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भलाई

भलाई: कोई भी की हुई भलाई व्यर्थ नहीं जाती किसी न किसी रूप में आपको आपके जीवन को सुखद अहसास दे जाती है,  किसी के लिए यही सुखदायी होगा, कि ईश्वर, वाहेगुरु, अल्लाह या कहे कुदरत ने हमे इतना सक्षम बनाया की हम किसी के काम आ सके  बहुत सकारात्मक ऊर्जा होती है, ऐसे व्यक्तित्व  में और ऊपर से  उनमे बदले में कुछ प्राप्त करने की  चाह न हो तो सोने पे सुहागा है, ऐसा जीवन का व्यवहार और इसका फल ज़रूर ज़रूर मिलेगा इस बात में कोई दो राय नहीं, कहने का मतलब है, नेकी कर जितनी कर सकता है जितना सामर्थ्य है।

और दिल से और कुँए में तालाब में नदी नाले या समुंदर में उसे फैंक और भूल जा , बाक़ी मुझे लगता हो करम आसमान में  उछाला जाता है, अब यहे कितनी शिद्दत से  घटा है यह देखने वाली बात है वो गुरुत्वाकर्षण के कारण धरती पर लौट के आता है, इसमे कोई संशय नहीं है।

इस धरती को देखो और उसकी भलाई देखो सूर्य के गिर्द घूम रही है वो भी दो गतियों में धरती  वालो  से आपने घूमने दिन रात  की मौसमौं की धरती के वृक्षों  की उनसे उत्पन्न  आक्सीजन की पानी की पहाड़ों की हरियाली की फल सब्ज़ियों की अनगिनत भलाई है, धरतीवासी को मिले सुखो की करोड़ों सालों से निरंतर लगातार भलाई कर रही तभी जीवन पनप रहा है आगे विस्तारित हो रहा है तो क्या यह प्रकृति धरती की भलाई नहीं है मनुष्य और यहाँ के प्राणियों के प्रति।

हमारा शरीर भी हमारा नहीं है यह हमारी माँ की भलाई ही है, उन्होंने न जाने कितने कष्ट होने के बावजूद आपको अपने शरीर में नौ महीनों हमे सम्भाला और हमे अभय दान दिया और फिर जन्म दिया पाला पोसा यह भी प्रकृति का सिस्टम भी है भलाई, बस इच्छा, बिना चाह के करते जाओ जो तुमसे बन सके वो बनाते जाओ, किसी का वुर मत सोचो, बस भलाई हो किसी, कुछ भी कार्य करो उसमे सिर्फ अपना हित मत देखो, दूसरों का भी हित देखो, यही प्रकृति का नियम है।

क्या यह प्रेरणा नहीं है भलाई के लिए , मेरे सोचे तो यह बहुत प्रेरणादायक है यह बताता है, कि निस्वार्थ भाव से अच्छा करे और जिसकी ओट में हम है, धरती माँ वो जैसे बदले में  कुछ नहीं चाहती और फिर हमारे साथ तो जुड़ा है, फल मिलेगा अब समझिए हमे भलाई करनी चाहिए और दूसरो को भी करने की प्रेरणा उत्साह देना चाहिए।

जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबह शाम, चलो अच्छे से चलो किसी का कुछ भला कर सकते हो तो ज़रूर करो और मान भी लेना हो सकता है,  उधर से बुराई आये बस आपके कर्म में शुद्ध बुद्धि और हृदय का प्रयोग हो फिर आपका अंतःकरण स्वच्छ है, निर्मल है भला हो सबका मेरे लेख से यदि कोई प्रभावित हो तो उनका बहुत आभार सब का बहुत आभार।

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दुख क्या है?

दुख क्या है?

दुख क्या है ? दुख क्यों पैदा होता है ? दुख के पैदा होने कारण क्या है ?
वैसे तो दुख जैसा कुछ नही है बस एक विचार है जिसको हमने बहुत बड़ा बनने का मौका दिया है इस दुख शब्द को हमने थोड़े भाव क्या दे दिए ये दुख तो हमारे सिर पर ही चढ़ने लग गया है और हमारे सिर पर ही मंडरा रहा है तथा जकड़ कर रखता है ताकि हम इससे छूट ही ना सके।

अपने जीवन पर हावी होने मौका दिया है और यह बस बढ़ता ही जाता है और सुख का आनंद क्षणभंगुर होता जाता है अब सुख का जो समय है वो छोटा हो गया क्योंकि हमने दुख को अधिक महत्व दे दिया है दुख को हम पाल पोष रहे है लेकिन सुख को बस एक पल का समझ कर जिये जा रहे है सोचते है यही कुछ पल है जी लो सुख के लेकिन यह कुछ पल हमने ही सीमित किये है इनको हमने ही सिकोड़ कर रख दिया है दुख अपना विस्तार कर रहा है और सुख सिकुड़ता ही जा रहा है।

दुख एक विचार है और यह विचारो का एक समूह बना लेता है इस मस्तिष्क में जिसके कारण दुख बढ़ता जाता है जो बार बार अलग तरीको से हमारे मन के द्वारा बुद्धि को बार बार नकारात्मक बिचारो की और बल दिलवाता है जिसके कारण है हम सिर्फ अपने भीतर उन विचारो का समावेश कर लेते है जिनसे हम अपना मानसिक संतुलन खो देते है

दुख को आमंत्रण क्यों दिया
जब दुख को आमंत्रण दिया है तो इस दुख को भी हँसना सिखाओ उसके साथ भी खेलो दुख है एक ऐसा रिश्तेदार है जिसकी खातिरदारी करने पर वो भाग जाता है यदि इन दुखो को देखकर ओर दुखी हुआ जाएगा तो फिर यह भी ओर समय तक रुक जाता है इसलिए ऐसा रिश्तेदार कहा मिलेगा जिसकी खातिरदारी करने से वो जल्दी चला जाए ऐसा रिश्तेदारों को तो गले से लगाना चाहिए।

दुख को अपनेे जीवन से कैसे निकाले ?
दुख मात्र एक विचार है जिसको आप बढ़ावा दे रहे है अनेकानेक सम्भवनायो के साथ जो वास्तव में कुछ भी ना थी।

दुख और सुख समानांतर ही बात है, लेकिन हम दुख का चिंतन ज्यादा लंबे समय तक करते है इसलिए दुख हमारे साथ चिपक जाता है और सुख बहुत काम समय के लिए हमारे साथ पाता है
यही कारण है हमारा जीवन ज्यादातर दुख से घिरा रहता है ,
और सुख से अछूता होता जा रहा है।

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