कैंची और सुई का संवाद

केंची ओर सुई का संवाद 


सुई ने कहा आप सबसे महेंगे से महँगा कपड़ा लाओ आप उसे काट देते हो ओर मेरा काम हे आप के काटे हुए कपड़े को सिल के एक रूप दे देती हो सुंदर वस्त्र के रूप में चाहे वो कुर्ता हो पजामा हो सूट हो सलवार हो एक बेहतर रूप शक्ल प्रदान करती हूँ तो क़ेंची कहती हे मेरा काम तुझे नकारात्मक लगता हे लेकिन मेरे कपड़ा काटने के बाद तेरा काम का महत्व जगता हे में ग़र काटने का काम न करूँ तो तेरे काम को दुनिया केसे जान पाएगी ।

सुई ने कहा में मान गई तेरी बात लेकिन समाज जिसको महत्व देना चाहता हे उसी को महत्व देता हे दूसरे का महत्व घटा देता हे, लेकिन अगर में तेरा गुणगान मन ही मन कर सकती हूँ.

समाज में नहीं कह सकती मेरी प्रतिष्ठा मेरे अहंकार पे तू प्रश्न चिन्ह उठता हे, तो तू चुप रह वरना में तेरे ये जो दो पर हे उन्हें ही सिल दूँगी न होंगे न तू कुछ काट पाएगी तो केंची को भी क्रोध आ जाता हे, कहती हे तू मेरे आगे मत आ जाना नहीं तो में तेरे को काट के रख दूँगी में न हमेशा धार लगाती रेहती हूँ समझ गई सुई रानी तेरी याद आ जाएगी नानी तभी लोहा देवता आते हे, ओर कहते हे तुम दोनो का अस्तित्व मुझ से हे।

एक इतनी पतली सी लेकिन मुझ से अलग होके इतना अहंकार बड़ों बड़ों को धमका रही हे, ओर इसे केंची महाराज को देखो इतनी छोटी से उलझ रहा हे, चलो दोनो सही रास्ते पर सही से काटो श्रीमान केंची महाराज ओर महारानी सुई तुम सही से सिलो सबको न चुभो किसी को जिस काम के लिए आए हो वो काम सिद्ध करो ओर अपने अंदर सम्यक् दक्षता ओर सम्यक् कार्य करो समझ गए दोनो या अभी कुछ समझाना बाक़ी रहता हे, मेरे पीछे पीछे आग्नि देव आ रहे हे मुझे ओर तुम दोनो को भस्म कर देंगे चलो निकलो आपने अपने रास्ते पे ओर अपना कार्य सही से करो ठीक हे में भी चलता हूँ जय राम जी की।

आपके सहयोग से प्रेम से में चार अक्षर लिख पाया ।
आप सब का आभारी राम लालवानी

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