इन शब्दों का अंदाज अलग है
क्योंकि
शब्दों में भेद भी बहुत अलग अलग है
पता नहीं
यह शब्द कभी समझ नहीं आते
मनो
यह शब्द कही है भाग जाते
पकड़
कैसे पाउ मैं इन शब्दों को
न जाने
कैसे अदृश्य हो जाते है ये तो?
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शब्दों मे हरकत
आज शब्दों में कुछ हरकत होने को है।
लगता है जिंदगी बस अब उस पार होने को है।
यहाँ था मैं सिर्फ तुम में होने के लिए जब तू,तुम न रहा
तो जिंदगी ने जाना की अब मैं सिर्फ, मैं होने को है।
मुझमे सिर्फ मैं रह जाये बाकी सब खो जाये ,
कुछ अब शेष नही मेरा किसी से द्रेष नही
इसलिए बाहरी यात्रा का समापन हो रहा
अब तो भीतर ही रुकना है बहार नहीं आना
किसी को पाने की कोई इच्छा नहीं,
किसी को छोड़ना नहीं बस अंदर ही बैठ जाना है,
बाहर नहीं खड़े होना
भीतर विराम है,बाहर सावधान होना है
भीतर मौन होना है, बाहर शब्दों में खोना है।
भीतर व्यस्त होना है, बाहर अस्त व्यस्त होना है,
बस यही शब्दों की हरकत है जो हो रही है मेरे भीतर उन शब्दों को कैसे में विराम दु।
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