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थामिए अच्छे से

थामिए अच्छे से हाथों को , शिकायतों का छोड़िए दामन …
सम्भालिए किसी के जीवन को, जगाने के लिए हे तो सही “अपनापन “।
सम्भालने के लिए दे प्रोत्साहन, न कि करे उसकी आलोचना….
जीवन की सीख जीवन को खुल के हे बाँटना ही उसकी अर्चना ॥

अपने कार्य में ध्यान देकर लाए दक्षता ओर कुशलता ….
जीवन होगा सुगंधित खुशहाल , हिलोरे मारेगी अपार सफलता ।
स्वभाव दक्षता , कुशलता संग सरलता का घालमेल…
जीवन को जीये ऐसे ये नहीं प्रतियोगता बस एक खेल ॥

थामिए अच्छे से हाथों को, शिकायतों का छोड़िए दामन…
सम्भालिए किसी के जीवन को, जगाने के लिए हे तो सही “अपनापन”।

सम्भालने के लिए दे प्रोत्साहन, न कि करे उसकी आलोचना…
जीवन की बाधाओं से न डरें, अपनी राह खुद चुनें बिना रुके।

अच्छाई की किरणें फैलाएं, दूसरों को आशा की सुगंध दें,
प्रेम और समझदारी से बांधें, जीवन के रंगों को झलकाएं।

दूसरों की गलतियों पर मत व्याकुल हों,
सहानुभूति और समबन्ध को ऊंचा रखें निकृष्टता से।
सबको सम्मान और प्यार दें, खुशहाली की राह पर सदा चलें।

अपनापन का एहसास जगाएं, हर दिन दूसरों को ख़ुश बनाएं,
आपसी मिलन से जीवन को सजाएं, आदर और स्नेह से गहराएं।

जीवन की राहों में बनाएं सदैव नयी पहचान,
खुशियों की बौछार में बढ़ाएं प्रेम की अमृत बारिश।
अपनापन के रंगों में रंग जाएं, आपसी में जुड़ जाएं,
यही है वो सच्चा संबंध, जो देता है जीवन को आनंद अधिक।

यह भी पढे: संबंध नहीं टूटते, संबंध जो सुंदर हो, जीवन की परिस्थितिया, मालूम नहीं,

प्रति दिन चिन्ह

प्रति दिन चिन्ह वो मिले नव जीवन के , वो ध्वनि उसका उद्घोष…..
तो भूले कल की बुरी यादें , ले आनंद आज जगे अंग अंग जोश ।
जीवन निकला वो अपनी यात्रा पे बिना रुके बिना थके….
योगदान करे दे साथ जीवन तो जीवन फल सही पके ॥

रात्रि की निद्रा प्रतिदिन उदाहरण मृत्यु का वो छोटा प्रारूप….
सुबह उठे दे धन्यवाद जीवन का मिलता नव जन्म स्वरूप ।
भूले की ग़लतियाँ उठे नए सिरे से , करे बेहतर शुरुआत ….
होगा सब विशेष ,होगी नए नए सुंदर विकल्पों से मुलाक़ात॥

प्रति दिन चिन्ह वो मिले नव जीवन के,
वो ध्वनि उसका उद्घोष।
तो भूले कल की बुरी यादें,
ले आनंद आज जगे अंग अंग जोश।

जीवन चलता रहे बिना रुके बिना थके,
योगदान करे दे साथ जीवन,
तो जीवन फल सही पके॥

यह कविता जीवन की महत्वपूर्णता को व्यक्त करती है। हर दिन नए जीवन के चिन्ह और उसकी उद्घोष ध्वनि को प्राप्त करें। कल की बुरी यादें भूल जाएं और आज के आनंद को हर अंग में जगाएं। जीवन बिना रुके और थके आगे बढ़ता रहे और हम उसे योगदान करके अपने साथ ले जाएं, तो जीवन के फल सही समय पर पकेंगे।

मस्तिष्क के द्वारा

जो भी हो रहा वो सब मस्तिष्क द्वारा उत्पन्न परछाई …..
सब कुछ बदला जा सकता हे मस्तिष्क के द्वारा सब बाँते ऊसमे समाई ।
मस्तिष्क का सकारात्मक भाव …..
हमेशा सुख और दुखों का अभाव ।

मस्तिष्क में सुख और दुख के लिए समान भाव….
दोनों नही सदा रहने वाले दोनों से ऊपर उठना व्यक्ति का हो स्वभाव ।
हर जगह मस्तिष्क द्वारा चालित कार्यक्रम चल रहे ….
चालाक व्यक्ति वहाँ अपना राज हमेशा रहेगा सोच के चला रहे ।

जो कुछ हो रहा वो मस्तिष्क के द्वारा उत्पन्न उसकी छाया….
सब ओर धुँआ धुँआ हे सब इस प्रकृति की शक्ति उसकी माया ।

जीवन के कठिनाइयों में, मस्तिष्क की छाप,
उत्पन्न करती है मस्तिष्क से रचित ये कविता।

सब कुछ जो हो रहा है, उसकी बुनियाद है मस्तिष्क,
जहां सभी विचार आकर एकत्र होते हैं समाई।

चाहे चुनौतियों का सामना हो, या विपरीत परिस्थिति,
सकारात्मक भाव से भरा होता है मस्तिष्क का आकार।

मस्तिष्क की शक्ति से ही होता है सब कुछ बदला,
विचारों की ऊर्जा द्वारा जीवन को मिलती उम्मीद।

जब आत्मविश्वास से भरा होता है मस्तिष्क का विश्वास,
तो हर कठिनाई को हम पार कर पाते हैं आसानी से।

मस्तिष्क की परछाई से ही प्रेरित होती है ये कविता,
जीवन को बदलने की शक्ति देती है ये अद्भुत विचार।

इसलिए, जब भी आपको लगे कि हर बात हार गई है,
याद रखें मस्तिष्क की शक्ति है हमारी आधारभूत ताकत।

स्वयं को समय दे

स्वयं को समय दे …
जीवन क्षण क्षण हो रहा हे व्यय ।
जो जो करना हे उसका करे चिंतन …
उसपर फिर करे कर्मों से मनन ॥

स्वयं पे भी दे ध्यान….
स्वयं आप धुरी ले संज्ञान
आप प्रसन्न जो जग प्रसन्न …
ये अर्जित कमाई आपका धन ॥

स्वयं से करे संवाद…
पहचाने मन के विवाद ।
जीवन को मिले सही अर्थ …
बने हम इतने समर्थ ॥

स्वयं की करे सुरक्षा …
आपके चाहने वालों की यही मंशा ।
आपके चाहने वाले चाहते रहे सुरक्षित….
ये विचार मेरे मित्रों को समर्पित ॥

स्वयं को भी दे समय,
जीवन क्षण-क्षण हो रहा है व्यय।
जो-जो करना है, उसका करे चिंतन,
मन की ऊर्जा को जगाएं जगमगाते किनारे।

आओ, निर्णय का सागर तैरें,
ख्वाबों की उड़ान को पकड़ें,
आपातित्व की धारा में हर क्षण निकालें,
अपने अस्तित्व को नयी राह दिखाएं।

चिंता के बादलों को रोके,
आनंद की बूंदें बहाएं,
खुशियों के गीत गाएं,
भाग्य की रोशनी के साथ चले जाएं।

समय की पालकी में बैठें,
चरणों में जीवन की गाथा लिखें,
प्रतिभा के पंखों से ऊंचाई छू जाएं,
अपने सपनों को साकार करें और मनोरंजन करें।

जीवन क्षण क्षण हो रहा है व्यय,
इसे महत्वपूर्ण बनाएं और समय का सम्मान करें।
स्वयं को भी दे समय,
और खुद को नयी ऊंचाइयों तक ले जाएं।

आपका हृदय

जाईये वहाँ जहाँ आपका हृदय जाना चाहता ……
वहाँ वो होता प्रसन्न और स्वस्थ खूब खिलखिलाता ।
हृदय का सिंहासन मस्तिष्क से नीचे….
असली संपदा तो छिपी हृदय में पीछे ।

हृदय में बसते प्राण सब अंगों शिराओ को रक्त का करता संचार…..
प्रसन्न इसको रखना ,ना स्वय का किसी का तुम दुखाना उचित आधार ।
सब ह्रदयों के दृष्टिकोण का हो विकास …..
फिर धरती पे उत्सव उल्लास ही उल्लास ।

कीजे इसका सतत प्रयास , समय दीजे इस प्रयास ।

जाईये वहाँ जहाँ आपका हृदय जाना चाहता…
वहाँ वो होता प्रसन्न और स्वस्थ खूब खिलखिलाता।
हृदय का सिंहासन मस्तिष्क से नीचे…
जहाँ प्रेम और स्नेह सदैव प्रबल रहे।

वहाँ जहाँ सौंदर्य सदैव विराजमान हो,
सुख-दुःख के साथ आपसी सम्बन्ध गहराएं।
हंसी और आनंद की झलकें आपके चेहरे पर हों,
ज्योति के समान प्रकाशित रहें आपके मन में।

जाईये वहाँ जहाँ आप खुलकर हंसें,
खुशियों के संग संगीत गाएं और नाचें।
जहाँ आपकी आत्मा स्वतंत्रता का आनंद धरे,
और जीवन के रंगों में रंग भरें।

हाथों की छांव में सुरभि खिलें फूल,
दिल की गहराइयों में बसे खुशियों के मौल।
जाईये वहाँ जहाँ आपकी प्रतिभा चमके,
और सपनों के पंखों पर आप उड़ें।

हृदय का सिंहासन मस्तिष्क से ऊपर रखें,
जीवन की उच्चताओं को प्राप्त करें।
जाईये वहाँ जहाँ आपकी आत्मा मधुर हो,
और सुख का संगीत हर दिन सदैव बजे।

वहाँ जहाँ आपका हृदय जाना चाहता,
सीमाओं से परे खुशियों का आदान प्रदान करे।
चलिए, आओ वहाँ जहाँ आपकी प्रेम और स्नेह है,
और जीवन की हर दिन आपके लिए नया आरंभ है।

व्यवहार कैसा हो

व्यवहार कैसा हो ? यह बात मैं भूल जाता हूँ, मेरे जीवन का नियम सही हो सभी बराबर है, सबको आदर ओर सम्मान की दृष्टि से ही देखू

भूल जाता हूँ मैं कि दूसरे के
साथ वही व्यवहार जो चाहते
स्वयं के साथ ….
यही नियम सही जीवन का
सब बराबर हे यही
सच्चा परमार्थ ।

कुछ ज़्यादा पाने के
लोभ रोग के रहते
लगी बीमारियाँ..
सम्यक् दृष्टि
के निरंतर प्रयोग
से दूर होंगी दुशवारियाँ ॥

व्यवहार कैसा हो ? भूलता हूँ मैं कभी-कभी,
दूसरे के साथ वही व्यवहार,
जो चाहता स्वयं के साथ।

सोचता हूँ अक्सर,
मेरे बारे में ही हो सब,
सबका वही नियम, सबका वही लब।

पर क्या सच है यही,
जीवन का सही नियम?
क्या सबके साथी हैं,
हमारे भावों के नियम?

जब तक न पहचानें,
दूसरों के मन की बातें,
हम रहेंगे अनजान,
और भूलेंगे अपने अपने प्राण।

व्यवहार में एकता,
सच्चे मित्रता का आदान,
यही है सच्ची जीवन की,
सबके बीच सम्बन्ध की पहचान।

तो जगाएं एकता की आग,
प्यार से बांधें धरती को राख,
दूसरे के साथ जीना सीखें,
स्वयं को खोजें, नया व्यवहार जीने।

सबके बीच सम्प्रेम का निवास,
यही है सच्ची खुशियों की उपास,
भूल जाएं अपने अहंकार को,
और जीने लगें सबके साथ नये अंदाज़ में।

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छोड़ दो ख्याल

के अब उन खयालो को पनाह मत दो
हमे तुमसे दूर हो जाने मत दो
के अब ये रुठ जाने का
ख्याल छोड़ दो

शायद
अब ये मुमकिन ना होगा तुम्हारा
मेरी बाहों से दूर जाना
इसलिए
दूरियां मिट जाने दो
पास अब

हमे आने दो
ना तड़पाओ, रुलाओ ,
सताओ अब
बस मुक्कमल हो जाने दो

ख्वाब जिस्म और जान को
एक हो जाने का
छोड़ दो ख्याल
दूर हो जाने का अब हमे पास आने दो.

इस मोहब्बत को बेइंतहा हो जाने दो , दो जिस्म एक जान हो जाने दो

यह भी पढे: रात के ख्याल, तेरा ख्याल, बहुत सारा ख्याल, मेरे ख्यालों में ही, तुम्हारा ख्याल,

हर रोज बेहतर होना है

हर रोज बेहतर होना है, उस बेहतर होने की तैयारी करनी है

हर रोज बेहतर होने के लिए कुछ न कुछ करना है

एक नई चीज रोज करनी है

कुछ नया सीखना है,

कुछ अलग करने की चाह इस मन में है, जो फिर से करना है

जिस चीज को आप बचपन में बड़े मन से करते है उसको फिर से करो

जो आप सीखना चाहते थे बचपन में उसे फिर से सीखो

कुछ दुबारा करो , कुछ नया करो

कुछ पहली बार करो, तो कुछ बार बार करो

रोज किताबे पढ़ो खुद को बेहतर करने के लिए

स्वयं को सुधारों आने वाले कल के लिए, अपने शब्दों को सुधारों 

हर रोज बेहतर होना है।

यह भी पढे: लोग बदल जाते है, कल की तैयारी, तैयारी करो, नए साल की तैयारी, मंजिल की तरफ,

ए मुसाफिर

ए मुसाफिर
वजह बेवजह तू मुस्कुराता चल
वजह बेवजह तू मुसकुराता चल
बेखबर राहो पर तू आगे निकल

तुझे मिलेगी चुनौतियां
उन चुनौतियों पर कदम बढ़ाता चल
तू चल , तू चल , तू चल

ना थकना
ना रुकना
ना घबराना
ना हार मान जाना तू
बन अपना साथी तू
खुद से खुद में जाकर तू मिल

भूत , भविष्य की फिकर छोड़ दे
वर्तमान के साथ जी तू हर पल
ए मुसाफिर तू कदम बढ़त चल

हर डगर, हर मंजिल पर न तू रुक
बस अपनी मंजिल पर नजर रख कर
बढ़ता तू आगे चल , बढ़त तू आगे चल

यह भी पढे: ख्वाबों की डोर, समय का अंधेरा, कही अटक गया मैं, हम संभलेंगे भी,

बीते हुए दिन

बीते हुए दिन
जिंदगी से जिंदगी कि कुछ मुलाकातें
जो अधूरी थी, शायद पूरी भी ना हो सकी
ओर कभी शायद पूरी अब हो भी ना सके

क्युकी
वो दब गई , दफन हो गई
उन बीते हुए दिनों में, उन बीते हुए दिनों में

जिनमें मैने की थी मैंने बहुत सारी नादानी
क्या उन नादानियों को फिर से याद करूं?

ऐसा क्या ख़ास है?
उन बीते हुए दिनों में,
जो मै फिर से जाऊ उन पुरानी यादों में,
बातो में ,
क्यों गुम हो जाऊ ?
क्या है ख़ास ?
है क्या ख़ास ?
नहीं पता , मुझे नहीं पता

लेकिन फिर भी ना जाने क्यों ?
ना जाने क्यों ?
वो बीते हुए दिन बहुत याद आते है
वो बीते हुए दिन याद आते है
लेकिन क्या करे वो तो बीते हुए दिन है
कुछ किया नहीं जा सकता
याद आते है , बताओ आते है ना
वो दिन

वहीं पुराने दिन जो तुम बिताए थे
उनमें तुम्हारा बचपन भी था , लड़कपन , जवानी , झगड़ा भी था।
कभी मासूमियत थी तो कभी धोखा था
तुम्हारे चेहरे पर

लेकिन कुछ था
पता नहीं क्या था
पता नहीं क्या था

लेकिन सभी मुझे कहते है वो कुछ खास था
क्युकी वो बिता हुआ एक पल
एक दिन
महीना, महीने , साल एक उम्र का पड़ाव था
जो बीत गया , वो बीत गया

फिर वो आ ना सका
फिर वो आ ना सका
बस अब उन दिनों की यादें है
जो बीत गए है

जो बन्द हो गए है डायरी में , पन्नों में , कलम की स्याही से
जिन्हे फिर से  ठीक भी नहीं किया जा सकता
उनको फिर से जिया भी नहीं जा सकता
(उन्मे सिर्फ पुरानी याडे है दबे हुए कुछ अरमान है )
उनमें सिर्फ दबी मुस्कुराहट ,
दबे आंसू , झलकता जाम
ओर धुंधली यांदे है
जिनको फिर से याद करने की कोशिश की जा सकती है

लेकिन जीवित नहीं किया जा सकता वो दिन ,
वो बीते हुए दिन मेरे भी नहीं है ,
खोए भी नहीं है सिर्फ जिंदा लाश की तरह दफन है,
उन्हें मै फिर से याद कर रहा हूं
क्युकी वो मेरी पुरानी यादे ही तो बन रह गई।

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