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सर्वाधिक आनंद

सर्वाधिक आनंद उन्हे प्राप्त होता है, जो अकेले रहने की कला सीख जाते है।

एकाकी जीवन की कला,
सर्वाधिक आनंद जो मिलता है।
जब अपने आप से मेल होता है,
खुद को आपमें खो जाते है।

अकेलापन को मित्र बना लिया है,
खुद के साथ संगीत गुनगुना लिया है।
मन की आवाज़ को सुनते हैं,
खोये हुए सपनों में जीने की अभिलाषा लिया है।

दिनभर की भीड़ में गहराई से सोचते हैं,
अपने मन की धड़कनों को सुनते हैं।
अपने विचारों को खुलकर खोलते हैं,
खुले आसमान में उड़ जाते हैं।

स्वतंत्रता की इच्छा जगाते हैं,
अपने आप को पहचानते हैं।
खुद को अपनी संगीत के रंग में रंगते हैं,
आनंद के नए स्वर गाते हैं।

सर्वाधिक आनंद
आनंद

खुद के साथ अकेले रहने की कला,
सुखद जीवन की धुन सी बन जाती है।
जब खुद की मिलती है साथी,
उस खुशियों का आनंद जीवन में बन जाती है।

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कमजोर ताकतवर

कमजोर ताकतवर का खेल न सोचो तुम,
समझदारी के साथ जीवन को बनाओ मधुर।

जो कमजोर व्यक्ति वो लेते बदला….उनकी फ़ितरत में लेना सिला । ताकतवर आदमी दे देते माफ़ी….उनके ज़िंदगी की यही बेबाक़ी ।

समझदार व्यक्ति करते उपेक्षा….
यह उनके जीवन आधारभूत शिक्षा ।

अब देखना कौन हे कमजोर ताकतवर या हे वो समझदार…..
किस दिशा से कौन व्यक्ति खोल रहा जीवन का पावन द्वार।

क्या ताकतवरता है जो बस शक्ति में दिखावटी है,
या समझदारी है जो अनुभव से प्रगट होती है।

क्या कमजोरी है जो दिल की बातों को छुपाती है,
या समझदारी है जो सच्चाई को उजागर कराती है।

ताकतवर व्यक्ति हो सकता है शक्ति से परिपूर्ण,
लेकिन समझदार व्यक्ति होता है अनुभवों से भरपूर।

कमजोर व्यक्ति शायद दिखे छोटा और निर्बल,
लेकिन समझदार व्यक्ति होता है ज्ञान से सम्पन्न।

हमेशा यह न सोचो कि शक्ति ही सबकुछ है,
क्योंकि समझदारी है वह ज्योति जो जीवन को आलोकित करती है।

जीवन के पावन द्वार को खोले वो व्यक्ति है समझदार,
जो ज्ञान और सच्चाई के मार्ग पर चलता है सारे विचार।

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हृदय और मस्तिष्क

हृदय और मस्तिष्क दोनों का स्वामी एक लेकिन दोनों के अलग अलग पथ…..
मस्तिष्क हानि लाभ सोचता फिर लेता निर्णय
हृदय ने स्वाभाविक चलने की ली शपथ ।

हृदय स्वाभाविक पूरे शरीर में रक्त का करता संचालन…..
मस्तिष्क मिले रक्त के प्रयोग से सब अंगों पे करता शासन ।

मानव रूपी यंत्र में इतनी जटिल प्रक्रिया का सरलता से होता निर्वाह…..
प्रकृति ने बेजोड़ यंत्र बनाया जिस ओर निहारो बरबस निकलता वाह वाह वाह वाह ।

हृदय और मस्तिष्क, दोनों के एक स्वामी,
पर चलते हैं अलग-अलग पथ, इस भाग्य की गाथ।
मस्तिष्क सोच-विचार करता, हानि और लाभ का विचार,
निर्णय लेने में धीरज रखता, नहीं चलता बिना संकोच।

हृदय ने स्वाभाविकता की ली है शपथ,
जीने के लिए चलता है नवीनता के साथ।
उसकी सुनता है नगमा दिल का,
खुशियों और दर्द को जानता है वह सच्चा।

मस्तिष्क विचारों का अनुकरण करे,
सोच-विचार में बहकर न करे विश्वास।
हृदय जीवन की गति को जाने,
भावनाओं के साथ रहे, ना झूमे उदास।

हृदय और मस्तिष्क, दोनों संतुलित हों,
इस शरीर के संगीत में रंगीं रंगों।
सोच-विचार और भावनाएं, एक दूसरे के संग,
बनाएं जीवन को खुशहाल और संपूर्ण।

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झूठी मोहब्बत

झूठी मोहब्बत, यकीन नही आता
तुम्हे भी मुझसे
मोहब्बत थी
वो भी झूठी

वादे थे हमारे, वचन थे सुहाने,
पर अब ये सब लगते हैं वो सब ठगने।

तुम्हारी हंसी, तुम्हारी मुस्कान,
अब हर सब्बा में बस एक बहाना निगलते हैं।

जैसे रात का अंधेरा, जैसे ख़्वाबों का धोखा,
तुम्हारी बातों में छुपा था एक बड़ा सच्चा।

प्यार का वादा था, इकरार की आस,
पर तुम्हारे दिल का कच्चा, बोलता था झूठा वास।

मोहब्बत का झरोखा, दिखावे की दुकान,
तुम्हारे लिए ये सब था सिर्फ़ एक फ़साना।

अब दिल में ये गुज़रते हैं तूफ़ान,
तूम्हारी मोहब्बत की ये थी कहानी जहान।

सोचा था तुमसे मिलकर हम बनेंगे ज़माना,
पर तुम्हारे दिल का रास्ता था बस एक धोखा साना।

अब ज़िंदगी की कविता में ये शब्द लिखता हूँ,
तुम्हारी झूठी मोहब्बत का सत्य प्रकाशित करता हूँ।

वो झूठी मोहब्बत
झूठी मोहब्बत

समय नहीं मिला

जिस जिस को समय नहीं मिला उन सभी के लिए समय की कोई कमी नहीं है। सोच तू
कितना सोच सकता है
लिख तू
कितना लिख सकता है
सो तू
कितना सो सकता है

नाच तू
कितना नाच सकता है
गा तू
कितना गा सकता है
खा तू
कितना खा सकता है

आराम कर तू कितना कर सकता है
पढ़ तू
कितना पढ़ सकता है
टीवी देख
तू कितनी देख सकता है

गेम खेल
तू कितना खेल सकता है
बात कर , गप्पे मार
तू कितनी कर सकता है
तू क्या ? और कितना कर सकता है

वो सब आजमा ले आज जो तू करना चाहता था अपनी जिंदगी में कभी करले अब अगर थक जाए तो छोड़ देना वो सब तू जो करना चाहता था नहीं थका वो सब करके , नहीं पका वो सब करके तो बाकी सब छोड़ देना ओर वहीं अपनी जिंदगी में अपना लेना जो तू बस करना चाहता है। फिर ये ना कहना हो की समय नहीं मिला

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इश्क़ की बात

फिलहाल ए दिल तू
इश्क़ की बात ना कर
मै तो बर्बाद हूं पहले से
अब और मुझे
तू बर्बाद ना कर

बेफिजूल की चर्चा है ये इश्क़
इस पर बेशकीमती शब्दों को
बर्बाद ना कर

बेमतलब , बेवजह
किसी के ख्यालों में डूबकर
अब वक़्त को तो
तू बर्बाद ना कर

छोड़ बैठ जा बस
इश्क़ एक रोग है
लाइलाज
दिल ओर दिमाग का
अजब सा संजोग है

इस इश्क़ पर
तू अपना पंचभूत
शरीर बर्बाद ना कर …….

इश्क़ की बात ना कर
इश्क़

फिलहाल ए दिल तू, इश्क़ की बात ना कर

मेरे दिल की धड़कनों को तू ना छीन,
मैंने तुझे प्यार किया था, ये जाने ना तू,
अब क्या कहूँ, कैसे समझाऊं तुझे,
मेरी आँखों में आँसूओं को तू ना भरे।

जो बीत गया है, वो बीता हुआ है,
अब तो अपने आप को संभालना है,
मैं जी रहा हूँ अकेलापन के साथ,
तू मेरे दर्द को और गहरा ना कर।

हर रात तेरी यादों में रोता हूँ,
क्या करूँ, कैसे सहूँ, समझता हूँ,
तेरे जाने के बाद भी, ये दिल तेरी ही है,
पर अब तू इसे और दर्द ना कर।

फिलहाल ए दिल तू, इश्क की बात ना कर,
मैं तो बर्बाद हूँ पहले से, अब और मुझे,
तू बर्बाद ना कर।

हृदय से प्रशंसा

हृदय से प्रशंसा …. सही हो मंशा ।
मस्तिष्क से हस्तक्षेप ….
आवश्यक बुद्धि से देखरेख ।
विवेक से समीक्षा….
ही सच्ची शिक्षा ।
अन्यथा मौन सर्वोत्तम….
मौन समाधान परम।

मस्तिष्क से हस्तक्षेप, आवश्यक बुद्धि से देखरेख,
विवेक से समीक्षा, नजरियों का निर्माण करें संघर्ष।

हृदय की मधुरता से भरी, प्रशंसा की धारा बहाएं,
सही और सुंदर शब्दों में, आपसी बंधुता जगाएं।

मस्तिष्क की तेजस्विता से, हस्तक्षेप करें समस्याओं का समाधान,
बुद्धि की सामर्थ्य से, ज्ञान के सागर में डूबे अभिमान।

विवेक की प्रकाशित दीप्ति से, समीक्षा करें अपने कर्मों को,
सही गलत का विचार करें, सत्य की ओर बढ़ें धृष्टता के धाम को।

हृदय, मस्तिष्क, बुद्धि और विवेक, ये चारों संग चलें,
प्रशंसा, हस्तक्षेप, समीक्षा करें, स्वयं को संयमित बनाएं।

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विषय हो वस्तु हो

हर विषय हो वस्तु हो , हो वो प्राणी चल रहे सब नियम अनुसार ….
बस समझना हे किसका कैसा हे आधार उसे कर सके स्वीकार ।

जीवन का रहस्य है यही, नियमों की अनुसार चलना,
हर कार्य में तालिका बनाकर, ज्ञान की धारा बहाना।

प्रकृति के नियमों का पालन, है जीवन का मूल सिद्धांत,
जिसका भीषण तालाबंध होगा, वह खोखला होगा बंधन।

सूरज करता है प्रकाशित, चांदनी देती है चमक,
जल बनाता है ताजगी, पेड़ों में भरता है जीवन की लम्बी रात।

जीवन के हर पहलू में, नियमों की ओर देखना है,
और समझना है, कैसे उनका उपयोग, सबके लिए करना है।

कर्मों की एक संगीता है, नियमों की सुरीली ध्वनि,
उन्हें समझने के बाद ही, जीवन मिलेगा तरंगों की ज्वालामुखी।

इसलिए समझिए संसार को, नियमों से जुड़ा हर विषय,
हर प्राणी का नियम अनुसार, बस यही है जीवन का आधार विषय।

हर विषय हो वस्तु हो , हो वो प्राणी चल रहे सब नियम अनुसार ….
बस समझना हे किसका कैसा हे आधार उसे कर सके स्वीकार ।

असम्भव याद रखना

जो आज लग रहा असम्भव याद रखना उसकी आपने भविष्य में
सुनानी हे कहानी….
असम्भव को संभव करने का अथक अथस प्रयास कीजिए तो कहानी होगी सुहानी ।

जीवन ऐसा जीया जाए जिसकी चर्चा हो धरती आकाश….
प्रयास इतने ऊँचे जितना पर्वत पवित्र कैलाश ।

जो आज लग रहा असम्भव,
असम्भव याद रखना उसकी आपने भविष्य में।
सुनानी है कहानी,
असम्भव को संभव करने का अथक अथस प्रयास।

जब दुःख की घड़ी संभाले,
और आगे बढ़ने का वचन लें।
जो दृढ़ता से तैरे,
वो ही असम्भव को प्राप्त करें।

कभी न छोड़े हौसलों को,
जीवन की मुसीबतों में भी।
मन में दृढ़ निश्चय रखे,
असम्भव को जीत लें आप ही।

जो आज अज्ञात लगे,
कल उन्हें हकीकत बनाएं।
अथक प्रयासों से सुखी हों,
असम्भव को साकार कराएं।

जीवन की राहों में चलते,
हमेशा प्रगति का मार्ग चुनें।
जो आज लग रहा असम्भव,
उसे हम आपने भविष्य में सुनाएं।

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चेहरे पे मुस्कान

चेहरे पे मुस्कान …..
नहीं हो दिखावट ।
रात्रि की अच्छी निद्रा….
स्वास्थ्य की वो मुद्रा ।

अच्छे से अच्छा विचार अधूरा….
बड़ी सोच से करे उसे पूरा ।
चेहरे पे सदा मुस्कुराहट….
सोच में न हो रुकावट ।

रात्रि की अच्छी निद्रा….
रोगों का रोग अनिद्रा ।

चेहरे पे मुस्कान हो, नहीं हो दिखावट,
खुशियों की छाप हो, न सिर्फ आभावट।
असली खुशी छुपी है अंदर की गहराइयों में,
जो नहीं आती बाहर, वही है सच्ची खुशाइयों में।

रात्रि की अच्छी निद्रा, स्वास्थ्य की वो मुद्रा,
जगाती है नई ऊर्जा, देती है शक्ति की धारा।
जब मन और शरीर विश्राम पाते हैं,
तभी संतुलित होती है जीवन की दौड़-भागी।

नशा नहीं हो रोगों का, तंगी नहीं हो जीवन की,
जब स्वास्थ्य बना रहे, खुद को मानव की पहचान की।
व्यायाम, आहार और नियमित जीवन संगत,
ये हैं वो तत्व, जो रखते हैं हमें स्वस्थ और समृद्ध।

चेहरे पे खिल उठे मुस्कान का पुट,
रात्रि की निद्रा हो सदा निरंतर, अपूर्णता का जट।
स्वास्थ्य ही धन है, ये सच जान लें हम,
खुश और सक्रिय जीवन का रहें अद्यात्मी ध्यान हम।

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