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उलफ़त की कहानी

उलफ़त की कहानी लिखते हैं हम शेरों की ज़ुबान से,
जब दिल का इश्क़ उभरता है, और रूह को छू जाता है।

उल्फ़त की चाहत में जब दिल बेकरार हो जाता है,
हर वक़्त उसका जिक्र करने को तैयार हो जाता है।

जब उल्फ़त का रंग बदलता है वक़्त के साथ,
दिल में नयी धड़कनों की आवाज़ उठ जाती है।

उल्फ़त की आग में जब दिल जलता है,
हर एक दर्द को बहुत गहरा महसूस करता है।

उल्फ़त की बेवफ़ाई में जब दिल टूट जाता है,
हर एक ख्वाब बर्बाद हो जाता है।

उल्फ़त की इक नज़र जब दिल को चूमती है,
ज़िन्दगी की हर चीज़ प्यार की मिसाल बन जाती है।

उल्फ़त की बातें करते हैं हम शेरों की ज़ुबान से,
जब इश्क़ की लहरें दिल को बहुत भाती हैं।
उलफ़त की कहानी लिखते हैं हम शेरों की ज़ुबान से,
जब दिल का इश्क़ उभरता है, और रूह को छू जाता है।

यह भी पढे: हमसे नाता तोड़ कर, हम आसमान छूटे है, इश्क की खुमारी,

दर्द का दिखावा

दर्द का दिखावा करने की बात नहीं हमे,
शायरी के जरिए अपनी दिल की बात कहने की है फिजूल सी चाह।
ये शब्द बस एक जुबां का खेल है,
जो हमारे दिल के अंदर छुपे दर्द को बयां करता है खूबसूरती से।

जब रोया था दिल, तो शब्दों के आँसू बहाए,
जब जला था दिल, तो शायरी की रोशनी जगाए।
ये कलम हमारी खुद की आवाज़ है,
जो दर्द को सुनाती है अपनी जुबान से खामोशी से।

शायरी के रंग में रंगते हैं हम,
दिल की बातों को सुनाते हैं हम।
जब खो जाते हैं शब्दों में तबाही,
शायरी के जरिए उभरते हैं हम नयी मिशालों में।

दर्द का दिखावा नहीं होता हमारी शायरी में,
वो सच्चा दर्द हमारे गीतों में छिपा है।
जब तक शब्दों की रौशनी है ज़िंदगी की राहों में,
दर्द और शायरी का मेल हमारी पहचान बनी है।

दर्द का दिखावा
Shayri

हमे नहीं आता दर्द का दिखाना
बस अकेले रोते हैं और सो जाते हैं

मेरी नींद पर कभी

मेरी नींद पर कभी मेरा हक न था, ये दिल रोज़ रोया,
ज़िंदगी के रंग उजाले गए, नींद की रातों में खोया।

आँखों की नींद चुराने को रवाना कर दिया,
चाँदनी रातों में सपनों को गले लगाने को रवाना कर दिया।

जब रात की घनी छांव में सोने का सवाल नहीं,
ज़िंदगी के ख्वाबों को लूटने का हक़ नहीं।

अधूरी रातों में चाँद को देखते रह गये,
नींद के सपने धुंधले से रह गये।

लेकिन जब हक़ नहीं मेरी नींद का कोई,
तो शायरी के रंग में खुद को ढलाने को रवाना कर दिया।

मेरी नींद पर कभी
मेरी नींद

मेरी नींद पर कभी भी हक मेरा ना था
पहले तुम थी इसकी मालिक फिर तुम्हारी यादें बन गई…

जो मुहब्बत इज्जत

जो मुहब्बत इज्जत देकर सजाई जाती है,
यक़ीन मानिए वो हमेशा निभाई जाती है।

दिल में बसी उम्मीदों की रौशनी होती है,
प्यार की मिठास से ज़िंदगी सजाई जाती है।

जाने कितनी बार दिल को चोट पहुंची होगी,
पर मोहब्बत की राहों में चलाई जाती है।

धड़कनों की ताल पर ज़िंदगी की गाथा लिखी जाती है,
वफ़ा की मिसालें दिल को समझाई जाती है।

मुहब्बत का सिलसिला बेहतरीन होता है,
वफ़ादारी की कहानी सदा सुनाई जाती है।

जो मुहब्बत इज़्ज़त देती है और सजाती है,
उसे दिल से आप सदा प्यार निभाती है।

जो मुहब्बत इज्जत देकर सजाई जाती है
जो मोहब्बत इज्जत देकर सजाई जाती है

जो मुहब्बत इज्जत देकर सजाई जाती है ,
यक़ीन मानिए वो हमेशा निभाई जाती है…

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तलाश न करना

कभी शब्दों में तलाश न करना वजूद मेरा,
ज्यों की आवाज़ में छुपी है मेरी कहानियाँ।
मैं सदैव फूलों के रूप में खिलता हूँ,
खुद अपनी मुस्कान से गुलशन सजाता हूँ।

हर एक पंक्ति में छुपी है मेरी रूह की गहराई,
जैसे काव्य के स्वर्गीय आभूषण बनी है।
इस जगत के रंग और धुंध से परे,
मैं लहरों के संग अपनी विचारधारा लाता हूँ।

जब चांदनी रातों में चाँद तितलियों संग नाचता है,
मैं सदैव अपने सपनों को सच में बदलता हूँ।
मेरे शब्द नहीं, मेरे भाव ही मेरी उपस्थिति हैं,
इस शायर की दुनिया में अक्सर इसीलिए बसता हूँ।

तो खोजें न शब्दों का मेरे मित्र, तलाश मेरी आत्मा की,
मेरी कविताओं में छिपा है एक अनमोल रहस्य।
सदैव जीवित रहता हूँ मैं अपनी शायरी के रूप में,
तो लिखें और पढ़ें मेरे वचन, और खुद को पाता हूँ।

कभी शब्दों में तलाश न करना वजूद मेरा
कभी शब्दों में तलाश न करना वजूद मेरा

कभी शब्दो में तलाश ना करना वज़ूद मेरा,
मैं उतना लिख नहीं पाता जितना तुम्हें चाहता हूँ..

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हम आसमान छूते है

अगर हमारे रोकने से वो रूक जाते
तो हम उनके सामने झुक जाते, हम आसमान छूते है

हम आसमान छूते है
Sanjay gupta shayri

जब हमारी रफ्तार से उन्मुक्त हो जाते,
और दूर तक वो हमें रोकने की कोशिश करते,
तो उन्हें जवाब में हम ये शायरी लिखते:

ज़िंदगी की राहों में चाहते हो रोकना हमें,
हम तो उड़ान भरने का जुनून रखते हैं।
ये वक्त नहीं रुकने का, ये रवाना हैं हम,
कोई ताकत नहीं जो हमें थाम सकते हैं।

जब बादलों की तरह हम आसमान छूते है,
और चाहते हो तुम हमें यहाँ ठहराने के लिए,
तो ये ख़्वाबों की दुनिया है, ये अद्भुत हैं जगह,
कोई बंधन नहीं जो तुम हमें थाम सकते हैं।

हम नदियों के सागर से उछलते हैं,
और चाहते हो तुम हमें बंधन में बांधने के लिए,
तो जाओ तुम और खो जाओ अपनी कहानी में,
हम तो खुद ज़िन्दगी के साथ निभाते हैं।

ये रास्ते नहीं रुकने का, ये आगाज़ हैं हमारा,
जिन्दगी की लहरों में हम बहते चलते हैं।
तुम चाहे जैसे भी हमें रोको, हम नहीं थमेंगे,
शायरी के सहारे अब हम बदलते चलते हैं।

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सोचकर बाजार गया

सोचकर बाजार गया था अपने कुछ अश्क़ बेचने…
हर खरीददार बोला, अपनों के दिये तोहफे बिका नहीं करते

मेरे दिल की गहराइयों में छुपी है ये कहानी,
जहाँ दर्द के बीज उगाए, प्यार के फूल खिला नहीं करते।

प्यार की कीमत सबको समझाने को आया था मैं,
पर जब देखा दुनिया ने, रिश्तों का मोल गिना नहीं करते।

हर चेहरे के पीछे छुपा है दर्द और गम का सौदा,
जब तक शायद उन्हें ख़रीदने वाला उनकी अदा समझा नहीं करते।

अश्क बिकाने गया था बाज़ार में, लेकिन वहाँ कोई ख़रीदने वाला नहीं,
क्योंकि प्यार और दर्द की कीमत कोई तोला नहीं करते।

सोचकर बाजार गया था।

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अधूरा ही रहने दे

मुकम्मल ना सही तो अधूरा ही रहने दे
ऐ सितमगर, ये इश्क है कोई मकसद तो नहीं।

दिल की गहराईयों में छुपी उम्मीदें हैं,
जो जगा रहीं हैं, मगर अभी तक नहीं मिली।

आग जब भी जलती है, दिल में एक ख्वाहिश है,
जो बुझा रहीं हैं, मगर अभी तक नहीं मिली।

खुशियों की दौलत में कुछ कमी सी है,
जो पूरी नहीं हुई, वो ख्वाब तो नहीं मिली।

शायद ये इश्क ने छीन ली है सारी रातें,
पर वो सुबह अभी तक नहीं मिली।

ज़िंदगी की राह में इश्क का सफर जारी है,
कुछ ऐसी ही अधूरी कहानी रहने दे।

ऐ सितमगर, तू ही तो है जो रुका है मेरे दिल को,
मुकम्मल ना सही, पर अधूरा ही रहने दे

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Ghazhab Hota

kuch behtreen sher o shayri jo dil ko chhu jaaye , jo pyar mei the ya hai unka dil bhi aaj pighal jaaye , ise tute hue dil ko jod jaaye , kuch rula bhi jaaye aesa hi kuch likhte hai Vaibhav agarwal jinki yeh series
Ghazhab hotaMere likhe hue sher bhaag-9″ 

161.
Usnain kaha pyar main na rukta hai koi na jhukta hai koi…
hum nain kaha pyar to ek wo mandir hai koi..
rukta hai wahan gujarne wala har koi…
sir jhukata hai wahan ki pooja ho jaise chal rahi koi…

162.
pyar nahin kiya tha unse pooch kar …
ab wo nahin hain to ismain unki kya khata hai…
main bhi kar baitha beinteha pyar to ab bhool nahin pata ek pal bhi unhe…
aye malik bata ismain meri kya khata hai…

163.
ab na tootenge kisi paththar se thokar khakar…
ek baar to ankhon main patti si bandh gayi thi…
ab na lagaunga dil na naina kisii se…
ab rehjaunga bhale hi andha hokar…

164.
jab pehali baar dekha to dekhta reh gaya..
Bahot deedaar hua par thoda reh gaya…
wo chale gaye jane kahan aur main wahin khada reh gaya…
unhe har gali dhoondha par dhoondhta reh gaya…
pyar to bahot kiya hai par thoda reh gaya…

165.
Parindo ki udaan parinde hi jaane…
mere khwabon ki udaan meri dil hi jaane..
bas ek pal ka vichaar yun kehna tha…
kahin hawa main udne ke chakkar main pairon tale jameen na chali jaaye…

166.
Aajadi
aajaad khayalon ki, aajaadi khayalon ko jeene ki
ajad khwab dhekhne ki , ajaadi khwabon ko poora karne ki
Ajaad pyar ki, ajaadi pyar karne aur jatane  ki
ajad khushi ki, ajaadi khushi bantne ki
ajad sachchayi ki , aajaadi sach kehni ki
ajad rahon ki, ajaadi se un rahon par sir utha ke chalne ki
hum ajaad hain, is ajaadi par garv karne ki
hum kush hain, Khushi hai ek ajaad bhartiya hone ki

167.
Bada dard hota hai jab ujaalon ko dekhkar apne andhere yaad ate hain…
hadd to tab ho jati hai jab apne ujaalon ke din yaad ate hain…
badal to baras ke chale jaate hain…
Mere hi suraj par kali ghatayen reh jati hain…
aur bheege hue se hum sookhne ke intezaar main khade reh jaate hain…

168.
thoda sa muskuraye to khushi bantne aagaye..
tum ne ek bhi ansun bahaya to hum dukh bantne aagaye…
jab humain dukh banten ki jaroorat padi…
to tum kisi aur ki khushi main shareek ho gaye…


169.
hawayen samandar ki thandi si hain aur nam bhi…
halat mere dil si, ke lehren to yadon ki mere dil main bhi kam nahin…
kyun aksar tu mere khayalon main ata hai…
har mausam ekdum se barfeela ho jata hai..
har raah main guzre se mod yaad ate hain…
tere sang bitaye wo pal yaad ate hain…
palon ko bhulana bhi asan hai lekin…
dil main ek makaam banaya hai tune…
us kone ko mitane ki koshish main hum nakaam reh jaate hain…

170.
khud ko kahin chupa kar…nayi jindagi jeene ki chahat hai meri…
kal,kal tha mera chala gaya…ab aaj main jeene ki chahat hai meri…

171.
pyar wahi jo mil jaye to khuda hai…na mile to saza hai…
main to wo deewana hun jo khuda ki chahat main saza kaat raha hai…
khuda ka deedaar hota hai bas khwabon main hi…
bas iska hakikat main dhalne ka intezar hi meri saza hai…

koi to khuda se deedaar kara de mujhhe…
bas yahi intezaar hi shayad meri saza hai..

172.
Kisse kahun ki tu mera kya hai..
kise batlaun tu mera kya tha…
baat hai is deewanepan aur zunoon ki…
iske siwa tu mere pyar aur kya hai…

173.
tu to khada hai mana ek dorahe par…
phir bhi ek rasta to hai manjil ka…
kahi mud to jaoge kisi manzil ki umeed par…
jab se chooti hai teri gali…
meri to rahen hi kho gayi hai…
ulajh gayi hai jindgi ek gol chakkar par

174.
humne ki mohabbat to gunah ho gaya…
pyar wo kiya jo kahin fanna ho gaya…
tujhe apna banane ki chahat thi dil ki bas…
mera janebahar to nahin par dil main ek dard reh gaya…

aise koshishon main hamesha nakanayab reh gaya…

175.
ek pal ko lagta hai sab kuch hai yahan..
ek pal ko lagta hai kho gaya main jane kahan…
main to rehta hun isi gali isi sheher main…
mera dil jaane rehta hai kahan…

176.
Pehle bhi tujhe chahata tha…
ab bhi tujhe dilojaan chahata hun…
pehle tujhe paane ki koshish poore dil se karta tha…
ab tujhe dil se bhulane ki poori koshish karta hun…

177.
to Ghazhab hota…
tumne kaha main bahot achcha hun.. agar ye khud bhi maan lete to Ghazhab hota…
ek achayi sau buraiyon pe bhari hai… humari to ek burai mauf kar dete to Ghazhab hota…
Doosron se khushi baantna napasand kiya… us khushi ka karan jaante to Ghazhab hota…
ped ke patton sa khush gawar dekha… jadon main faila dard dekhte to Ghazhab hota…
upper se roothna saha tumne mera… dil main chupe pyar ki gehrayi ko dekhte to Ghazhab hota…
Kinare par khade nav ka intezaar hai… pyar ke saagar main doobte to Ghazhab hota…
Pyar Main nazraane kai maange tumne…pyar ko nazrana shamajhte to Ghazhab hota…
Pyar hai mera sachcha khuda ki kasam… yahi samajh jaate to Ghazhab hota…

178.
Jab saamne the to deedar ke sahare hi din nikal jata tha…
tere jaane par main us dil sa ban gaya hun…
jis dil ko dhadakna to ata hai…
par jo ek baar dhadakne ko bhi taras jata hai…

(Jo saamne hoti to deedar ke sahare hi din nikal jata…
tere samne na hone par main us dil sa ban gaya hun…
jis dil ko dhadakna to ata hai…
par jo ek baar dhadakne ko bhi taras jata hai…)

179.
Marna chahate the par maut na mili…
jeena chahate the magar tu hi na mili…
rona chahate the to hazaar aansun mil gaye…
hansna jo chaha to, tere khayaal agaye…
(hansna jo chaha to, tere saath ki khushi hi na mili…)

180.
lo chala carwan mere sapno ka…
manjil nahin sathi Raston Ka…
kuch paraye kuch apno ka…
milna bichadna fir sath yadon ka…

Vaibhav Agarwal

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Sirf ashk hi gwahi

Sirf ashk hi gwahi hai

1) Sirf ashk hi gwahi de sakte hain meri ki dil ……. kitni siddhat se yaad karta hai tujhe

2) Cheen leta hai har cheez mujh se e khuda …………..kya tu mujhse bhi zyada greeb hai

3) Raste me koi meel ka pathar nhi aaya muddat se safar …………….me hoon abhi tak ghar nhi aaya

4) Akkl me yun to nhi koi kmi ek zra diwangi barkrar hai

5) Bahana koi to de e zindgi ki zine k liye majboor ho jaun

6) Kuch duri rakhiye mujhse nhi to mohabbat ho jaegi…..

7) Koshish na kr sbhi ko khus rakhne ki
Kuch logon ki narazgi bhi zaruri hai charcha me bne rahne k liye

8) Main apna haal likhta rahta hoon
Or log ise mohabbat kahte hain

9) Jhurriyan pad gyi hain chahre pr use yad kartey kartey
Kambakht ek bar dekhne bhi nhi aata

10) Buzdil hain vo log jo mohabbat nhi karte
Bahut hosla chahiye barbad hone k liye

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