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क्या लिखू मैं

क्या लिखू मैं तेरी तारीफ में,
हर लफ्ज़ भी तुझसे हारा है।
तेरी हंसी में चाँदनी बसती,
तेरी आँखों में सारा नज़ारा है।

फूलों की खुशबू तुझसे कम,
बादल भी तुझपे बरसें हैं।
तेरी जुल्फ़ों की छाँव तले,
हवाएँ भी धीरे-धीरे तरसें हैं।

सूरज की किरण भी मंद पड़े,
जब तेरा चेहरा दमकता है।
तेरे लबों की उस मासूम हँसी पे,
हर दिल पिघलकर बहकता है।

तेरी चाल में कशिश ऐसी,
कि लहरें भी संग चल पड़ें।
तेरी बातों में मिठास ऐसी,
कि हर मौसम रंग बदल पड़ें।

खुदा भी तुझसे कहे कभी,
“क्या तुझे मैंने खुद बनाया है?”
या मेरी कल्पना से चुरा लिया,
कोई सपना साकार कराया है?

अब क्या लिखू मैं तेरी तारीफ में,
लफ्ज़ भी तुझसे कम पड़ जाते हैं।
जो देख ले तुझे एक दफा,
वो तेरा दीवाना बन जाते हैं।

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वैसे तो कई शिकवे

वैसे तो कई शिकवे हैं तुम्हारे हमसे, पर सुनो!
शिक़ायत करती हो तो बहुत प्यारी लगती है…

वैसे तो कई शिकवे है
Sanjay Gupta Shayar

वैसे तो कई शिकवे है तुम्हारे,
मगर शायरी के जरिए अदाएं करते हैं हम।
जब भी तुम्हें याद करते हैं हम,
दरिया-ए-गम में इक नया सफ़र तराशते हैं हम।

तुम्हारी बातों में ज़रा सी ढ़ेर है गिले,
मगर उन गिलों को शायरी के रंगों में रंगते हैं हम।
कभी गुस्सा करते हो तुम हमसे,
शब्दों की लहरों में वफ़ा की आवाज़ बुलाते हैं हम।

जब तुम्हें अकेलापन महसूस होता है,
शायरी की बाँहों में तुम्हें ले आते हैं हम।
मोहब्बत की कश्ती के लिए जो शिक्वे हैं,
उन शिक्वों को रूह की गहराईयों में छिपाते हैं हम।

तुम्हारी यादों की बारिश में बहते हैं हम,
ज़िंदगी की मस्ती को नया रंग देते हैं हम।
शिकवे हो या गिले, तुम्हारे हर एहसास में,
शायरी की ज़ुबान से प्यार का इज़हार करते हैं हम।

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