकर हूं मैं या
ब्रह्मांड जैसा निराकार हूं ? 
शब्द सा मीठा हूं या
नीम से कड़वा हूं मैं

कौन हूं मैं ? 

इस जगह खड़ा इंसान हु मैं ?
हर वक़्त , हर पल घटना में मैं
अपने आपको खोजता इंसान हु मैं ?
चट्टान की तरह कठोर हूं मै ? या
माँ की तरह नरम हु मैं
ये मुझे ना पता चल पा रहा है
कि कौन हूं मैं?
हर पल हर जगह खोजता चल रहा मैं
इस सवाल  का जवाब नही मिल रहा है
हर एक वस्तु हर एक घटना में होने की कोशिश है
और
हर घटना को जानने और समझने की
कोशिश में लगा हुआ मैं

किस ओर निकल चला किस मंजिल को पाने को हूं मै ?
निकल चला बस गतिमान हु मैं
अब रुकना मेरा काम नहीं
मुझे मिले मेरी पहचान वहीं है सही
कही ढूंढता स्वयम को चला
पूछता अपने आपको रहा
बतादो मुझे कौन हूं मैं
जानते है लोग मुझे मेरे नाम से
मेरे काम से लेकिन मेरा अस्तित्व है क्या ?
इस वजह मै यहां वहां बस भटकता ही रहा
ना मंजिल न सफर का मुझे पता चला
बस रहा ढूंढ मै स्वयम को हर पल रहा
कौन हूं मैं?
ये प्रश्न मेरे मन में बार बार उठ रहा 
“निकला हूँ उस ठिकाने को ढूंढने जिसका पता भी ना मालुम मुझे”
मैं निकल चला हूँ उस राह पर जिसके बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता, ना उस मंजिल की खबर है न रास्ते  का पता बस निकल चला हूँ मैं
अब लौटना संभव नहीं है और अब मै वापस लौटना भी नहीं चाहता क्युकी मै स्वयं को जानना चाहता हूं कौन हूं में ? यह प्रश्न मेरे मन को कचोट डालता है
तलाश पूरी मेरी होगी
या
अधूरी रह जायेगी?
ये भी नहीं पता मुझे
लेकिन
मैं निकल पड़ा हूँ
अब लौट कर वापस नहीं आना है
मुझे बस मंजिल को पाकर ही रहना है
सफ़र में आयेे कितनी भी रुकावट
मैं रुकुंगा नहीं, थकूँगा नहीं
बस चलते ही रहना है मुझे
अपनी मंजिल को हासिल ही करना है मुझे
सवाल है कुछ इस तरह
जिनके जवाब मै खोज रहा हूं
ना जाने किस किस तरह
कौन हूँ मैं ?
किसलिए मैं आया हूँ यहाँ?
यहां मेरे आने का क्या कारण है ? कौनसा ऐसा कार्य है जिसको पूर्ण करना है ?
यह मुझे न खबर ना ही पता है मुझे बस मंजिल की तलाश है, मैं भटक रहा हूँ इधर उधर अपनी मंजिल मैं 

मैं खोजता रहा बस अपनी मंजिल और अपना सफ़र मैं
ना मुझे नाम पता है,
ना निशान पता है
कौनसी छाप छोड़ी  थी
ना ही मुझे उसका निशान पता है
बस ढूंढ रहा हूँ अपने आपको
ढूंढता हूं मैं अपने आपको
ढूंढता हूँ हर जगह हल पल,
मैं भटकता फिर रहा हूं ना जाने

कभी मैं  सवयम को किसी वस्तु मे ढूंढता हुूं
तो कभी किसी वस्तु से अलग होकर मै देखता हूं
मुझे नहीं पता
की मैं अपने आपको कहा ढूंढ पाउँगा या फिर मै स्वयं को ढूंढ पाऊंगा भी या नहीं लेकिन चलना खोजना मेरा  काम है यही मेरा नियत कर्म है जिसे मुझे पूरा करना है।
मुझे ना रास्ता पता है
ना किसी दिशा का ज्ञान है
बस एक कोशिश है अपने आपको जानने की मैं निकल चला हूँ उस रास्ते पर जहा मैं अपने आपको जान सकु ये मेरे पहला पड़ाव है जिंदगी में अपने आपको खोजने के लिए मैं आतुर हूँ मुझे कुछ पाना नहीं है बस जानना है, स्वयं को स्वयं की अनुभूति होती है कैसे ? बस यही समझ जाना है मुझे
नहीं पता क्यों ?  मुझे मेरे अंदर हजारो लाखो विचार उमड़ रहे है ? जो सिर्फ सवाल है जिनके जवाब नहीं है मेरे पास
वो क्यों इतने सारे विचार एकत्रित हो रहे है इनका जवाब कहां खोज पाऊंगा मै ?
कहां मिलेंगे मुझे उन सवालों के जवाब ?

मेरे मैं और मस्तिस्क में जिनके बारे में मैं भी नहीं जानता मैं क्यों इतने विचारो से मैं भरा जा रहा हूँ कहा से आ रहे है ?क्या कारण है इन्ह विचारो के आने का ? क्यों मुझे ये विचार कही ले जाना चाहते है ?मैं जाना तो कही और चाहता हूँ ये विचार मुझे कही और खीच रहे है जैसे मैं विवश हूँ इन्ह विचारो के साथ लेकिन मुझे अपनी मंजिल हासिल करनी है मैं निकल हूँ सिर्फ अपनी मंजिल को हासिल करने के लिए तलाश भी उसी की बस कुछ और नहीं चाहिए मुझे चाहे मेरे विचार मुझे कितना ही भटक रहे हो कितना भी डरा रहे हो कभी भी ले जाने की कोशिश करे लेकिन मैं वापस ना जाऊंगा मैं अपनी मंजिल को पाकर ही रहूँगा ये मेरा विशवास स्वयं में जिसे मैं पूरा करके ही रहूँगा
मैं कौन हूँ?
किसमे हूँ मैं?
मेरे यहां होने का कारण क्या है ?
क्यों मेरा जन्म हुआ है?
ऐसा कोनसा कार्य है जिसे मैं करने यहाँ आया हूँ ?
कभी लगता है की मुर्गे की बांग में हूँ
तो कभी सूरज की रोशनी में हूँ
मैं हूँ कहाँ ? कौन हूँ मैं ?
यह एक प्रश्न जो मेरे मस्तिस्क को झुझला देता है
की क्यों नहीं जान पा रहा हूँ अपने आपको 
मैं तो एक शरीर हूँ या मन
लेकिन फिर वो भी नहीं हूँ
तब कौन कौन हूँ मैं ?
आवाज़, सुर,ध्वनि
किसमे हूँ में ?
कौन हूँ मैं ?
किर्या में हूँ
या
कार्य में हूँ ?
विचार,
सोच,
हाव-भाव
शब्द,
किर्या,
प्रतिकिर्या में हूँ क्या

मैं मुर्गे की कुकड़ू कु में हूँ या
चिड़िया की ची ची में हूं मै
सूरज की रोशनी में मैं हूँ ?
मैं प्रकाश हूँ या अँधेरा हूँ मैं?
कौनसी दिशा में हूँ
या दसो दिशाओ में मैं हूँ?
समय की तरह बीतता हुआ हूँ मैं
या समय हूँ मैं ?
बचपन,जवानी या बुढ़ापा हूँ मैं?
या इनके पड़ाव में हूँ मैं ?
टूटता हुआ हूँ मैं ?
या जुड़ा हुआ हूँ मैं ?
लड़खड़ाता हुआ हूँ मैं या
संभालता हुआ इंसान हूँ ?
पूर्ण हु मैं या
अपूर्ण हु मैं ?
शांति हूँ मैं या
शोर हूँ मैं ?
खेलता हुआ बचपन हूँ या शांति का अनुभव हूँ मैं ?
खेलता हुआ बच्चा हूं मैं या
रोता हुआ ?
राह पर चलता हुआ इंसान हूं या
भटक गया हूं राह से कही ? 
खेलता हुआ बच्चा हूं मैं या
रोता हुआ इंसान हूं ?

मैं किस तरह से कर रहा हूं? खुद की तलाश ये भी नही पता मुझको 

लेकिन तलाश कर रहा हूं
वो कौनसा रास्ता है?
जिससे मैं अपने आपको जान सकता हूं ? 
मैं अपने विचारों को देख रहा हूं , समझ रहा हूं जानने की कोशिश कर रहा हूं ,
किस ओर से ये विचार मेरे मन मस्तिष्क में आ रहे है इनका उद्गम स्थान कौनसा है और क्यों इतने विचार मेरे मस्तिष्क में आ रहे है ?
इन विचारो के कारण और परिणाम क्या है ?
शायद यह विचार ही है जो मुझे मेरी मंजिल तक मुझे पहुंचा सकते है
मुझे यही जानना है इन्हीं विचारों पर मुझे बल देना है
इन्ही विचारो को सही ढंग से समझना है क्योंकि इन्ही विचारो के कारण मेरा जीवन कदम कदम पर बदल रहा है इसलिए मुझे इन्ह विचारो को ध्यांपूर्वक देखना है  ये विचार कैसे बहुत सारे विचारो में बदल जाते है और विचारो इकठ्ठा कर लेते है मुझे ये जानना है इसी किर्या को देखना है जाने अनजाने में उन्में मिल जाता हूं क्यों मिल जाता हूं ये भी मुझे समझना है।ये विचार कैसे बहुत सारे विचारो मैं बदल जाते है और विचारों का समूह रूप बना लेते है मुझे यह जानना है इसी किर्या को देखना है जाने अनजाने में मै उस किर्या मैं मिल जाता हूं लेकिन क्यों मिल जाता हूं यह भी मुझे समझना है।

हमको कुछ खबर नही इसका ना पता मालुम मुझे ना ही मंजिल की खबर फिर भी मैं चलता ही जा रहा हूं किश और मैं निकल चला ?किश सफर किस मंजिल की तलाश में मैं भटक इधर उधर हूं रहा बस अब मुझे बढ़ना है और आगे लेकिन कैसे मेरे ही विचार मुझे दबा रहे मेरे ही विचार मेरे रास्ते की रुकावट है मेरे विचार आगे नहीं बढ़ने देते है और रोक लेते है बार बार सारे विचार मेरे एक विचार को दबा रहे मुझमे डर पैदा पैदा कर रहे है उस डर से आगे निकलू कैसे बस वही सोचता हूं रुकावट से भर जाता जाता ह् मंजिल की औए आगे बढ़ नहीं पाता बार बार फिर वापस पीछे आ जाता हूं 

मुझे खुद की तलाश है में बेखबर हूं अपने ही लिए ना मुझे पता अपने ही होने का ना ही रास्ता कुछ मिल रहा बस युही में चलता जा रहा हूं जिसका न होश है मुझे ना खबर है राह भी बड़ी अजीब सी मिल रही है।
लोग मिल रहे है, करवा यू बढ़ रहा सफर में क्या होना था, और हो क्या रहा है? इसका भी होश नही है मुझको बस में आगे बढ़ युही चल रहा हूं, मंजिल मील या ना मिले लेकिन मैं आगे बढ़ रहा हूं।

इसमे बताया जा रहा है हम अपनी मंजिल को भूलकर अलग अलग राहो पर निकल पड़ते है जिसका कोई मेल नही है मिलान नही है हमारी मंजिल जिसका दूर दूर तक कोई नाता नही है बस चलते रहते है हैम ओर फेर भटकाव जिंदगी का पेड़ होता ही जाता है पता भी होता है कुछ फिर भी कुछ न कुछ भूल कर ही देते है हम मनीला को पाने के लिए जैसे मम्मी मार्किट सामान लेने के लिए भेजती है तो हम किसी से बात करते हुए रुक जाते है और भूल जाते है कि किस लिए आया या फिर कौनसा समान लेने के लिए आया था।

लोग अब मिलते जा रहे है मुझे मेरी इन्ह राहो मैं मुझे कारवां भी यू जुड़ता ही जा रहा रहा है बस में सफर के साथ चलता ही जा रहा हूं मंजिल की तलाश में, मैं ना जाने कहा-कहा मैं भटकता मैं जा रहा हूं, बार बार मेरे मन में आ रहा ये प्रश्न है।

“क्या शब्दों का संचार हूं?, मैं या आसमान से विस्तार हूं, मैं क्रोध हूं, मैं या प्रेम हूं मैं”

क्यों विचार टूटे टूटे से लगते है क्या उसमे हूं मैं क्या इंसान ना समझ है , या आज का इंसान सब कुछ समझता है हम सभी बुद्धिमान समझते है 

कौन है इंसान?  लक्ष्य क्या है ?
फिर ना जाने क्यों चल रहा है ये इंसान 
क्या इस इंसान को पता है वो क्या चाहता है ?

टूटता हूं मैं या जुड़ता हुआ मैं , समय के साथ साथ बैतब हूआ बिता हूं पल में या समय के आने बाप काल या पल में हूं मैं ? लेकिन कौन हूं मैं परिस्तिथयो से भाग रहा इंसान हूं मैं या जूझ रहा परिष्तिथियो में ठहरा हुआ रुक हुआ देखता हुआ एहसास  हूं मैं या कल या देखती हुई आंख महसूस कर रहा है शरीर हूं मैं या मूर्च्छा में पड़ा हूआ शरीर 

बहता हुआ प्रेम हूं मैं या
इंसान का क्रोध ?
विपरित दिशा में मुड रहा इंसान हूं मैं
या ब्रह्मांड का विस्तार हूं मैं ? 
अनुकूल परिस्तिथयो में बह रहा इंसान हूं विप्रिप जाने की कोसिह हूं मैं ? 
लड़ता हुआ इंसान हूं मै या चुप रहता हूं मै?
हर पल हर समय में बढ़ाने वाली परिस्थितियों
से भरा हुआ इंसान हूं मैं ?
उधेड़ बुन में जा रहा इंसान हूं मैं
या सुलझाने की कोशिश हूं मैं ?

उधेड़ बुन में जा रहा इंसान हूं मैं ?
या
सुलझाने की कोशिश हूं मैं ?
घबराहट हूं मैं या साहस हूं मैं ?
हाथी की गर्जना हूं ? हिम्मत हूं मैं ? 

इंसान की पूर्णता हूं मैं या
उसकी अपूर्णता हूं मैं ?

रिक्त स्थान हूं या
भर हुआ आसमान ?
सवाल हूं मैं या जवाब हूं मैं
समस्या हूं या समाधान  हूं मैं ?
जानने की इच्छा या
पहचानने की समझ हूं मैं ?
चलता हुआ मुसाफिर हूं मै? या
रुका हुआ इंसान हूं मै?
परिसिथतियों के साथ बह रहा हु मै
परिष्तिथियो से लड़ता हुआ इंसान ? 

खुशी हूं मैं या दुख हूं मैं ?
अंधेरा हूं मैं या प्रकाश हूं?
हर जगह ढूंढ रहा इंसान हूं मैं
कौन सा उद्गम स्थान हूं मैं ?

इस स्तिथि में हु मैं ?
कोनसी सी परिस्तिथत में हूं
चांद की शीतलता हूं या
सूरज की ज्वलनशीलता हु मैं ? 

बिंदु सा आकर हूं मैं या
ब्रह्मांड जैसा निराकार हूं ? 
शब्द सा मीठा हूं या
नीम से कड़वा हूं मैं

कौन हूं मैं ? 

इस जगह खड़ा इंसान हु मैं ?
हर वक़्त , हर पल घटना में मैं
अपने आपको खोजता इंसान हु मैं ?
चट्टान की तरह कठोर हूं मै ? या
माँ की तरह नरम हु मैं
ये मुझे ना पता चल पा रहा है
कि कौन हूं मैं?
हर पल हर जगह खोजता चल रहा मैं
इस सवाल  का जवाब नही मिल रहा है
हर एक वस्तु हर एक घटना में होने की कोशिश है
और
हर घटना को जानने और समझने की
कोशिश में लगा हुआ मैं

किस ओर निकल चला किस मंजिल को पाने को हूं मै ?
निकल चला बस गतिमान हु मैं
अब रुकना मेरा काम नहीं
मुझे मिले मेरी पहचान वहीं है सही
कही ढूंढता स्वयम को चला
पूछता अपने आपको रहा
बतादो मुझे कौन हूं मैं
जानते है लोग मुझे मेरे नाम से
मेरे काम से लेकिन मेरा अस्तित्व है क्या ?
इस वजह मै यहां वहां बस भटकता ही रहा
ना मंजिल न सफर का मुझे पता चला
बस रहा ढूंढ मै स्वयम को हर पल रहा
कौन हूं मैं?
ये प्रश्न मेरे मन में बार बार उठ रहा।

यह भी पढे: जानने की शुरुआत, स्वयं को जाने, शब्द हूँ मैं, स्वयं को जानेंगे,

एक अजीब उलझन है

यह उलझन खत्म होने का नाम नहीं लेती बस बढ़ती ही रहती है एक उलझन खत्म होती है तो दूसरी उलझन का तार जुड़ जाता है मानो जिंदगी उलझाने के लिए ही बनी है, इसी तरह से चल रही है मेरी जिंदगी भी जिसमे एक अजीब सी उलझन है, उसी पर मैंने एक कविता लिखी है।

एक अजीब उलझन में फंसा है इंसान
क्या वो अनजान , लापता है ?
क्या उसे अपने दर्द का भी पता है ?

कुछ बात दबी सी कुछ बात उभरी है
दिल में बेचैनी है कुछ बेसब्री है
कुछ इम्तिहान बाकी है

और कुछ देकर आए है
बस बीते हुए दिनों में
कुछ खुशी और कुछ गम छिपाए है

उन्हें क्या पता ?
कि हम किस दर्द से गुजर कर

फिर दुबारा उस प्यार में पड़ने आए है
जिसमे हमने ना जाने कितने पहले ही दर्द सहकर आए है।
#Rohitshabd

एक अजीब उलझन में फंस गया इंसान है , जीसे न दर्द का पता न आराम का
uljhan

क्या है जिंदगी?

क्या है जिंदगी? नए मतलब सिखाने का नाम है जिंदगी , दुनिया कितनी भी मतलबी हो लेकिन यह जिंदगी हमे बहुत कुछ सिखाती है, इस दुनिया के बीच में हमे जीना आता है, और मतलबी है जीवन तो ओर भी रंगीन, हसीन बन जाती है यह दुनिया वरना शायद बेरंग हो जाती, जो इतना शोर है इस जीवन का वो शायद मतलब होने के कारण ही तो है यही मतलब न होता तो मौन कहला रही होती यह जिंदगी।

क्या है जिंदगी?
क्या है जिंदगी ?

मतलबी दुनिया के बीच अलग अलग मैने, मतलब सिखाती है यह जिंदगी

न मतलब की बात करो बस बिना मतलब के जिन सिखाती बताती भी है जिंदगी

बहुत सारे अर्थ बताती है यह जिंदगी इसलिए इस जीवन को जरा गौर से देखिए कही छूट न जाए कुछ, हर लम्हे में कुछ खास छिपा है इस जिंदगी के हर पल को इस जिंदगी का बेहतरीन बनाइये।

यह भी पढे: जिंदगी कैसी है, जिंदगी की राह, जिंदगी की राह में,

परीक्षा

परीक्षा से पहले डर और परीक्षा के बाद सफलता के बीच एक कड़ी होती है, जिसका नाम है रिवीजन:, यह उस चिड़िया का नाम है जो आपकी कमजोरी को कम और मजबूती को और मजबूत करती है. लेकिन आप जानते हुए भी रिवीजन नहीं कर पाते हैं.

1⃣. सबसे पहले और सबसे अहम- अपना सिलेबस को ध्यान में रखें. कहने का मतलब है कि अगर आपको सिलेबस का पता नहीं तो पढ़ाई कैसे करेंगे?

2⃣. खुद को सुनियोजित करें खुद की जरूरत को ध्यान में रखते हुए एक टाइम टेबुल बनाएँ. चाहे आपकी परीक्षा 2 माह या 1 माह हो चाहे जितना समय हो खुद को सुनियोजित करके ही कर सकते हैं. इसलिए एक टाइम टेबुल बनाएँ और उसका अनुसरण करें.

3⃣. जितनी उपर कही गई है उन बातों को ध्यान दें. बहुत से लोग छोटी मोटी गलतियाँ कर बैठते हैं. उदाहरण के लिए एक दिन किसी कारणवश यदि नियमित अध्ययन से आप चूक गए तो यह आप कभी मत सोचिए कि आज का दिन बेकार चला गया, अब मैं कल पढ़ुंगा. कड़वा लेकिन सत्य है कल कभी नहीं आता.

परीक्षा से पहले रिवीसन जरूर करे
सफलता की कुंजी

4⃣. यह याद रखें कि परीक्षा के 10 मिनट पहले किसी प्रकरण पर चर्चा न करें.

5⃣. अब आप सही रूप मेे रिवीजन कर रहे हैं, तो पिछले वर्ष का पेपर हल करें, ऐसा इसलिए कि ताकि परीक्षा का पैटर्न आपको मालूम हो जाएगा.

6⃣. परीक्षा में दूसरों की सहायता न करें, न दूसरों से सहायता लेने की कोशिश करें.

7. अपने साथ जरूरत का पूरा समान लेकर जाए ताकि आप अपने समान पेन , रबर और इत्यादि की चीज़ों को मांगने मैं व्यर्थ न करे

सोच को बदलो

सोच को बदलो

क्या सोच है आपकी और वो सोच किस प्रकार से बढ़ती ही जा रही है क्या उस सोच को बदलने की आवश्यकता है ?
एक बात तो यह भी है की खुद को बदलना जरूरी है ? नही बदलते जी हम तो ऐसे ही रहेंगे करलो जी जो करना है हो जाने दो जो होना हमे कोई फर्क नही पड़ता किसी भी बात से जो हो रहा है होने , छोड़ो इन बातो मत सुनाओ ये बदलने वगैरह की बाते हमे नही पसंद है यह सब

हमारे जीवन में बहुत ही पुरानी पुरानी सोच दबी हुई है
जिन्हें हमे रूढ़िवादी विचार भी कह सकते है जिन्हें बाहर कर खत्म कर देना चाहिए क्योंकि पुराणों विचारों को छोड़कर आगे बढ़ना ही जीवन है नए नए विचारों को अपने जीवन में स्थान देना

अब यहाँ एक प्रश्न बनता की है की अगर आपकी सोच दबी है तो क्या फर्क पड़ता है दबी रहने दो उनसे हमे क्या करना ?

जिसके कारण हमारा जीवन अस्त व्यस्त सा हो रहा है और हम उस सोच को अब तक पकड़े हुए है और छोड़ ही नही पा रहे है क्या ये सोच आसानी से छूट सकती है या ये सोच ही हमारी आदत बन चुकी है। पुराने विचारो को छोड़ दो इन पुरानी रूढ़ीवादी सोच को छोड़ दो, और अपनी सोच को बदलो
पुरानी सोच से पीछे हट जाओ , दुसरो के विचारो में अपना जीवन व्यर्थ ना करे किसी के द्वारा गए तर्कों के ऊपर ही अपना जीवन स्थापित ना करो नए विचारो को स्थान दो जन्म दो और उन्हें ही जीवन के लिए आगे बढ़ाओ उपयोग में लाओ।

सोच को बादलों जिंदगी जीने का नजरिया बदल जाएगा”

आपकी सोच आपके विचार भिन्न है, अपने जीवन को खुद ही समझो जानो , खोजो, अपने अनुभव में लाओ दूसरे के अनुभव आपकी यात्रा में सहायक हो सकते है परंतु अंतिम छोर नही अपने शब्दो का अर्थ एहसास तो आप स्वयम ही पाओगे और जान जाओगे किसी और का एहसास आपका एहसास कैसे हो सकता है ??

आपको आपके अनुभव में लाना होगा हम बहुत जल्दी भावुक हो जाते है, क्रोधित हो जाते है
शब्दो को जोड़ना-तोड़ना मरोड़ना और उनको समझना होगा उन शब्दों को हमे जानना होगा हमारे शब्द का क्या अर्थ है? इस जीवन का अर्थ हमे यदि जानना है तो पहले स्वयम को जानना होगा, और स्वयम को जानने का मतलब हम सभी मानवीय किर्यायों को जानना चाह रहे है, क्योंकि मैं मैं नही हूं मुझमे मैं का अर्थ जो सबसे है सिर्फ मैं से नही हम किसी ना किसी रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए है हमारे शब्द हमारी सोच, विचार हमारे एहसास हमारी भावनाएं एक दूसरे से किसी ना किसी प्रकार से जुड़ी हुई है इसलिए स्वयम को मैं नही मानो “हम समझो” पूरी पृकृति की रचना संरचना पालन,पोषण, अंत सभी चीज़े एक साथ एक दूसरे से जुड़ी हुई है।