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मुस्कुराओ

मुस्कुराओ ….क्युकी दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है, जो मुसकुराता है वो दुनिया को बदलने की हिम्मत रखता है, उसका विश्वास अपनी मुस्कुराहट से ओर बढ़ जाता है, वो मुरझाए हुए चेहरों को फिर से नई जान देता है, उनके भीतर नई ऊर्जा भर देता है।

मुस्कुराओ क्युकी दुनिए का हर आदमी कहिले फूलों ओर कहिले चेहरे को पसंद करता है।
मुस्कुराओ

मुसकुराना मानो दुनिया का खुद से ही बदल जाना है, मुसकुराना एक कला है भीतर चाहे कितने ही दुखी दुखी लेकिन आपके होंठों पर मुस्कुराहट दूसरों के चेहरों पर भी मुस्कुराहट भर देता है।

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खुशियों का फैलाना

जीवन सुंदर इसमें कोई शक शुभा नहीं ।
मिली हुई खुशियों का फैलाना ही सही ॥
ख़ुशियों में होती सुगंध ओर आभा अजब ।
जीवन एक बार का सोदा हे बड़ा ही गजब

जीवन के सुंदरता को कैसे व्यक्त करूँ,
कौनसी बातें इसमें छुपी हैं, कौनसी हैं परचम,
खुशियों का फैलाना, विश्वास जगाना,
कैसे उन एहसासों को सजाऊं, जो छुए अजनबी जगह।

खुशियाँ होती हैं सुगंधित और चमकीली,
मन को मोह लेती हैं वे अद्भुत ख्वाहिशें।
जीवन के रंगों में वे भरती हैं माया,
देती हैं प्यार की मिठास, हर रोज़ नया सपना।

खुशियों की आभा में बसती हैं खुशहाली,
जागती हैं हमारी आत्मा को नई उमंगें।
जीवन के संगीत में गुनगुनाती हैं स्वर,
छाती में भरती हैं खुदरा, नवीनता की हवा।

खुशियों से रंगी हुई दुनिया है अनोखी,
जीवन के विभिन्न पहलुओं में छिपी हैं महिमा।
बस खोजना हैं उन आंधीयों को जो छुए आकाश,
जीवन के सुंदरता को अपने अंतर में समाए।

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पहली बार

वो जो तुमसे पहली बार मिला था मैं, आज भी उस बात का एहसास है मुझे बस तुमसे मिलने की चाहत आज भी बहुत है, इकरार ऐ जिंदगी का एहसास आज भी बहुत है, कुछ दूरिया कुछ फासले कम हुए है शायद फिर भी लगता है ये दूरिया, ये फासले है बहुत।

इन दूरियों को मिटाने की कोशिश में खुद को मिटा दु तो गम नहीं, बस तेरी चाहत, तेरी मोहब्बत कम हुई तो ये गम बहुत…..

जीवन का रेगिस्तान

तकलीफ़े मुसीबतें जीवन का रेगिस्तान
आमना सामना पार पाना कला महान ।
कलाकार जिसके पास सुंदर विचार ….
अपने विचारो को ही देता रहता आकार ।

जो कुछ चल रहा भीतर उसे कर्म से उतारे …
कर्म शक्ति से धरती पे उतर सकते तारे ।
जितना हो सके जीवन को स्वीकारे….
तकलीफ़ों से स्वय को दूसरो को उबारे ।

विचार शक्ति का कर्म शक्ति से समन्वय ….
सही जीवन की दिशा का उचित होगा व्यय ।
अब प्रश्न वो शक्ति होवे सकारात्मक…..
नहीं तो बहुत नुक़सानदायक विध्वंसक ।

सकारात्मकता की सदा ही विजय…..
सच्चा पथ न उपजे लेश मात्र भी संशय ।
सत्य की विजय ही जीवन का आधार ….
फैलाए खेती करे विस्तृत करे यह विचार ।

अपने विचारों को ही देता रहता आकार,
शब्दों के साथ जगमगाता नये आकार।

मन की गहराई से उठते हैं ये धुन,
विचारों की धारा बनकर बहती हर सुन।

जैसे सागर में लहरें उठती बदलती हैं,
वैसे ही विचार बदलते रहते हैं बैर।

चिंताओं के बादल घने छाती बना लेते हैं,
फिर विचारों की बूँदें बरसा देते हैं।

कोई गीत गाते हैं, कोई कविता लिखते हैं,
विचारों के भंवर में खुद को खो देते हैं।

हर एक अक्षर बयां करता है एक कहानी,
विचारों की उड़ान को देता है पहचानी।

सोचों के आकार में दुनिया बदलती है,
विचारों की लहरों में जीवन समाया जाता है।

इसलिए रहता रहे आपका विचार बहुमूल्य,
ये ही आपकी पहचान, ये ही आपकी कृति।

दिन की उम्र 24 घंटे

दिन आता है , दिन चला जाता है इस दिन की उम्र 24 घंटे ही है लेकिन ये संपूर्ण संसार को कार्यरत होने के लिए बाध्य कर देते है कुछ न करने के लिए , क्या आपके जीवन में भी स्वयं को बाध्य करने के लिए कोई नियम है ?  उम्र कितनी भी हो परंतु कार्य बड़ा होना चाहिए।

दिन की उम्र 24 घंटे
समय

हमे अपनी उम्र से बड़ा कार्य करने के लिए सोचना चाहिए, हम सभी के पास समय की एकदम बराबर मात्रा होती है हर दिन लेकिन हम उस समय का सदुपयोग किस तरह से करते है यह बात बहुत म्हटवपूर्ण है, यदि हम समय की हानी करते रहे तो समय कब समाप्त हो जाएगा हमे पता नहीं चलेगा ओर हमारे पास कुछ नहीं होगा, सुख ओर दुख भी समय की सीमा में है, इनका आना जाना भी समाए के अनुसार ही होता है। इसलिए हमे हमेशा सोच समझकर ही अपने समय का इस्तेमाल करना चाहिए।

हमारे दिन की उम्र तो 24 घंटे ही है लेकिन इन 24 घंटों का इस्तेमाल आपको ही करना है, आप इन 24 घंटों का इस्तेमाल कहाँ करेंगे यह निर्णय भी आपका ही होता है, कोई ओर इस समय का निर्णय नहीं ले रहा।

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फितरत बदलना

फितरत बदलना आसान नहीं है, किसी की फ़ितरत नहीं बदल सकते दोस्तों जब भी भैस पुछ उठाएगी तो गोबर करेगी गोबर क्या समझे, न उलझें, सिर्फ़ और सिर्फ़ समझे, अब बात गोबर की उससे उपले बनते है, बेहतरीन खाद बनती है, गोबर गैस का प्लांट चलता है और पहले गोबर से घर में लेप लगाते थे, दीवारो पे लगाते थे गर्मी में ठंडा और ठंडी में गर्म का अहसास होता था।

और अब तो न जाने क्या क्या समान बनाया जा रहा है, गोबर से कागज मूर्तियाँ लिफ़ाफ़े न जाने अनगिनत समान बना रहे है, लेकिन बदबू में अटक गये तो वहाँ भी फसे रहने की संभावना हे।

तो कृपा करके शुरुआत में न जाये पूरा भाव पढ़े फिर आगे की बात करे, समझदार तो गोबर में भी अपना फ़ायदा ढूँढ लेंगे, ढूँढ लिया है, आगे-आगे और आयेंगे और आने चाहिए जो इसमें अच्छे व्यापार की सम्भावना को बड़ा करे विस्तृत करे, अब बस हमे फितरत बदलना है।

भूल जाता हूँ

भूल जाता हूँ भटक जाता हूँ , शायद बेहोशी के आलं में भी खो जाता हूँ,अपनी ही चुनी हुई राहों से फिर ठोकर खाकर होश में आता हूँ संभाल जाता हूँ चलना,दौड़ना,फिर से सिख जल्द वापस आ जाता हूँ फिर अपनी पसंदीदा राहों पर

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