अकारण प्रश्नता हो जाए व्यवहार….
यही सच्चा जीवन का शृंगार ।
बॉट दे उसे कर दे यह व्यापार…..
करो सब को जो जैसा हे स्वीकार ।
माँग और पूर्ति का खेला चल रहा….
खेल रहे हे सब सब होके बेपरवाह। ।
समय आधार सब हो गाएगा मिट्टी……
अकारण प्रसन्नता हे तेरी मुट्ठी ।
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शरीर ओर पानी
शरीर ओर पानी सम्बंध ओर शरीर सदा रहे बहते ओर उन्हें सदा रखे चलाते…..
क्यूँ क्यूँकि नियम पानी स्वास्थ्य सम्बंध जब
बहते पारदर्शी स्वच्छ वो दिख पाते ।
पानी चलता बहता अच्छा….
कर्म करना हे उसकी शिक्षा ।
शरीर चलता तो वो स्वस्थ…
कुछ करते रहे सही , रहना व्यस्त ।
रिश्ते में भी होता रहे आदान प्रदान….
रिश्तों को तभी मिलता उचित सम्मान ॥
यह जिंदगी ना तेरी
यह जिंदगी ना तेरी ना मेरी
जिंदगी रूठ ना जाये कही
चलता रहा साथ जिंदगी के
यह थम ना जाये कही
तू सांस लेले खुलकर
कही सांस रुक ना जाये यही
जी ले थोड़ा सा जिंदगी को यही
कौन जाने अगला पल है या नही
दम भर ले जितना तू चाहे
फिर दम भरने को तू होगा या नही
फिर कही ये दम छूट ना जाये
हुंकार मार , दहाड़ , चिल्ला
जीवन को जी खुलकर आज और यही
अगला पल किसको खबर है या नही
आज तू इसका यही बुगल बजा
नाच हंस खिलखिला बस तू यही
पता चलने दे हर लोक को गाथा तेरी ,
अगला पल किसको खबर है या नही
यह जिंदगी ना तेरी ना मेरी
यह जिंदगी रूठ ना जाये कही
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बड़ी कुटिल
बड़ी कुटिल
बड़ी छली
सी सोच लगती है,
जब मै राजनीति की बाते करने लगता हूं
जिंदगी ही जिंदगी पर एक बोझ लगती है
अभी शुरुआत है या अंत पता नहीं चलता
एक धर्म , एक जाती , एक देश , एक वर्ण
किसी दूसरे का अधिकार बस छलते हुए ही है दिखता
अपनी सत्ता , अपना लालच ,दम, अहंकार और साहस पर क्यों ए इंसान तू चलता है ?
कौन हिन्दू है ? और कौन मुस्लिम है ?
इसका फैसला क्यों ?
ये तुच्छ सा इंसान करता है
धर्म परिवर्तन तो कभी धर्म के नाम पर ही लड़ता है
तकलीफ किसको किससे है ?
भाषा से है या वर्ण से है
ये कोई क्यों नहीं समझता है ?
एक देश है उसके टुकड़े तुम करना चाहो
क्या ऐसा दुस्साहस भी कोई करता है? बड़ी कुटिल बड़ी चली सी सोच लगती है
वो सहम गए
वो सहम गए , वो सहम रहे है
जो वहा रह रहे है ,
जो अब भी है वहां ,ना चैन से सो रहे
और ना चैन से जाग रहे है
वो डर गए , वो सहम गए , वो कांप गए
जिनके घर वाले मारे गए
कौन कसूरवार था ? कौन बेकसूर था ?
क्यों वो इतनी हैवानियत से मारे गए
क्युकी उस भीड़ का कोई नाम नहीं
भीड़ का कोई नाम नहीं था।
उनका कोई धर्म – मजहब नहीं
रात को पहरा अब भी घर के बाहर
लगाकर लोग बैठे है सप्ताह हो गया
दिन भर बैठ कर दिन कट रहा है,
रात की नींद दहसत में उड़ गई है
लगता है घर के बाहर आग लगा गया कोई
क्या मेरा फिर से घर जला गया कोई ?
देहसत तुमने फैला दी
मेरे दिल में नफ़रत की आग लगा दी
तुम्हे अपना भाई कैसे कहूं ?
जो तुमने इतनी हैवानियत दिखा दी
मै डरता हूं , मै डरती हूं अब तुम्हारे पास आने से
मै घबरा गया हूं , मै घबरा गई हूं
तुम्हे अपना भाई बनाने से।
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यह शब्द
इन शब्दों का अंदाज अलग है
क्योंकि
शब्दों में भेद भी बहुत अलग अलग है
पता नहीं
यह शब्द कभी समझ नहीं आते
मनो
यह शब्द कही है भाग जाते
पकड़
कैसे पाउ मैं इन शब्दों को
न जाने
कैसे अदृश्य हो जाते है ये तो?
जिंदगी तेरे बिना
जिंदगी तेरे बिना कुछ ऐसी है और कुछ वैसी है जिंदगी
और जब तू साथ है तो लगता है कि कुछ है जिंदगी
हाल क्या बताऊँ ?
कुछ हाल ऐसा है कुछ हाल वैसा है
बस मसक्कत से भरी है जिंदगी
जब
तू दूर जाती है तो रूठ जाती है जिंदगी
तू पास आती है
तो मुस्कुराती और खिलखिलाती भी खूब है ये जिंदगी
गम ए छुपाये नहीं ये छुपता
लगता है बेमुरम्मद सी है जिंदगी
आंसुओ से आँखे भर भर जाती है
जब तू इन आँखों से दूर चली जाती है
चिरागे रोशन तू कर जाती है
जब तू फिर से पास आती है
ना जाने
क्यों जिंदगी तेरे बिना
बेतहासा बेहाल सी है जिंदगी
लगता है कुछ फटेहाल सी है जिंदगी
लेकिन
जब तू पास होती है तो कमाल सी है जिंदगी
ना जाने क्या क्या करती धमाल सी है ये जिंदगी
इसलिए
तू दूर जाना मत मुझे छोड़ कर
वरना लगेगी दुर्भर सी ये जिंदगी
अगर
तू पास है तो हर हाल में मस्त है ये जिंदगी
तू साथ है इसलिए जबरदस्त भी है ये जिंदगी
कुछ हाल ऐसा है कुछ हाल वैसा है
जिंदगी तेरे बिना कुछ ऐसी है कुछ वैसी है जिंदगी
जिंदगी जिंदगी जिंदगी
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