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हर रोज बेहतर होना है

हर रोज बेहतर होना है, उस बेहतर होने की तैयारी करनी है

हर रोज बेहतर होने के लिए कुछ न कुछ करना है

एक नई चीज रोज करनी है

कुछ नया सीखना है,

कुछ अलग करने की चाह इस मन में है, जो फिर से करना है

जिस चीज को आप बचपन में बड़े मन से करते है उसको फिर से करो

जो आप सीखना चाहते थे बचपन में उसे फिर से सीखो

कुछ दुबारा करो , कुछ नया करो

कुछ पहली बार करो, तो कुछ बार बार करो

रोज किताबे पढ़ो खुद को बेहतर करने के लिए

स्वयं को सुधारों आने वाले कल के लिए, अपने शब्दों को सुधारों 

हर रोज बेहतर होना है।

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मंजिले है ख्वाब सी

मंजिले है ख्वाब सी वो ख्वाब दिखाए

उलफतों में ना जाने वो कौनसी बात बताए

बस ये उलफते बढ़ती जाए

ख्वाब जिंदगी के ना जाने

कैसे कैसे ये सजाए जिंदगी की उलझनो को ये बढ़ाए ,

ख्वाब कुछ दिखाए – ख्वाब कुछ दिखाए

जिन ख्वाबों को हम पूरा नहीं कर पाए

ये मंजिले ये मंजिले

इन मंजिलों को पाने के लिए

हम क्यों न चलते जाए-हम क्यों चलते न जाए

ये मंजिले हासिल करके हम क्यों ना दिखाए

हर राह इस जीवन की

क्यू ना आसान बनाए

हर मोड़ पर आती है मुश्किल

इन मुश्कलो को पीछे छोड़ हम आगे बढ़ चलते जाए

इस सफर को जिए ओर मंजिल को करीब हम लाए

ये मंजिले आसान कर हम दिखाए

डर क्यू रहे है आगे बढ़ने से

पीछे हट क्यों रहे आगे बढ़ने से

आगे बढ़ कर इस  सफर को  क्यों ना आसान हम बनाए

मंजिल को पाने की कोशिश हम करते जाए

पीछे मुड़ क्यों है देखना

आगे बढ़ कदम के साथ क्यों ना पीछे वाले कदम को साथ लेकर आए

ये मंजिले

क्यू ना हम पाए

कदम हमारे लड़खड़ाए

इन मंजिलों को करीब हम लाए

मंजिले ख्वाब सी एक हकीकत वो बन जाए

इन ख्वाबों को पूरा कर हम चलते जाए

ये हौसला कभी कम हो ना पाए

इन मंजिलों को पा कर ही हम रूके

मंजिले है ख्वाब सी ख्वाब पूरे हम कर दिखाए

शब्द हूँ मैं

शब्द तो बन बैठा हूँ

लेकिन शब्दों को कह नहीं पाता हूँ

बस खुद में ही कही नजर आता हूँ

शब्द हूँ शब्दों से कतराता हूँ

कभी छुपक जाता हूँ ,

कभी दुबक जाता हूँ ,

बाहर नहीं आ पाता  हूँ ,

घबरा कर बैठ भीतर ही जाता हूँ ,

यू मुझमे छिपा दर्द बहुत लेकिन कह कुछ नहीं पाता हूँ

बिना मतलब के चिल्लाता हूँ

हर किसी को बताता हूँ

शब्द हूँ मैं

लेकिन कुछ बोल नहीं पाता हूँ

भीतर की गहरी बाते जुबा पर ला नहीं पाता हूँ

जब भी बारी आई मेरी बोलने की सहमा सहमा नजर आता हूँ

शब्द हूँ मैं

लेकिन ज़्यादार मौन ही नजर आता हूँ

शब्द हूँ मैं

ना जाने ये बात भी कैसे जान पाया हूँ

लेकिन किसी को बता नहीं पाया हूँ

मन को कैसे रोके

इस मन को कैसे रोके जो मन भीतर हो रही है उछल कूद है

इस मन को कैसे रोके

इस मन के आवेश में कितने है झोंके

इस मन को कैसे रोके

यह मन यह मन

इधर उधर ले जाए

जीवन संग सतरंगी सपने सजाए

जीवन की उधेड़ बुन में लगाए

नए नए रंग जीवन संग जोड़े  

इन रंगों में इंसान खुद ही गुम हो जाए

इस मन भीतर अनेक कल्पना सज रही है

जो ये मन सजाए

इस मन को कैसे कैसे

हम समझाए

नित नए कार्यों में यह मन लग जाए

तेरा इंतजार कर रहा हूँ

खड़ा हू अब भी तेरे इंतज़ार में
जिस जगह तुम मुझे छोड़ कर गए थे

करता हू घंटो इंतज़ार बस तुम्हारा
जिस जगह तुम मुझे छोड़ गए थे

मै अपनी मंजिल का रास्ता भूल गया हू
सिर्फ तुम्हारा रास्ता अब याद है मुझे

कहीं तुमने अपना रास्ता तो नहीं बदल दिया
सिर्फ मेरे होने से वहां

मै इंतज़ार में तुम्हारे नजर जमाए बैठा हू
सिर्फ तेरे लिए की तू आएगी यहां

मेरी निगाहें टकटकी लगाए
सिर्फ तुम्हारा इंतज़ार करती है

बिन पलक झपकाए बस तुम्हे देखने के लिए
मेरी सांसे आहे भरती है।

कब तुम आओगे और कब , कब मै तुम्हे देख पाऊंगा
सब कुछ भूल जाता हूं तुझे देखने के लिए

मै तेरे समय पर आ जाता हूं,
लेकिन सिर्फ इंतज़ार ही करता हुआ नजर आता हुआ।

ना जानें कहां तुम चली जाती हो
खो जाती हो मेरी आंखो से औझल सी नजर आती हो।

क्या तुम मुझे देखकर अपना मुंह मोड़ चली जाती हो
क्या रास्ता बदल कही और से निकल जाती हो ?

मेरी निगाहों से कैसे बचकर तुम निकल जाती हो
टूट गया हू मै क्या तुम इतना नहीं समझ पाती हो ??

मुस्कुराने का जादू

यह मुस्कुराने का जादू है , जहाँ शब्द न करे काम मुस्कुराहट काम कर जाती……
बात पते की मुस्कुराहट की नही कोई जाति प्रजाति ।
यह तो प्रकृति का वरदान बात यह सब को समझ हे आती ।

मुस्कुराहट में प्यारी सी आहट…
काम को बनाने की इसमें चाहत ।
मुस्कुराहट का प्रभाव…..
कहलाता अच्छे व्यवहार का स्वभाव ।
मुस्कुरा कर जब करते काम….
उसमें झलकता शांत मन का आयाम ।

मुस्कुराहट से हो जाता हर असमभाव वाला संभव काम , मुस्कुराहट करती हर दुख को दूर शांति का प्रस्ताव लाती हर दिल में उम्मीद में जगाती , यही मुस्कुराने का जादू है, जो मुस्कुराहट खुशिया बिखेरती जाती।

बीते हुए दिन

बीते हुए दिन
जिंदगी से जिंदगी कि कुछ मुलाकातें
जो अधूरी थी, शायद पूरी भी ना हो सकी
ओर कभी शायद पूरी अब हो भी ना सके

क्युकी
वो दब गई , दफन हो गई
उन बीते हुए दिनों में, उन बीते हुए दिनों में

जिनमें मैने की थी मैंने बहुत सारी नादानी
क्या उन नादानियों को फिर से याद करूं?

ऐसा क्या ख़ास है?
उन बीते हुए दिनों में,
जो मै फिर से जाऊ उन पुरानी यादों में,
बातो में ,
क्यों गुम हो जाऊ ?
क्या है ख़ास ?
है क्या ख़ास ?
नहीं पता , मुझे नहीं पता

लेकिन फिर भी ना जाने क्यों ?
ना जाने क्यों ?
वो बीते हुए दिन बहुत याद आते है
वो बीते हुए दिन याद आते है
लेकिन क्या करे वो तो बीते हुए दिन है
कुछ किया नहीं जा सकता
याद आते है , बताओ आते है ना
वो दिन

वहीं पुराने दिन जो तुम बिताए थे
उनमें तुम्हारा बचपन भी था , लड़कपन , जवानी , झगड़ा भी था।
कभी मासूमियत थी तो कभी धोखा था
तुम्हारे चेहरे पर

लेकिन कुछ था
पता नहीं क्या था
पता नहीं क्या था

लेकिन सभी मुझे कहते है वो कुछ खास था
क्युकी वो बिता हुआ एक पल
एक दिन
महीना, महीने , साल एक उम्र का पड़ाव था
जो बीत गया , वो बीत गया

फिर वो आ ना सका
फिर वो आ ना सका
बस अब उन दिनों की यादें है
जो बीत गए है

जो बन्द हो गए है डायरी में , पन्नों में , कलम की स्याही से
जिन्हे फिर से  ठीक भी नहीं किया जा सकता
उनको फिर से जिया भी नहीं जा सकता
(उन्मे सिर्फ पुरानी याडे है दबे हुए कुछ अरमान है )
उनमें सिर्फ दबी मुस्कुराहट ,
दबे आंसू , झलकता जाम
ओर धुंधली यांदे है
जिनको फिर से याद करने की कोशिश की जा सकती है

लेकिन जीवित नहीं किया जा सकता वो दिन ,
वो बीते हुए दिन मेरे भी नहीं है ,
खोए भी नहीं है सिर्फ जिंदा लाश की तरह दफन है,
उन्हें मै फिर से याद कर रहा हूं
क्युकी वो मेरी पुरानी यादे ही तो बन रह गई।

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तेरी आंखे

तेरी आंखे मुझे नोच खचोट जाती है

ये जो तेरी आंखे है न
मुझे नोच डालती है
तेरी आंखे ही है
जो मुझे नोंच डालती है,
इन आंखों पर थोड़ी लगाम रख
इन आंखों में थोड़ी शर्म तो ला
इन्ह आंखों को अब और ना गिरा,
इस तरह से तू आंख निकाल ना बाहर

क्योंकि

ये जो तेरी आंखे है
न मुझे नोच नोच कचोट जाती है।

मैं भी एक इंसान हूं
फर्क की दीवार ना तैयार कर
इन आँखों  में थोड़ी शर्म ला,
शर्म का पर्दा तू भी तैयार कर
इन आंखों से मुझे ना तू
यू तार तार कर

लाज शर्म सिर्फ मेरा ही गहना नही,
खुद की आंखों के लिए तू भी इसे पहना कर
मुझे यू ना तू इन आंखों से रौंदा कर

इस तरह घुट घुट कर मरने से अच्छा,
एक बार मरना होगा ही सही
ये जो तेरी आंखे है ना
मुझे नोच खचोट जाती है

जहा जाती हूं
मेरे शरीर को,
ऊपर से नीचे तक मुझे देखती हुई
तेरी आंखे मुझे नजर आती है,
यह आंखे मुझे रौंद डालती है
लाख बार मेरी इज्जत तार तार कर देती है
ये आंखे मुझे हजारो बार मारती है

इन आंखों से बचु कैसे?
हर वक़्त हर जगह मुझे,
ये आंखे नजर आती है
घर से बाहर जब निकलती हू,
रोड पर जब मैं चलती हूं

लाखो आंखे मुझे घूर घूर मार डालती है,
लाखो बार एक दिन में मैं मर जाती हूं
ये आंखे मुझे रौंद डालती है

कभी ये उन स्कूल कॉलेज  जाते हुए बच्चो की
तो कभी मनचलों की सड़को पर नजर आती है
 
ये आंखे मुझे रौंद डालती है
बस स्टॉप हो या बस का सफर
ऑटो में हूं या कार में,
तेरी आंखे भीतर तक घुस जाती है मेरे….

तन और मन को छल्ली कर नजर आती है
मुड़ मुड़ क्यों देख मुझे तेरी आंखे सताती है
कुछ शर्म लाज रख इन्ह आंखों में
ये तेरी आंखे मुझे क्यों नोंच खाती है
 
बस मुझे ढूंढ कर रौंदना
ये आँखें चाहती है,
ऐसा कौनसा गुनहा किया है मेने
जो ये आंखे मुझे रौंदना चाहती है
छिन्न भिन्न हो मैं जाती हूं,
तिल तिल  मर मैं जाती हूं
जब ये आंखे मुझे रौंद जाती है
अकेली लाचार बेसहारा खड़ी,
नजर में खुद को आती हूं


क्यों
बस एक यही
सवाल खुद से करती हूं मैं,
बेचैन अकेले  हर पल,  हर जगह इस समाज में क्यों  हो जाती हूं मैं
सुबह हो या शाम  कही नही मैं जा पाती हूं।

गली मोहहल्ले
मैं भी चल नही खुलकर मैं सकती हूं,
बंद चार दिवारी में भीतर घर के हो जाती हूं मैं
लगता है डर बहुत,
अब तो डर डर के  बस इस जिंदगी को बिताती हूं
तेरी आंखे जो मुझे नोंच डालती है यह मैं सह नही पाती हूं।

ये हदे पार ना करो
कौनसी सी जिद्द है ये तुम्हारी
कौनसा बदला लेना चाहते हो,
जो तुम इस तरह से मुझे देखते हो

मेरे जिस्म को यू देख कर तार तार ना करो
मैं भी किसी की बेटी, बहन, माँ हूं

मुझे खुद की आंखों में शर्मशार ना करो

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जिंदगी एक सफर है

जिंदगी एक सफर है, और हम सभी यात्री है, हम थक जाते है, ठहर जाते है, कभी कभी चल नही पाते है बस फिर भी आगे बढ़ने की इच्छा है, इसलिए जिंदगी के साथ आगे बढ़ते जाते है।

यह जीवन एक चलता हुआ सफर है
और हम मंजिल से बस बेखबर है
मंजिल से बेखबर है लेकिन
इस चलते हुए सफर में,
इंसान तू ठहर मत जाना

थक हार कर तू कही बैठ नही जाना
यह जिंदगी एक चलता हुआ सफर है
बस चलते ही तू जाना,
रुक ठहर तू मत जाना
हौसला टूटता है तो टूट जाने दे लेकिन
तू हौसला टूटता देख मत लड़खड़ाना।

मेने हिम्मत की हार होते हुए बहुतो की देखी है
उन बहुतों में तू भी ना शामिल हो जाना,
तू भी उनकी तरह टूट-फुट, बिखर  ना जाना

जिंदगी की मौज में सवार होकर तू आगे बढ़ना
कभी जिंदगी को थका हुआ ,
हारा हुआ एहसास न तुम कराना

आगे देख बस बढ़ते ही तुम जाना
पीछे जो मुड़कर देखते है,
वही अक्सर रुके हुए नजर आते है
और फिर कभी आगे नही वो बढ़ पाते है ,
इसलिए सफर को
मुड़कर ना तू  देखना

बस आगे तू बढ़ते जाना
उचाऊ से कभी मत डरना
और नीचाई को अकड़ मत दिखाना,

ऊँचाई को पकड़ लेना लेकिन
गहराई को भूल ना जाना,

धीरे धीरे चल
आराम से चलना जिंदगी की मौज में चलना
हर कदम संभाल कर चलना
कभी लड़खड़ाना, डगमगाना तो रुक जाना
लेकिन मुड़ कर वापस तू ना आना

बाहँ पकड़ खुदकी तू चलना
बाहे तेरी पकड़ने, साथ तेरा निभाने
कोई ना आएगा
पथ ना कोई दिखायेगा तुझे,
अलग अलग पथों पर भटकाएगा
तुम्हे लेकिन अडिग हो अपने पथ पर चलते जाना है
बल्कि
इसके विपरीत नीचे जो साथ है वो गिरायेगा तुझे
पहले मैं – पहले मैं करता नजर आयेग वह

भरोसा चाहकर भी तू नही उन पर कर पायेगा
खुद संभल उठ खड़ा हो
तभी इस जहांन को नजर आएगा,
वरना ना जाने कहाँ गुम तू हो जाएगा
तू रुकना नही

दिन के उजाले को देख खुश ना होना
और रात के अंधेरे में घबरा मत जाना

मंजिल नजदीक ही है बस उसे पाने के लिए
तू अपने पथ पर अडिग चलते ही तू जाना……

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कलाकार का जीवन

कलाकार का जीवन
कलाकार पर्दे पे आपके सुख दुःख भोगता…..
कलाकार किरदार भीतर स्वय के सोखता।
अपनी कला का जलवा मंच पे बखेरता….
किरदार में अपनी कला के प्राण फूकता।

कलाकार अभिनय को देता उत्तम आकर ….
एकलोते जीवन में जीता भिन्न भिन्न किरदार ।
कलाकार की ख़ुशबू चारों और फैलती…
प्रशंसा उसके कार्य में नई ऊर्जा भरती ।।

कलाकार समाज का वो नुमाइंदा…..
भीतर से वो भी शख़्स अच्छा या गंदा ।
कलाकार में हम शख़्सियत नहीं नायक को खोजते …..
उस नायक से क़ायम होता रिश्ता बड़ी शिद्दत से उसे हम पूजते ।।

कलाकार का जीवन, पर्दे पे आपके सुख दुःख भोगता,
किरदार भीतर स्वयं के सोखता।

रंग और अभिनय की दुनिया में खो जाता है सब,
अपने भावों के माध्यम से जगत को भर देता है अर्थ।

प्रेम, विरह, आनंद, विलाप, सबको अदा करता है वह,
जीवन के हर रंग को अपनी कला से सजाता है वह।

कला के सम्राट, कलाकार नाम उनका,
रंगमंच पर जीवन का सच उनका।

संगीत की साज, नृत्य की आवाज,
सभी रसों को जीवंत करता है वह राज।

पढ़ता है वह वाचिक विधान,
साधक के रूप में निभाता है अद्वितीय ध्यान।

नाटकों के पट पर, सिनेमा की दुनिया में,
कलाकार रचता है अपनी कहानी में।

जीवन के रंगों को चित्रित करता है वह,
अपनी कला से जन-जन को भरता है वह।

जीवन-संगीत की लहरों में नाचता है वह,
अपनी अभिनय की कविता सुनाता है वह।

कलाकार का जीवन, रंग और रूपों का संगम,
अपनी कला के साथ जीने का अद्वितीय उपयोग।

धन, यश या स्थान की परवाह नहीं होती उसको,
उसकी प्राथमिकता होती है अपनी कला में खोने की।

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