प्रेम क्या है ? यह कैसे बयान कर पाउ , हर छोर हर ओर बस प्रेम ही प्रेम मैं पाउ
इस प्रेम को मेरे सारे शब्द और मेरी उम्र बीत जाए
चन्द लफ्जो में बयान क्या करू ?
लेकिन प्रेम का अर्थ पूरा मेरे शब्द भी ना कर पाए
फिर भी एक नाकाम कोशिश सी है कुछ बताने की,
एक नया रिश्ता बनाने की ये संबंध वो है
जिसमे हर एक रिश्ता नाता समा जाता है
मत भेद दिलो मेंं जो है वो दूर हो जाता है ,
असीम आसमान भी धरती की औढनी नजर आता है
जब कभी सतरंगी होता है आसमान
तब यही आसमान एक छोर से बाहे फैलाये दूसरे छोर को जाता है
तब देखो क्या मधुर संबंध धरती और आसमान का बन जाता है यह प्रेम है जो धरती और आसमान को एक करता हुआ नजर आता है
यह प्रेम है जो पूरे ब्रह्मांड को एक शब्द में बांधे नजर आता है
यह प्रेम वो है जो ना शब्दो से बयान हो पाता है
ना मौन से यह प्रेम तो शब्द और मौन दोनो के पार ले जाता है।
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