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श्री मद्भगवत गीता

श्री मद्भगवत गीता द्वितीय अध्याय तृतीय श्लोक हे अर्जुन ! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है। इसलिए हे अर्जुन ! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप ! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो जा। (2,3)

बहुत ही महत्व पूर्ण श्लोक जिसमे आलस्य को समाप्त कर देने की बात कही गई है, श्री कृष्ण द्वारा

नपुंसकता को त्याग कर उठ खड़ा हो अर्जुन

मोहवश क्यों विलाप  कर रहे हो ? क्या यह उचित समय है ?
असमय में मोह को क्यों हुआ ?? जिस समय तुम्हें युद्ध करना है उस समय तुम मोह के पास में बंध रहे हो

यह रोना- धोना और चिल्लाना दुर्बलता कमजोर मनुष्यो की निशानी है तुम तो परमतप हो है, अर्जुन
यह तुम्हे शोभा नहीं देता, कायरो की भांति विलाप ना करो

श्री मद्भगवत गीता श्लोक

समय गूंगा नहीं है

ये समय गूंगा नहीं है बस रहता यह मौन….
समय पर देता बता किसका ही कौन ।
समय से सब कुछ मान सम्मान या अपमान …
समय जब अपना तो गधा भी पहलवान ।

समय से करो संवाद उसके हृदय को जानो…
उसकी निरंतरता निष्पक्षता को तुम पहचानो।
निरंतरता और निष्पक्षता एक कठिन साधना..
अहंकार की गुरुत्वाकर्षण सीमा को पड़ेगा तोड़ना टापना ।

इन सब बाँतो का नही कही पाठ्यक्रम ….
जीवन में श्रेष्ठ को जानने के कठिन नियम ।
हर घटना में समय सदा था हे और रहेगा साक्षी….
यह समय की अनिवार्य शर्त दिखती हर घटना में उसकी यह बानगी ।