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सौदा फिर कोई कर

सौदा फिर कोई कर रहा है
मेरे ख्यालों का
तुम याद रखना इस बात को सौदा फिर कोई कर रहा है
फिर मेरे ख्यालों का
जुबान ,दिल ,दिमाग , सब अस्त व्यस्त हो रहे है
क्युकी
अब सवाल उठ रहा है जहन में उनसे दूर हो जाने का , उनसे रूठ जाने का ,
उनको भूल जाने का ,
उनको सच्चा ओर खुद झूठा बनाने का ,
उनका चित्र सजाने का खुद को चरित्रहीन बताने का , उनको मासूम बताने का और खुद शैतान बनाने का सौदा फिर कोई रहा है इस दिल का

सौदा फिर कोई कर रहा है इस दिल का
सौदा फिर कोई कर रहा इस दिल का

तालियों में शोर है

तालियों में शोर है मुझे तालियों की गड़गड़ाहट का शोर नही चाहिए
इसमे भी मुझे हिंसा दिखती है,

दो हाथो के बीच जो आवाज होती है उसे शब्दो की
की गूंज को दबाना कहते है

तालिया बजाकर मेरी तौहीन ना करो
ये दो हाथो के बीच का शोर बस इसे थोड़ा कम ही करो

ये जो तुम्हारी तालियो की गड़गड़ाहट है न मुझे अच्छी नही लगती
आजकल तो ये तालिया हर गली चौराहे पर 10-10rs में बिकती है

तुम्हारे जो इन हाथो के बीच का शोर है ना
किसी ने इसे भी हिंसा कहाँ है

एक अजीब उलझन है

यह उलझन खत्म होने का नाम नहीं लेती बस बढ़ती ही रहती है एक उलझन खत्म होती है तो दूसरी उलझन का तार जुड़ जाता है मानो जिंदगी उलझाने के लिए ही बनी है, इसी तरह से चल रही है मेरी जिंदगी भी जिसमे एक अजीब सी उलझन है, उसी पर मैंने एक कविता लिखी है।

एक अजीब उलझन में फंसा है इंसान
क्या वो अनजान , लापता है ?
क्या उसे अपने दर्द का भी पता है ?

कुछ बात दबी सी कुछ बात उभरी है
दिल में बेचैनी है कुछ बेसब्री है
कुछ इम्तिहान बाकी है

और कुछ देकर आए है
बस बीते हुए दिनों में
कुछ खुशी और कुछ गम छिपाए है

उन्हें क्या पता ?
कि हम किस दर्द से गुजर कर

फिर दुबारा उस प्यार में पड़ने आए है
जिसमे हमने ना जाने कितने पहले ही दर्द सहकर आए है।
#Rohitshabd

एक अजीब उलझन में फंस गया इंसान है , जीसे न दर्द का पता न आराम का
uljhan

वो सहम गए

वो सहम गए , वो सहम रहे है
जो वहा रह रहे है ,
जो अब भी है वहां ,ना चैन से सो रहे
और ना चैन से जाग रहे है

वो डर गए , वो सहम गए , वो कांप गए
जिनके घर वाले मारे गए
कौन कसूरवार था ? कौन बेकसूर था ?
क्यों वो इतनी हैवानियत से मारे गए
क्युकी उस भीड़ का कोई नाम नहीं
भीड़ का कोई नाम नहीं था।

उनका कोई धर्म – मजहब नहीं
रात को पहरा अब भी घर के बाहर
लगाकर लोग बैठे है सप्ताह हो गया
दिन भर बैठ कर दिन कट रहा है,
रात की नींद दहसत में उड़ गई है

लगता है घर के बाहर आग लगा गया कोई
क्या मेरा फिर से घर जला गया कोई ?
देहसत तुमने फैला दी

मेरे दिल में नफ़रत की आग लगा दी
तुम्हे अपना भाई कैसे कहूं ?
जो तुमने इतनी हैवानियत दिखा दी
मै डरता हूं , मै डरती हूं अब तुम्हारे पास आने से
मै घबरा गया हूं , मै घबरा गई हूं
तुम्हे अपना भाई बनाने से।

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तुम हमे याद कब

वो हमे याद ही नही करते शायद, वो हमसे नही खुद से बेमानी करते है। तुम हमे याद कब करोगे, ये सवाल दिल में उठता है,
क्योंकि अक्सर तुम्हारी यादों को हम दिल से जड़ देते हैं।

तुम्हारी यादों की वो खुशबू, जो फैली हुई है दिल में,
हर आहट के साथ हमारे साथ हमेशा रहती है जैसे रेत के सफ़ेद फ़न्दे।

तुम हमें याद कब करोगे, ये हमेशा के लिए नहीं होगा,
बस एक दिन के लिए हम आपकी यादों में खोये रहेंगे।

जब हम तन्हा होकर आपकी यादों को बुलाते हैं,
तो वो यादें हमें फिर से आपके पास ले जाती हैं।

तुम हमें याद कब करोगे, ये हमेशा एक रहस्य बना रहेगा,
पर तुम्हारी यादों के साथ हम हमेशा जीते रहेंगे।

तुम्हारी अभी भी आवाज़, तुम्हारी अभी भी मुस्कान,
ये सब हमें तुम्हारी याद दिलाती हैं, जो बस हमारी होगी हमेशा।

हमे तुम याद कब करोगे, ये सवाल दिल में उठता है,
पर तुम्हारी यादों को हम दिल से जड़ देते हैं, जो हमेशा रहेगी साथ।

जिंदगी का हाल

जिंदगी का हाल क्या बताऊ

तेरे बिना कुछ ऐसी है और कुछ वैसी है जिंदगी

और जब  तू साथ है तो  लगता है कि कुछ है जिंदगी

जिंदगी का हाल क्या बताऊँ ?

कुछ हाल ऐसा है कुछ हाल वैसा है

बस मसक्कत से भरी है जिंदगी

जब 

तू दूर जाती है तो रूठ जाती है जिंदगी

तू पास आती है

 तो मुस्कुराती और खिलखिलाती भी खूब है ये जिंदगी 

गम ए छुपाये नहीं ये छुपता

लगता है बेमुरम्मद सी है जिंदगी

आंसुओ से आँखे भर भर जाती है

जब तू इन आँखों से दूर चली जाती है

चिरागे रोशन तू  कर जाती है

 जब तू फिर से पास आती है

ना जाने 

क्यों तेरे बिना ?

बेतहासा बेहाल सी है जिंदगी

लगता है कुछ फटेहाल सी है जिंदगी

लेकिन

जब तू पास होती है तो कमाल सी है जिंदगी

ना जाने क्या क्या करती धमाल सी है ये  जिंदगी

इसलिए

तू दूर जाना मत मुझे छोड़ कर

वरना लगेगी दुर्भर सी ये जिंदगी

अगर

तू पास है तो हर हाल में मस्त है ये जिंदगी

तू साथ है इसलिए जबरदस्त भी है ये जिंदगी

कुछ हाल ऐसा है कुछ हाल वैसा है 

तेरे बिना कुछ ऐसी है कुछ वैसी है जिंदगी

जिंदगी जिंदगी जिंदगी 

तुम्हें अपने ख्यालों में

मैं तुम्हें अपने ख्यालों में भी पनाह नही दूंगा इतराओ मत अब तुम मुझे पता है तुम मेरी धड़कनों में धड़क रही हो बस अब तुम्हे मैं अपनी धड़कनों से भी निकाल दूंगा

जब तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ,
तो मुझे तुम्हारे ख्यालों में छोड़ देना होगा।
फिर तुम मेरी ज़िन्दगी का हर पल सजाओगे,
मुझे नहीं पता कि तुम मेरे बिना क्या करोगे।

मेरी खुशियों का सबब तुम हो,
मेरी आँखों में तुम ही नज़र आते हो।
मुझे तुमसे बेहद मोहब्बत है,
लेकिन मुझे भी तुमसे अलग होना है।

आज तुम मेरे साथ हो, लेकिन कल कहाँ होगे,
मेरे ख्यालों में भी तुम अब नहीं रहोगे।
मेरी जिंदगी का सबसे अहम रिश्ता हो तुम,
पर मैं तुम्हें अपने ख्यालों में भी पनाह नहीं दूंगा।

हम आँखों में तस्वीरें समेटे रहते हैं,
जो अपनों से दूर रहते हुए भी,
हमें हमेशा पास लगती हैं।

ये तस्वीरें हमें अपनों की याद दिलाती हैं,
जो हमें अपनी ज़िन्दगी की सबसे अहम चीज़ याद दिलाती हैं।
आँखों में तस्वीरें समेटे रहने से हमें उनसे नहीं दूर होने का एहसास होता है,
और हमें उनसे जुड़े रहने की ताकत देता है।

ये तस्वीरें एक संग्रह हैं,
जो हमें उन खुश पलों का याद दिलाती हैं,
जो हम अपनों के साथ बिताए थे।
ये तस्वीरें हमें हमारे अपनों के साथ बिताए वो पल याद दिलाती हैं,
जो कभी फिर से नहीं आ सकते।

आँखों में तस्वीरें समेटे रहने से हमें उनसे जुड़े रहने की ताकत मिलती है,
जो हमें अपनों से जुड़े रहने की ज़रूरत होती है।
ये तस्वीरें हमें उन लम्हों की याद दिलाती हैं,
जो हमारी ज़िन्दगी के सबसे ख़ास होते हैं।

यह शब्द

इन शब्दों का अंदाज अलग है
क्योंकि
शब्दों में भेद भी बहुत अलग अलग है
पता नहीं
यह शब्द कभी समझ नहीं आते
मनो
यह शब्द कही है भाग जाते
पकड़
कैसे पाउ मैं इन शब्दों को
न जाने
कैसे अदृश्य हो जाते है ये तो?

शब्दों मे हरकत

आज शब्दों में कुछ हरकत होने को है।

लगता है जिंदगी बस अब उस पार होने को है।

यहाँ था मैं सिर्फ तुम में होने के लिए जब तू,तुम न रहा

तो जिंदगी ने जाना की अब मैं सिर्फ, मैं होने को है।

मुझमे सिर्फ मैं रह जाये बाकी सब खो जाये ,

कुछ अब शेष नही मेरा किसी से द्रेष नही

इसलिए बाहरी यात्रा का समापन हो रहा

अब तो भीतर ही रुकना है बहार नहीं आना

किसी को पाने की कोई इच्छा नहीं,

किसी को छोड़ना नहीं बस अंदर ही बैठ जाना है,

बाहर नहीं खड़े होना

भीतर विराम है,बाहर सावधान होना है

भीतर मौन होना है, बाहर शब्दों में खोना है।

भीतर व्यस्त होना है, बाहर अस्त व्यस्त होना है,

बस यही शब्दों की हरकत है जो हो रही है मेरे भीतर उन शब्दों को कैसे में विराम दु।

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बेमतलब की बाते

बेमतलब की बाते
फालतू की बाते ये लौंडे चार करते है
ये चार लड़के साथ चले तो छिछोरे लगते है
चार लडकिया साथ चले तो अच्छी लगती है


चार बुजुर्ग साथ बैठ जाए तो
बचपन की बात याद करते है
नही तो बस ताश ये पीटते है
मोहल्ले की चार औरते मिल जाए तो बस चुगली
लगाती हुई थकती नही है


और इनकी बाते कभी खत्म होती नही है
बस बात करती हुई नजर आती है
बेमतलब की बाते जिनका
कोई सर पैर नही है


बस बात नही जैसे चुगली
करती हुई नजर आती है
जवान लड़की और लड़को को बोलती है
ये कर और वो मत कर बस
बिना बात के लेक्चर देती
हुई नजर आती है

और
ये ना जाने क्यों बेमतलब की
मतलब डांट बहुत लगाती है
ना कुछ सीखती है ना कुछ सिखाती है
सिर्फ सारा दिन चुगली लगाती है


ये बस बिना बात के बातेे और फिर
बात पे बात बनाती जाती है अब ना जाने
बात करने से कितना रस टपकता है


समझ नही आता बस ये तो
चारो घड़ी बात करती ही नजर आती है
अगर कोई बात करने के लिए नही मिले इनको तो सकपका ये जाती है अकेली बैठ नही ये औरते पाती है