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प्रेम क्या है

प्रेम क्या है ? यह कैसे बयान कर पाउ , हर छोर हर ओर बस प्रेम ही प्रेम मैं पाउ

इस प्रेम को मेरे सारे शब्द और मेरी उम्र बीत जाए

चन्द लफ्जो में बयान क्या करू ?

लेकिन प्रेम का अर्थ पूरा मेरे शब्द भी ना कर पाए

फिर भी एक नाकाम कोशिश सी है कुछ बताने की,

एक नया रिश्ता बनाने की ये संबंध वो है

जिसमे हर एक रिश्ता नाता समा जाता है

मत भेद दिलो मेंं जो है वो दूर हो जाता है ,

असीम आसमान भी धरती की औढनी नजर आता है

जब कभी सतरंगी होता है आसमान

तब यही आसमान एक छोर से बाहे फैलाये दूसरे छोर को जाता है

प्रेम क्या है यह कैसे बयां में कर पाउ हर छोर पर सिर्फ प्रेम ही प्रेम मैं पाउ
प्रेम क्या है

तब देखो क्या मधुर संबंध धरती और आसमान का बन जाता है यह प्रेम है जो धरती और आसमान को एक करता हुआ नजर आता है

यह प्रेम है जो पूरे ब्रह्मांड को एक शब्द में बांधे नजर आता है

यह प्रेम वो है जो ना शब्दो से बयान हो पाता है

ना मौन से यह प्रेम तो शब्द और मौन दोनो के पार ले जाता है।

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सोच को बदलो

सोच को बदलो

क्या सोच है आपकी और वो सोच किस प्रकार से बढ़ती ही जा रही है क्या उस सोच को बदलने की आवश्यकता है ?
एक बात तो यह भी है की खुद को बदलना जरूरी है ? नही बदलते जी हम तो ऐसे ही रहेंगे करलो जी जो करना है हो जाने दो जो होना हमे कोई फर्क नही पड़ता किसी भी बात से जो हो रहा है होने , छोड़ो इन बातो मत सुनाओ ये बदलने वगैरह की बाते हमे नही पसंद है यह सब

हमारे जीवन में बहुत ही पुरानी पुरानी सोच दबी हुई है
जिन्हें हमे रूढ़िवादी विचार भी कह सकते है जिन्हें बाहर कर खत्म कर देना चाहिए क्योंकि पुराणों विचारों को छोड़कर आगे बढ़ना ही जीवन है नए नए विचारों को अपने जीवन में स्थान देना

अब यहाँ एक प्रश्न बनता की है की अगर आपकी सोच दबी है तो क्या फर्क पड़ता है दबी रहने दो उनसे हमे क्या करना ?

जिसके कारण हमारा जीवन अस्त व्यस्त सा हो रहा है और हम उस सोच को अब तक पकड़े हुए है और छोड़ ही नही पा रहे है क्या ये सोच आसानी से छूट सकती है या ये सोच ही हमारी आदत बन चुकी है। पुराने विचारो को छोड़ दो इन पुरानी रूढ़ीवादी सोच को छोड़ दो, और अपनी सोच को बदलो
पुरानी सोच से पीछे हट जाओ , दुसरो के विचारो में अपना जीवन व्यर्थ ना करे किसी के द्वारा गए तर्कों के ऊपर ही अपना जीवन स्थापित ना करो नए विचारो को स्थान दो जन्म दो और उन्हें ही जीवन के लिए आगे बढ़ाओ उपयोग में लाओ।

सोच को बादलों जिंदगी जीने का नजरिया बदल जाएगा”

आपकी सोच आपके विचार भिन्न है, अपने जीवन को खुद ही समझो जानो , खोजो, अपने अनुभव में लाओ दूसरे के अनुभव आपकी यात्रा में सहायक हो सकते है परंतु अंतिम छोर नही अपने शब्दो का अर्थ एहसास तो आप स्वयम ही पाओगे और जान जाओगे किसी और का एहसास आपका एहसास कैसे हो सकता है ??

आपको आपके अनुभव में लाना होगा हम बहुत जल्दी भावुक हो जाते है, क्रोधित हो जाते है
शब्दो को जोड़ना-तोड़ना मरोड़ना और उनको समझना होगा उन शब्दों को हमे जानना होगा हमारे शब्द का क्या अर्थ है? इस जीवन का अर्थ हमे यदि जानना है तो पहले स्वयम को जानना होगा, और स्वयम को जानने का मतलब हम सभी मानवीय किर्यायों को जानना चाह रहे है, क्योंकि मैं मैं नही हूं मुझमे मैं का अर्थ जो सबसे है सिर्फ मैं से नही हम किसी ना किसी रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए है हमारे शब्द हमारी सोच, विचार हमारे एहसास हमारी भावनाएं एक दूसरे से किसी ना किसी प्रकार से जुड़ी हुई है इसलिए स्वयम को मैं नही मानो “हम समझो” पूरी पृकृति की रचना संरचना पालन,पोषण, अंत सभी चीज़े एक साथ एक दूसरे से जुड़ी हुई है।

मैं लिख रहा हूँ

मैं लिख रहा हूँ तुम्हारे लिए ही लिख रहा हूं, फिर भी लगता है, कि कही दूर हो मुझसे तुम आज के मेरे शब्दों पर गौर नही तुम्हारा, मैं हो गया हूं, तुम्हारी इनायत का आज मोहताज हो गया हूँ , क्या तुम एक झलक मुझे दिखलाओगी ? क्या तुम कुछ करीब आओगी ?

शब्दों मे हरकत

आज शब्दों में कुछ हरकत होने को है।

लगता है जिंदगी बस अब उस पार होने को है।

यहाँ था मैं सिर्फ तुम में होने के लिए जब तू,तुम न रहा

तो जिंदगी ने जाना की अब मैं सिर्फ, मैं होने को है।

मुझमे सिर्फ मैं रह जाये बाकी सब खो जाये ,

कुछ अब शेष नही मेरा किसी से द्रेष नही

इसलिए बाहरी यात्रा का समापन हो रहा

अब तो भीतर ही रुकना है बहार नहीं आना

किसी को पाने की कोई इच्छा नहीं,

किसी को छोड़ना नहीं बस अंदर ही बैठ जाना है,

बाहर नहीं खड़े होना

भीतर विराम है,बाहर सावधान होना है

भीतर मौन होना है, बाहर शब्दों में खोना है।

भीतर व्यस्त होना है, बाहर अस्त व्यस्त होना है,

बस यही शब्दों की हरकत है जो हो रही है मेरे भीतर उन शब्दों को कैसे में विराम दु।

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बेमतलब की बाते

बेमतलब की बाते
फालतू की बाते ये लौंडे चार करते है
ये चार लड़के साथ चले तो छिछोरे लगते है
चार लडकिया साथ चले तो अच्छी लगती है


चार बुजुर्ग साथ बैठ जाए तो
बचपन की बात याद करते है
नही तो बस ताश ये पीटते है
मोहल्ले की चार औरते मिल जाए तो बस चुगली
लगाती हुई थकती नही है


और इनकी बाते कभी खत्म होती नही है
बस बात करती हुई नजर आती है
बेमतलब की बाते जिनका
कोई सर पैर नही है


बस बात नही जैसे चुगली
करती हुई नजर आती है
जवान लड़की और लड़को को बोलती है
ये कर और वो मत कर बस
बिना बात के लेक्चर देती
हुई नजर आती है

और
ये ना जाने क्यों बेमतलब की
मतलब डांट बहुत लगाती है
ना कुछ सीखती है ना कुछ सिखाती है
सिर्फ सारा दिन चुगली लगाती है


ये बस बिना बात के बातेे और फिर
बात पे बात बनाती जाती है अब ना जाने
बात करने से कितना रस टपकता है


समझ नही आता बस ये तो
चारो घड़ी बात करती ही नजर आती है
अगर कोई बात करने के लिए नही मिले इनको तो सकपका ये जाती है अकेली बैठ नही ये औरते पाती है

जिंदगी

जिंदगी तेरे बिना कुछ ऐसी है
और कुछ वैसी है

जिंदगी और जब तू साथ है
जिंदगी और जब तू साथ है
तो लगता है कि कुछ है जिंदगी

हाल क्या बताऊँ ?
कुछ हाल ऐसा है कुछ हाल वैसा है
बस मसक्कत से भरी है जिंदगी

जब तू दूर जाती है तो रूठ जाती है
जिंदगी तू पास आती है
तो मुस्कुराती और खिलखिलाती भी खूब है
ये जिंदगी

गम ए छुपाये नहीं ये छुपता लगता है
बेमुरम्मद सी है जिंदगी
आंसुओ से आँखे भर भर जाती है
जब तू इन आँखों से दूर चली जाती है
चिरागे रोशन तू कर जाती है
जब तू फिर से पास आती है

ना जाने क्यों तेरे बिना ?
बेतहासा बेहाल सी है जिंदगी लगता है, कुछ फटेहाल सी है जिंदगी
लेकिन जब तू पास होती है
तो कमाल सी है जिंदगी
ना जाने क्या क्या करती धमाल सी है ये जिंदगी

इसलिए तू दूर जाना मत मुझे छोड़ कर
वरना लगेगी दुर्भर सी ये जिंदगी
अगर तू पास है तो हर हाल में मस्त है ये जिंदगी
तू साथ है इसलिए जबरदस्त भी है ये जिंदगी

तेरे बिना कुछ ऐसी है कुछ वैसी है जिंदगी

मुस्कुराहट

परेशानिया खुद दम तोड़ देती है, जब वो मेरी मुस्कुराहट के सामने आती है।

परेशानिया खुद दम तोड़ देती है जब वो मेरी मुस्कुराहट के सामने आती है
मुस्कुराहट

मुस्कुराहट के सामने तो अच्छे अच्छे झुक जाते है, लक्ष्मी देवी भी वही आती है जहां मुस्कुराहट होती है, मुस्कुराने से बहुत सारी समस्याओ का हल हो जाता है, बहुत बड़ी बड़ी परेशानी खुद ही छोटी होने लगती है।

मुस्कुराहट में जादू है, एक अद्भुत शक्ति है, इस शक्ति का प्रयोग करो, बहुत बड़ी बड़ी लड़ाई टल जाती है जब इन होंठों पर मुस्कुराहट आती है।

हिम्मत कर राही

हिम्मत कर राही 

कोशिश करते रहो, कभी  न मानो  हार ।

हर मुश्किल से लड़ने को,

हरदम रहो तैयार।

अच्छा हो चाहे , चाहे हो बुरा समय ।

तुम्हें रहना होगा, सदा ही निर्भय।

हिम्मत की बागडोर को, कभी न छोड़ना बीच राह ।

आगे ही बढ़ते रहना, होना न गुमराह।

जिंदगी की डगर माना है नहीं आसान ।

आखिर तुम्हें बनानी है अपनी नई पहचान।

भीड़ से अलग हो जाने का , न करना कोई गुमान ।

मिलकर आगे बढ़ते रहना , छिपाना ना मुस्कान।

इस दुनिया की फुलवारी में, हैं खिले अनेकों  सुमन ।

पर तुम्हें बनाना है, गुलाब जैसा मन।

अपने होठों की हंसी को, रखना हमेशा बरकरार।

वक्त आकर ठहरेगा , तुम्हारे लिए इक बार।

Akme mittal

मेरा बचपन

आज एहसास हुआ है मुझको
की मेरा बचपन कही छूट गया है

जिंदगी से जिंदगी का नाता
थोड़ा और ज्यादा बस छूट गया है

सवाल बहुत किये अपने आपसे
जवाब यही था मेरा बचपन छूट गया है

आज फिर बारिश की बूंदों ने यह एहसास दिल दिया है
प्यार से भरा और प्यारा था बचपन जो कही छूट गया है

बिना डर के भीग जाने के लिए भाग जाया हम करते थे
आज मोबाइल रखा है जेब में इस बात से डरा हम करते है

घंटो मिट्टी में खेला हम करते थे घर जाना है
हम इस बात पर भी सोचा नही करते थे।

मेरा बचपन कही छूट गया मानो आज
जिंदगी से जिंदगी का नाता टूट गया

बचपन में बीमार होने में भी अच्छा लगता था
आज बीमार हो जाये तो तकलीफ सी लगती है

नंगे पांव मिलो चल आया करते थे तकलीफ नही थी
आज घर में चप्पल नही उतरती ये तकलीफ सी है

सोना चांदी या लोहा

सोना चांदी या लोहा —- एक बार एक पूर्ण संत सत्संग में बता रहे थे कि मानव जन्म दुर्लभ है चौरासी लाख योनियों को पार करके मिलता है। तभी किसी व्यक्ति ने प्रश्न किया —-
महात्मा जी पर हमने तो सुना है कि कई बार मनुष्य का पुनर्जन्म होता है और उसे सब याद रहता है तो समझाएं ऐसा कैसे होता है। क्या यह सत्य है.

महात्मा जी– आपकी बात भी सत्य है ऐसा भी होता है क्योंकि
कबहु करि करूणा नर देहि
दाँत ईस बिनु  हेतु  स्नेही
ईश्वर बिना किसी कारण जीव पर कृपा करते हैं क्योंकि चौरासी लाख योनियों में जीव नया कर्म नहीं कर सकता। ईश्वर प्रेम वश कृपा कर दोबारा मानव तन प्रदान करते हैं परन्तु जीव के भावानुसार
व्यक्ति–“देवी देवता कैसे बनते हैं क्या उनके भी कर्म होते हैं या,,,,
महात्मा जी– मानव के पुण्य कर्म ही देवी देवता के लोक भी ले जाते हैं।
मानव चाहे तो दानव बन जाए चाहे तो देवता बन जाए और चाहे तो मोक्ष और मुक्ति पा ले
व्यक्ति– कौन सी योनि उत्तम है देवी देवता की या मानव की
महात्मा जी– मानव योनि लोहे के समान है और देवता योनि चाँदी के समान है। आप बताओ किसका मूल्य और सौंदर्य अधिक होगा
व्यक्ति– चाँदी का।
महात्मा जी– ठीक ! पर लोहे का मूल्य और सौंदर्य कम है चाँदी से पर यदि लोहा पारस मणि का स्पर्श कर ले तो वह सोना बन जाता है और उसका मूल्य और सौंदर्य चाँदी से अधिक हो जाएगा।
मानव यदि पूर्ण संत के सानिध्य में चला जाए तो वह सोना बन जाता है।
और चाँदी वैसी ही रहती है
मानव योनि एक ऐसी योनि है जो मुक्ति का द्वार है।
हर व्यक्ति की सोच पर निर्भर करता है कि वो कोन सा मार्ग चुनता है।
व्यक्ति– अगर पूर्ण सन्त के सानिध्य से ही सोना बन सकते हैं तो फ़िर सभी मानव योनि प्राप्त जीव सोना क्यों नहीं बन जाते हैं
महात्मा जी– क्योंकि सभी पूर्ण सन्त के शरण में नहीं जाते हैं।
व्यक्ति– ऐसा क्यों
महात्मा जी– क्योंकि कई लोग तो सन्त के पास जाना पसंद नहीं करते हैं तो कई लोग ग़लत गुरु के हाथों में पड़ जाते हैं और बचते हैं कुछ लोग तो उनमें से वे लोग पूर्ण सन्त के शरण में जाते हैं।
व्यक्ति– ग़लत सन्त के शरण में जाते हैं तो ऐसा क्यों
महात्मा जी– क्योंकि उन्हें अपने पूर्व सन्तों के वचनों पर विश्वास नहीं होता है अपने धार्मिक-ग्रन्थों के आधार पर जानकारी नहीं होती है या फ़िर जानकर भी अंधे की तरह अपनी श्रद्धा और भक्ति को लुटाते हैं और अधर्मी-पाखंडी लूटते हैं।
व्यक्ति– महात्मा जी ! कृपया कर हमें पूर्ण सन्त की कोई पहचान बताएं ताकि हम भी अपने मानव जन्म को सोना बनाकर सफ़ल कर सकें।


महात्मा जी– गुरु कई प्रकार के होते हैं। तंत्र गुरु तो मन्त्र गुरु तो बाहरी ज्ञान प्रदायक गुरु, शस्त्र गुरु तो शास्त्र गुरु लेकिन इन सब के अलावा भी एक गुरु होते हैं जिन्हें पूर्ण सन्त की संज्ञा दी गई है। पूर्ण सन्त की संज्ञा इसलिए दिए हैं क्योंकि पूर्ण परमात्मा से जुड़े हुए होते हैं। वे पूर्ण परमात्मा को स्वयं देखे हुए होते हैं और केवल उनमें ही सामर्थ्य होता है कि चाहे कैसा भी मानव प्राणी हो चाहे उसमे पात्रता हो या नहीं उसका मानव जन्म ही काफ़ी है परमात्मा के दर्शन के लिए और पूर्ण सन्त वहीं करवाते हैं। सभी धार्मिक-ग्रन्थों में और महापुरुषों ने यहीं पहचान बताया है और चाहे जो गुरु के शरण में चले जाएं लेकिन जब तक पूर्ण सन्त के शरण में नहीं गए तब तक सोना बनना असम्भव है।
व्यक्ति– क्या आप हमें परमात्मा के दर्शन करा सकते हैं महात्मा जी
महात्मा जी ने उस जिज्ञासु को उसके भीतर ही परमात्मा का दर्शन करवा दिया। और वो जिज्ञासु भी अपने भीतर दर्शन कर धन्य-धन्य हो गया।


    लोहा हो या चांदी या सोना लेकिन मानव जन्म पाकर ही मानव को निर्णय लेना पड़ता है कि उसे क्या बनने की चाह है। मानव जन्म मिला है सोना बनने के लिए लेकिन ये पूर्णसंत के शरण में जाने के बाद ही होगा लेकिन आज कलयुग में इतने सारे गुरु हो गए हैं कि सोना बोलकर पीतल थमा देते हैं और अज्ञानी मानव थाम भी लेते हैं क्योंकि उनके पास पहचान नहीं होता है। इसलिए आप सभी से प्रार्थना है कि जब भी पूर्ण सन्त धारण करने जाएं तो धार्मिक-ग्रन्थों के आधार पर जाएं।
मानव जन्म आपका है अब आपको निर्णय लेना है कि आपको क्या बनना है लोहा या चांदी या सोना
                                           
अनुज अवस्थी

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