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शब्दों की माया

यह शब्दों की माया तो देखो
शब्दो को ना कांट सकते है,
ना जला सकते है , ना भीगा सकते है।

यह शब्द रचित संसार इन शब्दो की माया का
शब्दों की माया

इन शब्दों की माया को किसने है जाना, ओर कौन ही इन शब्दों को अब तक समझ पाया है, जिसने शब्दों को जाना है वो तो मौन को कहलाया है, वह स्वयं को शब्दों से पार ले जा पाया है।

शब्दों का संसार

मुझे खुद नहीं पता की मैं क्या लिख रहा हूँ? लगता है शायद मैं तो इन शब्दों से बात कर रहा हूँ, मैं कैसे समझाऊ? कैसे बताऊ? कोई विश्वास नहीं करता मेरी बातों पर की यह शब्दों का संसार है, शब्द से बना एक परिवार है।

शब्दों का संसार
शब्द संवाद

यह कलियुग शब्द संवाद का समय है, जहां सिर्फ शब्दों की मैं मैं है यहाँ कोई निशब्द अर्थात मौन नहीं होना चाहता हर समय कुछ ना कुछ वार्तालाप चाहता है, हर कोई बाहर जाना चाहता है एकांत में रहना किसी अच्छा नहीं लगता, कोई एकांत वासें नहीं होना चाहता उन्हे दिवारे काटने को दौड़ती है शरीर झटपटाता है किसी से मिलने के, किसी से बात करने के लिए, किसी को स्पर्श करने के लिए कुछ समय साथ बिताने के लिए, इस संसार में बिना बोले कैसे रह पाए जब तक किसी से कुछ पल ना हो हृदय असांत सा ही रहता है।

शब्द संवाद
शब्द संवाद

शब्दों को जुबान चाहिए और वो सिर्फ तुम ही हो, शब्दों के पास शरीर नहीं है उन्होंने तुम्हें ही शरीर रूप में चुना है, सारे क्रिया, कार्य शब्द द्वारा ही होते है बस शरीर एक साधन ही है।

शब्द की जुबान

शब्द वो है जो एक बार आपकी जुबान से निकल गए फिर वापस नहीं लिए जा सकते एक तरकस में तीर की तरह है यह शब्द जिन्हे एक बार छोड़ कर वापस नहीं लिया जा सकता।

तरकस में तीर

मुस्कुराओ

मुस्कुराओ ….क्युकी दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है, जो मुसकुराता है वो दुनिया को बदलने की हिम्मत रखता है, उसका विश्वास अपनी मुस्कुराहट से ओर बढ़ जाता है, वो मुरझाए हुए चेहरों को फिर से नई जान देता है, उनके भीतर नई ऊर्जा भर देता है।

मुसकुराना मानो दुनिया का खुद से ही बदल जाना है, मुसकुराना एक कला है भीतर चाहे कितने ही दुखी दुखी लेकिन आपके होंठों पर मुस्कुराहट दूसरों के चेहरों पर भी मुस्कुराहट भर देता है,

मुस्कुराओ क्युकी दुनिए का हर आदमी कहिले फूलों ओर कहिले चेहरे को पसंद करता है।

जब कोई आपसे पूछे

जब कोई आपसे पूछे क्या हाल चाल है आपके ? तो आपका जवाब क्या होता है? कुछ नहीं बस बीमार था, तबीयत ठीक नहीं , खासी, झुकाम, बुखार है आदि इत्यादि है यह छोटी छोटी बीमारी भी आज कल हमे पहाड़ की तरह लगती है, जैसे पता नहीं क्या हो गया है यह सब बीमारी कोई न है, यह तो आपके शरीर को ओर बेहतर तरीके से काम कर सको बस इसलिए हो जाती है।

मुझे याद है बचपन में जब मैं बीमार हो जाता था तो मुझे बड़ी खुशी होती थी इसलिए नहीं की मैं घर पर आराम करूंगा बल्कि इसलिए की हाँ अब मैं आराम से कुछ सोच सकूँगा, कुछ अलग किताबे पढ़ सकूँगा मुझे एक्स्ट्रा टाइम मिल गया है कुछ अलग करने का , मैं बीमार हूँ, मैं बीमार हूँ। मैं इस बारे में नहीं सोच करता था बल्कि वो जो टाइम अब मुझे मिला है, उसको कैसे इस्तेमाल करू? ये सोचता था, लेकिन आज हम उस समय का प्रयोग कैसे करते है बीमार होने पर

आप क्या कहते है? आपसे क्या हाल चाल है

जब कोई आपसे पूछे की कैसे कैसे तो बस यही जवाब आता है की बस ठीक हूँ, चल रहा है, बस ओके ओके हूँ, या कट रही है बस, कुछ खास नहीं तुम बताओ आदि इत्यादि इसी प्रकार के साधारण से शब्द जिनका प्रभाव सकारात्मक न होकर नकरात्मक विचारों को जन्म दे रहा है, शरीर में आलस, हतास , निराशावादी विचारों की ओर ले जा रहा है

इन उत्तरों से ऐसा लगता है की आप अपने जीवन में खुश नहीं है या फिर आप आपके भीतर नेगटिव थॉट भारी हुई है जीवन के प्रति ओर यह भी हो सकता है की आप जीवन के प्रति अब उतनी खुशी प्रकट नहीं करते जैसा आप बचपन मे करते थे,

ऐसा क्या हुआ है? जिसकी वजह से आप ऐसा महसूस करते है, आइए इसका जवाब खोजने की कोशिश करते है और जानते है एस क्यू हो रहा है हमारे साथ , हमारे आसपास ऐसे कौनसे शब्द है जिनकी वजह से हम प्रभावित हो रहे है, या लगातार वो शब्द हमे आहात कर रहे है?

सकारात्मक शब्द ओर नकारात्मक शब्द

क्या आपके आसपास जो शब्द बोले जा रहे है या आप उन्हे दूसरे माध्यम से सुन ओर देख रहे हो वो सभी चीज़े सकारात्मक है या फिर फिर नकारात्मक ऊर्जा को फैला रही है जिसकी वजह से आपके शरीर ओर मस्तिष्क पर उन शब्दों का प्रभाव हो रहा है।

ओर आपका जीवन भी उन्ही शब्दों की भांति होता जा रहा है। आपके आसपास लगातार गाली गलोच, बुरे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग होता है ? या फिर आप ऐसे घरेलू नाटक देखते है, वीडियोज़ देखते है जिनमे सिर्फ ऐसे नकार शब्दों का प्रयोग होता है ऐसे शब्द हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करते है।

यह शब्द धीरे धीरे हमारे जीवन को भी उसी तरह से बना देते है जैसे वह शब्द है, यह बेशक मजाक में ही क्यू न प्रयोग हो रहे हो परंतु आपका मस्तिष्क उन शब्दों पर कार्य करता ही रहता है जिसकी वजह से आप उन शब्दों की भांति हो जाते हो इसलिए इस प्रकार के शब्दों से उचित दूरी बनाए।

दिखावा करना

दुनिया में दिखावा करना ….
कोई नहीं हमसाया ।
कही न कही यह स्वय का दोष …
जो चाहता तो हे स्वय के लिए मिले
ऐसा व्यक्तित्व लेकिन नहीं किसी के लिए मैं इस शिद्दत से जी पाया ।
बाहर तो हम कह सकते है आसान हे यह सही नहीं वो कितना ग़लत…..
प्रश्न स्वय से किया कभी मैंने किसके लिये क्या किया ? क्यूँ में माँग रहा कितनी मेरी हे समझ ।

स्वय को कम आंकना नहीं मेरा मक़सद….
बस उम्मीदों के कारवाँ से बचना ही सही मायने की स्वय की सही अर्थों में मदद।

प्रभाव स्वयं का

हमारा स्वयम का कोई अस्तित्व है या नही?
क्यों हम दुसरो की विचारधारा में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है ?
क्यों हम किसी दूसरे से इतनी जल्दी प्रभावित हो जाते है ? दुसरो के विचारो से , शब्दो से, कार्यो से
हमारा जीवन प्रभावित हो रहा है लेकिन क्यों ?

यदि कोई हमारे सामने व्यक्ति सो रहा होता है तो हम प्रभावित हो जाते है हमे भी नींद आने लग जाती है हमारे अंदर भी आलस पैदा होने लग जाता है
इसका कारण क्या है ?
क्या हम कमजोर है ?

क्या हमारे अंदर आत्मबल की कमी है अर्थात स्वयं का बल नहीं है ?
क्या हमारा खुद पर कोई नियंत्रण नहीं है ?
क्या हमारे अंदर स्वयम का कोई प्रभाव नही है?

दुसरो की विचारधारा हमे अपने साथ बहाकर लिए जा रही है दुसरो के शब्द , भावनाए और एहसास हमे अपने साथ बहाकर ले जाते है, हम दुसरो के शब्दों से एकदम  प्रभावित हो जाते है क्यों ? क्या आपने यह जानने की कोशिश की है?

हमारे विचार आपस मेल करते है तो हम उसको सहमति दे देते है अथवा नहीं और यदि किसी के विचार ज्यादा प्रभावशाली होते है ती भी हम समर्पण भाव दे देते है, किसी ने कुछ कह दिया और प्रभावित हो गए स्वयम का कोई प्रभाव ही नही
क्या ??

हमारे अंदर हमारा बहाव दुसरो के कारण हो रहा है दुसरो के विचारो और शब्दों के कारण हमारे जीवन का निर्माण हो रहा है परिस्तिथियां निर्मित हो रही है।

यह विचार आ रहे है और जा रहे है इसी प्रकार से हमारा जीवन भी चले जा रहे है यदि हमने इन विचारो पर जोर ना दिया , ठीक ढंग से सोच नही और यदि हमने कोई विचार नही किया तो दुसरो की और और समय की विचारधारा हमे भी अपने साथ बहाकर ले जाएगी , हमे सोचना और विचारना होगा तथा उन सभी बातो को सही ढंग से समझना होगा

यदि हम अपने विचारो को अपने जीवन के बहाव को सही ढंग से सही रूप में सही दिशा में नही लेकर जाएंगे तो हमे भी उसी विचारधारा में बहना पड़ेगा और फिर हमारा जीवन हमारा न होगा वो जीवन किसी और के विचारो और शब्दो के कारण निर्मित होगा

क्या आपका जीवन आपके द्वारा नियंत्रित है या किसी और के द्वारा ?