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इश्क मोहब्बत क्या है

इश्क मोहब्बत क्या है, कौन समझा सकता है,
दिल में उतर जाता है, फिर रूह को सताता है।

ये एक आग है जो जलती है बिना बुझने,
जब तेरे दीदार का ख्वाब मन में छाने।

इश्क की बारिश में जब दिल भीग जाता है,
हर सांस तेरे नाम पर ज़िंदगी बस बिताता है।

दर्द की गहराई में जब आँखें नम हो जाती हैं,
इश्क के रंग में जब दिल खुद को खो जाता हैं।

ये जुनून है जो दिल को भरमा देता है,
जिस्म को जला देता है, रूह को जला देता है।

इश्क मोहब्बत क्या है, जब बयां करने की ज़रूरत नहीं,
सिर्फ एहसासों को अपने दिल में बसाने की चाहत है।

इश्क मोहब्बत क्या है

इश्क मुहब्बत क्या है..?
मुझे नही मालूम…?
.
बस …..
.
तुम्हारी याद आती है..?
सीधी सी बात है

मेरी आँखों को पढ़

जुबां से कह नहीं सकता तुझे एहसास तो होगा,
मेरी आँखों को पढ़ लेना, मुझे तुम से मोहब्बत है।

जब तेरे आगे दिल थाम कर रुक जाता है,
वो लफ्ज जो जुबां से कह नहीं पाता है।

तेरे हर एक नजर को चुपके से चुराना है,
मेरे दिल की बातें जो छुपी हैं, सुनाना है।

जुबां से कह नहीं सकता, एहसास तो होगा तुझे,
मेरी आँखों की झलक से ये बात साफ होगी।

तेरे नज़दीक आकर मेरे दिल को बहला जाता है,
तेरे रूख को देखकर ये रूह मचला जाती है।

मोहब्बत की इस राह में जो हम चल रहे हैं,
जुबां से कह नहीं सकता, तू समझ जाएगी ये बात।

जो दिल के करीब हो, वो दिल की बातें समझता है,
तेरी आँखों में पढ़ लेना, ये अदा जानता है।

मेरी आँखों की तारीफ करने की कोशिश न कर,
क्योंकि वो जुबां से कह नहीं सकती, तो भी एहसास होगा।

मुझे तुम से मोहब्बत है, ये बात हमेशा रहेगी,
तेरी आँखों से पढ़ लेना, ये अदा याद रहेगी।

मेरी आँखों को पढ़ लेना
संजय गुप्ता शायरी

जुबां से कह नही सकता तुझे एहसास तो होगा
मेरी आँखों को पढ़ लेना मुझे तुम से मोहब्बत है

दर्द का दिखावा

दर्द का दिखावा करने की बात नहीं हमे,
शायरी के जरिए अपनी दिल की बात कहने की है फिजूल सी चाह।
ये शब्द बस एक जुबां का खेल है,
जो हमारे दिल के अंदर छुपे दर्द को बयां करता है खूबसूरती से।

जब रोया था दिल, तो शब्दों के आँसू बहाए,
जब जला था दिल, तो शायरी की रोशनी जगाए।
ये कलम हमारी खुद की आवाज़ है,
जो दर्द को सुनाती है अपनी जुबान से खामोशी से।

शायरी के रंग में रंगते हैं हम,
दिल की बातों को सुनाते हैं हम।
जब खो जाते हैं शब्दों में तबाही,
शायरी के जरिए उभरते हैं हम नयी मिशालों में।

दर्द का दिखावा नहीं होता हमारी शायरी में,
वो सच्चा दर्द हमारे गीतों में छिपा है।
जब तक शब्दों की रौशनी है ज़िंदगी की राहों में,
दर्द और शायरी का मेल हमारी पहचान बनी है।

दर्द का दिखावा
Shayri

हमे नहीं आता दर्द का दिखाना
बस अकेले रोते हैं और सो जाते हैं

जो मुहब्बत इज्जत

जो मुहब्बत इज्जत देकर सजाई जाती है,
यक़ीन मानिए वो हमेशा निभाई जाती है।

दिल में बसी उम्मीदों की रौशनी होती है,
प्यार की मिठास से ज़िंदगी सजाई जाती है।

जाने कितनी बार दिल को चोट पहुंची होगी,
पर मोहब्बत की राहों में चलाई जाती है।

धड़कनों की ताल पर ज़िंदगी की गाथा लिखी जाती है,
वफ़ा की मिसालें दिल को समझाई जाती है।

मुहब्बत का सिलसिला बेहतरीन होता है,
वफ़ादारी की कहानी सदा सुनाई जाती है।

जो मुहब्बत इज़्ज़त देती है और सजाती है,
उसे दिल से आप सदा प्यार निभाती है।

जो मुहब्बत इज्जत देकर सजाई जाती है
जो मोहब्बत इज्जत देकर सजाई जाती है

जो मुहब्बत इज्जत देकर सजाई जाती है ,
यक़ीन मानिए वो हमेशा निभाई जाती है…

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उनकी ना थी खता

उनकी ना थी खता, हम ही कुछ गलत,
समझ बैठे यारो, आँखों की चलती हुई हवा,
जब परछाईयाँ भी अलग हो गई थीं,
हमने उनको खो दिया था अपनी निगाहों से।

दिल में जो दरारें हो गई थीं,
वो कोई बात नहीं थी तुम्हें बताने की,
गलती हमारी थी, हमने नजर उठाने की,
जब चाहा था तुम्हें समझाने की।

आज भी उनकी याद आती है रातों में,
वो दिन जब हमने बातें की थीं कई,
पर एक गलती ने सब बिगाड़ दिया,
और उन्हें खो दिया हमने बहुत जल्दी।

क्या करें अब हम, बातें रह गईं अधूरी,
दिल में छेड़ी हुई यादें दर्द सह रही हैं,
बस यही सोचकर रह जाते हैं हम,
कि उनकी ना थी खता, हम ही कुछ गलत।

उनकी ना थी खता
उनकी न थी खता

उनकी न थी खता, हम ही कुछ गलत
समझ बैठे यारो….
वो मुहब्बत से बात करते थे, तो हम मुहब्बत
समझ बैठे ….

यह भी पढे: खता हो गई, ख्वाबों को जोड़ता हूँ, एक दूसरे के दर्द, इश्क की चर्चा, रात के ख्याल,

तलाश न करना

कभी शब्दों में तलाश न करना वजूद मेरा,
ज्यों की आवाज़ में छुपी है मेरी कहानियाँ।
मैं सदैव फूलों के रूप में खिलता हूँ,
खुद अपनी मुस्कान से गुलशन सजाता हूँ।

हर एक पंक्ति में छुपी है मेरी रूह की गहराई,
जैसे काव्य के स्वर्गीय आभूषण बनी है।
इस जगत के रंग और धुंध से परे,
मैं लहरों के संग अपनी विचारधारा लाता हूँ।

जब चांदनी रातों में चाँद तितलियों संग नाचता है,
मैं सदैव अपने सपनों को सच में बदलता हूँ।
मेरे शब्द नहीं, मेरे भाव ही मेरी उपस्थिति हैं,
इस शायर की दुनिया में अक्सर इसीलिए बसता हूँ।

तो खोजें न शब्दों का मेरे मित्र, तलाश मेरी आत्मा की,
मेरी कविताओं में छिपा है एक अनमोल रहस्य।
सदैव जीवित रहता हूँ मैं अपनी शायरी के रूप में,
तो लिखें और पढ़ें मेरे वचन, और खुद को पाता हूँ।

कभी शब्दों में तलाश न करना वजूद मेरा
कभी शब्दों में तलाश न करना वजूद मेरा

कभी शब्दो में तलाश ना करना वज़ूद मेरा,
मैं उतना लिख नहीं पाता जितना तुम्हें चाहता हूँ..

यह भी पढे: बस कोशिश है, अधिक नहीं चाहिए, मेरी आवारगी में, मन यू ही भागता,

सोचकर बाजार गया

सोचकर बाजार गया था अपने कुछ अश्क़ बेचने…
हर खरीददार बोला, अपनों के दिये तोहफे बिका नहीं करते

मेरे दिल की गहराइयों में छुपी है ये कहानी,
जहाँ दर्द के बीज उगाए, प्यार के फूल खिला नहीं करते।

प्यार की कीमत सबको समझाने को आया था मैं,
पर जब देखा दुनिया ने, रिश्तों का मोल गिना नहीं करते।

हर चेहरे के पीछे छुपा है दर्द और गम का सौदा,
जब तक शायद उन्हें ख़रीदने वाला उनकी अदा समझा नहीं करते।

अश्क बिकाने गया था बाज़ार में, लेकिन वहाँ कोई ख़रीदने वाला नहीं,
क्योंकि प्यार और दर्द की कीमत कोई तोला नहीं करते।

सोचकर बाजार गया था।

यह भी पढे: हमसे नाता तोड़ कर, दिल को छु जाए, सिसकिया , मेरी आँखों को पढ़,

Ghazhab Hota

kuch behtreen sher o shayri jo dil ko chhu jaaye , jo pyar mei the ya hai unka dil bhi aaj pighal jaaye , ise tute hue dil ko jod jaaye , kuch rula bhi jaaye aesa hi kuch likhte hai Vaibhav agarwal jinki yeh series
Ghazhab hotaMere likhe hue sher bhaag-9″ 

161.
Usnain kaha pyar main na rukta hai koi na jhukta hai koi…
hum nain kaha pyar to ek wo mandir hai koi..
rukta hai wahan gujarne wala har koi…
sir jhukata hai wahan ki pooja ho jaise chal rahi koi…

162.
pyar nahin kiya tha unse pooch kar …
ab wo nahin hain to ismain unki kya khata hai…
main bhi kar baitha beinteha pyar to ab bhool nahin pata ek pal bhi unhe…
aye malik bata ismain meri kya khata hai…

163.
ab na tootenge kisi paththar se thokar khakar…
ek baar to ankhon main patti si bandh gayi thi…
ab na lagaunga dil na naina kisii se…
ab rehjaunga bhale hi andha hokar…

164.
jab pehali baar dekha to dekhta reh gaya..
Bahot deedaar hua par thoda reh gaya…
wo chale gaye jane kahan aur main wahin khada reh gaya…
unhe har gali dhoondha par dhoondhta reh gaya…
pyar to bahot kiya hai par thoda reh gaya…

165.
Parindo ki udaan parinde hi jaane…
mere khwabon ki udaan meri dil hi jaane..
bas ek pal ka vichaar yun kehna tha…
kahin hawa main udne ke chakkar main pairon tale jameen na chali jaaye…

166.
Aajadi
aajaad khayalon ki, aajaadi khayalon ko jeene ki
ajad khwab dhekhne ki , ajaadi khwabon ko poora karne ki
Ajaad pyar ki, ajaadi pyar karne aur jatane  ki
ajad khushi ki, ajaadi khushi bantne ki
ajad sachchayi ki , aajaadi sach kehni ki
ajad rahon ki, ajaadi se un rahon par sir utha ke chalne ki
hum ajaad hain, is ajaadi par garv karne ki
hum kush hain, Khushi hai ek ajaad bhartiya hone ki

167.
Bada dard hota hai jab ujaalon ko dekhkar apne andhere yaad ate hain…
hadd to tab ho jati hai jab apne ujaalon ke din yaad ate hain…
badal to baras ke chale jaate hain…
Mere hi suraj par kali ghatayen reh jati hain…
aur bheege hue se hum sookhne ke intezaar main khade reh jaate hain…

168.
thoda sa muskuraye to khushi bantne aagaye..
tum ne ek bhi ansun bahaya to hum dukh bantne aagaye…
jab humain dukh banten ki jaroorat padi…
to tum kisi aur ki khushi main shareek ho gaye…


169.
hawayen samandar ki thandi si hain aur nam bhi…
halat mere dil si, ke lehren to yadon ki mere dil main bhi kam nahin…
kyun aksar tu mere khayalon main ata hai…
har mausam ekdum se barfeela ho jata hai..
har raah main guzre se mod yaad ate hain…
tere sang bitaye wo pal yaad ate hain…
palon ko bhulana bhi asan hai lekin…
dil main ek makaam banaya hai tune…
us kone ko mitane ki koshish main hum nakaam reh jaate hain…

170.
khud ko kahin chupa kar…nayi jindagi jeene ki chahat hai meri…
kal,kal tha mera chala gaya…ab aaj main jeene ki chahat hai meri…

171.
pyar wahi jo mil jaye to khuda hai…na mile to saza hai…
main to wo deewana hun jo khuda ki chahat main saza kaat raha hai…
khuda ka deedaar hota hai bas khwabon main hi…
bas iska hakikat main dhalne ka intezar hi meri saza hai…

koi to khuda se deedaar kara de mujhhe…
bas yahi intezaar hi shayad meri saza hai..

172.
Kisse kahun ki tu mera kya hai..
kise batlaun tu mera kya tha…
baat hai is deewanepan aur zunoon ki…
iske siwa tu mere pyar aur kya hai…

173.
tu to khada hai mana ek dorahe par…
phir bhi ek rasta to hai manjil ka…
kahi mud to jaoge kisi manzil ki umeed par…
jab se chooti hai teri gali…
meri to rahen hi kho gayi hai…
ulajh gayi hai jindgi ek gol chakkar par

174.
humne ki mohabbat to gunah ho gaya…
pyar wo kiya jo kahin fanna ho gaya…
tujhe apna banane ki chahat thi dil ki bas…
mera janebahar to nahin par dil main ek dard reh gaya…

aise koshishon main hamesha nakanayab reh gaya…

175.
ek pal ko lagta hai sab kuch hai yahan..
ek pal ko lagta hai kho gaya main jane kahan…
main to rehta hun isi gali isi sheher main…
mera dil jaane rehta hai kahan…

176.
Pehle bhi tujhe chahata tha…
ab bhi tujhe dilojaan chahata hun…
pehle tujhe paane ki koshish poore dil se karta tha…
ab tujhe dil se bhulane ki poori koshish karta hun…

177.
to Ghazhab hota…
tumne kaha main bahot achcha hun.. agar ye khud bhi maan lete to Ghazhab hota…
ek achayi sau buraiyon pe bhari hai… humari to ek burai mauf kar dete to Ghazhab hota…
Doosron se khushi baantna napasand kiya… us khushi ka karan jaante to Ghazhab hota…
ped ke patton sa khush gawar dekha… jadon main faila dard dekhte to Ghazhab hota…
upper se roothna saha tumne mera… dil main chupe pyar ki gehrayi ko dekhte to Ghazhab hota…
Kinare par khade nav ka intezaar hai… pyar ke saagar main doobte to Ghazhab hota…
Pyar Main nazraane kai maange tumne…pyar ko nazrana shamajhte to Ghazhab hota…
Pyar hai mera sachcha khuda ki kasam… yahi samajh jaate to Ghazhab hota…

178.
Jab saamne the to deedar ke sahare hi din nikal jata tha…
tere jaane par main us dil sa ban gaya hun…
jis dil ko dhadakna to ata hai…
par jo ek baar dhadakne ko bhi taras jata hai…

(Jo saamne hoti to deedar ke sahare hi din nikal jata…
tere samne na hone par main us dil sa ban gaya hun…
jis dil ko dhadakna to ata hai…
par jo ek baar dhadakne ko bhi taras jata hai…)

179.
Marna chahate the par maut na mili…
jeena chahate the magar tu hi na mili…
rona chahate the to hazaar aansun mil gaye…
hansna jo chaha to, tere khayaal agaye…
(hansna jo chaha to, tere saath ki khushi hi na mili…)

180.
lo chala carwan mere sapno ka…
manjil nahin sathi Raston Ka…
kuch paraye kuch apno ka…
milna bichadna fir sath yadon ka…

Vaibhav Agarwal

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Chaho Agar

Mere likhe hue sher part-8 , chaho agar koi pyara sa insaan,chaho agar ek pyari si muskaan,chaho agar ek pyara sa dil,jis dil main ho tumhari pehchaan,to sahi chuna hai tune mujhe

141. kat rahi hai jindagi kaat raha hun…
kuch apne kuch paraye rishte apne kandhon par dho raha hun…
koi sochta hai kuch achcha bhi mera ..
to uski kya galti jo bura hi hota hai mera…
nikal lunga yun hi  hanste hue main jindagi ka safar…
jindagi ka pata nahin maut ko to bana lunga humsafar mera…

142. Mera dil todkar tune kuch bura toi nahin kiya…
ab har tukda ek seene main dhatakta hai…

143.mujhse na poocho unki nazron main jaake dekho ..
aj mere saath nahin par mujhe dhoondhti to hai…
haal mera nahin unka bhi dekho…
wo mere nahin hai.. par mera dil to unka hi hai…

144.Mat pooch mere dost meri maut ke nazaare hain hazaar…
Ek choti si maut se mera kya hoga…

145.Pyar
ek haseen lamha ya lamho ki kadi…
lamhon ki kadi ya janzeer…
mazboot janzeer ya kamzor kadiyan…
kamjor kadi ya dil ki lagi…
ye dil ki lagi ya dillagi…
dillagi hi  main dil kho gaya…
dil kho gaya ki mila naya thikana…
dil ka theekana mera ya uska bhi hai…
wo mera paraya hai aur main uska hi hai…

146.bas dhundhli si yaad hai baaki…
bas unka ek ehsaas hai baki…
Berukhi ka shikaar hua hun…
Bas shikaar ki maut hai baaki…

147.Is Tofano se bhari jindagi ke saagar main wo mera sathi tha…
wo mera majhi tha par humsafar nahin tha…
meri jindagi ki nav ko kinaare lagake use chor ke jaana hi tha…
wo chor gaya beech majhdaar main hi toofano main akela…
majhi main humsafar dhoondha to ye to hona hi tha…
chalo ab tairna bhi aagaya pehle to bas doobna hi ata tha…

148.humain bhi pata hai wo sahi nahin hai
unhe bhi pata hai ki hum galat nahin hain..
yuhi ek pal main chor diya unko…
dil tod diya mera ki sheesha nahin hain…

149.chalna to chahat hun par paon hi nahin hai…
udna main chahata hun par pankh hi nahin hai…
rona main chahata hun par ankhon main ansun hi nahin hai…
chal to lun bina paon ke bhi par koi sahara hi nahin hai…
ud to lun sapno main hi par ab koi sapna bhi nahin hai..
ro to lun kisi aur ke dukh par… na jaane kyun mere siwa koi ab dukhi bhi nahin hai…

150.Ye kaisa pyar hai ki jata nahin
Nafrat hai tumse ki pyar nahin…
Ladai bhi tumse baat bhi tumse
Bas ab teri yaad hai tera saath nahin…

151.Hogaya ab wahi jo hona nahin chahiye tha…
khogaya ab wohi jo khona nahin chahiye tha…
karna hai ab wahi jo karna nahin chahiye tha…
bas milta hi nahin jo mujhe chahiye tha…

152. tu bewafa hai ye to main nahin janta…
main galat tha ya tu galat ye bhi main nahin janta..
janta hun to bas itna ki tujhe bhoolna nahin janta…
meri jindagi tere bina ek pal bhi bitana nahin janta…

153.paas hi baithe hain par kitni dooriyan hai…
dekhte hain mujhko par nazren kahin aur hain…
pehle nazroon ka dayra bhi chota na tha…
ab to dil ke dayre main bhi koi aur hai…

154.hum to dhoondhte hain bahane mehkhane bhi jana tha…
kabhi khushi to kabhi gum bhi bahana tha…
kabhi main to kabhi koi aur bhi bahana tha…
bas peena tha mujhe tu to bas ek bahana tha…

155.Mujhe tu kya poochta hai pyar ke maane…
main to khud dhoondh raha hun mohabbat ke paimaane…
is saagar main na utarna tairne ke bahaane…
yahan to kood ke aana hai sirf doobjaane…

156.chaho agar koi pyara sa insaan,
chaho agar ek pyari si muskaan,
chaho agar ek pyara sa dil,
jis dil main ho tumhari pehchaan,
to sahi chuna hai tune mujhe,
Parchayi nazar ayegi usiki jo dekho meri ankhon main.

157.pyar karna bhi aasaan nahin tumse…
chor dena to mumkin hi nahin ek bar jo mil liya tumse…
lo Pyar to kar liya hai beshumar tumse…
par chorne ki choti si koshish bhi nahin ho pati humse…

158.Ek andaaj ye bhi hai humara….
kuch dard hai unka kuch saath hai humara…

159.
Maine kya khoya maine kya paya…
sochne biatha to bas itna paya…
ki sochta raha kya hai khona pana…
to kahin aisa na ho jaye…
wo bhi khodun jo badi mushkil se hai paya…

160.
Jo bhoolne layak tha…
wo to kisi layak hi nahin tha…
use bhooljana hi behtar hai..

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Sabkuch lut gaya

sabkuch lut gaya sabkuch manga tha par kuch na mila…kuch na lutane ka socha tha par sabkuch lut gaya … baki mujhme kuch na raha sabkuch , likhe hue sher………..

101. tere har ashk par mujhe bhi rona aya…
jab tujhe gussa aya jane mujhe bhi kyun gussa aya…
har waqt teri khushi ka hi khayal aya…
in jajbaton ko tu kabhi samajh nahin paya…
tujhe bhi mujh par pyar aye…
bas yahi khwab har raat sone par aya…
ab tujhe bhulane ka waqt hai aya…
der se hi sahi par ye khayal bhi mujhe abhi aya…

102. tera haath thaam kar in ishq ki galiyon main kadam rakh liya hai…
beech rah main jaane kyun tune apna daaman chura liya hai…
hum to abhi bhi inhi galiyon main bhatak rahe hai…
shayad tujhe apni manjil ka thikana mil gaya hai…

103. har lamha teri yadon main guzaara hai…
har intezaar teri yadon se sajaya hai…
har yaad par tujhko hi pukara hai…
har pukaar ke baad fir intezaar hi sahara hai…

104.dhadhakte armano se dil to mera hi jalta hai…
har armaan par ek ansun to mera hi chalakta hai…
duniya ke liye to atishbazi ka sa tamasha hai…
ghar to yaron phir bhi mera hi jalta hai…

105.neend ye kambhakt kyun ati nahin…
jaan ye kambhakt kyun jati nahin…
roro ke dil mera kyun bharta nahin…
hansne ki baari bhi kambhakt ati nahin…

106.chooti jo unki gali…
veerano main bhatak raha hun..
choota jo unka saath to…
tanhaiyon main jee raha hun…
choota jo uska nazaara…
jindagi ki door dheeli kar raha hun…
talash to jari hai…
choota hua dhoondh raha hun…

107.jindagi khatam nahin hoti ek patthar se thokar khakar…
fir khade ho gaye hain rahon main tera saath paakar…

108. suraj to roj nikalta hai bas mera hi savera nahin hota…
main hamesha se tera hi tha tu hi ek pal ke liye mera nahin hota…

109. rooth ke wo mujhse baitha hai… shayad meri hi khata hai…
ab berukhi hi sehna hai mujhe… shayad yahi meri saja hai…

110.ab dil tut bhi jaye to kya, ab mera nahin hai…
wo chhoot bhi jaye to kya, ab mera nahin hai…
har lamha wo mera tha… tha, ab mera nahin hai…

waise bhi kya fark pad jayega, jab mera hi nahin hai…

111. jaane kya hua sab mere dukh main dukhi se nazar ate hain…
ab to hawa mai udte patte bhi chatpatate nazar ate hain…

112. rah ke patthar ko thokar na maar…
shayad ye unka dil bhi ho sakta hai…
un pattharon ko yun hata na rahon se…
ki banana hai ghar inhi pattharon se isi rah par…

113. humain to dhokon ki adat si ho gayi hai…
kabhi jindagi to kabhi maut bhi dhoka de jati hai…
jao ab na jindagi ki jaroorat hai na marna chahata hun…
bas ab ye kashmakash na ho ye khwaish hai dil main…

114. chal mere dil apne arman kahi dafn kar chal…
jab bhi nikla hai ek arman kisi nain kuchla hai har pal…
bas bahot hua ab na rona hai aur ek pal…
tu hi tera sahara hai tu hi khud sambhal…

115. Sabkuch manga tha par kuch na mila…
kuch na lutane ka socha tha par sabkuch lut gaya
baki mujhme kuch na raha sabkuch to mera usnain chura liya…
ab to bas kuch gum hain kuch yaden hain jise apna sabkuch bana liya…

116. unki yadon ke aane ka kya kahe kuch hisaab hi nahi…
kabhi puchega to kya jawaab dunga…khud mere paas hi jawaab nahin…
kya jindagi main sason aur dil main dhdkan ko ginne ka bhi tareeka hai kahin…

117. kaun kehta hai main tanha nahin rehna chahata…
main to teri yadon mai…
tere khayalon mai…
tere dil ki gehrayion mai…
tere din mai…
teri raaton mai…
tere khwabon mai…
tere baton mai…
teri nazaron mai..
teri pasand mai…
teri khwaishon mai…
teri ankhon ke samandar mai…
teri bahon mai…
tu jise chahe un naamo mai…
kuch khon ke darr mai…
teri khushiyon mai…
teri kamyabiyon mai…
tere junoon mai…
teri pagal pan mai…
teri masti mai…
tere dukh bantane walon mai…
tere nakhre uthane walon mai…
tere sang jindagi bitane walon mai…
tere saath jeene mai…
tere saath marne mai…
tujhse judi har cheeze mai har waqt, har lamha, har pal main tanha rehna chahta hun mai…

118. yun dhalte din ko dekh kar.. yun dhalte suraj ko dekh kar…
mera bhi dil bhuja bhuja sa hai…
par fir dil main ek ummeed bhi hai…
naye chadte din ur ugte suraj ko dekh kar…

119. Gum ke sahare ki talash thi tujhse takra gaya…
Mohabbat ki talash thi tujhse takra gaya…
Khud se bhagta raha jindagi bhar yu hi…
jab apno ki talash main nikla to tujhse takra gaya…
jab Jindagi ki talash main nikla to tujhse takra gaya…

(bahot tadpa hun dardon ke ghere main…
Gum ke sahare ki talash nikla to tujhse takra gaya…

rote rote ankhon ke ansun bhi peegaya main…
Jab khushi ki talash main nikla to tujhse takra gaya…

nafraton ki barish main bheegta raha main…
Mohabbat ki talash nikla to tujhse takra gaya…

Khud ke saye se bhi bhagta raha main…
jab apno ki talash main nikla to tujhse takra gaya…

kya jeena mera, bas jinda tha main…
jab Jindagi ki talash main nikla to tujhse takra gaya…)


120.
dil kehta hai unka pegam jaroor ayega…
par unhe apne pegam padhne se fursat hi kahan…
intezaar hai unke ek khat ka par…
shayad ye khat likhne ka waqt bhi unke pass kahan…
shayad ye khat bhi mere naseeb main kahan…

Vaibhav Agarwal Mere likhe hue sher part 6