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शब्द क्या है?

शब्द क्या है? 
हम लोग सुबह से शाम तक सारा दिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, परंतु फिर भी बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो शब्दों का महत्व जान पाते हैं। हमें अपनी सभी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता होती है। परंतु देखा जाए तो असल में शब्द है क्या?         
अधिकांश है हमारा सोचना होता है कि शब्द केवल ध्वनियों के मिलाने से बनते हैं। परंतु केवल ध्वनियों के योग से ही शब्द नहीं बनते शब्दों में भावनाएं अभिव्यक्त होती हैं। यह सारा संसार ही शब्दों के पीछे ही चल रहा है।                                     

शब्द क्या है?
शब्द

चाहे आप संसार के किसी भी विषय का अध्ययन करें आपको शब्दों की आवश्यकता जरूर होगी।      
हर शब्द मूल के है क्या?        
हमारे द्वारा बोला गया कोई भी शब्द या कोई भी ध्वनि कभी खत्म नहीं होती। वह ध्वनि इस अनंत ब्रह्मांड में गूंजती रहती है। इस ब्रह्मांड का कोई आदि व अंत नहीं है। और इसी अनंत ब्रह्मांड में हमारे द्वारा बोले गए शब्द व ध्वनियां गूंजती रहती हैं । 
      
 शब्दों के कई प्रकार के प्रभाव भी होते हैं।                                   

हमने ध्वनि चिकित्सा के बारे में भी पड़ा है। कई प्रकार के अलग-अलग संगीत की ध्वनि मनुष्य के इलाज के लिए फायदेमंद होती है। यहां तक कि हम जो विभिन्न भाषाओं में गीत संगीत सुनते हैं। चाहे वह आधुनिक संगीत हो या फिर शास्त्रीय संगीत या फिर किसी भी भाषा का संगीत सब शब्दों के योग से ही तो बने हैं। इसी संगीत से मनुष्य सदियों से अपना मनोरंजन करते आए हैं।
     
इसके अलावा मनुष्य के संपूर्ण जीवन के क्रियाकलापों में भी अलग-अलग प्रकार के संगीत का वर्णन मिलता है।

जैसे हम देखते हैं यदि कोई मनुष्य बहुत खुश है तो वह अलग प्रकार से गुनगुनाने लगता है। अगर कोई मनुष्य किसी बहुत ही व्यथा में है पीड़ित है तो वह आंसुओं के साथ कुछ ना कुछ गुनगुनाने लगता है। रोता हुआ मनुष्य भी अपनी भावनाओं के साथ कुछ शब्दों को व्यक्त करता है मनुष्य के जीवन सभी भावनाओं में मनुष्य संगीत का इस्तेमाल करता है।


  इन्हीं शब्दों के योग से ज्योतिष, खगोल शास्त्र, मंत्र शास्त्र आदि अनेकानेक विषय बनते हैं,जब हम किसी भी शब्द का उच्चारण करते हैं, तो उस शब्द के साथ कुछ ध्वनि तरंगे निकलती हैं वे ध्वनि तरंगे इस ब्रह्मांड में गूंजती हैं, और अलग-अलग ध्वनि तरंगों का अलग-अलग प्रभाव भी होता है।

जिस प्रकार हिंदू धर्म में ओम शब्द का वर्णन है, उसी प्रकार बौद्ध व जैन धर्मों में भी ओम शब्द का वर्णन है, भले ही यह अपने मतों को लेकर अलग-अलग हो परंतु इस एक शब्द पर यह सभी धर्म एकमत हैं,  अगर हम पाश्चात्य धर्मों को देखें जैसे कि इस्लाम व ईसाई धर्म में भी आमीन शब्द का प्रचलन है, हिंदी शब्दों में कुछ ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती हैं, जो कि मनुष्य के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।

हम सनातन धर्म में भी ओम, ऐऺ , क्लीम, श्री आदि बीज अक्षरों का वर्णन है। यह सभी कुछ सकारात्मक ध्वनि तरंगों को पैदा करके मनुष्य के जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव लाने में सक्षम है।

हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों में न जाने कितने ही अच्छे और बुरे शब्दों का इस्तेमाल पूरा दिन होता है, परंतु हमें अपने द्वारा इस्तेमाल की जाने वाले शब्दों को ध्यान से इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि मुख से निकले हुए शब्द वापस नहीं आते, और अगर कोई व्यक्ति शब्दों का अच्छे से इस्तेमाल करने में सक्षम है, शब्दों के द्वारा मनुष्य के मन पर घाव भी किया जा सकता है।

हम आज के समय में देखते हैं कि इतने लोग मनोचिकित्सक के पास जाते हैं, जबकि वह केवल मनोरोगी से बात करता है, वह केवल सामने बैठे मनोरोगी के विचारों को उसके शब्दों के रूप में सुनता है, और अपने विचारों को अपने शब्दों के रूप में उसके मस्तिष्क की ओर प्रवाहित करता है, यह सभी खेल केवल शब्दों का ही है।

हम अपने मुंह से न जाने कितने ही अपशब्द निकालते हैं, और शब्दों के ही द्वारा हम परमात्मा का स्मरण भी करते हैं। हम सोचते हैं कि जिस समय हम परमात्मा का स्मरण कर रहे हैं, और शब्द निकाल रहे हैं, उस समय हमें परमात्मा देखता है और अपने मुखमंडल से  अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए यह नहीं सोच पाते।

अगर हमें शब्दों की असली महत्व को जानना है तो कुछ समय हमें निशब्द होकर रहना चाहिए, अर्थात मौन धारण भी करना चाहिए। अगर हमें अपने शब्दों में प्रभाव लाना है तो हमें शब्दों का कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए। अगर हम दिन रात व्यर्थ के शब्द ही बोलते रहेंगे तो हमारे शब्दों की अहमियत नहीं रह जाएगी और हमारे शब्दों का प्रभाव भी कम हो जाएगा।

इसलिए हमें प्रत्येक शब्द को बहुत ही सोच समझ के इस्तेमाल करना चाहिए, संत कबीर दास जी ने भी अपने दोहे में कहा है, कि हर एक शब्द को हमें तराजू में तोल कर तब मुख से निकालना चाहिए।  
                                                
“भर सकता है घाव तलवार का बोली का घाव भरे ना”

Written by Pritam Mundotiya

शब्द का घाव न भरे कभी
शब्द के घाव ना भर पाए

हार की संभावना

यदि हार की कोई संभावना ना हो, तो जीत का कोई अर्थ नहीं है। हार की संभावना ने
अधिक सोचा मुझे भाई
क्या ये सोच हमें लड़ाती है
या हमें करीब ले जाती है?

कभी-कभी जीत से ज्यादा
हमें हार का डर सताता है
पर जब हम हार को गले लगाते हैं
तो नई जीत का आनंद मिलता है

हमें समय समय पर नहीं भूलना चाहिए
जीत और हार एक जैसे होते हैं
हार हमें नए पथ पर ले जाती है
जहाँ नए अवसर होते हैं

यदि हार की कोई संभावना ना हो तो जीत का कोई अर्थ नहीं है
हार और जीत

जिंदगी की मुसीबतों से
हमें कुछ ना कुछ सीखना होता है
हार से हमें सीख मिलती है
और हम नए जीवन का संचार करते हैं

तो डरने की जगह जीत के लिए लड़ें
और हार को अपने साथ चलाएं
क्योंकि जीत हार का परिणाम होती है
और हार जीत का द्वार खोलती हैं।

यह भी पढे: क्या हार भी अच्छी, प्रेरणा एक संभावना, नई संभावनाओ से, सफलता का सफर,

शब्द परिचय

यह जो शब्द है
इनमें कितना गुस्सा भर जाता है
इनका आपा खो जाता है
शब्दो को कौन समझाए ?
इनको कैसे मनाए ?

छोटी छोटी बातों पर ये शब्द तो रूठ जाए
इधर आए तो कभी उधर जाए
जब कोई इनका अपना खो जाता है
दुख बहुत आता है, रिक्त स्थान हो जाता है
वो स्थान फिर नहीं भार पाता है

लेकिन शब्द कुछ कर नही पाता है
जब करना चाहता है तो
 
शब्दो का ज्ञान उन्हें कुछ समझता है
क्रोध बहुत भीतर भरा हुआ है
मानो कोई प्यारा छूट गया है
वो अपने ना थे लेकिन
अपनो से कम ना थे

उनके जागने पर हम सोते थे
उनके होने पर ही हम होते है।
उनके ना होने पर कहाँ चैन से
सोते है हम।

शब्द खाली है

शब्दो का सूनापन भी देखो
शब्दो
शब्द खाली है तो भरे भी है
शब्द चलते है भागते, दौड़ते है
तो रुक भी जाते है
थक हार भी जाते है

कभी शब्द खाली है
हिम्मत जुटाते है तो
कभी दम तोड़ते हुए भी
ये शब्द नजर आते है

हाथ पाँव हो या नही पूरे हो
या नही फिर भी जिंदगी के
साथ जीते हुए नजर आते है

अपना समपर्ण देते है किसी
दूसरे शब्द का सहारा बन जाते है

तो कभी सिर्फ अपना मतलब
सीधा करते हुए ही ये
शब्द नजर आते है तो कभी
जिसको जरूरत है उसका
सहारा बन ये शब्द जाते है,

शब्द को शब्द मिल जाए तो
शब्द के मायने बदल जाते है

शब्दों का सलीका

शब्दों का सलीका शब्दों को कहने के लिए एक सलीका चाहिए होता है हुजूर जो हममे नही है आया अब तक बस इसलिए दुनिया वाले हमे बतमीज कहते है। लेकिन हम क्या करे हमारे शब्द तो बेबाक निकल जाते है।

शब्दों का सलीका जब सही हो जाए,
तब उनसे विचारों का अभिप्राय बन जाए।

शब्दो की दुनिया बहुत रंगीन होती है,
जो जीवन के दुख सुख का अभिव्यक्ति करती है।

कुछ शब्द गहराई तक जा पहुंचते हैं,
तो कुछ बस छोटी सी बातों को दर्शाते हैं।

शब्दों का सलीका शब्दों को कहने के लिए एक सलीका चाहिए होता है
shabd

शब्दो की बारिश हो जब बाहर,
तब रहते हम अपने अंदर।

शब्दों की धुन हो जब सुहानी,
तब दिल के सारे गम हो जाते पानी।

शब्दों की सलाह से मिलती है हमें राहत,
जो जीवन की कठिनाइयों से देती है छुटकारा।

शब्दो का सलीका जब सही हो जाए,
तब उनसे विचारों का अभिप्राय बन जाए।

शब्दों को सही ढंग से उच्चारित करो,
तब उनका असली मतलब सबको समझ में आएगा।

शब्दों का जो सलीका सही हो जाए,
तो उनसे विचारों का अभिप्राय बन जाए।

शब्दो का सलीका होता है,
जो इंसान को अलग बनाता है,
कुछ शब्द चुने तो आदमी बदल जाता है,
और कुछ शब्दों से इतिहास बन जाता है।

शब्दों का सलीका होता है,
जो दिल को छू जाता है,
जो दिल को झकझोर देता है,
जो दिल को खुशी से भर जाता है

शब्दों की ताकत होती है, जिनसे व्यक्ति जीवन बदल जाता है,
बच्चे की हंसी से दिल खुश हो जाता है,
और किसी के दुख से दिल दुखी हो जाता है।

शब्दों के सलीके से कुछ नया करो,
जो दुनिया में नहीं होता है,
कुछ नया सोचो, कुछ नया बोलो,
जो लोगों को मोहित करता है।

शब्दो का सलीका होता है,
जो दिल में रहता है,
जो दिल से निकलता है,
वो आदमी को अलग बनाता है।

सलीके से बोलो, सलीके से सुनो,
जो दुनिया को नया करता है,
शब्दों का सलीका होता है,
जो इंसान को अलग बनाता है।

शब्दों मे हरकत

आज शब्दों में कुछ हरकत होने को है।

लगता है जिंदगी बस अब उस पार होने को है।

यहाँ था मैं सिर्फ तुम में होने के लिए जब तू,तुम न रहा

तो जिंदगी ने जाना की अब मैं सिर्फ, मैं होने को है।

मुझमे सिर्फ मैं रह जाये बाकी सब खो जाये ,

कुछ अब शेष नही मेरा किसी से द्रेष नही

इसलिए बाहरी यात्रा का समापन हो रहा

अब तो भीतर ही रुकना है बहार नहीं आना

किसी को पाने की कोई इच्छा नहीं,

किसी को छोड़ना नहीं बस अंदर ही बैठ जाना है,

बाहर नहीं खड़े होना

भीतर विराम है,बाहर सावधान होना है

भीतर मौन होना है, बाहर शब्दों में खोना है।

भीतर व्यस्त होना है, बाहर अस्त व्यस्त होना है,

बस यही शब्दों की हरकत है जो हो रही है मेरे भीतर उन शब्दों को कैसे में विराम दु।

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