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क्या है जिंदगी?

क्या है जिंदगी? नए मतलब सिखाने का नाम है जिंदगी , दुनिया कितनी भी मतलबी हो लेकिन यह जिंदगी हमे बहुत कुछ सिखाती है, इस दुनिया के बीच में हमे जीना आता है, और मतलबी है जीवन तो ओर भी रंगीन, हसीन बन जाती है यह दुनिया वरना शायद बेरंग हो जाती, जो इतना शोर है इस जीवन का वो शायद मतलब होने के कारण ही तो है यही मतलब न होता तो मौन कहला रही होती यह जिंदगी।

क्या है जिंदगी?
क्या है जिंदगी ?

मतलबी दुनिया के बीच अलग अलग मैने, मतलब सिखाती है यह जिंदगी

न मतलब की बात करो बस बिना मतलब के जिन सिखाती बताती भी है जिंदगी

बहुत सारे अर्थ बताती है यह जिंदगी इसलिए इस जीवन को जरा गौर से देखिए कही छूट न जाए कुछ, हर लम्हे में कुछ खास छिपा है इस जिंदगी के हर पल को इस जिंदगी का बेहतरीन बनाइये।

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हंसने रुलाने

हंसने रुलाने का नाम है जिंदगी , यू ही गुदगुदाती है जिंदगी, कभी हसाती तो कभी रुलाती है जिंदगी, यह जिंदगी है साहब कुछ अटपटी तो चटपटी सी है जिंदगी

हंसने रुलाने का नाम है जिंदगी
ज़िंदगी क्या है

सुखद आनंद

मुस्कुराहट का ही तो एक नाम है जिंदगी , ये जिंदगी रोने के लिए नही है इसे मुस्कुराना सिखाओ ओर खो जाओ उन सभी लम्हो में जो तुम्हे सुखद आनंद देते है।

सुखद आनंद

परीक्षा

परीक्षा से पहले डर और परीक्षा के बाद सफलता के बीच एक कड़ी होती है, जिसका नाम है रिवीजन:, यह उस चिड़िया का नाम है जो आपकी कमजोरी को कम और मजबूती को और मजबूत करती है. लेकिन आप जानते हुए भी रिवीजन नहीं कर पाते हैं.

1⃣. सबसे पहले और सबसे अहम- अपना सिलेबस को ध्यान में रखें. कहने का मतलब है कि अगर आपको सिलेबस का पता नहीं तो पढ़ाई कैसे करेंगे?

2⃣. खुद को सुनियोजित करें खुद की जरूरत को ध्यान में रखते हुए एक टाइम टेबुल बनाएँ. चाहे आपकी परीक्षा 2 माह या 1 माह हो चाहे जितना समय हो खुद को सुनियोजित करके ही कर सकते हैं. इसलिए एक टाइम टेबुल बनाएँ और उसका अनुसरण करें.

3⃣. जितनी उपर कही गई है उन बातों को ध्यान दें. बहुत से लोग छोटी मोटी गलतियाँ कर बैठते हैं. उदाहरण के लिए एक दिन किसी कारणवश यदि नियमित अध्ययन से आप चूक गए तो यह आप कभी मत सोचिए कि आज का दिन बेकार चला गया, अब मैं कल पढ़ुंगा. कड़वा लेकिन सत्य है कल कभी नहीं आता.

परीक्षा से पहले रिवीसन जरूर करे
सफलता की कुंजी

4⃣. यह याद रखें कि परीक्षा के 10 मिनट पहले किसी प्रकरण पर चर्चा न करें.

5⃣. अब आप सही रूप मेे रिवीजन कर रहे हैं, तो पिछले वर्ष का पेपर हल करें, ऐसा इसलिए कि ताकि परीक्षा का पैटर्न आपको मालूम हो जाएगा.

6⃣. परीक्षा में दूसरों की सहायता न करें, न दूसरों से सहायता लेने की कोशिश करें.

7. अपने साथ जरूरत का पूरा समान लेकर जाए ताकि आप अपने समान पेन , रबर और इत्यादि की चीज़ों को मांगने मैं व्यर्थ न करे

प्रेम क्या है

प्रेम क्या है ? यह कैसे बयान कर पाउ , हर छोर हर ओर बस प्रेम ही प्रेम मैं पाउ

इस प्रेम को मेरे सारे शब्द और मेरी उम्र बीत जाए

चन्द लफ्जो में बयान क्या करू ?

लेकिन प्रेम का अर्थ पूरा मेरे शब्द भी ना कर पाए

फिर भी एक नाकाम कोशिश सी है कुछ बताने की,

एक नया रिश्ता बनाने की ये संबंध वो है

जिसमे हर एक रिश्ता नाता समा जाता है

मत भेद दिलो मेंं जो है वो दूर हो जाता है ,

असीम आसमान भी धरती की औढनी नजर आता है

जब कभी सतरंगी होता है आसमान

तब यही आसमान एक छोर से बाहे फैलाये दूसरे छोर को जाता है

प्रेम क्या है यह कैसे बयां में कर पाउ हर छोर पर सिर्फ प्रेम ही प्रेम मैं पाउ
प्रेम क्या है

तब देखो क्या मधुर संबंध धरती और आसमान का बन जाता है यह प्रेम है जो धरती और आसमान को एक करता हुआ नजर आता है

यह प्रेम है जो पूरे ब्रह्मांड को एक शब्द में बांधे नजर आता है

यह प्रेम वो है जो ना शब्दो से बयान हो पाता है

ना मौन से यह प्रेम तो शब्द और मौन दोनो के पार ले जाता है।

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“आपकी सोच”

“सोच को बदलों जिंदगी जीने का नजरिया बदल जाए”  क्या आपकी सोच है? आपकी और वो सोच किस प्रकार से बढ़ती ही जा रही है, क्या उस सोच को बदलने की आवश्यकता है ?
एक बात तो यह भी है की खुद को बदलना जरूरी है ? नही बदलते जी हम तो ऐसे ही रहेंगे करलो जी जो करना है हो जाने दो जो होना हमे कोई फर्क नही पड़ता किसी भी बात से जो हो रहा है होने , छोड़ो इन बातो मत सुनाओ ये बदलने वगैरह की बाते हमे नही पसंद है यह सब

हमारे जीवन में बहुत ही पुरानी पुरानी सोच दबी हुई है, उस सोच को बदलों
जिन्हें हमे रूढ़िवादी विचार भी कह सकते है, जिन्हें बाहर कर खत्म कर देना चाहिए क्योंकि पुराने विचारों को छोड़कर आगे बढ़ना ही जीवन है, नए नए विचारों को अपने जीवन में स्थान देना

अब यहाँ एक प्रश्न बनता की है, की अगर आपकी सोच दबी है तो क्या फर्क पड़ता है, दबी रहने दो उनसे हमे क्या करना ? लेकिन सोच को बदलों तभी थ जीवन बदलेगा

जिसके कारण हमारा जीवन अस्त व्यस्त सा हो रहा है, और हम उस सोच को अब तक पकड़े हुए है और छोड़ ही नही पा रहे है क्या ये सोच आसानी से छूट सकती है, या ये सोच ही हमारी आदत बन चुकी है पुराने विचारो को छोड़ दो , इन पुरानी रूढ़ीवादी सोच को छोड़ दो, पुरानी सोच से पीछे हट जाओ , दुसरो के विचारो में अपना जीवन व्यर्थ ना करे किसी के द्वारा गए तर्कों के ऊपर ही अपना जीवन स्थापित ना करो नए विचारो को स्थान दो जन्म दो और उन्हें ही जीवन के लिए आगे बढ़ाओ उपयोग में लाओ ।

आपकी सोच आपके विचार भिन्न है, अपने जीवन को खुद ही समझो जानो , खोजो, अपने अनुभव में लाओ दूसरे के अनुभव आपकी यात्रा में सहायक हो सकते है, परंतु अंतिम छोर नही अपने शब्दो का अर्थ एहसास तो आप स्वयम ही पाओगे और जान जाओगे किसी और का एहसास आपका एहसास कैसे हो सकता है ??

आपको आपके अनुभव में लाना होगा हम बहुत जल्दी भावुक हो जाते है , क्रोधित हो जाते है
शब्दो को जोड़ना-तोड़ना मरोड़ना और उनको समझना होगा उन शब्दों को हमे जानना होगा हमारे शब्द का क्या अर्थ है? इस जीवन का अर्थ हमे यदि जानना है, पहले स्वयम को जानना होगा |

और स्वयम को जानने का मतलब हम सभी मानवीय किर्यायों को जानना चाह रहे है, क्योंकि मैं मैं नही हूं मुझमे मैं का अर्थ जो सबसे है, सिर्फ मैं से नही हम किसी ना किसी रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए है हमारे शब्द हमारी सोच , विचार हमारे एहसास हमारी भावनाएं एक दूसरे से किसी ना किसी प्रकार से जुड़ी हुई है, इसलिए स्वयम को मैं नही मानो “हम समझो” पूरी पृकृति की रचना संरचना पालन,पोषण, अंत सभी चीज़े एक साथ एक दूसरे से जुड़ी हुई है।

जाग्रत कौन है?

वास्तव में सुख से कौन सोता है? जाग्रत कौन है?

दो प्रश्न हैं और उनका उत्तर है जिनकी संक्षिप्त व्याख्या दो भागो में करते हैं .

पहले प्रश्न पर चलते हैं, दोनों का उत्तर पढ़ना आवश्यक है इस पूरी स्थिति को समझने के लिए.

वास्तव में कौन है जो समाधि निष्ठ हो कर सुख से सोता है? 

वही व्यक्ति अथवा सत्ता जो परमात्मा के स्वरुप में हमारे ही अंतकरण में स्थित या स्थापित है!  परमात्मा का एक “स्वरुप” ही हम हैं और वह ही सब करता है. “हम” कौन हैं फिर? “मै  जो जाग्रत अवस्था में सोचता है, करता है, जिसे भूख प्यास लगती है हमारा अहंकार है जो हमें इस शरीर से जोड़कर उसी को “मै – हम”  बना देता है, पर आत्मिक ज्ञान होने पर जब सब दीखता है तो ज्ञात होता है के जिस सत्ता को हम “मै ” समझते थे, वह तो केवल एक हाड मांस का एक शरीर है जिसे चलाने वाला वही अंतकरण में स्थापित देव मूर्त परम आत्मा है।

जिसे हम अनदेखा कर, इस शरीर व् मायावी संसार के चक्कर में, पाप पर पाप करते चले जाते हैं. याद रखे के इसीलिए हम सुख से नहीं सो पाते, क्यूंकि हमने पापो का इतना बोझ पीठ पर लाद रखा है के हम दुःख में ही रहते हैं पर जब हम उस अंतर स्थित स्थापित सत्ता से जुड़ जाते हैं और इस संसार के मायावी रूप के लबादे को उतार कर, हलके फुल्के हो जाते हैं।

जाग्रत कौन है? यदि हम यह जान पाए तभी हम अपने भीतर के सभी कार्यों होते देख पाएंगे

अपने पाप कर्मो पर दृष्टि डालते हैं तब हम जिस स्थिति व् अवस्था  में होंगे वहां न कोई चिंता होगी न किसी पाप कर्म का बोझ होगा न कभी न पूरी होने वाली इच्छाओ, स्वरूपी राक्षसो का भय होगा, तब हम अपने उस स्वरुप में सम्मलित होकर एक ही रूप में होंगे और वह ही हमारा वास्तविक रूप है, ये जो दीखता है वह तो उसी स्वरूप के भावो का प्रत्यक्ष प्रतिरूप है. जब इस बाहरी रुप को उस आंतरिक स्वरुप से जोड़ देंगे तो हमें इस संसार से कोई विशेष लालच ,मोह या जुड़ाव नहीं रहेगा. इसीलिए “मै ” और “सत्ता” सुख से सोएँगे।